” टूटते रिश्ते ” – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

मीता का आज मन नहीं लग रहा था ।आज चौबीस मई है ।पति के गुजरे पूरे बीस वर्ष पलक झपकते न जाने कैसे बीत गया ।कितनी खुशहाल थी वह अपनी गृहस्थी में ।कितने जतन से बचाया था उसने अपने परिवार के बीच ” टूटते रिश्ते ” को।

आज अचानक क्यों याद आ रहें हैं उसे ।कहीं तो कोई तार जुड़ा हुआ है जिन्दगी के सफर में ।सोलह साल की थी वह जब  सोमेश की दुल्हन बन कर आयी थी घर में ।गोरी चिट्टी, कमनीय काया थी उसकी ।एक दम बच्ची लगती थी ।

और सोमेश पूरे छह फुटे।साँवले सलोने ।रंग जरा ज्यादा ही गहरा ।दूर की दादी सास ने तो यहाँ तक कह दिया था ” दुलहिन, तुम तो अरवा चावल हो,और मेरा सोमेश काला तिल ” वह लजा गई थी, और अपने पर गर्वित भी हो गई थी ।

और चचिया सास ने भी अपने बेटे से पूछा था ” कैसी लगी दुलहन?”तो देवर जी ने कहा था कि एक दम बउआ लग रही है पर सोमेश काले थे तो क्या, दिल के बड़े अच्छे थे।पत्नि का खूब खयाल रखते ।मीता भी तो परिवार में तालमेल बना कर रखती ।

सास ,ससुर, जेठ,जेठानी, उनके बच्चे सबमें घुल-मिल गयी थी वह।शादी हुई तो सोमेश कहीँ प्राईवेट सर्विस में ही थे।दो साल के बाद उनकी सरकारी जाॅब लग गई थी ।मीता अन्दर से बहुत खुश हो गई थी ।आखिर हर स्त्री का सपना  होता है

अपनी गृहस्थी बसाने का ।वह सपना पूरा होने जा रहा है ।सोमेश को जल्दी ही क्वाटर मिल गया था ।और वे मीता को ले आये थे ।तब शादी में मिले बर्तन सामुहिक होते थे।अतः खाली हाथ बस से उतरी तो सबसे पहले कुछ राशन और बर्तन की खरीदारी करनी पड़ी थी ।

दो कमरे का सुन्दर मकान, साफ सुथरी कालोनी ।ऐसा ही तो चाहती थी वह।शुरू से ही वह सरकारी आवास में रही थी वह ।पिता जी की भी सरकारी नौकरी थी।और उनको भी अच्छा क्वाटर मिला हुआ था ।कालोनी की लाइफ अलग होती है ।

समय की नियम बद्धता, समय पर खाना पीना, समय पर आफिस, घूमना फिरना, पिकनिक, सिनेमा, सबकुछ ।बहुत अच्छा लगता उसे ।वैसे तो उसका मायका देहात में ही था।पर वहां पुशतैनी मकान के सिवा और कुछ भी न था।परिवार के बच्चे बड़े होते गये,

निकलते गये नौकरी के सिलसिले में ।और जहां गये वहीं बस गये ।कायस्थों की यही सबसे बड़ी कमजोरी होती है ।मीता भी  कहाँ रही देहात में ।पिता को कभी कोई रिश्तेदार लड़के का पता बतलाता देहात का तो माता पिता दोनों नकार देते

“मेरी बेटी तो मर ही जायेगी देहात में ” गांव देहात का रहन सहन, खेती बारी, धान गेहूं, कहाँ से संभाल पायेगी वह ।और बात कट जाती।मीता क्वाटर में आ गई थी ।दिन अच्छी तरह कट रहा था ।परिवार भी तो अच्छा मिला था उसे ।

दोस्ती में ही शादी तय हुई थी उसकी।पिता जी और सोमेश के बड़े भैया राजेश जी में भी कभी दोस्ती रही थी।एक ही मुहल्ले में, सामने ही उनका आवास था।मीता को घर पर टयूशन पढ़ाने आते थे राजेश जी ।और एक दिन अपने छोटे भाई के लिए उसका हाथ मांग लिया था

” आपकी बेटी मीता बहुत शान्त और समझदार है, मै अपने छोटे भाई के लिए उसका हाथ मांग रहा हूँ ” फिर पिता जी कैसे इन्कार करते ।बिना लेन देन के विवाह हो गया था ।दोनों भाई में बहुत मेल था।कभी सोमेश ने बातचीत में बताया था

कि दोनों भाई बहुत छोटे थे,तभी बाबूजी घर और परिवार छोड़ कर चले गये थे ।शायद सौतेली माँ के खराब व्यवहार के कारण ।परिवार तो बहुत बड़ा था,पर कोई करने वाला नहीं था ।घर पर माँ अपने दो छोटे बच्चों के साथ दिन काट रही थी।

घर में सास की प्रताड़ना जारी रहती और चार बात सुनना पड़ता तब खाना मिलता ।फिर जब दोनों थोड़े बड़े हुए तो खुद छोटी मोटी नौकरी करके जीवन का निर्वाह करने लगे।फिर बाइस साल के बाद बाबूजी लौटे थे।बारह साल तो पता ही नहीं चला कि

कहाँ हैं ।फिर अचानक एक बार पटना स्टेशन पर हरि काका से भेंट हो गई उनकी ।बाद में हरि काका ही दोनों भाई को ले जाकर मिलवाते थे।लेकिन कितना भी मान मनौवल हुआ, बाबूजी घर नहीं लौटे ।हर बार आश्वासन जरूर देते लौटने का,

पर कभी लौटे नहीं ।फिर मीता के शादी के बाद सोमेश को पता चला कि बाबू जी बहुत बीमार हैं, स्टेशन पर बेसुध पड़े हैं तो सोमेश जाकर ले आये थे ।मीता अकसर अतीत के सागर में गोते लगाने लगती थी ।आज भी वही कर रही थी।

समय के अन्तराल में दो बच्चों की माँ भी बन गई थी वह।बच्चे बड़े हो गये थे ।सास ससुर जी का देहांत हो गया था ।अचानक भाई भाई में फूट का माहौल बन गया था ।जब वहां गांव वाली जमीन को बिना छोटे को बताए चुपके से बेच दिया था ।

तभी से सोमेश का मन बहुत दुखी हो गया ।दुख जमीन का नहीं था।बात धोखे की थी ।सोमेश ने कसम खा ली थी कि वह अब बड़े भैया के यहाँ पैर नहीं रखेंगे और न वहां जायेंगे ।लेकिन मीता को रिश्ते का टूटना एक दम पसंद नहीं था ।

भाई भाई के “टूटते रिश्ते “को बचाना ही होगा ।दुनिया तो औरत को ही गलत समझेगी ।एक दिन मीता ने अपने पति से कहा ” मुझे जाना है भैया के यहाँ, कोई जरूरी काम से ” ” तुम अकेले चली जाओ,मै नहीं जा सकता, उनहोंने धोखा दिया है

मुझे ” सोमेश बोले थे।”पर मैं अकेले कैसे जाउँ?”” ठीक है मैं तुम्हे वहां तक छोड़ दूँगा, मै बाहर ही रहूँगा ” मीता ने सोचा चलो ठीक है कुछ तो बात बनेगी ।प्रयास जारी रखना होगा ।पति के साथ वहां गई तो भाभी ने पूछा ” सोमेश कहाँ हैं?

“” बाहर बैठे हुए हैं ” फिर भाभी आकर सोमेश का हाथ पकड़ कर अन्दर ले गई ।यह सफलता की पहली सीढ़ी थी।पहला प्रयास सफल हुआ था ।अन्दर मीता और भाभी ने साथ खाना खाया ।गपशप किया ।भाई भाई में बोल चाल बन्द रही ।

समय तो लगेगा ही ठीक होने में ।अब मीता हर हफ्ते जाने लगी ।और पति को भी ले जाती।तीन महीना बीत गया ।परिवार संग बैठ कर सोमेश भी अब खुलने लगे थे ।मीता घर में अक्सर पति को समझाती ” आपके हाथ में बहुत ताकत है,

आप फिर जमीन खरीद लेंगे ।वैसे भी गांव वाली जमीन बेकार पड़ी हुई थी, कौन रहने जाता वहां ।” धीरे-धीरे सोमेश शान्त हो गये।मीता समझाती ” परिवार टूटना अच्छा है क्या?,टूटते रिश्ते को बचाना चाहिए, छोटी छोटी उलझनें तो आती ही रहती है

जिन्दगी में ,तो क्या परिवार को छोड़ देना चाहिए? परिवार में एकता रहे तो ताकत मिलती है, घर में लड़ते रहेंगे तो बाहर के लोग फायदा उठा लेंगे ” नहीं इस टूटते रिश्ते को बचाना ही होगा ।और छह महीने के बाद  सोमेश ने शहर में नया जमीन खरीद लिया ।

मकान बनाने की तैयारी थी।उसी का भूमि पूजन था।मायके से सभी लोग आये ।और सोमेश के भैया भाभी भी अपने बच्चों के साथ आ गए थे ।हंसी खुशी के माहौल में पूजा की तैयारी चल रही थी ।बहुत खुश थी मीता ।अपने प्रयास से टूटते रिश्ते को जोड़ा है

उसने ।सबकुछ अच्छा से हो गया था ।दो महीने में मकान भी बन गया था ।और एक दिन पति जो रात को सोये तो फिर उठे ही नहीं ।समय फिर भाग रहा था ।बच्चे अपने पैरों पर खड़ा थे।किसी बात की चिंता नहीं होती थी ।बस कमी थी

तो सोमेश की।आज पूरे बीस वर्ष हो गये ।वर्तमान में लौटी है मीता।मन तो लगाना ही पड़ेगा अपनो के बीच, परिवार के बीच ।दरवाजे पर गाड़ी की आवाज़ लगी।देखा तो बेटा और बहू आया हुआ था ।” मम्मी इतनी उदास क्यों हो,

चलो कल की फ्लाइट की टिकट है, कश्मीर चलते हैं और वैष्णो देवी भी चलेंगे ” अब तो खुश होकर हंस दो” मीता के चेहरे पर मुस्कान तैर गई ।जो बीत गया, अब उसका सोचने से कोई फायदा नहीं, जो सामने है उसे तो भरपूर जी लें।—

उमा वर्मा,

राँची, झारखंड

।स्वरचित, मौलिक ।

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