भाभी,आप तो जानती ही हो कि हमारे घर में तीन ही कमरे हैं और प्रीती और राहुल भी अब बड़े हो चुके हैं जिनको उनकी पढ़ाई के लिए भी एक कमरे की जरूरत महसूस होती है, अगर.. आप स्टोर वाले कमरे में अपना
सामान रख लें और वहां रहने लगें तो कमरों की समस्या दूर हो जाएगी…वैसे भी तो आप अकेली ही तो है उस कमरे में और आपका ज्यादा सामान भी नहीं है…”आलोक ने हिचकते हुए अपनी भाभी सीमा से कहा।
” अगर कमरे कम हैं तो ऊपर एक कमरा बनवा लो लेकिन इस कमरे को ही मैं नहीं छोड़ पाऊंगी क्योंकि इस कमरे से मेरी बहुत सारी यादें जुड़ी हुई हैं। ये कमरा मां बाबूजी का आशीर्वाद स्वरूप है और इसमें कनक(सीमा की बेटी) के पापा की भी बहुत सी यादें हैं जिनके सहारे ही तो मैं जी रही हूं, वरना….” कहती हुई सीमा रुआंसी सी हो गई।
सीमा के पति अभय कुमार एक कंपनी में मैनेजर की पोस्ट थे किंतु 2 साल पहले 55 साल की उम्र में उनकी हृदयगति रुकने से मृत्यु हो गई थी और उनकी इकलौती बेटी कनक का विवाह 5 वर्ष पूर्व उन्हीं के जीते जी हो गया था।
“क्या भाभी आप भी इतनी सी बात को लेकर रोने लग गई, क्या आपको हमारी परेशानी दिखाई नहीं देती या देखकर भी अंजान बनने का नाटक करती हो….अरे ऐसा भी क्या स्वार्थी होना कि बच्चों की भी परेशानी नहीं दिखाई दे रही….हमारी छोड़िए..
. कम से कम बच्चों के बारे में ही थोड़ा सोच लिया होता…और आप कह रही हो कि ऊपर कमरा बनवा लें तो उसमे कितना पैसा लगेगा आपको पता भी है….” थोड़ा गुस्से से आलोक की पत्नी मंजू बोलने लगी।
मंजू की बातें सुन सीमा से रहा नहीं गया, ” क्या कहा तुमने… स्वार्थी….मैं स्वार्थी हूं….और आलोक तुम भी चुपचाप सुन रहे हो कि मैं स्वार्थी हूं….अरे तुम्हें पता नहीं क्या कि कैसे मैंने और तुम्हारे भाई ने तुम्हारे और तुम्हारी बहन नमिता के लिए क्या किया है…
अरे जब मम्मी पापा उस सड़क दुर्घटना में भगवान को प्यारे हुए थे तब तुम और नमिता दोनों पढ़ाई कर रहे थे और हम दोनों (मैं और तुम्हारे भैया) दूसरे शहर में एक ही कंपनी में जॉब करते थे…तुम दोनों अकेले कैसे रहोगे और कैसे सब संभालोगे यह सोचकर मैंने अपनी जॉब छोड़ दी….
और फिर नमिता की पढ़ाई पूरी होने पर उसका विवाह….और ये मत भूलो कि आज जो तुम इतनी अच्छी जॉब कर रहे हो इस कामयाबी के पीछे भी हमने तुम्हारा कितना साथ दिया है….या तुम भी सब भूल गए…”
“भाभी आप क्यों इतनी बात बढ़ा रही हो … केवल एक कमरे की ही तो बात है ….और वैसे भी आप जो कह रही हो कि आपने हमारे लिए ये किया, वो किया, अपनी जॉब छोड़ दी ….तो इन सबके लिए हमने नहीं कहा था आपसे….हम बड़े थे
कोई इतने छोटे बच्चे भी नहीं थे कि बिना किसी सहारे के रह नहीं पाते…रह लेते जैसे तैसे और कोई छोटी मोटी जॉब कर कर लेते…लेकिन नहीं आपको तो भैया के सामने महान बनना था तभी तो आज एक कमरा देने में भी आप इतना नाटक कर रही हो….” आलोक ने कहा
सीमा को इतना सुनकर बहुत दुख हुआ,”मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार करोगे कि अपने भैया के जाने के बाद मुझे स्टोर में रहने के लिए बोल दोगे और जो कुछ भी मैने तुम सबके लिए किया उसे मेरा नाटक बता दोगे….
खैर तुमने जब इतना कुछ सुनाकर मुझे पराया कर ही दिया है तो मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए….वैसे मैं चाहूं तो तुमसे ये कहकर कि मेरा भी इस घर में हिस्सा है इसलिए मैं स्टोर में क्यों रहूं, आराम से रह सकती हूं….लेकिन नहीं जब यहां सब पराए ही हैं तो मैं नहीं रह रही, मैं अपनी व्यवस्था खुद देख लुंगी….”
जब सीमा की बेटी कनक को यह बात पता चली तो उसने अपनी मां से कहा, ” मां, आप हमारे साथ ही रहने आ जाओ, मैं तो आपसे कब से कह रही हूं लेकिन आप ही यह कहकर मना कर देती कि अपना घर अपना होता है
और वैसे भी बेटियों के यहां अच्छा नहीं लगता….अब आप आ जाइए…जब आप ये भी मानती हो कि बेटे बेटियां समान होते हैं तो यही सोचकर आ जाइए….”
“नहीं बेटा ऐसे अच्छा नहीं लगता, हालांकि बेटा बेटी समान है लेकिन फिर भी….खैर छोड़ो मेरे पास फोन है ही तो तुमसे बातें होती रहेंगी और जैसे ही व्यवस्था हो जायेगी बता दुंगी… और हां ये न सोचना कि मैं तुमसे नाराज हूं….
तुमसे मिलने भी आया करूंगी….” कहकर सीमा ने अपना जरूरी सामान एक बैग में रखा और वृंदावन आ गई जहां उसे एक अनाथाश्रम में बच्चों को पढ़ाने का काम मिल गया और रहने की भी जगह मिल गई।
अब वह अपना पूरा जीवन भगवान के चरणों में बच्चों के साथ स्वाभिमान के साथ बिताने में खुश थी।
वह सोच रही थी कि हकीकत में ही तो वह अकेली ही तो थी उस घर में तो जबरदस्ती रहने से क्या फायदा होता जब अपने ही लोग परायों का सा व्यवहार करने लगें जिनके लिए कभी सोचा भी न था कि ये लोग कभी ऐसा व्यवहार करेंगे इससे तो अच्छा है कि ये बाकी का जीवन भगवान के चरणों में और इन बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाने में समर्पित हो।
प्रतिभा भारद्वाज “प्रभा”
मथुरा (उत्तर प्रदेश)