” सुनो जी हमने पिछले जनम में ऐसे क्या बुरे कर्म किए थे जो इस जनम में उसकी सजा भुगत रहे हैं !” रीता जी अपने पति देवेन्द्र जी से रोते हुए बोली।
” रीता खुद को संभालो जो होना हो वो हो कर रहता है उसके लिए खुद को यूं सजा देना कहां तक ठीक है ? बच्चे तुम्हारी कमजोरी बन गए है ऐसा ना हो ये कमजोरी तुम्हे कमजोर कर दे ।” देवेन्द्र जी की इतना बोले।
” आप क्या जानो एक मां का दिल जिस मां के बच्चे अपने स्वार्थ के लिए उसे छोड़ कर चले गए हों वो खुद को कैसे संभाले हर मां के लिए उसके बच्चे उसकी कमजोरी ही होते हैं !” रीता जी और जोर से रोने लगी।
” रीता आज तुम्हे अपने बच्चों के जाने का दुख है तुम इसका विरोध कर रही हो पर तुम भूल गई आज से तीस साल पहले तुमने भी तो किसी मां को उसके बच्चे से अलग किया था और कोई तुम्हारा विरोध भी ना कर सका था । तब तुम भी तो स्वार्थी हो गई थी अब तुम्हारी बहू हो रही है तो गलत क्या है… आज तुम्हारा किया ही तुम्हे वापिस मिल रहा तो अब विरोध क्यों ?” अचानक देवेन्द्र जी थोड़े तल्ख लहजे में बोले।
देवेन्द्र जी की बात सुन रीता जी अतीत में पहुंच गई। रीता जी एक बड़े घर की नकचढ़ी बेटी जिनकी शादी देवेन्द्र जी से हुई। हालाकि देवेन्द्र जी का परिवार भी किसी लहजे में कम ना था पर सुख सुविधाएं रीता जी के परिवार में ज्यादा थी। यहां देवेन्द्र जी सबसे ज्यादा कमाते थे अपने भाई और पिता की अपेक्षा बस इसी बात का मुद्ददा बना उन्होंने घर में झगड़े शुरू कर दिए क्योंकि वो तो ससुराल से अलग रहना चाहती थी। हर बात मे सास ससुर की उपेक्षा करती सबकी बातों का विरोध करती सबने बहुत बर्दाश्त किया पर जब पानी सिर से उपर हो गया तब देवेन्द्र जी के पिता ने स्वयं उन्हें अलग रहने को बोल दिया कितना रोई थी उनकी माता जी बेटे को अलग होता देख। तड़पे तो देवेन्द्र जी भी बहुत थे पर घर की शांति और माता पिता की इज़्ज़त के लिए विरोध ना कर सके। खुश थी तो केवल रीता जी जिन्हें ससुराल के बंधनों से आज़ादी जो मिल गई थी अब बस वो थी उनका पति और एक स्वछंद जिंदगी। एक बार ससुराल से अलग हो रीता जी का नाता बस शादी ब्याह तक रह गया था वहां । कभी अलग से जाना भी होता तो बस देवेन्द्र जी जाते थे। बच्चे भी दादा दादी के स्नेह से वंचित रहे सारी उम्र।
अभी कुछ दिन पहले रीता जी की बहू ने बेटी होने के बाद दुबारा से नौकरी शुरू की थी और उसका ऑफिस यहां से दूर पड़ता था जिस कारण उसे अक्सर ऑफिस पहुंचने और घर वापिस आने में देर हो जाती थी । तो बेटे बहु दोनों ने मिलकर ऑफिस के पास ही घर ले लिया।
” ऐसे कैसे तुम यहां से जा सकते हो ?” रीता जी को कल जैसे ही पता लगा उन्होंने बेटे बहू के जाने का विरोध किया।
” मां श्रुति को यहां परेशानी हो रही है इसलिए हमारा जाना जरूरी है !” बेटा प्रेम बोला।
” पर बहू को नौकरी की जरूरत ही क्या है सब कुछ तो है भगवान का दिया तो घर परिवार को संभाले !” रीता जी ने कहा।
” मांजी मेरे इतना पढ़ाई करने का फायदा क्या जब नौकरी नहीं करनी और वैसे भी मैं गुड़िया के होने से पहले भी तो नौकरी करती थी तो अब क्या परेशानी है। हां अब दूर मिली है नौकरी और ऐसी नौकरी को मैं ठोकर नहीं मार सकती जब इससे अच्छी नौकरी पास में मिलेगी तो हम वापिस अा जाएंगे कौन सा हमेशा के लिए जा रहे हैं मिलने आते रहेंगे जब वक़्त मिलेगा !” बहू श्रुति बोली।
” खूब समझती हूं मैं तुम घर परिवार की जिम्मेदारी से भागने चाहती हो … मैं मेरा पति और मेरा बच्चा यही तुम्हारे लिए परिवार है बस !” रीता जी गुस्से मे बोली।
” मां ऐसा कुछ नही है पर आपका ये विरोध शायद हमें इस घर से अलग कर दे हमेशा के लिए !” प्रेम माँ की बात सुन बोला तो अवाक् रह गई रीता जी।
” रीता जाने दो इन्हे बहू बिल्कुल सही कह रही है वैसे भी उसे नौकरी करने का पूरा हक है हम अपने स्वार्थ में उसके पैरों में बेड़ियां नहीं डाल सकते !” इतनी देर से चुप देवेन्द्र जी बोले।
” पर…!”
” पर वर कुछ नहीं चलो यहां से इन लोगों को पैकिंग करने दो !” देवेन्द्र जी पत्नी का हाथ पकड़ उसे अपने कमरे में ले गए।
और आज बेटा बहु दोनों का आशीर्वाद ले अपने नए घर में चले गए। रीता जी देवेन्द्र जी की बात सुनकर सोचने पर मजबूर हो गई ये सच है जैसी फसल हम बोते हैं हमे वैसा ही फल मिलता है ….रीता जी तो अब अपनी भूल को सुधार भी नहीं सकती थी क्योंकि उनके सास ससुर अब इस दुनिया में ही नही थे। अब तो वो सिर्फ अपने किए का पछतावा ही कर सकती थी।
दोस्तों नौकरी की मजबूरी में घर परिवार से अलग रहना एक मजबूरी होती है पर स्वार्थवश अपने अहम में परिवार तोड़ देना गलत है। ये सच है हम जो करते है वो लौट कर जरूर आता है हमारे पास।
आपकी दोस्त
#विरोध
संगीता अग्रवाल
v m vd