…”नितिन क्या कर रहे हैं आप… ऐसा मत करिए… नहीं… छोड़िए मेरा हाथ…!”
” तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई…!”
” मुझे छोड़िए… विधि रो रही है… छोड़िए मुझे…!’
नितिन ने झटके से उसे दरवाजे के बाहर कर दिया… और फटाक से दरवाजा उसके मुंह पर पटक दिया… अंदर विधि जोर-जोर से रो रही थी…
” नितिन… विधि रो रही है… खोलो… दरवाजा खोल दो…!”
दो मिनट बाद दरवाजा खोल कर उसने विधि को भी बाहर कर दिया…
” ले.… रो रही है तो लेकर निकल जा…!”
विश्वास नहीं होता.… उनका अतीत इतना भयानक था… जब वह डेढ़ साल की बेटी को लेकर पहली बार पटना से दिल्ली गई थीं… नितिन नहीं चाहते थे कि वर्षा उनके साथ रहने आए… इसलिए कई बहाने बनाकर… “कभी घर नहीं है… तो छुट्टी नहीं है तो कभी मां को अभी तुम्हारी अधिक जरूरत है… एक साल तो बच्चे के होने से लेकर संभलने देने का बहाना बनाते निकल गया… पर वर्षा की भी जिद थी कि “मुझे अब आपके साथ ही रहना है…!”
आखिर हर लड़की का अरमान अपने पति के साथ गृहस्थी बसाने का होता है… चाहे उसे ससुराल में कितना ही मान आदर मिल जाए… पर पति का साथ ना मिले तो सब अधूरा ही लगता है… इसलिए शादी के तीन साल हो जाने पर… आखिर वर्षा ने सबकी मर्जी के खिलाफ जाकर ही… अपने पति के पास जाने का फैसला किया…
वह ट्रेन से अपनी बेटी को गोद में लिए दिल्ली पहुंच गई… पता तो उसे मालूम था ही… शादी से पहले उसके पापा दिल्ली का घर, नौकरी सब खुद देख कर गए थे…
वर्षा सीधे विधि को गोद में लिए पांचवी मंजिल पर दरवाजे के पास पहुंच गई… कई बार बेल बजाने पर भी दरवाजा नहीं खुला… तो वर्षा ने जोर से दरवाजे को धक्का देना शुरू किया… करीब दस मिनट की कोशिश के बाद दरवाजा नितिन ने ही खोला… उसकी आंखें नींद से लाल थी या फिर नशे से… वर्षा समझ नहीं पाई…
लड़खड़ाते कदमों को संभालते हुए उसने वर्षा को देख अपनी बाहें फैला दी…” ओ वर्षा… मेरी जान… तुम आ गई… मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा था…!”
वर्षा सहम गई… उसने नितिन का यह रूप पहले कभी देखा नहीं था… शादी के तीन सालों तक… उसने जिस नितिन को देखा समझा ये वह नितिन नहीं था…
दो साल पहले उसकी नौकरी छूट गई थी… और कई प्रयास के बाद जब दूसरी जगह नौकरी नहीं मिली तो वह नशे में अपनी नाकामी को भूलने लगा… घर में सिर्फ पापा को सब पता था… वह हर माह कुछ खर्च बेटे को भेज रहे थे… कि यहीं रहकर कुछ काम शुरू करे या फिर नौकरी ढूंढे… लेकिन उसने तो अपनी बर्बादी का रास्ता ढूंढ लिया था… तभी वर्षा को ना वह लाना चाहता था… ना पापा ही उसे भेजना चाहते थे…
यहां आने के घंटे भर में ही वर्षा को सारी बात पता चल गई… उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया… उसने किसी तरह नितिन को संभालने की कोशिश की… लेकिन अब उसकी नाकामी और फ्रस्ट्रेशन का शिकार वर्षा हो रही थी…वह ना कहीं इंटरव्यू देने जाता… ना कुछ तैयारी करता था…
एक दिन नितिन से लड़ते हुए… वर्षा ने उसकी बोतल फोड़ डाली… नितिन उसे रोकने को बढ़ा ही था की वर्षा ने पूरा कार्टन ही… जिसमें पांच बोतले रखी थी… बालकनी से नीचे फेंक दिया… उसका परिणाम था यह… की नितिन ने वर्षा को घर से निकाल कर बाहर खड़ा कर दिया…
पांचवी मंजिल पर… दरवाजे के बाहर खड़ी वर्षा के लिए रात के 11:00 बजे कहीं जाने का कोई ठिकाना नहीं था… वह चुपचाप सन्न सी दरवाजे से लग कर बैठ गई… विधि उसके सीने से लगकर चुप हो गई थी… बीच-बीच में कभी सिहर उठती थी…
वर्षा अपने भाग्य को कोसती… पूरी रात दरवाजे के बाहर बैठी रही… सुबह जब आस पड़ोस में लोगों का आना-जाना शुरू हुआ तो उसने फिर दरवाजा खटखटाया… दो बार खटखटाने पर नितिन ने दरवाजा खोल दिया.… और जाकर सोफे पर पसर गया… वर्षा चुपचाप विधि को लेकर अंदर आ गई… वहीं पसरे हुए नितिन बुदबुदाया…” क्यों करती हो जान ऐसा… मुझे भी नींद नहीं आई… बिना नशे के… तुम तो जानती हो ना… मैं क्यों पीता हूं…!”
वर्षा की आंखों के आंसू रात भर में सूखे नहीं थे… वे फिर छलक आए .…”तो क्या… सब बर्बाद कर दोगे… इस नशे में…!”
नितिन उठकर बैठ गया… सोफे पर हाथ फेरते हुए उसने सिगरेट का डब्बा उठाया और एक जलाकर फूंकते हुए बोला…” बहुत जल्दी समझ गई… तो अब वापस क्यों नहीं जाती… आराम से घर में रहो… वहां तुम्हें किस बात की कमी है…!”
” नितिन तुम्हें समझ नहीं आ रहा है… इस तरह तो हमारा रिश्ता टूटता जा रहा है… मगर मैं इसे टूटने नहीं दूंगी… प्लीज मेरा साथ दो…!”
वर्षा ने यहां हो रही सारी बातें अपने ससुर जी को बताई और पूछा…” क्या कहते हैं पापा आप… क्या करूं.…!”
“मैंने तो पहले ही मना किया था तुम्हें…!” बोलकर ससुर जी ने एक ठंडी आह भरी फिर कुछ सोच कर बोले…” अब एक ही रास्ता है.…!”
दो दिन बाद वे स्वयं दिल्ली आए और बेटे को किसी तरह समझा कर… वहां का घर छोड़ सभी को लेकर पटना आ गए… यहां सभी ने मिलकर नितिन को सुधारने की मुहिम शुरू कर दी… कई दवाएं… कभी खाने में मिलाकर… तो कभी चाय में डालकर… सासू मां स्वयं पूरी तरह बेटे को सुधारने में लग गईं थी… उन्हें तो कुछ पता ही नहीं था… अपने बेटे के इतने बिगड़ जाने की बात…यह सब आसान तो नहीं था… कई साल लग गए… पर किसी ने हिम्मत नहीं हारी…
सब की मेहनत रंग लाई… नितिन फिर से नौकरी तो नहीं पा सके… लेकिन नशा करना छोड़ दिया…
अब यह सफर रहा तो बहुत ही मुश्किल होगा… लेकिन मैं जब पहली बार उनसे मिली… तो दोनों ऋषि पति और पत्नी का आभास दे रहे थे… वर्षा जी के कंठ में दो तुलसी माला… तो नितिन जी के तीन बड़ी-बड़ी रुद्राक्ष मालाएं झूल रही थी…
मन अचानक थोड़ी श्रद्धा से भर उठा… फिर उनके पिछले जीवन की कहानी सुनी… अब लगता है कि… अगर उस समय वर्षा ने नितिन का साथ छोड़ दिया होता तो क्या होता… या अगर वर्षा का साथ.… उसके सास ससुर ने न दिया होता तो क्या होता… सही समय पर सबके सहयोग से ही यह टूटता रिश्ता फिर जुड़ सका…
रश्मि झा मिश्रा