रिद्धिमा किसी से फोन पर बात कर रही थी।बात करते हुए ही वह रो पड़ी।
उसे समझ में नहीं आ रहा था किबं वह क्या करे क्या ना करे…!!!
बड़ी मुश्किल से उसने अपने आप को संभाला।
बेटी मेघा दूसरे कमरे में पढ़ रही थी। उसने बड़े मुश्किल से अपने भावनाओं को कंट्रोल में रखकर अपनी बिटिया को आवाज दिया और कहा
“ मेघा, तुम्हारे पिता का एक्सीडेंट हो गया है। वह जयपुर के किसी अस्पताल में भर्ती हैं। हमें तुरंत जयपुर चलना होगा!”
“ यह क्या कर रही है मां आप?” मेघा बेबसी में चीख पड़ी।
“ मैं सच कह रही हूं, जयपुर के किसी अस्पताल से फोन आया था। उन्होंने लोकेशन भी भेजा है। हमें इमीडिएट वहां पहुंचना है। जल्दी करो!”
रिद्धिमा ने कहा और वह जल्दी-जल्दी दो चार कपडे लिए और दोनों जयपुर के लिए निकल गए।
दो ढाई घंटे के सफर के बाद जब लोग जयपुर में अस्पताल में पहुंचे तो उसके पति मोहन अस्पताल में एडमिट थे।
मोहन ऑफिस के किसी काम को लेकर जयपुर गए थे। वहीं उनकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया।
किसी ने उन्हें अस्पताल में एडमिट कर दिया था।
वह पूरी तरह से बेहोश थे। पूरा चेहरा पट्टियों से बंधा पड़ा था। पैरों में प्लास्टर थे।
डॉक्टर ने रिद्धिमा और मेघा दोनों को देखते ही कहा
“आप दोनों मि.मोहन के रिलेटिव हैं ना..!”
“जी!”काँपते हुए रिद्धिमा ने कहा।
“ चिंता करने की बात नहीं है आप भरोसा रखें … जान बच गई यही बहुत है।
जितना गहरा एक्सीडेंट हुआ था उसमें कुछ भी हो सकता था!”
इस समय रिद्धिमा कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थी।
वह मदहोश की तरह अपने पति को देखी जा रही थी। आवाज उसके मुंह से गायब हो गई थी।
डॉक्टर ने मेघा से कहा
“ यह आपकी मम्मी है ?”
“जी डॉक्टर।”
“ आप इन्हें संभालिए। आपके पिता ठीक हैं। जान बच गई लेकिन उनके दोनों पैरों में चोट लगी है।हड्डी टूट गयी है। चेहरे पर बहुत ज्यादा ही चोट आया है। अभी कई स्टेज में इलाज होगा।
लंबे समय तक अस्पताल में रहना होगा।”डॉक्टर ने मेघा से कहा।
आईसीयू में बने शीशे की खिड़की से मेघा और रिद्धिमा मोहन को देखते रहे।
बेहोश पड़े मोहन के चेहरे का भी पता नहीं चल रहा था। उनका तो पूरा शरीर ही पट्टियों से बंधा हुआ था। कोई उन्हें पहचान ही नहीं सकता कि यह वही मोहन है।
थोड़ी देर बाद नर्स ने उन लोगों को वहां से जाने के लिए बोल दिया।
उस ने कहा”आप अपना फोन नंबर दे दीजिए। सुबह और शाम ही वॉलिंटियर्स देख सकते हैं और अभी तो सर किसी भी हाल में कुछ भी नहीं कर सकते न हीउन्हें डिस्टर्ब कर सकते हैं।”
लगभग 2 हफ्ते ऐसे ही बीत गए। आज मोहन के चेहरे की पट्टियां खुलने वाली थीं।
डॉक्टर ने जैसे ही मोहन के चेहरे से पट्टियां हटाया, मेघा चीख उठी।रिद्धिमा उसे देख कर रोने लगी।
मोहन का चेहरा पूरी तरह से झुलस गया था।
चेहरे की हड्डियां भी टूट गई थी।
“आई एम सॉरी मैम, अब पेशेंट का चेहरा पहले जैसा नहीं हो सकता है…!”डॉक्टर ने अपनी असमर्थता जताते हुए कहा।
रिद्धिमा को पुरानी बातें याद आ गई ।
रिद्धि और मोहन दोनों ने प्रेम विवाह किया था ।
दोनों एक ही ऑफिस में काम करते थे।
मोहन का व्यक्तित्व बहुत ही सुंदर था।
उसके स्मार्ट व्यक्तित्व ने ही रिद्धिमा को उसका दीवाना बना दिया था।
वह हमेशा ही उसे प्यार से चिंटू कह कर बुलाया करती थी क्योंकि मोहन ऋषि कपूर की तरह ही खूबसूरत और स्मार्ट था।
अब मोहन का चेहरा देखकर और रिद्धिमा रो पड़ी थी।
चेहरे में चोट और घाव के निशानों ने अपना घर बना लिया था।
कुछ दिनों बाद मोहन को अस्पताल से छुट्टी मिल गई।
रिद्धिमा और मेघा मोहन को लेकर घर आ गई।
अब मोहन व्हीलचेयर पर थे। मोहन की नौकरी भी छूट गई थी।
रिद्धिमा ने पूरे मन से अपने पति की सेवा करने लगी थी।
रिद्धिमा के ऊपर काम का बोझ ज्यादा बढ़ गया था।
उसे अपनी नौकरी भी संभालनी थी ताकि वह अपने घर चला सके और साथ ही अपने अपाहिज पति की देखभाल भी कर सके।
एक दिन वह मोहन को सुबह नहला रही थी।
नहलाने के बाद उसे साफ कपड़े पहनाए। उसे अपने हाथों से नाश्ता कराया और फिर चाय देकर वह तैयार होने चली गई।
उसने मोहन से कहा
“मोहन मैं ऑफिस जा रही हूं। अपना ख्याल रखना। कोई भी जरूरत हो मुझे फोन कर देना।”
उसके हाथों से चाय के जूठे कप लेकर टेबल पर रखने जा रही थी, तभी मोहन ने उसके हाथों को पकड़ लिया और फूट-फूट कर रो पड़ा।
उसने कहा “मैं तुम पर बोझ हो गया हूं रिद्धिमा!मौत भी नहीं आती मुझे…मैं किसी काम का नहीं रह गया हूं। तुम्हें कितना काम करना पड़ता है…!
मैं कितना बदसूरत हो गया हूँ…!
जिस मोहन से तुमने प्यार किया था वह मैं नहीं रह गया हूँ…!”
रिद्धिमा की आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा
“नहीं मोहन, मेरी पहचान तो सिर्फ तुमसे है।
मेरी मांग का यह सिंदूर, मेरे माथे की बिंदिया, मेरी आंखों का काजल और मेरी जिंदगी के हर पल का उमंग यह कहता है कि मैं तुम्हारी हूं और तुम ही मेरे पहचान हो।
मैं इस पल को हमेशा जीना चाहती हूं।”
“ पर तुम जिस मोहन से प्यार किया था वह तो अब मैं रहा नहीं! मैं किसी काम का भी नहीं रह गया… ना मैं कोई काम कर सकता हूं।
यहां तक कि चल फिर भी नहीं सकता!”
“ नहीं मोहन, मैंने सिर्फ तुमसे प्यार किया था और अब भी करती हूं।”
यह सुनकर मोहन फूट-फूट कर रो पड़े।
उन्होंने अपने दोनों बाजू फैला दिया।
रिद्धिमा उनके गले से आकर लिपट गई।
दोनों ही रो पड़े।
रिद्धिमा ने मोहन की आंखों से आंसू पोंछते हुए कहा
“मोहन, अगले महीने मेरा प्रमोशन होने वाला है। मेरी सैलरी बढ़ेगी। मैं तुम्हें और अच्छे डॉक्टर के पास ले जाऊंगी।
इस तरह मैं तुम्हें घुट घुट कर मरने नहीं दूंगी। चिंता मत करो।सब कुछ ठीक होगा।”
“तुम ही मेरी पहचान है रिद्धिमा, मेरी जिंदगी की सारी खुशियां, सारी उम्मीद…मैं ने भी तो तुमसे ही प्यार किया था ना…!”
मोहन ने कहा और मुस्कुरा दिया।
प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
# बेटियाँ जन्मोत्सव -6वीं
(कहानी संख्या-3)
मौलिक और अप्रकाशित