( सच्ची घटना पर आधारित )
पापा पापा मुझे भी उड़ना है आप कब ले जाओगे मुझे अपने साथ … अशोक को उसकी बेटी काशू ने नींद से उठा दिया , अशोक अपनी बेटी को गोद मैं लेकर बाहर बालकनी में आ गया और उसे आसमान मैं उड़ते पक्षी दिखाने लगा , कोई हवाई जहाज अगर आसमान मैं उड़ता दिख जाए तो वो काशु की नन्ही नन्ही उंगलियां उसकी तरफ करते हुए दिखाते की देखो एक दिन काशी
भी उड़ेगी आसमान मैं ।
नीलिमा की आवाज सुनकर दोनो बाप बेटी अंदर आ जाते है , नीलिमा अशोक को चाय देती है और काशी को सैंडविच और दूध देती है , नीलिमा अशोक को घूर रही है .. क्या सीखा रहे हो उसे अरे खुद तो महीनों घर नही आते मुझे ही सब संभालना पड़ता है ऊपर से इसको भी वही सिखा रहे हो एक तुम ही काफी हो इस घर मैं उड़ने के लिए , काशी को मैं नही भेजूंगी कभी भी …
अशोक कहते बच्ची है अभी काशी , नीलिमा जो वो करना चाहती है वही करवाना उसे , उसका दिल बहल जाता है ,उसे भी अच्छा लगता है और मुझे भी , फिर तुम मां बेटी तो हरदम साथ रहती हो ,मैं कितना कम समय बिता पाता हूं अपनी काशु के साथ । तुम उसको सिखा लेना जो तुम चाहती हों मैने कब रोका है ।
पर काशी तो अपने पिता जैसा बनना चाहती हैं वो भी देश की सेवा करना चाहती है ।
और उसने किया भी वही और आज वही ऐतिहासिक दिन है ,आज न सिर्फ काशी के पिता अशोक के लिए बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का समय है ।
साथ ही अशोक और काशी एक नया इतिहास रचने भी जा रहे थे ,आज काशी अपने पिता के साथ एक मिशन के लिए लड़ाकू विमान हाक 132 साथ मैं उड़ाने जा रहे है । पिता के लिए इससे ज्यादा गर्व का क्षण क्या हो सकता है और बेटी के लिए जिस पिता ने उसके सपनो को पंख दिए उन्ही पंखों से आज वो अपने पिता के साथ ही खुले आसमान मैं उड़ रही है ।