दरवाजा खोला और मानव अपने सोफे पर आकर धम्म से बैठ गया, सोफे की धूल ,फैले हुए कपड़े, चाय के बर्तनों से भरा हुआ सिंक। आज तो खाना मंगवाने का भी मन नहीं हुआ। शायद हल्का बुखार भी था। सर ज्यादा चकरा रहा था या विचार, कहा नहीं जा सकता।
सच कहते हैं हर चमकती चीज सोना नहीं होती। मिनी ना तो पहले कभी मानव की थी और आज सीनियर मार्केटिंग मैनेजर की पोस्ट लेने के वह राघव के आगे पीछे घूम रही थी। मानव जानता था वह राघव के साथ भी वही खेल खेलेगी जो कि उसके साथ खेला गया। रातों जगकर टारगेट्स उसने पूरे करें और सारा क्रेडिट मिनी ले गई। सबका यही ख्याल था की यह सारे ऑर्डर्स उसकी मेहनत और उसके कारण नहीं बल्कि मिनी के व्यवहार के कारण मिले हैं।
अगर वह प्रिया से ना मिला होता तो उसे स्त्री जाति के नाम से ही घृणा हो चुकी होती लेकिन अब मिनी के व्यवहार के बाद उसे रह-रहकर अपने व्यवहार पर बहुत ग्लानि हो रही थी। दसवीं पास प्रिया, बाबूजी के दोस्त की बेटी, जबरदस्ती उसके गले मंड दी गई थी। ऐसी गंवार को अपनी पत्नी कहने पर भी उसे शर्म आती थी। जब उसकी ट्रांसफर हैदराबाद में हुई और बाबू जी के कहने पर उसे अपने साथ ही लाना पड़ा। वह तो ना तो हैदराबाद की भाषा समझ पाती थी और ना ही कहीं बाहर जाती थी। यही घर जो इस वक्त घर लग ही नहीं रहा ,चारों तरफ फैला हुआ कूड़े का साम्राज्य, उस वक्त मानो मुंह से बोलता था। गुस्से में उस पर ही फेंका हुआ शीशे का फूलदान मानो उसे मुंह चिढ़ा रहा था। प्रिया ने उस फूलदान को ही फेवीक्विक से चिपका कर फिर वैसा ही सुंदर बना कर रख दिया था। प्रिया को भी पैसों की जरूरत पड़ती होगी, ऐसा मानव ने कभी सोचा भी नहीं था ।बस नीचे वाली मदर डेयरी से ही दूध के साथ सब्जियों का भी हिसाब हो जाता था। महीने में एक बार वह ऑनलाइन सामान मंगवा देता था ।बाकि प्रिया ने उससे कभी कुछ मांगा भी तो नहीं। पता नहीं कैसे वह सब चीजों का इंतजाम करती होगी? कई बार कुछ सामान वह सामने वाली दुकान से भी लाती थी तो बिचारी के पास पैसे कहां से आते होंगे?
घर में चारों ओर नजर डाली तो ढेरों कपड़े धुलने के लिए पढ़े थे इतने दिनों से क्योंकि कंपनी में टारगेट्स पर प्रमोशन का सवाल था, उसने पूरा ध्यान सिर्फ क्लाइंट्स पर ही लगा रखा था। मिनी के साथ घूमते हुए वह अपने आप को राजा ही समझता था , बस सिर्फ कंपनी में प्रमोशन पाने की धुन में वह दोनों देर रात तक क्लाइंट के साथ घूमते रहते थे।रात को वह अक्सर क्लाइंट्स के साथ मीटिंग में ड्रिंक करने के बाद मिनी को ड्रॉप करके ही वह घर लौटता था। प्रिया खाने पर उसकी इंतजार करते हुए सिर्फ उसे खाना खाने के लिए ही तो कहती थी तब भी वह उसे डांट कर भगा देता था। बेचारी प्रिया नए शहर में पूरा दिन अकेली कैसे बिताती होगी? ऐसे ही एक बार जब उससे तेज बुखार था तो पूरी रात प्रिया उसके माथे पर ठंडी पट्टी रखती रही थी । उसकी आंख पर तो चकाचौंध का पर्दा पड़ा था, वह तो मिनी के साथ ही वजह, बेवजह घूमता रहा। आज समझ आ गया जबकि मिनी उसे जूनियर होते हुए भी उसे मात देकर आज सीनियर मैनेजर हो गई। उस रात तो उसने प्रिया पर हाथ भी उठाया था और दूसरे दिन जबरदस्ती उसकी गांव की टिकट बुक करवा कर उसे उसके घर जाने के लिए कह दिया था। ट्रेन में घर जाती हुई प्रिया की पनियाली आंखें उसे रह-रहकर आज पूरे घर में घूरती हुई प्रतीत हो रहीं थी।
ना जाने क्यों ,आज उसे मां की भी बहुत याद आ रही थी। शायद मां प्रिया के माता-पिता को समझा कर प्रिया को वापस उसके पास भेज दे, कहीं ऐसा तो मन नहीं हो रहा था? मालूम नहीं। लेकिन मानव ने अपने गांव में फोन मिलाया तो मां ने ही उठाया। मां ने उसका हालचाल पूछते हुए कहा, “अरे अब मैं बिल्कुल ठीक हूं, जरा सा प्रिया को यह क्या कह दिया कि मेरी तबीयत खराब है, तूने प्रिया को घर ही भेज दिया। इसने मेरी इतनी सेवा करी है कि मुझे तो लगता है कि मैं फिर से जवान हो गई हूं। अब बहुत दिन हो गए हैं, इसे अपने साथ ले जा, मेरे कारण यह बिचारी अपनी मां के घर भी नहीं रही।
मानव चुप था, मानो उसका बुखार और सर दर्द दोनों ठीक हो गए हो उसने मां को कहा मां प्रिया को बोल दो कि अपनी मम्मी के भी एक-दो दिन रह आए क्योंकि इस शनिवार को मैं छुट्टी लेकर के कुछ दिनों के लिए घर आऊंगा और उसे अपने साथ ले जाऊंगा।
यह मानव का प्रायश्चित था ,जरूरत थी, या प्यार का एहसास कह नहीं सकते, लेकिन पाठकगण मानव का घर जो प्रिया के बिना घर था ही कहां ? अब एक घर में परिवर्तित हो जाएगा। ब्लॉग पढ़ने के लिए धन्यवाद। अगर पसंद आया हो तो इसे लाइक फॉलो और शेयर करना ना भूले।
मधु वशिष्ठ