Moral Stories in Hindi : रोशनी एक पढ़ी-लिखी संस्कारी लड़की। उसके मन में बहुत कुछ करने की चाह, आसमान में उड़ने की चाह।
किताबों में बहुत दिल रखती, हमेशा कुछ ना कुछ खोजने की कोशिश करती। उसकी बहुत इच्छा थी पढ़ लिखकर अपने माता-पिता का नाम रोशन करें और अपने पैरों पर भी खड़ी हो जाए क्योंकि वह चाहती थी कि उसका जीवन उसकी मम्मी के जैसा ना हो। यह बात नहीं थी कि उसके पापा एक खराब व्यक्ति हैं। लेकिन उसने अभी तक जो अनुभव किया अपने परिवार में वह यही था कि उसकी माँ को हर कदम पर दबना ही पड़ता था।
गलती चाहे किसी की भी हो इल्जाम इर-फिर कर माँ पर ही आता। अगर खाने में मसाले हल्के रह जाए तो पापा तुरंत कहते,”ध्यान कहां रहता है तुम्हारा। खाना भी ढंग से नहीं बना सकती हो और तो तुम क्या करोगी?”
और अगर किसी दिन खाने में मिर्च मसाला तेज पड़ जाए तो अम्मा-बाबा पूरा घर सर पर उठा देते थे।
भैया के नंबर अगर एग्जाम में कम आ गए तो उसकी भी दोषी मम्मी ही होती। अपने बच्चे तो पढ़ा नहीं सकती ढंग से, बाहर नौकरी करने जाओगी। यही परिवार के सभी सदस्यों का जुमला होता।
आर्थिक स्थिति में भी उसने देखा की मम्मी को खर्च के पैसे के लिए पापा के आगे हाथ फैलाने ही पड़ते। पूरे खर्च का हिसाब दिखाना पड़ता तब जाकर बिल पास होता था।
इन बातों को देखकर रश्मि खींज सी गई थी।
पूरा दिन घर के कामों में व्यस्त रहने के बावजूद उसकी मम्मी की कोई खास वैल्यू नहीं थी। पूरा घर चाची के कसीदे पढ़ता था क्योंकि चाची अमीर घर की जो थी।
लेकिन उसकी मम्मी की तपस्या का परिणाम ही था जो रोशनी पढ़ने लिखने में इतनी होशियार निकल गई।
लेकिन उसकी दादी को नहीं रास आ रहा था उसका पढ़ना लिखना। उच्च-नीच का डर दिखाकर उसकी दादी उसकी शादी का दवाब बन रही थी।
आज उसको देखने लड़के वाले आने वाले थे। लड़का अमीर घर से था। यही उसकी सबसे बड़ी खासियत थी।
वह रोशनी से पढ़ाई लिखाई में भी कम था।
देखने-दिखाने का दौर चला। होने वाली सास को रोशनी एकदम पसंद आ जाती है। मुंह मीठा किया जाने लगा सबका। मिठाई खाते ही रोशनी की होने वाली सास कहने लगती हैं,”भगवान की कृपा से रूपए पैसे की कोई कमी नहीं है हमारे यहां। रोशनी अब तुम्हें पढ़ने लिखने की कोई जरूरत नहीं है। हमारे यहां बहुएं नौकरी नहीं करती। हमारे घर पर तो बहुएं घर की मालकिन हुआ करती हैं। उनका काम तो रसोई और घर संभालना ही होता है।”
संध्या जी (रोशनी की होने वाली सास) की सब हाँ में हांँ मिलाने लगते हैं।
रोशनी का होने वाला पति वैभव भी दांत निपोरने लगता है।
रोशनी को बड़ी नागवार गुजरती है यह सब बातें ।
रोशनी खड़े होकर हाथ जोड़ते हुए कहती हैं,”मैं नौकरी करूं या ना करू। यह मेरा खुद का फैसला होगा। आप लोग मेरा #भाग्य_विधाता बनने की कोशिश मत कीजिए।
किसी से उसकी शिक्षा का अधिकार मत छीनो।”
रोशनी के मुंह से ऐसी बातें सुनकर लड़के वालों को तिलमिले लग जाते हैं।
वह रिश्ता करने से इंकार कर देते है। पूरा घर रोशनी के पीछे पड़ जाता है। रोशनी इन बातों को भूल अपनी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान देती हैं। और एक दिन उसकी मेहनत रंग लाती है। उसका चयन एक उच्च सरकारी विभाग में हो जाता है।
आज पूरे घर में जश्न का माहौल है। रोशनी सरकारी गाड़ी में बैठकर ऑफिस जा रही है। दादी बार-बार उसकी नजर उतार रही हैं। जो दादी उसकी राह में रोड़े अटकाती थी वही सबसे ज्यादा गर्व का अनुभव कर रही हैं। क्योंकि रोशनी के साथ-साथ मान सम्मान तो उनका भी ऊंचा हुआ था। पूरा घर रोशनी की तारीफों के पुलंदे बाँध रहा है। आज तो हर कोई उसकी मांँ की भी तारीफ कर रहा है। हर कोई उसकी माँ को सम्मान की नजर से देख रहा है आखिर उन्हीं की मेहनत का तो फल था रोशनी की कामयाबियाँ।
अगर कोई बच्चा किसी क्षेत्र में अच्छे क्षेत्र में प्रयास कर रहा हो तो उसे प्रेरित करना चाहिए। रोड़े अटकाने के लिए तो दुश्मन ही बहुत हैं।
प्राची अग्रवाल
खुर्जा उत्तर प्रदेश
#भाग्य_विधाता शब्द पर आधारित बड़ी कहानी