दीदी ये कपड़े अल्टर के लिए आए थे क्या इनमें सिलाई लगा दूं …. बुटीक चलाने वाली प्रतिभा से उसके यहां काम करने वाली आराधना ने पूछा….आराधना प्रतिभा के बुटीक में सिलाई का काम करती थी।
नहीं बच्चे घर पर अकेले हैं कल आकर बाकी का करेंगे अब तू भी घर जा…. यह सुनते ही आराधना अपना सामान समेटकर जाने लगती है।
ठीक है कल जल्दी आ जाना…. यह कहते हुए प्रतिभा बुटीक को बंद करके घर की ओर चल दी।
प्रतिभा तेज-तेज कदमों से चलते हुए घर की ओर बढ़ी चली जा रही थी।
घर आते ही दोनों बच्चों के सर पर हाथ फेरती है और कहती है.. ” मैं अभी तुम लोगों के लिए चाय नाश्ते का इंतजाम करती हूं!!” वह हाथ-मुंह धुलकर कर रसोई की ओर जाती है…. तो देखती है कि सिलेंडर ही गायब है तभी उसका पति अजय नशे में झूमता हुआ आता है वह गुस्से से पूछती है…. की सिलेंडर कहां गया….
मेरे पास पैसे नहीं थे और तुमने भी मुझे नहीं दिए तो मैंने सिलेंडर बेच दिया…. अजय बेशर्मी से कहता है।
नशे के कारण खुद की दुनिया में रहने वाले कभी परिवार और बच्चों के बारे में भी सोचा है…. वह सर पकड़ कर बैठ गई। फिर बाहर से खाना लाकर बच्चों को खिला देती है।
दूसरे दिन प्रतिभा को सामान बांधता देखकर अजय पूछता है…. “कि तुम कहां जा रही हो?”
यह घर छोड़ कर जा रही हूं अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती….यह कहते हुए प्रतिभा की आंखों से आंसू निकलने लगते हैं।
“तुम्हारी जबान बहुत ज्यादा चलने लगी है!!”…. यह कहते हुए अजय की आंखें अंगारे उगलने लगती हैं वह मारने के लिए हाथ उठाता है…. की प्रतिभा हाथ पकड़ते हुए कहती है…. हाथ उठाने की हिम्मत मत करना जो हाथ बाहर से पैसे कमा सकते हैं और अपने बच्चे को बच्चों को पाल सकते हैं….वह तुम्हारे तमाचे का भी जवाब दे सकते हैं किंतु तुम्हें अब कहने से कुछ भी फायदा नहीं है। तुम नशे के इतने आदी हो गए हो कि तुम केवल अपने में ही गुम रहते हो तुम्हें परिवार की बच्चों की कोई फिक्र नहीं है जो काम तुम्हें करना चाहिए वह मैं कर रही हूं। तुमने बेड बेच दिया….अलमारी बेच दी अब तुमने सिलेंडर भी बेच दिया। तुम नशे के कारण अपने ख्यालों में इतने खोए रहते हो कि तुम्हें घर, परिवार, समाज किसी की भी कोई चिंता नहीं है तुम्हारे जैसे युवा ऐसे ही नशे में चूर रहेंगे….. तो परिवार का क्या होगा। समाज किस दिशा में जाएगा…. नशे के कारण बदलते समाज के स्वरूप से देश की तरक्की का क्या होगा। इन बच्चों के बाल मन पर क्या असर पड़ेगा….यह भी कभी सोचा है। मैं घर का कार्य भी करूं बाहर जाकर पैसे भी कमाऊं और तुम्हारी मारपीट भी सहूँ। अब मैं इस घर में एक मिनट नहीं रुक सकती। तभी उसका भाई आ जाता है। आपने बहुत अच्छा फैसला लिया दीदी मैं आपके फैसले के साथ हूं आप मेहनत करो और बुटीक को चलाओ। मैं हर कदम पर आपका साथ दूंगा। चलिए दीदी घर चलें ।
हां भाई…. अभी मुझे तेरी जरूरत है जब तक की मेरा बुटीक अच्छे से चलने नहीं लगेगा मैं मेहनत करके बच्चों को पालूंगी और अच्छे से पढ़ाऊंगी भी…यह कहते हुए प्रतिभा भाई के साथ चली गई।
अजय की अंगारे उगलती आंखे अब शांत हो चुकी थी।
अब उसे पछतावा हो रहा था क्योंकि अब सोने का अंडा देने वाली मुर्गी उसके हाथ से निकल चुकी थी।
दोस्तों यह एक सत्य घटना है। नशे के आदी अजय की वजह से एक परिवार की क्या दुर्दशा होती है यह मैने कहानी में लिखने का प्रयास किया। मैं कहां तक सफल हुई यह तो आप लोग कमेंट करके ही बता सकते हैं।
किरण विश्वकर्मा