विधि के बेटे आरुष की कक्षा 3 की परीक्षाएं चल रही थीं, तो वो अपने बेटे को जगाकर उसका टिफिन, बोतल सब यथास्थान रख रही थी| दूसरी तरफ उसका छोटा बेटा अभिराज भी सोकर उठ गया तो उसके लिए भी दूध बनाना था| वैसे भी सुबह के समय हर घर में काम ज़्यादा होता है तो वही भाग दौड़ का माहौल विधि के घर में भी था|
आज पतिदेव नमन भी बेटे को स्कूल छोड़ते हुए ही ऑफिस जाने को तैयार थे तो थोड़ा और जल्दी थी| विधि आरुष के लिए सैंडविच बना चुकी थी और नमन के लिए सब्ज़ी पराठा पैक कर दिया था| चूंकि काम ज़्यादा था और समय कम, तो विधि ने सोचा कि सासूमाँ और ससुरजी के लिए भी नाश्ते में सैंडविच बना देगी, फिर आरुष और नमन को भेजने के बाद खाना बनायेगी| क्योंकि ससुरजी के दोपहर के खाने में दाल चावल ज़रूर होता है|
जब आरुष नहा कर आया तो विधि ने उसे नाश्ता दिया और उसके कपड़े निकाल के रखे, अभिराज भी पास बैठकर दूध पी रहा था| ससुर जी को चाय देकर जैसे ही विधि आरुष को तैयार करने आई वैसे ही अभिराज रोने लगा तो विधि उसका डायपर बदलने बाथरूम में लेकर गयी, जब तक वो अभिराज को साफ करके बाहर लायी तो देखा कि उसकी सासूमाँ यानि कामिनी जी किचन में नमकीन दलिया बनाने के लिए सब्ज़ी काट रही हैं|
विधि को ये सोचकर अच्छा लगा कि आज मम्मीजी उसकी मदद कर रही हैं| जब तक आरुष तैयार हुआ तब तक कामिनी जी की दलिया बन चुकी थी और उन्होंने नमन को प्लेट में दलिया परोस के भी दे दी| विधि दुबारा चाय बनाने लगी| बाहर डाइनिंग टेबल पर नमन दलिया खाते ही बोले, “मम्मी दलिया बहुत अच्छी बनी है, थोड़ी सी टिफिन में भी रख देना”, | कामिनी जी तपाक से बोली, “अब बेटा अगर ढंग से कोई चीज़ बनाई जाए
तो बढ़िया तो बनेगी ही, मैने इसमें कितनी सारी सब्ज़ियां काटकर डाली हैं, खूब अच्छे से बनाया है तभी अच्छी बनी है| ये सुनकर तो विधि सामान्य तरीके से अपना काम करती रही क्योंकि ये एक साधारण बात थी पर आगे कामिनी जी बोलीं, “अब क्या बताऊँ बेटा, बहू का नाम ज़रूर विधि है पर उससे कोई काम विधिवत नहीं होता है,
बस हर काम का शॉर्टकट ढूंढ लेती है| अब मुझे देखो कितने विधिविधान से मैने नाश्ता बनाया है तभी तो तुम्हे अच्छा लगा| “
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ये सुनते ही विधि जो कुछ देर पहले तक मन में सास का आभार मान रही थी कि उन्होंने मेरी मदद की, उसको एक करारा झटका लगा, वो सोचने लगी कि ये मेरी मदद नहीं बल्कि मेरी कमी दिखाने का एक छोटा सा तरीका था| जबकि मैं जानबूझकर कोई लापरवाही नहीं करती, दो छोटे बच्चों को देखते हुए कोशिश करती हूं कि सबका ध्यान रख सकूँ| तभी नमन की आवाज़ विधि के कानों में पड़ी, वो अपनी माँ से कह रहे थे|
“मम्मी, जिसकी जो बात न अच्छी लगे उसे उसके सामने कहा करो और हो सके तो उत्साहवर्धन करना सीखो तो आपके हर काम को वो और मन से करेगी वरना आप अगर हमेशा कमी ही ढूंढेंगी तो आप असंतुष्ट रहेंगी और वो बेफिक्र हो जाएगी| “हमारा छोटा सा परिवार है इसमें संतुलन आप दोनों को ही बनाना है मम्मी वरना संतुलन बिगड़ जाएगा| आप घर की नींव हो मम्मी जिसपे दूसरी मंजिल खड़ी है आपने साथ नहीं दिया तो पूरा घर बिखर जाएगा|
तभी नमन के पापा बोले, “बेटा यही मैने तुम्हारी माँ को समझाया था जब वो दादी के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पा रही थीं, जब पहली मंजिल बन गयी तो दूसरी और बढ़िया बननी चाहिए| ससुरजी की बात सुनकर विधि मुस्कुराने लगी| तभी आरुष बोला, पापा जल्दी दलिया ख़त्म करो, मेरा स्कूल है, उसकी बात सुनकर सब हंसने लगे|
दोस्तों, ज़्यादातर हर घर में यही होता है क्योंकि रिश्तों को फलने फूलने का समय ही नहीं दिया जाता| सास सोचती है कि बहू एक दम परफेक्ट होनी चाहिए और बहू सोचती है कि सास माँ की तरह हर बात बिना कहे समझ ले| पर मेरी समझ से किसी रिश्ते की तुलना किसी दूसरे रिश्ते से नहीं करनी चाहिए| हर रिश्ते की अलग पहचान और गरिमा होती है|
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धन्यवाद
– Cinni Pandey
#रिश्तों में बढ़ती दूरियाँ