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बिजु को पुलिस वैन से उतरते देख सभी रिपोर्टर और कैमरामैन बिजली की फुर्ती से दौड़ पड़े, कोई पुछ रहा था “निर्दयता से मारना तुम्हारा रोज़ का काम है ना?” कोई पुछ रहा था “पुलिस के हाथ लगने से पहले कितनों को मारा?” तो कोई पुछ रहा था “मासूम को मार कर क्या ख़ुशी मिली?”
इन सब में से जो सबसे अनुभवी और दोगला रिपोर्टर था, उसने तो मानो समां ही बाँध रखा था। ऐसा लग रहा था की आज ही तेल साबुन के प्रचार से न्यूज़ कंपनी को मालामाल कर देगा:
ग़ौर से देखिए इस मासूम चेहरे में छिपे हत्यारे को।
ग़ौर से देखिए वहसी-दरिन्दे को।
ग़ौर से देखिए खुनी भेडीए को।
इसके ख़ामोश आँखों को मत देखिए, हाथों को देखिए, इसी से मासूमों को मार डाला।
याद कर लिजिए इस इंसानियत के दुश्मन को… आने वाले समय के बेहतरीन नेता का खुन किया है। इसने ऐसे पिता से उसके पुत्र को छिन लिया जो पुरी तन-मन से जनता की सेवा करते हैं और लागातार चार बार से विधायक का चुनाव जीत रहे हैं।
पुलिसवालों नें धकेलते हुए सभी रिपोर्टर को दूर किया और इंस्पेक्टर बिजु को हथकड़ी में ही अदालत के अंदर ले गया।
अदालत लगी थी, जज साहब आए, सब ने खड़े हो कर अभिवादन किया।
हाँ वकील साहब, केस शुरु किया जाए।
जज साहब, मुजरिम से सवाल पुछना है।
इजाज़त है।
अदालत को अपना नाम बताओ।
जी, बिजु…
विधायक के बेटे और उसके दोस्त को क्यों मारा?
मारा नही साहब, अपना बचाव किया।
झुठ, खुन करना पेशा है तुम्हारा…
ऑबजेकसन मी लॉड (सरकारी वकील)
जज: वकील साहब सिर्फ़ केस से जुड़े सवाल किजीए।
जी जज साहब।
हाँ तो बिजु, खुन क्यों किया?
साहब, कहा न, खुन नही बचाव किया।
ठिक है, किस हथियार से मारा?
कुदाल से बचाव किया।
जज साहब, मुजरिम ने अपना गुनाह क़बूल कर लिया है, आप अपना फ़ैसला सुना दिजीए…
सरकारी वकील: रुकिए जज साहब, मुझे भी कुछ पुछना है।
ठिक है, इजाज़त है, सवाल पुछिए..
बिजु, पहले तो तुम अपने आप को संभालो, मैं समझता हुँ तुम्हारा दुख… पुरी बीती बात बताओ जज साहब को।
जज साहब, मेरी उम्र तक़रीबन दस साल की रही होगी। नदी में बाढ़ आने से पुरा गाँव डुब गया था। मुश्किल से हमलोग बचते-बचाते विधायक जी के घर पहुँचे थे। चूँकि विधायक जी का घर गाँव से दो किलोमीटर दूर और नदी से बहुत ऊँची जगह पर बनी हुई थी।
घर बोलना कम होगा, वो तो दरअसल महल है.. अपने आस-पास की सभी ज़मीनें खरिद कर उसको दीवार से घेर लिया था।
कुछ लोगों ने तो ख़ुशी से ज़मीन बेच दी थी, बाक़ी बचे लोगों को लठैतों ने संभाल लिया था… ख़ैर…
हमलोग बाढ़ से बचने के लिए एक सप्ताह से ज़्यादा रुक गए थे विधायक जी के अहाते में। दो वक़्त का खाना भी दे रहे थे विधायक जी। जब बाढ़ ख़त्म हो गई और नदी के पानी का स्तर कम हो गया तब तक सब बह गया था।
घर, खेत, खलिहान… सब बराबर हो कर मैदान बन चूका था। किसकी ज़मीन कहाँ है किसी को समझ नही आ रही थी।
हमलोग भुखे ना रहें इसलिए विधायक जी के पास गए: उन्होंने कहा, हम कुछ हल निकालेंगे तब तक तुम सब हमारे खेतों मे काम करो। हम रहने और खाने का इंतज़ाम करा देंगे।
तक़रीबन महिना भर गुज़र गया लेकिन विधायक जी कुछ हल नही निकाले, गाँव वाले जब बात करने जाते तो वो टाल जाते। उपर से उनका नौकर सलीम अपने साथी असलम और दो चार चमचों के साथ आ कर डराता धमकाता।
जब गाँव वालों से नही रहा गया तो सबने ख़ुद ही फ़ैसला कर लिया की पुरे गाँव की ज़मीन हम आपस में बराबर बाँट लेंगे। अच्छे विचार से सब गाँव पहुँचे तो देखा विधायक जी का नौकर सलीम बैठ कर चमचों के साथ दारु पी रहा है और बाक़ी लोग ट्रेक्टर से खेत बना रहे हैं।
हमने पुछा तो पता चला विधायक खेत बनवा रहा है, पहले तो हमने सलीम और चमचों को मार-मार कर अधमरा कर दिया और फिर उसी ट्रेक्टर से अपने लिए खेत बना लिया।
विधायक शायद हमारी एकता से घबरा गया था इसलिए कुछ नही कर पाया। हमलोग सब फिर से गाँव में रहने लगे। तक़रीबन बीस साल बाद हमारा गाँव क़स्बा बन गया और वहाँ से नेशनल हाईवे का रास्ता बन गया।
अब विधायक बुढ़ा हो चुका है लेकिन चमचे अभी भी गुंडई करते हैं। अब तो विधायक का बेटा भी जवान हो चुका था। अचानक से एक दिन हमारे पास आया और ज़मीन बेचने की बात करने लगा।
हुज़ूर अगर हम ज़मीन बेच देते तो रहते कहाँ? क्या करते? कहाँ जाते? इसलिए हमने मना कर दिया।
उसने बहुत समझाया और उधार की रोटी भी याद दिलाई लेकिन फिर भी हम नही माने। अब वो रोज़ आने लगा अपने हरामखोर चमचों के साथ और कभी हमारे घर की औरतों को गंदी नज़रों से देखता तो कभी बच्चियों को।
सलीम और बाक़ी चमचे आधे बुढे हो गए थे फिर भी बच्चियों के उपर गंदी नज़र रहती। एक बार तो हद हो गई, स्कूल जाती बच्चियों को उठा लिया और हमें डराने लगे… बोल रहे थे इनके साथ *%#*#*%* करेंगे तो मुश्किल से छ: महिने सज़ा होगी… लेकिन हम सभी बच्चियों के साथ…. उस दिन डरा कर वापस हो गए की शायद हम मान जाएँगे। लेकिन हम नही माने… लगभग एक महिना बाद विधायक का बेटा आया और उसके गुंडे भी। विधायक ने शराब की बोतल से सबको शराब पिलाई और बोल दिया आज “आर या पार”… उसके बाद सलीम और असलम ने हर घर से बच्चियों को चमचों के साथ मिल कर उठा लिया।
हमलोग खेत में काम कर रहे थे… औरतें रोती हुई आई, हम सब कुदाल ले कर भागे। जब पहुँचे, तो देखा बच्चीयाँ डर कर चिल्ला रही थी और रो रही थी। जब तक वो अपनी बंदुक संभाल पाते हमने हमाला कर दिया। एक-एक कर सभी को कुदाल से काट दिया… मेरे हाथ विधायक का बेटा लगा इसलिए मैंने उसे कुदाल से काट दिया।
जज साहब, अगर बच्चियों के साथ कुछ हो जाता तो मुश्किल से कुछ महिने या कुछ साल की सज़ा मिलती उन दरिंदों को… या फिर विधायक कोई गंदी सोच का वकील कर लेता और सब बेगुनाह साबित हो कर छुट जाते। अगर फिर भी आपको दलाल पत्रकारों की बातें सही लगती है और आपको भी लगता है की:
मैं पेशेवर खुनी हूँ।
मासूम चेहरे में भेड़िया हूँ।
इंसान के भेष में दरिंदा…
तो फिर सुनाईए फ़ैसला और चढ़ा दिजिए फाँसी पर। हमको आपके फ़ैसले और क़ानून से कोई शिकायत नही होगी।
जज ने घड़ी की तरफ़ देखते हुए कहा, आज कोर्ट यहिं बर्खास्त की जाती है…अगली सुनवाई अगली तारिख को की जाएगी।
मुकेश कुमार (अनजान लेखक)