Moral Stories in Hindi : रेनू देश के पर्वतीय क्षेत्र के प्रसिद्ध बोर्डिंग स्कूल से अध्ययनरत, दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक तथा जामिया मिल्लिया से मास कम्युनिकेशन में स्नातक होने के बावजूद विदेश में अलग-थलग पड़ गई थी। वह फ्रांस से एम बी ए करने गई थी। पर वहां की भाषा,रहन सहन में जमीन आसमान का अंतर था।
डिग्री पूरी होने पर वह वापस अपने देश लौट आई और दिल्ली के एक कंपनी में नौकरी करने लगी।उसका परिवार आता रहता और तीज त्यौहार पर वह स्वयं भी अपने घर जाती।सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक दिल्ली में निर्भया कांड हो गया। सभी लड़कियों के मन में डर और दहशत भर गई थी। रेनू तो वैसे भी बहुत कम बोलने वाली, सीधी-सादी लड़की थी। उसने अपनी मां को बताया,वह जब आफिस से शाम को घर आती है तो उसके आगे पीछे मोटरसाइकिल वाले, ऑटो रिक्शा
वाले फब्तियां कसते चलने लगते हैं,वह बहुत डर गई है।
मां ने किसी तरह समझाया, और उसकी शादी कर दी।
लेकिन बाद में दोनों पति-पत्नी ने यह निर्णय लिया कि वो फ्रांस में ही जाकर नौकरी करेंगे। रेनू बहुत डर गई थी और दिन रात दहशत में रहकर वह बीमार होने लगी थी। रेनू और उसके पति दोनों फ्रांस चले गए। जहां रेनू के पति दीपक को तो बहुत बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई क्योंकि उसे फ्रेंच आती थी।पर रेनू तो एक शब्द भी नहीं बोल पाती थी।
दीपक अक्सर उसका मजाक उड़ाता, उसे ताने मारता। तुम से कुछ नहीं हो पायेगा, तुम वापस लौट जाओ। रेनू को सांत्वना देने के बजाय वह उसे लगातार हतोत्साहित कर रहा था।
रेनू ने दुखी हो कर एक दिन मां को सारी बातें बताई और कहा वह अकेले ही वापस आना चाहती है। मां ने उसे समझाया कि नहीं, तुम्हें वहीं रहकर अपनी पहचान बनानी है। तुम हार नहीं मान सकती, तुम मेरी बेटी हो। जिसने कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपने घुटने नहीं टेके। यदि आना है तो दोनों आओ। नहीं तो अकेले आओगी तो तुम्हारी तो जिंदगी उलझनों से भर जाएगी
बेटी ने मां को आश्वस्त किया, दीपक तो हर हाल में नहीं आयेंगे,पर मैं अब आपका कहना मान कर अपने आप को सिद्ध करूंगी कि मैं भी किसी से कम नहीं।
इसी बीच रेनू को इंडिया की सहेली की मदद से एक बैंक में मार्केटिंग मैनेजर की नौकरी मिल गई, वहां इंग्लिश जानने वाले की पोस्ट खाली थी । उसकी कई सहेलियां वहां थीं,उन सबके सहयोग से रेनू ने फ्रेंच कोचिंग क्लास ज्वाइन किया और फ्रेंच बोलने में माहिर हो गई। उसने फ्रेंच ड्राइविंग क्लास ज्वाइन किया और उसमें भी उत्तीर्ण हो गई। जबकि दीपक उसमें कई बार फेल हो गया।इस तरह उसे
ड्राइविंग लाईसेंस भी मिल गया। अब उसमें इतना आत्मविश्वास आ गया था कि वह आगे आगे होकर सब काम करती और दीपक देखता रहता। किसी भी काम में वह दीपक की मदद नहीं लेती थी।
वहां का कोई भी काम हो सब में रेनू पारंगत हो गई थी। उसके आफिस में भी उसके बॉस और उसके कुलीग उसे बहुत सम्मान देते।वह अपने कार्य के प्रति हमेशा समर्पित रहती है। इस लिए उसकी ही हमेशा सुनी जाती है।
आज उसने वहां अपना बढ़िया सा घर ले लिया है। अपनी गाड़ी से आती जाती है। अपनी जिंदगी के सारे फैसले वह स्वयं करती है।
उसके मृदुभाषी सरल स्वभाव और हंसमुख होने की वजह से वह अपने सहेलियों, आफिस और ससुराल वालों की अति प्रिय है।
आज कड़े संघर्षों के बाद उसने अपना मुकाम हासिल किया है। विदेश में सबके बीच एक अलग पहचान बनाई है। एक जुझारू, सशक्त महिला की।
आज वह अपने पति के नाम से नहीं, अपने नाम से जानी जाती है। इसके लिए वह अपनी मां को इसका श्रेय देती है। अगर वह हार कर वापस आ जाती तो उसकी जिंदगी बिखर जाती।
उस पर उसके पति, परिवार और ससुराल वालों को बहुत नाज है।
विदेश में एक अलग अपनी पहचान बनाना, जहां वहां की भाषा का एक भी शब्द ना आता हो, उसमें महारत हासिल करना, कोई आसान काम नहीं था,पर रेनू के धैर्य साहस और लगन ने असंभव को संभव कर दिखाया।
सुषमा यादव, लंदन से
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
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