बहुत-बहुत बधाई हो !आपकी पत्नी ने एक कन्या को जन्म दिया है।” विनायक का चेहरा यह सुनकर एक पल के लिए खिल गया कि वह एक बच्ची का बाप बन गया है लेकिन अगले ही पल उसका चेहरा मुरझा गया। यह सोच कर कि ना जाने उसके परिवार में माता पिता और उनके भाई बहन किस प्रकार प्रतिक्रिया देंगे।
विनायक अपने परिवार का बड़ा बेटा था। यह उसकी पहली बच्ची थी। परिवार में पहले बेटी का जन्म होना विनायक के अंदर थोड़ा असुरक्षित महसूस कर दिया था। थोड़ी देर बाद नर्स ने तौलिए में लपेट कर एक नवजात शिशु को विनायक के गोद में देते हुए कहा “लीजिए बहुत ही प्यारी बच्ची है, बिल्कुल आप ही की तरह !”
विनायक में देखा छोटी सी बच्ची गहरी नींद में सो रही थी। नैन नक्श तो ठीक थे पर रंग दबा हुआ था । विनायक उदास हो गया। अगले ही पल उसने कहा “नहीं मैं इसे कभी भी कमजोर नहीं बनाऊंगा । इसे मजबूत बनाउंगा ताकि यह समाज के बीच एक मजबूत दीवार की तरह खड़ी रह सके।”
विनायक बच्ची को गोद में लेकर बाहर आया और अपने मां के गोद में देते हुए कहा ” मां यह लो आपको पोती हुई है!” विनायक की माँ बच्ची को देखकर खुश तो हुई लेकिन उन्हें बेटे की उम्मीद थी। यह कोई नई बात तो नहीं थी! भारतीय समाज में बेटे की सभी को चाहत होती है।
अपने माता-पिता के भावनाओं को विनायक ने समझ लिया था। उसकी मां ने उसे कहा ” कोई बात नहीं ईश्वर की जो मरजी।यह मेरी पोती पोता लेकर आएगी!” विनायक मन ही मन यह सोच रहा था अगली बार भी अगर बेटी हो गई तो ! इसलिए वह बेटा बेटी में कोई फर्क नहीं करेगा बल्कि उसे कामयाब बनाएगा।
देखते ही देखते 5 साल गुजर गए थे। इन वर्षों में विनायक एक बेटे का पिता बन चुका था। विनायक ने अपने बेटी का नाम छाया रखा था क्योंकि उसका रंग थोड़ा सा सांवला था जबकि उसका बेटा अपने माता-पिता के ऊपर गया था। बेटा सुंदर था ।
जैसे जैसे बच्चे बड़े हो रहे थे छाया का रंग और भी कम होता जा रहा था और बेटा खूबसूरत। छाया के नैन नक्श भी सुंदर नहीं थे।विनायक जब भी अपनी बेटी छाया को देखता उसका दिल कचोट जाता। वह ईश्वर को दोष देते हुए कहता ” हे भगवान, काश इसे सुंदर बनाया होता! अब मैं इसके लिए लड़का कहां से ढूंढूंगा?
इतना पैसा भी नहीं है कि मुंह मांगी रकम दे सकूंगा।” बावजूद इसके छाया पढ़ने में बहुत तेज थी। हर क्लास में अच्छे नंबर लेकर आती थी और कई सारे प्रतियोगिताओं में भाग लिया करती और जीतती भी थी। कई स्कॉलरशिप प्रतियोगिताओं को जीतकर उससे भी वह आमदनी प्राप्त कर रही थी।
अगर उसकी शक्ल को छोड़ दिया जाए तो छाया बहुत ही सुयोग्य और दक्ष बच्ची थी। देखते-देखते बारे में देखते-देखते उसने 12वीं और उसके बाद उसने ग्रेजुएशन भी कर लिया था। बीए के बाद उसने अपने पिता से कहा ” पापा मैं प्रशासनिक प्रतियोगिता में बैठना चाहती हूं।
इसके लिए मुझे कोचिंग लेना होगा। मुझे दिल्ली भेज दीजिए।” परिवार वालों की मर्जी के विरुद्ध विनायक में छाया को दिल्ली भेज दिया। यहां उसने कई कोचिंग संस्थानों से कोचिंग करने लगी और परीक्षा की तैयारी करने लगी। विनायक को अपने इस फैसले से परिवार में बहुत ही ज्यादा झेलना पड़ रहा था।
उसकी मां और परिवार के लोग उसे ताने देते रहते थे। “अकेली लड़की को दिल्ली भेज दिया! कहीं कुछ कुछ हो गया तो जिम्मेदारी कौन लेगा एक तो शक्ल सूरत की ऊपर से बदनामी अलग ! फिर कौन ब्याहेगा इससे?” कई बार लोग यही कहते “इस काली कलूटी लड़की के ऊपर इतना पैसा खर्च करने की क्या आवश्यकता थी! उसके लिए एक अच्छा लड़का ढूंढ कर जल्दी से शादी कर दो!”
विनायक यह सब चुपचाप सुनता रहता। वह भगवान से प्रार्थना करता था। भगवान ने उसकी सुन लिया।छाया ने पहली बार में ही प्रशासनिक परीक्षा निकाल लिया। इंटरव्यू में ही उसके सारे जूरी रिमेंबर उसके सभी जवाब से बहुत ही संतुष्ट थे।
जब परीक्षा का रिजल्ट आया, छाया ने अपने पिता को बताया “पापा, मैंने यूपीएससी की परीक्षा निकाल ली है।आशीर्वाद दीजिए!” विनायक की आंखों से आंसू बहने लगे। उसने कहा ” बेटी पास तुम नहीं तुमने मुझे पास कर दिया है! थैंक्यू बिटिया!
आज तुमने मेरी जीने का मकसद पूरा कर दिया। तब तक दोस्त, परिवार से लेकर मीडिया वाले और प्रशासनिक अधिकारी सभी का फोन आने लगा। विनायक सब को जवाब देने में व्यस्त हो गया।
प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
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