तुम्हारे बंधन में ही हमारी भलाई भी है और सुख भी…बहू!! – मीनू झा 

मम्मीजी पापाजी,रोहन और वंश…आज हमारे क्लब की जो मीटिंग थी उसमें हम सब सदस्यों  ने  मिलकर ये निर्णय लिया है कि आजादी का ये अमृत महोत्सव जो हम मना रहे हैं ये तभी सफल हो सकता है जब हम अपनी तरफ से सबको आजादी दें मतलब अपने लोगों को अपनों को क्योंकि हर शुरुआत घर से करनी चाहिए… इसलिए मैं आप सबसे ये कहना चाहती हूं कि कल से मैं किसी को कुछ भी करने के लिए बाध्य नहीं करूंगी…आप लोग सभी स्वतंत्र है —-खाने की मेज पर समिधा ने कहा।

बहू ये क्या बात हुई…सब स्वतंत्र है…अभी तक क्या तुमने हमें पिंजड़े में बंद करके रखा था??–ससुर मनोहर ने आपत्ति जताई।

नहीं पापाजी आप लगता है मेरी बात नहीं समझे…सासु मां को लगता है कि वो अपनी सहेलियों को बुलाकर यहां गपशप नहीं कर सकती क्योंकि रोज रोज मैं वो पसंद नहीं करूंगी… उन्हें लगता है मैं उनकी हर बात पर रोकटोक करती हूं क्योंकि मुझे लगता है ये मेरा घर है तो सब मेरे हिसाब से हो…उनकी ये बंदिश जो उन्हें लगता है मेरी थोपी हुई है मैं उससे उन्हें आजाद करती हूं…पापाजी आपको लगता है मैं आपके खाने पीने पर बंदिश लगाती हूं मैं कल से वो भी नहीं करने जा रही…रोहन को लगता है मैं उनके और उनके यार दोस्तों के बीच आ जाती हूं उन्हें दफ्तर के बाद कहीं निकलने नहीं देती,कल से वो जहां चाहे जा सकते हैं,और बच्चे को लगता है पढ़ाई और साफ सफाई को लेकर मैं उसपर सख्ती करती हूं कल से तुम भी फ्री हो, यहां तक कि कामवाली बाई को भी अगर मैं ज्यादा कुछ कहूं तो आप सब खड़े हो जाते हैं और मुझे मैनियैक कह देते हैं,तो वो भी जो करें जैसे करें मैं उसे नहीं टोकूंगी …और हां ये मैं गुस्से या तनाव में नहीं कह रही है…उस फैसले पर कह रही हूं जो हम सभी औरतों ने इसलिए लिया क्योंकि सबको अपने हिस्से की आजादी तो चाहिए ना…आप सबको इतनी स्वतंत्रता देने से मुझे भी तो स्वतंत्रता मिलेगी, मुझे भी तो अपने शौक पूरे करने और अपना मी टाइम जीने का मौका मिलेगा  ।

सबके मन में दुविधा तो थी..पर अंदर ही अंदर सब खुश भी थे…क्लब की अगली बैठक अगले महीने थी तो जबतक इनका निर्णय ना बदले तबतक का तो लुत्फ उठा लें हम…सब मन ही मन सोच रहे थे।

अगले दिन ससुर जी ने चीनी वाली चाय का मजा लिया…पर फीकी चाय पीने में सधी उनकी जीभ को ज्यादा मजा नहीं आया…ना घुमने गए ना योगा किया.. बहू से कह दिया कि मेरे लिए अब चपाती की जगह चावल बना देना…अरे डायबीटिज की दवा तो खा ही रहा हूं ना..इतने परहेज की भी आवश्यकता नहीं है….।

इधर सासु मां ने सुबह सुबह अपनी सहेलियों को शाम के लिए अपने घर आमंत्रित कर लिया… सहेलियों को लगे तो कि सुभद्रा की बहू की नहीं उसकी खुद की चलती है उसके घर में..।

रोहन शाम को आते ही निकल गया उसकी पार्टी पहले से फिक्स थी यार दोस्तों के साथ….।

अंश भी देर शाम तक खेलकर लौटा और बजाय पढ़ने बैठने के टीवी और फोन लेकर बैठ गया…जो समान जहां था वहीं पड़ा रहने दिया…मम्मी से आजादी जो मिली हुई थी…।

समिधा ने भी बहुत दिन बाद अपने बाॅक्स वाले बेड से अपना घुंघरू निकाला जो उसने शादी से पहले कत्थक सीखते समय खरीदा था और ऊपर के छज्जे से अपना कीबोर्ड भी उतारकर झाड़ा पोंछा…सब अपने हिसाब से जीकर अपना अपना ख्याल रखने लगे थे तो काफी हद तक समिधा का काम भी खत्म हो गया था।



चार पांच दिन तो सबके खुब मजे रहे…ससुर का बेपरवाह खाना पीना,सासू मां की लंबी बैठकियां,पतिदेव का देर रात लौटना और बच्चे की ना खत्म होने वाली मस्तियां….इधर समिधा भी रूटीन से काम खत्म करके अपनी डांस और म्यूजिक के शौक का भरपूर आनंद उठाने लगी थी…।

बहू….आज पेट कुछ ठीक नहीं लग रहा…कल खाने में चपाती ही रहने देना और हां वो मेथी के बीज पानी में डाल देना कल सुबह लूंगा–ससुर जी ने रात को खाना खाते वक्त कहा।

क्यों?? आजादी से मन ऊब गया पापाजी…पहले फीकी चाय शुरू कीजिए और चुराकर मिठाई खाना,नमक ऊपर से डालकर खाना बंद…तभी मेथी और करेले का भी फायदा होगा।

फीकी चाय ही पी रहा हूं दो दिन से बहू…और मिठाई से भी तौबा कर ली है… क्योंकि मन बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा…थोड़ा थोड़ा शुगर और बीपी बढ….।

मुझे पता था यही होगा–समिधा ने बात काटते हुए कहा।

बहू ऐसी आजादी गई तेल लेने…तुम्हारी दासता ही सही,जो तुम कर रही थी वहीं सही था मेरे और मेरी सेहत के लिए, वैसे ही चलने दो…–ससुर जी ने समिधा से कह दिया।

दो दिन बाद स्कूल से बेटे की टीचर का फोन रोहन के फोन पर आया….।

सर…वंश के बारे में बताना था,वो आजकल होमवर्क करके तो नहीं ही आ रहा और आज वो फोन लेकर आ गया है…आपको आकर प्रिंसिपल मैम से बात करनी होगी।

वंश को स्कूल से लेकर लौटा रोहन तो उसके चेहरे पर आक्रोश के साथ साथ शर्मिंदगी भी थी।



साॅरी मम्मा…अब ऐसा नहीं होगा… एक्चुअली आप होमवर्क नहीं करवा रहीं ना..और फोन में इतने सारे गेम्स है कि मन किया ले जाऊं और अपने फ्रेंड्स को भी दिखाऊं

मैंने कुछ कहा आपसे… कहूंगी भी नहीं…मम्मा ने आप सबको अपने ढंग से जीने की आजादी दें दी है।

नहीं चाहिए आजादी मम्मा….मेरी क्लास में पर्फोर्मेंस खराब हो रही है टीचर्स भी ध्यान नहीं दे रही मुझपर उन्हें लगता है मैं पुअर हो रहा हूं,मेरे दोस्त भी हंसने लगे हैं मुझपर आप पढाती थी तो ऐसा नहीं होता था..साॅरी–बेटे ने भी हथियार डाल दिया था।

पर रोहन के चेहरे की परेशानी जस की तस थी…आज से नहीं कल से ही रोहन बेचैन सा था।

रोहन… कुछ दिक्कत है क्या…आप बहुत परेशान दिख रहे थे

आठ दिन बाद समिधा के स्वर में चिंता देखकर रोहन भी फट पड़ा…

समिधा…आजकल दोस्तों के साथ उठने बैठने में कभी कभी एक दो पैग लगा लेता हूं ज्यादा नहीं लेता…पर पता नहीं क्यों कल से अजीब सी हालत हो रखी है..मन बेचैन है और छाती और गले में जलन सी है,वंश‌ की टीचर का फोन आया तो मैं ऑफिस से छुट्टी लेकर डाॅक्टर के पास गया था… उन्होंने तीन दिन की दवाई दी है और कहा है आराम ना हो तो ईसीजी वगैरह करवानी पड़ेगी



कुछ नहीं होगा..आप आजकल तीखा चटपटा भी ज्यादा खाने लगे हैं…खाने पर भी कंट्रोल करना होगा।

सुनो ना… मैं क्या कह रहा था,तुम जैसे पहले थी वैसी ही हो जाओ समिधा…उस आजादी का क्या फायदा जो स्वास्थ्य और शांति ही लूट ले….मैं तुम्हारा गुलाम रहना ही पसंद करूंगा ऐसी बेमतलब की आजादी से–रोहन भी हार मान ही गया।

परेशान तो समिधा भी थी,घर की हालत देखकर, पापाजी को सुस्त देखकर,रोहन की बे टाइम रूटीन देखकर,वंश‌ की लापरवाही और पढ़ाई के प्रति बेरूखी देखकर और मम्मीजी की सहेलियों की जमघट में उपेक्षित होती मम्मी जी को देखकर…पर एक बार ये प्रयोग तो बनता था ताकि सबको एहसास हो कि हर इंसान को आजादी की सीमा रेखाएं समझनी चाहिए,जहां आकर आजादी दुश्वारी या उल्लंघन बन जाए वही ख़ुद को समेट लेना चाहिए और उसे ही जीवन का ढंग बना लेना चाहिए…। समिधा चाह रही थी घर का हर सदस्य इस बात को स्वीकार करें और खुशी खुशी स्वीकार करें।

अन्य दिनों की तरह सुभद्रा शाम को ना बाहर निकली और ना उसके पास कोई आया तो मनोहर जी का माथा ठनका।

क्या बात है?…आज महफ़िल नहीं जमी…कहीं किसी ने तुम्हें निकाल तो नहीं दिया ग्रुप से सुभद्रा?–मनोहर जी ने मजाक किया।

किसकी मजाल है जो निकाले मुझे…. मैंने खुद छोड़ दिया वो ग्रुप!!

क्यों भला?

अरे सब पीठ पीछे मेरी चुगली करने लगी थी…घर आजकल थोड़ा अस्त व्यस्त रहने लगा है ना…और वो कहते हैं ना रोज कोई चीज मिलने लगे तो उसका महत्व कम हो जाता है… यहां आकर मजे से चाय नाश्ता उड़ानें वालियां क्या कह रही थी पता है –सुभद्रा का घर बड़ा गंदा रहता है…अब दोस्त हैं तो क्या करें वर्ना तो उसके घर का पानी पीने में भी घिन आती है…।वहीं मैं सोच रही थी बीस से सात पर क्यों आ गई संख्या…।

घर तो सच में आजकल बहुत अस्त व्यस्त रहता है सुभद्रा…हम सब तो पहले की तरह ही गंदगी फैला रहे हैं बस बहू ने अपने हाथ समेट लिए है तो ये हाल हो रखा है, कामवाली भी जैसे तैसे करके निकल लेती है..।

सुभद्रा उठकर जाने लगी तो मनोहर ने टोका–कहां चली??

बहू को कहने…सब मान ही गए हैं तो मैं अकेली क्या करूंगी…वैसे भी आजादी उतनी ही ठीक है जहां तक इसका दुरूपयोग ना हो…हमने दुरूपयोग किया तो फल भोगा…कह देती हूं जाकर…बंधन में ही भलाई और सुख है हमारे लिए तो…सुघड़ हाथों का बंधन…मेरी बहू के हाथों का बंधन…।

#परिवार 

मीनू झा 

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