मैके से विदा होकर ससुराल आने के बाद सिमी बहू होने की सारी रस्में निभाते- निभाते चूर हो गई थी। वैसे भी ल़डकियों को शादी में सप्ताह दिन पहले से ही अनेकों रस्म-रिवाज भूखे प्यासे निभाने पड़ते हैं ।सो थकान के कारण वह बैठे बैठे ऊँघ रही थी। सिमी को सबने मिलकर उसे अपने कमरे में पहुंचा दिया।
उसका मन हो रहा था कि कब भारी भरकम बनारसी साड़ी का लबादा उतार कर कोई हल्के-फुल्के कपड़े पहन ले और सो जाए।
ऐसा अभी वह सोच ही रही थी कि अभय कमरे में घुसते हुए बोले-” सुनो चेंज करने से पहले जाकर माँ का पैर छुकर आओ।”
सिमी ने सिर झुकाकर कहा-
“जी अच्छा”
सिमी को पता भी नहीं था कि मेहमानों से भरे -पूरे शादी के घर में सासू माँ का कमरा कौन सा है। वह लबादा ओढ़े उन्हें नीचे से ऊपर तक सभी से पूछ कर ढूंढते रही। सभी मेहमान महिलाएं दाँतों से उंगली दबाये देखती रहीं और सबके मूंह से यही निकल रहा था कि मानना पड़ेगा कि आज के जमाने में ऐसी बहू मिलना मुश्किल है।
सास से मिली तो वह बोलीं-” अरे! बेटा तू क्यूँ परेशान हो गई अभी -अभी तो सबको पैर छूकर गई ही थी। मैं जानती हूं तुझे अभय ने भेजा होगा। जाओ आराम करो। कल सुबह उठकर सबको प्रणाम करना होता है।”
सिमी जैसे -तैसे अपने कमरे में पहुँची। अभय उसे समझाने लगा। देखो सिमी मेरे लिए मेरी माँ सबसे पहले है और मेरी पत्नी होने के नाते तुम्हें भी इस बात का गांठ बाँध लेना पड़ेगा। तुम मुझ से पहले और खुद से पहले माँ के बारे में सोचोगी । सिमी ने हाँ में सिर हिलाया और सोचने लगी। विदा करते समय माँ ने भी तो यही नसीहत दिया था कि पति और सास के बाद ही उसे अपना ख्याल रखना है। उसे इतनी समझदारी तो थी कि इस बात को समझे।
दूसरे दिन अभय के जगने से पहले ही वह उठ गई और सास के बताये नियमों को निभाया। आँख खुलते ही अभय ने पूछा सिमी तुमने….
“जी मैंने माँ जी के साथ -साथ सबका पांव छू लिया है। और अब जा रही हूं रसोईघर में चूल्हा छूने “- कहते हुए सिमी नीचे चली गई।
सिमी हमेशा कोशिश करती थी कि वह पहले सास के लिए कुछ भी करे फिर खुद के लिए ।लेकिन अभय के टोका -टाकी से वह खीझ जाती थी। शादी के बाद उसकी पहली वट -सावित्री की पूजा थी। माँ ने मैके से सारे घर वालों के साथ उसके लिए सुंदर सी साड़ी संदेस के साथ भेजा। वह बहुत खुश थी।
अपनी साड़ी निकालकर देख रही थी तभी बिस्तर पर लेटे- लेटे अभय बोल पड़ा -” तुम्हारी माँ ने सिर्फ तुम्हारे लिए साड़ी भेजा है या माँ के लिए भी है।”
अभय के मूंह से ‘तुम्हारी माँ’ संबोधन सुनकर सिमी का चेहरा उतर गया ।उसके मन में एक कचोट सी उठी पर उसने अनसुना कर दिया।
“नहीं ,नहीं जी ऐसा नहीं है माँ ने पूरे घर वालों के लिये कपड़े भेजे हैं।”
“दिखाओ तो जरा।”
सिमी ने सूटकेस खोला और एक -एक कर सबके कपड़े पति को दिखाये। माँ की साड़ी देख कर बोला-” मेरी माँ के लिए यही घटिया साड़ी भेजा है तुम्हारी माँ ने! एक काम करो यह साड़ी तुम पहन लेना और तुम्हारे लिए जो आया है उसे माँ को ले जाकर दो। “
सिमी कुछ पल के लिए ठिठकी तो अभय ने टोका- “क्या सोच रही हो?”
नहीं कुछ भी तो नहीं मैं माँ जी को अपनी साड़ी दे दूँगी आप चिंता मत कीजिए ।अब हर समय हर तीज- त्योहार पर अभय का यही राग रहता पहले मेरी माँ के लिए फिर…..।
धीरे-धीरे सिमी अपने सारे अरमानों को भूल कर अपने लिए सोचना ही बंद कर दिया।
पहली बार मैके से बुलावा लेकर छोटा भाई आया था। सिमी ने जाने से पहले अभय को कुछ गिफ्ट खरीदने के लिए कहा जिसे वह अपने साथ मायके वालों के लिए ले जाना चाहती थी । सुनते ही अभय की भृकुटी तन गई बोला खरीदने की क्या जरूरत है जो झूठ- मूठ का पैसा क्यूँ बर्बाद करना।
“अच्छा ठीक है” ,लेकिन एक सुंदर सी साड़ी माँ के लिए ले जाना चाह रही थी उन्होंने माँ जी के लिए कितनी सुंदर सुंदर साड़ियां भेजी थी।”
अभय बिफर गया और बोला-” अच्छा तो तुम मुझे ताने सुना रही हो? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी माँ से अपनी मां की बराबरी करने की?”
“औकात में रहो समझी।”
” शुक्र मनाओ की मेरी माँ की वजह से ही तुम यहां पर हो ।पता नहीं उसने क्या देखा जो उठा लाई अपने से नीचे लेवल के खानदान से।”
सिमी के अंदर कुछ सुलग सा गया। जी तो चाहा कि सब कुछ उलट पलटकर रख दे। उसके अंदर की आग पानी बनकर उसकी आंखों से गिरने लगी। वह नहीं चाहती थी कि उस के भाई को कुछ पता चले। इसलिए खुद को कपड़े की आलमारी में कपड़ा ढूंढने के बहाने उलझाए रखी।
मायके आई तो सबने मिलकर जोरदार स्वागत किया। माँ से गले मिली तो दर्द नदी की धारा बन फुट पड़ा। माँ डर गईं पूछ बैठी -“बेटा क्या हुआ?”
“तुम खुश नहीं हो क्या?”
माँ तो माँ होती है कहीं भाप न ले इसलिए सिमी ने आंखें पोंछ ली और बोली-” माँ बहुत दिन बाद मिली हूँ न तुझसे तो खुशी की आंसुओ को रोक नहीं पाई। “
कुछ देर यहां वहां के गप- शप के बाद सभी भाई बहन उसके साथ आये कीमती सूटकेस को देखने लगे। बताओ न दीदी, जीजाजी ने हमारे लिए क्या भेजा है?
सिमी कुछ देर के लिए अभय की बातों को भूल गई थी। लेकिन फिर से उसके दिमाग में बीती बातें हरी हो गईं।
सबको आश्चर्य से देखते हुए बोली- ओह्ह अब मैं क्या करूँ?
“क्या हुआ दीदी ?- छोटी बहन ने आश्चर्य से पूछा ।
अरे… क्या बताऊँ छोटी हड़बड़ी में वो वाला सूटकेस
तो छुट ही गया जिसमें तुम्हारे लिए उपहार और माँ के लिए साड़ियां रखी गई थी। “
माँ ने सिमी के माथे पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा-” छोड़ न बेटा हम तुम्हें देखने के लिए व्याकुल हो रहे थे तुम्हारे उपहार के लिए नहीं। तू मेरे लिए सबसे बड़ी उपहार है। “
माँ से झूठ बोल कर सिमी का हृदय छलनी हो गया। वह कैसे और क्या बताए कि उसके पति के दिल में उनलोगों के लिए कोई जगह नहीं है और उपहार तो दूर की बात है।
कुछ दिन रहने के बाद सिमी की सास ने वापसी के लिए गाड़ी भेज दी। सिमी के पिताजी का मन था कि दामाद जी उसे लेने आते। पर अभय को गँवारा नहीं था कि वह सिमी के मायके जाये।
सिमी ने पिता का मान रखने के लिए अभय से दबे स्वर में कहा -” सुनिए जी माँ चाहती हैं कि आप मुझे लेने आते तो अच्छा होता। हमारे यहां की यही परंपरा है।”
अभय बौखला गया उसने साफ कह दिया कि आना चाहती हो तो आ जाओ नहीं तो..उसे कोई शौक नहीं है उस घटिया जगह पर दुबारा जाने का।
और हाँ, मैं तुम्हारी माँ का खरीदा हुआ गुलाम नहीं हूँ जो मुझे आदेश दे रहीं हैं समझी।”
सिमी के कानों में जैसे कोई आग का गोला दाग रहा हो । उसने बहुत दिनों से अपने अंदर की ज्वालामुखी को दबा कर रखा था। अभय के अहंकार भरे शब्दों को सुनकर अचानक से उसका “आक्रोश” फूट पड़ा वह भूल गई कि उसके आसपास कौन खड़ा है।
क्रोध से उसके होंठ कांपने लगे बोली-” एक बात कान खोलकर सुन लीजिये आपको जितना अपमान करना हो मेरा कर लीजिये। मेरी माँ को आप कुछ भी कह लेंगे अब मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी। आप समझते क्या हैं। इनलोगों ने अपनी बेटी अपने से ऊंचे हैसियत वाले परिवार में कर के कोई गुनाह कर दी है क्या? जो अहसान के तले दबे रहेंगे। और आप जब चाहे तब उनका अपमान करते रहेंगे।
भूल भ्रम में हैं आप। मुझे नहीं आना है वैसे घर में जहां मेरे माँ- बाप को सम्मान ना मिले। दूसरी बात बहुत हो गया मेरी माँ… तेरी माँ …का आलाप सुनते हुए। मैं जानती हूं कोई आदर नहीं करते हैं आप अपनी माँ का ।सिर्फ और सिर्फ दिखावा है और कुछ नहीं क्योंकि जो माँ का सम्मान करते हैं वो सबकी माँ का सम्मान करते हैं ।मैंने कभी भेद नहीं किया आपकी माँ और अपनी माँ के बीच।
जाइए बोलिये अपने ड्राइवर को गाड़ी लेकर वापस चला जाए। सिमी ने फोन काट दिया और कमरे से बाहर निकल गई।
सारे परिवार वाले सिमी के आक्रोश को देख कर हतप्रभ थे। सीधी -सादी और सबको प्यार बांटने वाली सिमी के अंदर इतना तूफान भरा था। उनलोगों ने लाख समझाने की कोशिश की पर वह जाने के लिए तैयार नहीं हुई ।
उसने भी शर्त दिया कि वह तभी जाएगी जब अभय उसे लेने आयेगा। उसने अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी की और प्रतियोगिता देकर अच्छी नौकरी हासिल कर ली। माँ -पिता का माथा गर्व से ऊंचा हो गया। पैसे के साथ- साथ प्रतिष्ठा भी बढ़ी।
पूरे परिवार को उसके ऊपर फक्र है। सुना है अभय एड़ी चोटी का ताकत लगा रहा है सिमी को वापस बुलाने के लिए। शायद आ गया है ऊँट पहाड़ के नीचे।
#आक्रोश
स्वरचित एंव मौलिक
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर, बिहार
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