सड़क पर आज प्रेमा को किसीने आवाज़ दी तो वो पलटी…ये कौन हैं,चेहरा देखा भाला लगा,आवाज भी सुनी
हुई सी पर कौन हैं,नाम न याद आ पाया।
“नहीं पहचाना?”वो बोले,” मै मिस्टर पुरोहित,आपका पड़ोसी,हम द्वारका में संग रहते थे।”
“ओह!आकाश पुरोहित भाईसाब!” प्रेमा के मुंह से निकला,”आप तो एकदम बदल गए,कहां इतने रोबीले
लगते थे,यूनिफॉर्म पहन कर तो आप कमाल ही दिखते थे,क्या हुआ?तबियत खराब है क्या?निधि और बच्चे
कहां हैं?”
निधि का नाम सुनते ही आकाश का मुंह लटक गया,धीमी आवाज मे बोले वो, “छोड़ कर चली गई वो मुझे
अकेले।”
“क्या??उन्हें क्या हुआ था, आय एम सॉरी!” प्रेमा घबरा के बोली।
“छोड़ के गई मतलब दूसरी दुनिया में नहीं”,आकाश गम्भीर था,”अपने पेरेंट्स के पास चली गई”
“ऐसा क्यों ?वो तो बहुत शांत थीं,कभी लड़ते झगड़ते नहीं देखा मैने उन्हें ,न ही कोई शिकायत करती थीं किसी
की,फिर आपकी तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता?”
“वो सचमुच ऐसी ही थी पर मैं ही बहुत खराब हूं..” पुरोहित कहीं खोने लगे थे।
“आप बताएंगे मुझे, आपके मनमुटाव की वजह?”प्रेमा ने रुचि लेते कहा।
“मुझे बहुत जोर जबरदस्ती की आदत थी,कुछ मेरा प्रोफेशन ही ऐसा था,पुलिसगिरी करते करते ये भूल गया
था कि अपने व्यवसाय को घर तक नहीं घसीटना चाहिए,मेरा स्वभाव इतना कर्कश होता जा रहा था कि मैंने
अपने घरवालों को भी इससे नहीं बख्शा।कितना सहती बेचारी,आखिरकार एक दिन तंग आकर चली गई।”
“जब आपको एहसास है तो उन्हें मना क्यों नहीं लाए अभी तक?” प्रेमा ने कहा।
“इतना आसान नहीं होता प्रेमा जी!रिश्ता जब तक शर्म लिहाज मानता है,वो सब कुछ सह लेता है लेकिन जब
एक बार वो कड़ी टूट जाती है तो किसी के रोके तबाही नहीं रुकती, मैं अपने ही बनाए जाल में फंसा हूं।”सिर
झुकाए वो बोला।
मुझे पूरी बात बताएं शायद मै कुछ हेल्प कर पाऊं कुछ….प्रेमा ने कहा तो आकाश उसे पास के ही कॉफी
कॉर्नर पर ले गए।
चलिए!वहां बैठकर बताता हूं।
बहुत सीधी और शांत स्वभाव की है निधि,अब मुझे रियलाइज होता है,मैंने ही सारी हदें तोड़ी थीं,हुआ
क्या,एक बार किसी बात पर मै उससे नाराज हो गया।
“फिर?क्या आपने उसपर हाथ उठा दिया था?” प्रेमा सहम कर बोली।
आकाश की आंखों के आगे वो मंजर घूम गया।
*क्या आप मेरे मायके गए थे मेरी शिकायत करने?” निधि ने तड़प कर पूछा।
*क्यों?नहीं जा सकता??तुम्हारे मायके में कोई नबाब रहते हैं?उन्हें भी तो पता चलना चाहिए उनकी बेटी क्या
गुल खिला रही है? “आकाश गुरूर से चीखा।
“मेरे पिताजी दिल के मरीज हैं आकाश!वो ये सब सहन नहीं कर पाएंगे,इसी वजह से तो मै आपके जुल्म सह
रही थी आज तक लेकिन कहे देती हूं,अब नहीं सहूंगी,अगर उन्हें कुछ हो गया तो मै आपको कभी माफ नहीं
करूंगी।”
निधि हांफने लगी थी बोलते हुए और आकाश पहली बार उसके तेवर देखकर डर गया था दिल में पर प्रकट में
कुछ न बोला।
फिर वही हुआ जिसका डर था,निधि के पापा,उसी रात हॉस्पिटल में एडमिट हो गए और अगले दिन उनकी
मौत की मनहूस खबर ने उनकी निधि को हमेशा के लिए उनसे दूर कर दिया।
वो ऐसी गई कि फिर लौटी ही नहीं दोबारा..आकाश के चेहरे पर पश्चाताप था।
“आपने कोशिश नहीं की होगी,ऐसा मुझे नहीं लगता पर आप कहें तो मै कोशिश करूं क्या? प्रेमा बोली।
“क्या सचमुच?कुछ हो सकता है अब?”आकाश की आंखों में उम्मीद की लौ जली।
“कर देखने में क्या हर्ज है एक बार…” प्रेमा ने उनसे निधि के घर का एड्रेस लिया और उन्हें आश्वस्त किया कि
जल्दी मिलूंगी आपसे किसी शुभ समाचार के साथ।
एक हफ्ते बाद मिली थी प्रेमा आकाश को फिर,एक एक दिन कई कई बरस के समान कटा था उसका,प्रेमा
के आश्वासन से उसे लगा था कि शायद फिर से उसकी जिंदगी जीवंत हो जायेगी।प्रेमा ने कहा था कि वो खुद
उन्हें फोन पर सब बताएगी,वो वहां फोन न करें।
प्रेमा को गए आज सातवां दिन था और उस दिन उसका फोन देख आकाश को मानो नई दुनिया मिल
गई।प्रेमा ने बस इतना कहा था कि वो शाम को उनसे मिलने आयेगी।
आकाश ने सारा घर वैसे ही सजाया था जैसा निधि को पसंद था,उसकी पसंद का खाना भी बनवाया था,बहुत
बेकरारी से वो निधि का इंतजार कर रहे थे।
बैल की आवाज़ से आकाश के दिल की धड़कन तेज हो गई और वो लपक कर उठे दरवाजा खोलने।
“अकेली ही आई हो प्रेमा आप?”आकाश शॉक्ड हो गए थे,वो बेचैनी से इधर उधर ताकने लगे,”निधि नहीं
आई,उसने मना कर दिया आने से?”पूछा था बहुत बेचैन होकर प्रेमा से।
मिस्टर पुरोहित!एक स्त्री हर तरह का अत्याचार सहन कर लेती है,अगर उसका पति या ससुराल वाले उसे
सताते हैं तो वो चुपचाप रह जाती है,सिर्फ अपने पेरेंट्स को दुखी न करने के भाव से,वो अपने नाजुक कंधों
पर ससुराल और मायके दोनो की प्रतिष्ठा ढोती रहती है,मुस्करा कर लेकिन अगर कोई रिश्तों का विश्वास
तोड़ता है तो उनका महल भरभरा के टूट कर बिखर जाता है।जब आपने सारी मर्यादा भंग कर,निधि भाभी के
घर जाकर उनकी बुराइयां की तो उनका विश्वास आप के ऊपर डगमगा गया,इससे ज्यादा आहत आपने उन्हें
कभी नहीं किया था शायद,उनके पिता का जाना फिर उन्हें हमेशा के लिए चुप करा गया,वो खामोश हो गई थीं
,गुमसुम सी रहती और धीरे धीरे,इस चुप्पी ने उनकी जान ले ली।
“क्या??निधि इस दुनिया में नहीं है?”आकाश फूट फूट के रो पड़ा।उसने मुझे माफी मांगने का मौका भी नहीं
दिया, हे भगवान!ये क्या अनर्थ कर दिया,कहकर वो रोने लगा।मैंने अपनी गलत आदतों के चलते अपना
परिवार,अपनी पत्नी सब को खो दिया।मेरे बच्चे भी मुझसे कोसो दूर सात समंदर पार हैं जिन्हें मुझसे मिलने
का कोई शौक नहीं,एक पत्नी ही मेरी सच्ची हमदर्द थी जिसे मैंने हमेशा के लिए आज खो दिया है,कहते कहते
आकाश बच्चो की तरह फूट के रोने लगा लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
#मनमुटाव