” क्या बात है पीहू आज इतना उदास क्यो हो तुम ?” स्कूल से घर लौटी अपनी पांच साल की बेटी से नीलम ने पूछा।
” कुछ नही मम्मा मुझे भूख लगी है !” पीहू हाथ धो कुर्सी पर बैठती हुई बोली।
” बेटा टिफ़िन तो दिया था मैने क्या तुमने वो नही खाया ?” नीलम खाना लगाती हुई हैरानी से बोली।
” मम्मा आपने उसमे कितने सारी सब्जियाँ डाली थी मुझसे तो खाया ही नही गया कुछ भी मेरा टिफिन यूँही रखा है !” पीहू बोली।
” पर बेटा सब्जियाँ तो हेल्थ के लिए अच्छी होती है टीचर भी तो बताती है । देखो मम्मा ने अब तुम्हारी पसंद का कढ़ाई पनीर बनाया है !” नीलम बेटी को प्लेट देती हुई बोली।
” आपने इसमे भी सब्जी डाल दी मुझे नही खाना ये मुझे बर्गर खाना है !” ये बोल पीहू ने गुस्से मे प्लेट खिसका दी।
” सिर्फ शिमला मिर्च तो है..क्या होता जा रहा है तुम्हे रोज का वही नाटक कोई सब्जी नही खाती हो ..खाओ इसे चुपचाप हर वक्त फास्ट फ़ूड चाहिए इसे !” नीलम को पीहू की बात पर गुस्सा आ गया तो थोड़े कठोर स्वर मे बोल उसने प्लेट वापिस पीहू के आगे रख दी।
” नही नही मुझे नही खाना आप गंदी हो गन्दा खाना बनाती हो !” पीहू रोते हुए बोली।
” मुझे ना सुनना पसंद नही पीहू खाओ इसे चुपचाप तुम्हारा तो ये रोज का नाटक होता जा रहा है !” ये बोल नीलम ने पीहू के मुंह मे रोटी का टुकड़ा सब्जी लगा डाल दिया। पीहू जोर से रोने लगी ।
” क्या हुआ क्यो रो रही है ये इतना ?” पीहू की आवाज़ सुन उसकी दादी शांता जी कमरे से बाहर आ पूछने लगी।
” वही रोज के नाटक सब्जी नही खानी तंग कर रखा है इसने !” नीलम दूसरा टुकड़ा तोड़ती हुई बोली।
” लाओ मैं खिलाती हूँ इसे आओ पीहू बेटा मेरे पास आओ !” शांता जी बोली।
” मुझे सब्जियाँ नही खानी दादी मुझे अच्छी नही लगती ये !” पीहू रोते हुए बोली।
” ठीक है मत खाना लो पनीर तो खाओ …तुम्हे पता है मैं भी बचपन मे सब्जियाँ नही खाती थी !” शांता जी उसे खाना खिलाते हुए बोली।
“सच्ची दादी तब आपकी मम्मा आपको डांटती नही थी !” दादी की बात सुन पीहू रोना भूल गई।
” डांटती थी ना पर मैं सुनती नही थी मैं बस बर्गर, चिप्स खाती थी !” शांता जी पीहू के मुंह मे दूसरा टुकड़ा रखती हुई बोली।
” वाओ दादी कितना मजा आता होगा ना !” पीहू को अब दादी की कहानी मे मजा आने लगा था।
” हां मजा तो आता था पर अब वही सजा बन गई…तुम देखती हो ना दादी के सारे दाँत टूट गये , पैरो मे दर्द के कारण दादी चल नही पाती , कितनी सारी दवाइयाँ खाती है दादी …!” शांता जी मुंह बनाते हुए बोली।
” बर्गर चिप्स खाने से ऐसा होता है !” नन्ही बच्ची हैरानी से आँखे मटकाती बोली।
” बर्गर चिप्स खाने से नही पर सब्जियाँ ना खाने से ऐसा ही होता है अगर मैने रोज सब्जियाँ खाई होती , दूध पिया होता , मम्मी की बात सुनी होती तो आज मेरा ये हाल ना होता ..खैर तुम्हे सब्जियाँ नही खानी मैं तुम्हारी मम्मा से बोल दूंगी आज के बाद तुम्हे सब्जियाँ ना दे बस बर्गर चिप्स दे ठीक है ..देखो मैने इसमे से शिमला मिर्च भी अलग कर दी !” शांता जी बोली।
” नही दादी मुझे आपके जैसी नही बनना मैं रोज सब्जियाँ खाउंगी देखो अभी भी खा रही !” पीहू एकदम से बोली और शिमला मिर्च का टुकड़ा उठा मुंह मे रख लिया उसे ऐसा करते देख नीलम की हंसी छूट गई साथ ही वो शांता जी की तरफ तारीफ की नज़रो से देखने लगी क्योकि जो काम वो नही कर पाई वो शांता जी ने इतनी आसानी से कर दिया। शांता जी ने झटपट सारा खाना पीहू को खिला दिया।
” मेरी गुड़िया ने अब खत्म कर दिया अब वो कभी मेरे जैसी नही बनेगी !” शांता जी पीहू को प्यार करती हुई बोली।
” दादी मैं रोज सब्जियाँ खाउंगी पर कभी कभी बर्गर भी खा सकती हूँ ना और चिप्स भी !” पीहू बोली।
” हाँ बेटा पर कभी कभी ओके !” नीलम बोली।
” ओके डन मम्मा अब मैं खेल लूँ !” पीहू उठते हुए बोली और अपने कमरे मे भाग गई।
दोस्तों हमारे बच्चे अकसर सब्जियाँ खाने मे आनकानी करते और हम मायें चाहती है हमारी डांट से वो खा ले जबकि ऐसा नही होता है बच्चे ज़िद्दी होते और हम उनसे अपनी बात मनवाने को या तो खुद भी ज़िद्दी बन जाते या उनकी बात मान लेते है दोनो सूरतों मे नुकसान बच्चे का होता । हमें ऐसे मे जरूरत है थोड़े संयम की और अपनी बात को बच्चो को समझाने की ना की थोपने की।
क्या आप सहमत है मुझसे ?
आपके जवाब के इंतज़ार मे
आपकी संगीता अग्रवाल