रचिता के ससुराल वाले थोड़ी देर में घर पहुंचते होंगे देखो मुझे मिठाई, नमकीन मेवाराम मिष्ठान भंडार से ही चाहिए… और गुड्डू फल ले आया या नहीं?? और ये लड़की अब तक घर पहुंची क्यों नहीं है जरा से फोन कीजिए… सुनीता जी सुबह से ही हड़बड़ाई थी आखिर लड़की के साथ ससुर उनके घर मिलने आ रहे थे।
मनोहर जी ने उन्हें तसल्ली देते हुए बोले भाग्यवान हम सारा सामान ले आए हैं तुम चिंता मत करो…वो अब हमारे समधी हैं घर के ही लोग हैं अगर कुछ छूट भी जाएगा तो बुरा नहीं मानेंगे… तुम तो कुछ ज्यादा ही चिंता करती हो!!
अजी आप नहीं समझेंगे लड़केवाले हैं जरा सा भी बुरा लग गया तो पता नहीं कहा बदला निकालेंगे… सगाई हो चुकी है मैं जरा भी ऊंच-नीच होने नहीं दूंगी… वैसे भी रचिता 28 की होने आई है अब जाकर तो उसे मोहित पसंद आए हैं। मैं ऐसा अच्छा रिश्ता हाथ से नहीं जाने दूंगी समझे आप…!!
मनोहर जी मुस्कुराते हुए बोले “हां हां तुम जैसा कहती हो वैसा ही होगा” हम लोग कोई गलती की गुंजाइश नहीं रखेंगे।
तभी मनोहर जी की बहन विद्या जी सब सुनकर बोली “भाभी सही कहती हैं भाईसाहब लड़केवालों को जरा सा भी कष्ट नहीं होना चाहिए” वह जैसा कहें उनकी हर बात मानना चाहिए अरे अपनी लड़की दे रहे हैं… और लड़की के मां बाप के कंधे तो उसके पैदा होने पर ही झुक जाते हैं। ये तो शादी ब्याह का मामला है हमें अपने कदम फूंक-फूंक कर रखने होंगे..!!( अपनी भतीजी का रिश्ता बुआ ने ही करवाया था इसीलिए सुनीता जी ने सुबह ही फोन कर अपनी ननद को घर बुला लिया ताकि कोई गड़बड़ हो तो वे संभाल ले…!!)
कुछ देर बाद रचिता के होने वाले सास-ससुर आ चुके थे औपचारिकताओं के बाद सास मधुरा जी ने पूछा “हमारी होने वाली बहू कहां है??? दिखाई नहीं दे रही उसे बुलाइए तो जरा…
जी बहन जी वो स्कूल गई है आती होगी…!!
अच्छा अब तो 3:00 बजने आए स्कूल की छुट्टी तो जल्दी हो जाती होगी फिर इतनी देर कहां लगा दी है उसने?? मधुरा जी ने थोड़ा तुनककर बोला।
जी मैंने उससे कहा था आप लोग आने वाले हैं मगर वो बोली बच्चों के पेपर आने वाले हैं रिवीजन चल रहा है छुट्टी नहीं ले सकती और आप तो जानती है रास्ते में कितना ट्रैफिक होता है इसलिए थोड़ी देर हो गई होगी।
सेंट पॉल हाई स्कूल में ही पढ़ाती है ना हम लोग उसी रास्ते से आ रहे हैं खाली पड़ी थी पूरी रोड मुझे लगता है अपनी सहेलियों के साथ कहीं घूमने फिरने निकल गई होगी। अब ये नौकरी करने वाले किसी की सुनते हैं भला इसलिए मुझे तो पसंद ही नहीं है!!
मधुरा जी के लगातार आती सवालों को का जवाब देना सुनीता जी के लिए बड़ा कष्टकारी हो रहा था।
अपनी भाभी सुनीता का चेहरा सफेद पड़ते देख ननंद विद्या जी बोली “बहनजी शौक के लिए नौकरी करी है बिटिया ने… हमारे घर में भी कुछ खाने पीने की कमी थोड़ी ना थी… कॉलेज के बाद उसका मन था तो हमने इजाजत दे दी… अब शादी के बाद तो बेटी आपकी हो जाएगी आप संभालिए अपनी बहू को जैसे आप चाहे… बातों की जलेबी कैसे बनाई जाती है ये सब विद्या जी अच्छे से जानती थी।
हां बहन जी बहुएं तो घर की शान होती है ऐसे दर बदर भटकने से हम अपनी शान फीकी थोड़ी ना होने देंगे… भई हम तो अपनी बहू को अपनी पलकों पर बिठाकर रखेंगे… क्यों जी…!!
सुनीता जी को ये सारी बातें अच्छी नहीं लग रही थी उनका हमेशा सही सपना था बेटी को पढ़ा लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा करेंगी इतना सक्षम कर देंगी कि कभी किसी के सामने उसे हाथ ना फैलाने पड़े… माना घर परिवार में सब अपने होते हैं मगर जहां बात स्वाभिमान की आती है वो सिर्फ अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत होने से ही आती है।
उन्होंने हमेशा ही रचिता को आत्मनिर्भर होने पर जोर दिया क्योंकि कहीं ना कहीं संयुक्त परिवार की वजह से उन्हें भी कई कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। वे हमेशा सोचती अगर वे आर्थिक रूप से सक्षम होती तो छोटे-मोटे खर्चों के लिए, अपने शौक पूरे करने के लिए किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता और फिर पारिवारिक स्थितियां ऐसी होती है कि स्वयं की जरूरत का सामान भी दिलाने में कई बार तू तू मैं मैं का सामना करना पड़ता है। उनकी बेटी को ऐसी परिस्थितियों का सामना ना करना पड़े इसीलिए उसके आत्मनिर्भर होने पर उन्होंने शुरू से जोर दिया… मगर उन्हें मधुरा जी की बातें कुछ अच्छी नहीं लग रही थी!!
दरवाजे पर ही सारी बात सुनकर रचिता को बड़ा गुस्सा आया फिर वो बड़े आदर के साथ बोली “आंटी जी मेरी नौकरी मेरा आत्मसम्मान है मेरा स्वाभिमान है” इसे मैं कभी नहीं छोड़ सकती और पिछले तीन साल से मैं है इतनी मेहनत इसलिए नहीं कर रही कि किसी की घर की बहू बनते ही मैं आराम फरमाऊंगी… इसलिए शादी हो ना हो मैं अपनी नौकरी कभी नहीं छोडूंगी…!!
अचानक रचिता की बातें सुन बुआ विद्या उसे चुप रहने का इशारा करती है मन में सोचती है “बेटी की सगाई टूट गई तो बहुत बदनामी होगी” बात खत्म करना है तो कुछ करना होगा… खिसियाते हुए बोले “बच्ची है समझ जाएगी ही…ही… आप लोग मिठाई खाइए” ये सब बातें तो होती रहेगी। मैं क्या कह रही थी… हमने बहुत बढ़िया भोज का आयोजन किया है आप खाना खाकर ही जाइएगा और साथ में रबड़ी, मालपुआ भी मंगाया है भाईसाहब को बहुत पसंद है…!!
विद्या जी की सुने बिना मधुरा जी को जो कहना था वो कहने लगी “रचिता शादी के बाद नौकरी करके क्या करोगी”??? वैसे भी तनख्वाह 4,5 हजार ही होगी… उससे ज्यादा तो हमारे घर की कामवालियां ले जाती हैं। हमारा बेटा अच्छा पैसा कमाता है घर में आराम करना… वैसे भी अच्छे घर की बहू है नौकरियां नहीं करती और फिर जब रुपए पैसों की कोई कमी नहीं तो क्यों ही हम बाहर जाकर परेशान हो घरवालों को भी परेशान करें!!
आंटी जी बात यहां पैसों की नहीं है मेरे “स्वाभिमान” की है और फिर ये बात मैंने मोहित जी को साफ कर दी थी। उन्हें मेरी नौकरी से कोई एतराज नहीं फिर इस पर चर्चा होना बेकार है!!
अरे हम चाहते हैं कि तुम नौकरी नहीं करोगी… मोहित कौन होता है?? वो भी तो बच्चा है कह दिया होगा… अब हम कह रहे हैं कि हमारे घर की बहुएं नौकरी नहीं करती तो नहीं करती… देखो तुम्हारी सास और तुम्हारी दोनों ननदें भी घरेलू है तो क्या वो दुखी हैं, क्या हम उनका सम्मान नहीं करते??? जरा ऊपर से नीचे तक देखो इन्हें कैसे गहनों में लदी रहती हैं… तो सोचो “तुम्हारी कमाई हमारे किस काम की”… हमारे घर में कोई कष्ट नहीं होगा तुम्हें बहुरानी ससुर आलोक जी बोले।
दरवाजे पर खड़ा मोहित सबकी चर्चा सुन चुका था वो बोला पापा रचिता सही कहती है मैंने उसे नौकरी करने पर कोई रोक टोक नहीं की है… और ये बात मैं आपसे भी कह चुका था मुझे समकक्ष लड़की ही चाहिए फिर आज अचानक सगाई के 2 महीने बाद आप ये मुद्दा लेकर उसे परेशान क्यों करने आए हैं??? वो तो अगर मम्मी आप अपना पर्स घर पर नहीं भूलती तो मैं आकर आपकी मंशा नहीं समझ पाता और आपको एक बात बता दूं आपकी बहू की लगन, मेहनत की वजह से आज ही उसने एसएससी की परीक्षा पास की है अफसर बनने वाली है। चलिए एक काम करते हैं सगाई तोड़ देते हैं थोड़ी बदनामी ही तो होगी मगर कम से कम रचिता को उसके सपनों में रंग भरने का मौका तो मिल जाएगा और रही रचिता की शादी तो अब तो उसके लिए लडकों की लाइन लगेगी।
मधुरा जी और आलोक जी ने अपने बेटे की बात सुन अपने सुर बदल दिए जब पता चला बहू अफसर बनने वाली है…”आखिर इतनी कमाई तो काम की होगी”… “अरे शुभ शुभ बोल बेटा माना हमारे घर की बहुएं नौकरी नहीं करती तो क्या हुआ रचिता को अपने घर की बहू बनाकर हम नई शुरुआत करेंगे अपनी बहुओं को ही नहीं बेटी को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देंगे आखिर हमारी बहू हमारी शान है…!!
सुनीता जी को तसल्ली थी कम से कम होने वाले दामाद उनकी बेटी की भावनाओं को अच्छे से समझते हैं और पूरा सपोर्ट करते हैं!!
दोस्तों,
काश ये समाज हर बार अपना स्वार्थ ना देखता… बेटियों को शर्तों पर ना ब्याता, दहेज के नाम पर मां बाप के कंधे ना झुकवाता, लोगों की सोच ऐसी है अगर लड़की कम कमाती है तो उससे अच्छा तो घर के काम ही कर ले, अगर ज्यादा कमाती है तो उन्हें उसमें आर्थिक मजबूती दिखाई देती है। पर कहीं भी नौकरी करना अपने पैरों पर खड़े होना तनख्वाह कम हो या ज्यादा लड़की का स्वाभिमान होती है ये बात समझ में नहीं आती क्यों????
क्यों कभी दहेज के नाम पर तो, कभी लड़केवालों की मनमानी के नाम पर बेटियों का रिश्ता टूटना मां-बाप की बदनामी बन जाता है!!
आशा करती हूं आपको मेरी रचना जरूर पसंद आई होगी धन्यवाद
आपकी सखी
कनार शर्मा
(मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित)