(15 दिसम्बर 2023 को प्रकाशित मेरी कहानी उदारता का आज यानि 25 अप्रैल 2024 पुनः प्रकाशन हुआ है,कुछ पाठकों की प्रतिक्रिया थी कि कहानी का अंत अधूरा सा है,कहानी के नायक की अधोगति दिखाई जानी चाहिये थी,सो उसी कहानी का यह दूसरा भाग प्रस्तुत है।)
दूसरी प्रेमिका रीमा से शादी करने के लिये तलाक लेने की पेशकश में मनीष अपनी पत्नी माधुरी को 20 लाख रुपये तथा फ्लेट का आफर देता है जिसे माधुरी ठुकरा देती है और गर्भवस्था में ही तलाक के कागजो पर हस्ताक्षर करके घर छोड़ देती है,नयी राह की खोज में।) अब आगे—-
भूतकाल
माधुरी के लिये आगे का मार्ग कोई सरल नही था। मनीष की धन संपत्ति को वह ठुकरा चुकी थी और मनीष का बच्चा पेट मे था, आगे की राह की कोई योजना तो थी नही। माधुरी अपनी एक बचपन की सहेली प्रभा के यहां गयी और उसे सब घटना क्रम बता कर कुछ दिन उसके यहां रुकने की गुजारिश की। प्रभा ने माधुरी की कहानी सुन उसे अपने से चिपटा लिया और कहा माधुरी तुमने ठीक निर्णय लिया, तुम मेरे यहाँ जब तक चाहो रुक सकती हो।
माधुरी के जीवन संघर्ष की पहली बाधा दूर हो चुकी थी।अगले दिन से ही माधुरी ने जॉब ढूढ़ना शुरू कर दिया।अभी उसके पास गर्भवती होने के कारण छः सात माह शेष थे,उसके बाद उसे मात्रत्व अवकाश लेना था,इसलिये उसे एक जॉब की महती आवश्यकता थी।एक स्थान पर इंटरव्यू देने गयी माधुरी को आश्चर्य तब हुआ जब इंटरव्यू लेने वाले हरदीप उसके पिता के मित्र निकले,वो भी माधुरी को तुरंत पहचान गये।चौक कर हरदीप जी ने माधुरी से पूछा अरे बेटा तुम?तुम्हे नौकरी की क्या जरूरत पड़ गयी?माधुरी की आंखों में छलके पानी ने हरदीप जी को सबकुछ समझा दिया।उन्होंने माधुरी को अपना सेक्रटरी नियुक्त कर लिया।
हरदीप जी के अपना कोई बच्चा था नही,बस पत्नी और वह।उन्हें माधुरी के आ जाने से बड़ी मानसिक सपोर्ट मिली।माधुरी भी जी जान से उनकी कंपनी में कार्य करने लगी।कभी कभी रात्रि की तन्हाई में उसे मनीष की याद जरूर आती पर वह उस याद पर काबू पा कर अपने पेट मे पलने वाले बच्चे पर ध्यान केंद्रित कर लेती।
हरदीप जी ने माधुरी को अपने बंगले में ही रहने को तैयार कर लिया।जैसे ही माधुरी की सातवां माह प्रारम्भ हुआ,हरदीप जी ने उसे आफिस जाने को मना कर दिया और घर पर ही आराम करने को कह दिया,हरदीप जी की पत्नी ज्योति भी माधुरी को खूब प्यार करने लगी थी और उसका खूब ध्यान भी रखती।
समय पूरा होने पर माधुरी ने बेटे को जन्म दिया।हरदीप जी ने उस खुशी में बड़ी पार्टी दी। छः सात माह पश्चात माधुरी ने कंपनी का काम पुनः संभाल लिया।हरदीप जी अब माधुरी को अपनी पुत्री ही मानने लगे थे।अधिकतर कंपनी के मामले में वे माधुरी से ही डिस्कस करते थे। माधुरी ने भी उन्हें निराश नही किया और पूरे मनोयोग से कंपनी के उत्थान में अपने को झोंक दिया।
माधुरी का बेटा बिल्कुल मनीष पर गया था,उसे देख एक हूक सी जरूर उठती, पूरे दो वर्षों का मनीष का सानिध्य उसके जेहन में घूम जाता।एक झटके से वह पुरानी। यादों को झटक देती।
आज हरदीप जी की तबियत ठीक नही थी और उन्हें एक मैनेजर के लिये कंपनी ऑफिस में इंटरव्यू लेना था,सो उन्होंने ये जिम्मेदारी माधुरी को सौंप दी।माधुरी पूरे आत्मविश्वास के साथ उस दिन ऑफिस गयी और इंटरव्यू लेने लगी।तीसरे कैंडिडेट को देख कर माधुरी बुरी तरह चौक गयी,उसके सामने मनीष खड़ा था।कमजोर सा, थका थका सा, मनीष,वह भी माधुरी को देख चौक गया।
माधुरी ने अपने को संभाला और मनीष से इतना कहा मिस्टर मनीष आपको यह नौकरी नही मिल सकती। माधुरी पिछली बातों को भूल जाओ,मैं बहुत परेशानी में हूँ, मुझे माफ़ कर दो माधुरी।रीमा ने हमे तबाह कर दिया,जिसके कारण तुमसे तलाक लिया था,माधुरी उसने हमें खोखला कर दिया,मां भी परलोक सिधार गयी,कहती थी माधुरी की हाय लग गयी है।आज मैं नौकरी ढूढने को मजबूर हूँ।माधुरी हम फिर साथ रह सकते हैं, नयी जिंदगी जी सकते हैं।
बिल्कुल शांत चित्त से मनीष को सुनकर माधुरी बोली देखिये मिस्टर मनीष अब इन बातों का कोई मतलब नही,मैं सब कुछ भुला चुकी हूं।मुझे कंपनी का हित देखना है।कंपनी को वफ़ादार कर्मचारी चाहिये और मेरा अनुभव कहता है वो आप नही हो सकते,जो अपनी पत्नी का,अपने होने वाले बच्चे का नही हो सकता वो कंपनी का वफादार कैसे हो सकता है? आई एम वेरी सोरी,, मिस्टर मनीष नाउ यू कैन गो।
कहकर माधुरी एक झटके से उठकर दूसरे कमरे में चली गयी।अकेला खड़ा रह गया मनीष ठगा सा।माधुरी भूतकाल से वर्तमान में जी रही थी तो मनीष वर्तमान में भूतकाल खोज रहा था।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित।
हां अब कुछ खाली पन सा भरा
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