त्याग ही जिनका जीवन है। –  सुधा जैन

संसार में कई प्रकार के रिश्ते होते हैं। खून के रिश्ते तो महत्वपूर्ण होते ही है, लेकिन कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो खून के तो नहीं होते, लेकिन इतने पवित्र होते हैं कि उनके बारे में लिखना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे ही एक जीवन चरित्र के बारे में मैं लिख रही हूं, जो खून के रिश्तो से बढ़कर है। बहुत ही पवित्र रिश्ता है।

प्रेम एक शाश्वत सत्य है और उसी शाश्वत सत्य का अनुपम उदाहरण है। त्याग ,समर्पण और रिश्तो की सारी पवित्रता के साथ मैं संस्मरण के रूप में हमारे घर पर काम करने वाले बाई के बारे में आप सबको बता रही हूं। प्रेम एक शाश्वत सत्य है और उसी शाश्वत सत्य का अनुपम उदाहरण है हमारी कमल बाई

प्रेम एक शाश्वत सत्य

कितना पवित्र रिश्ता

कितना बड़ा समर्पण

कितना बड़ा त्याग

 🌹🌹नारी तू अप्रतिम🌹🌹

 हमारी बाई —–कमल बाई

 मेरी नजर में हर नारी चाहे वह पढ़ी लिखी हो, अनपढ़ हो, घरेलू हो, कामकाजी हो ,नई टेक्नोलॉजी से जुड़ी हो, डॉक्टर हो, इंजीनियर हो, गृह सहायिका हो, शिक्षण से जुड़ी हो, फैशन की दुनिया से हो, हर नारी अपने आप में मजबूत होती है ,और आसानी से अपने हिस्से का संघर्ष पूरा करती है।

 इसी बात को लेकर मैं उन नारियों को लेकर कुछ लिखने की कोशिश कर रही हूं जो मेरी अंतरंग है, जिनके जीवन का मुझ पर बहुत प्रभाव है, जिन से कुछ ना कुछ सीखा है। उनके जीवन को सच्चाई से लिखने का प्रयास कर रही हूं।


 इस कड़ी में आज मैं हमारी बाई कमल बाई जो आज भी हमारे साथ हैं, उनके बारे में लिख रही हूं आज से 40 वर्ष पहले बनिया वाड़ी में मेरे पापा जी (ससुर जी) श्रीमल जी जैन साहब मेरी मम्मी जी (सासू जी) अपने 4 बच्चों के साथ  थे मेरी सासू जी का स्वास्थ्य कम उम्र में ही खराब हो गया, उस समय कमल बाई अग्रवाल स्कूल के बच्चों को लाना ले जाना करते थे। धार के खानविलकर परिवार में जन्मी  उज्जैन में ब्याही फिर धार ही रहने लगे थे।
 मेरी मम्मी जी ने पूछा, बाई मेरी तबीयत ठीक नहीं है ।मेरे यहां पर कुछ काम कर लो, आगे तो बाई ने मना किया पर बाद में एक दो बार कहने पर काम करना शुरू किया। धीरे-धीरे सब में मन लगने लगा। बाई के आने के 2 महीने बाद ही मेरी मम्मी जी ने कहा” बाई मेरी तबीयत का कोई भरोसा नहीं मेरे बच्चों को संभालना” और उन्होंने दुनिया से विदा ले ली। बाई सारी रात बच्चों को लिपटा कर बैठी रही। उस दिन के बाद से उनके  उपकारों  का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज भी अनवरत जारी है।

घर के सारे काम करना, घर को सहेजना पापा का ध्यान रखना ,बच्चों को प्यार से बड़ा करना, फिर जब मैं आई मेरी सर्विस होने से मेरे बच्चों शुभम व सृष्टि को एक दादी से बढ़कर प्यार देना, परिवार के सभी बच्चों  को प्यार देना और वह भी निस्वार्थ भाव से, कभी कोई लालच नहीं, बस स्नेह के धागे ऐसे बने हैं कि विश्वास ही नहीं होता कि भगवान दुनिया में इतने अच्छे प्राणी भी बनाता है। दुनिया के समस्त स्वार्थ भरे रिश्तो के बीच ऐसा पवित्र रिश्ता भी होता है ,

इस बात की कल्पना को हमारी बाई ने साकार किया है। यही नहीं परिवार के हर सदस्य की ,मिलने वालों की सभी की पसंद का ध्यान रखते हैं। बाई के पास आप जाओ, बाई के हाथ की चाय, काफी, पराठे, चटनी सब कुछ लाजवाब है। उम्र के 80 वर्ष के पड़ाव पर भी आदरणीय पापा जी की सेवा समर्पण से कर रही है ।बाई इस जन्म में तो हम आपके ऋण से उऋण नहीं हो सकते। मेरा सारा परिवार भी बाई से बहुत ही स्नेह और आदर से रहते हैं।  बाई के भाई, भाभी  भतीजा, भतीजा बहू और भी सभी  बाई का बहुत ख्याल रखते हैं।

बाई भी अपने  भाई भतीजे से जुड़ी हुई है।  ऐसी निश्चल ,पवित्र ईमानदार ,हमारे परिवार के प्रति समर्पित नारी को हमारे परिवार का शत-शत नमन है। ऐसे पावन पवित्र रिश्ते को भी हम सबका नमन है । उनके पावन त्याग को नमन है।

मां अपने बच्चों से प्यार करें ,पति पत्नी प्यार करें ,दादा दादी अपने पोते पोती से प्यार करें ,यह सब तो जीवन के प्रेम के उदाहरण है ही ,पर कोई रिश्ता ना होने के बाद भी कोई नारी किसी पुरुष से, परिवार से ,उनके बच्चों से, निस्वार्थ भाव से प्रेम करें ईमानदारी से जीवन की अंतिम सांस तक उसका निर्वाह करें ,उस प्रेम की के शाश्वत होने पर कोई संदेह कभी भी नहीं किया जा सकता ,और कमल बाई का प्रेम इसी प्रकार का है।

 

 “बाई आपके शाश्वत प्रेम के बारे में क्या लिखूं?

 मेरे शब्द कम पड़ जाते हैं,

 आपके जीवन का समर्पण और प्रेम देखकर हम नतमस्तक हो जाते हैं “🙏🏻🙏🏻🙏🏻

“नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में,

 पीयूष  स्त्रोत सी बहा करो जीवन के सुंदर समतल में”

 श्रीमती सुधा जैन

 23 त्रिमूर्ति नगर धार

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