स्कूल से आते ही गुस्से से पीहू ने बैग सोफे पे पटका और सरोज से बोली “दादी,मैं स्कूल में आज इरेसर ले जाना भूल गई थी..मुझे कुछ मिटाना था इसलिए मैंने अपनी फ्रेंड शीना से इरेसर मांगा तो उसने मुझे नहीं दिया…कहने लगी..मेरा इरेसर खराब हो जाएगा।मेरी सारी ड्राइंग खराब हो गई..मैडम ने भी मुझे बहुत डांटा।मुझे शीना चुड़ैल पे बहुत गुस्सा आया..ऐसा लगा उस बतमीज लड़की का मुंह तोड़ दूं..पागल..गधी…।”और भी ना जाने क्या क्या पीहू ने अपनी दोस्त शीना के लिए बोला तो सरोज को बहुत बुरा लगा वो पीहू को प्यार से समझाते हुए बोली -“बेटा,तुम्हें अपनी सहेली को ऐसे बुरा बुरा नहीं बोलना चाहिए..वैसे तो गलती तुम्हारी ही थी..तुम इरेसर ले जाना क्यों भूल गईं..तुम्हें अपना बैग रोज चैक करना चाहिए..अब तुम छोटी नहीं रह गई जो तुम्हारा बैग मम्मी जमाए।”
“रोज तो ले जाती हूं…बस आज ही तो भूल गई..वैसे भी दादी मैं आपके सामने बोल रही हूं शीना को थोड़ी कुछ कहा मैंने।”
” पर यदि आज तुमने अपनी इस बुरा बोलने की आदत पर कंट्रोल नहीं किया तो कल को तुम शीना के या किसी के सामने भी ऐसा बोल सकती हो ना।”
“हां तो फिर जो मेरे साथ ऐसा करेगा उसे तो बोलना ही पड़ेगा ना।एक जरा सा इरेसर देने में वो मर तो नहीं जाती ना।”पीहू रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी..और अनाप शनाप बोले जा रही थी।
सरोज की बहु ने भी एक आध बार आकर पीहू को रोका पर वो नहीं मानी।एक पल को तो सरोज सर पकड़कर बैठ गई कि इस लड़की को कैसे समझाया जाए?फिर अचानक से उसके दिमाग में एक विचार आया..उसने पीहू से कहा -“अच्छा एक बताओ…तुमने मुझसे एक दिन कहा था ना, कि दादी बुआ बहुत गंदी हैं..इन्हें अपने घर मत बुलाया करो।”
“हां दादी बोला था।”
“क्यों बोला था?”
“क्योंकि मुझे बुआ का घर आना अच्छा नहीं लगता..वो जब भी आती हैं मम्मी को बुरा बुरा बोलती हैं और पापा से भी झगड़ा करती हैं।उनके जाने के बाद मम्मी पापा देर तक रोते रहते हैं।”पीहू दुखी होते हुए बोली।
“पता है..जब तेरी बुआ तेरे जितनी थी..तो वो भी आए दिन स्कूल में अपने सहेलियों से छोटी छोटी बात पर झगड़ा किया करती और उन्हें बुरा बुरा बोलती थी..वो छोटी थी इसलिए हम सबकी लाडली थी…हमने कभी उसे बुरा बोलने से नहीं रोका बल्कि जब वो घर आकर अपनी बातें सुनाती, कि मैंने आज उसको ऐसा बोला..
उसको वैसा बोला तो हम सब खूब हंसते थे..इससे उसको और शय मिलने लगी..धीरे धीरे बुरा बोलना..सबसे बिना बात के झगड़ना उसकी आदत बन गई।हम सबकी आंखें तब खुलीं जब शादी के बाद वो रोज ससुराल वालों से लड़कर मायके आ जाती थी।अब जैसे तैसे वो अपने ससुराल में तो है पर उसे कोई पसंद नहीं करता..
कारण वही उसका सबको बुरा बुरा बोलना और बिना बात के लड़ाई झगड़ा करना।यहां मायके में भी तुम उसे कहां पसंद करती हो?यदि मैंने उसे बचपन में ही डांटा होता और बुरा बोलने से रोका होता
तो आज मेरी बेटी की भी सब इज्जत करते।”कहते कहते सरोज रुआंसी हो गई फिर आंसू पोंछकर बोली-“तुम्हारा भी भाई है कल को उसकी शादी होगी फिर बच्चे होंगे..तुम भी उनकी बुआ बनोगी..क्या तुम चाहोगी कि तुम्हारे भतीजा भतीजी तुम्हें भी गंदी बुआ कहें?”
“नहीं दादी..बिल्कुल नहीं मैं तो अच्छी वाली बुआ बनूंगी।”
“तो फिर आज से और अभी से ये प्रोमिस करो कि तुम किसी के लिए अपशब्द नहीं बोलोगी..और किसी के लिए मन में बुरा भाव नहीं रखोगी।”
“पक्का वाला प्रोमिस..मैं आज से गंदा गंदा नहीं बोलूंगी..सबके साथ प्यार से रहूंगी।”कहकर पीहू सरोज के गले लग गई।
सरोज की बहु बोली -“मांजी,आज तक मैंने भी पीहू की बुआ को लेकर अपको कितनी बातें सुनाई थी…आज समझ में आया कि बच्चों की वजह से मां बाप को कितना कुछ सुनना पड़ता है।”
“बहु ऐसा मौका नहीं आए इसलिए समय से बच्चों को सही गलत सिखाना हमारा काम है।”
“सही कहा आपने मांजी।आपका बहुत शुक्रिया आज आपने न सिर्फ मेरी बेटी को सुधारने में मेरी मदद की बल्कि एक मां को भविष्य में तानों के बाणों से घायल होने से बचा लिया।
वो कहते हैं ना बच्चे कच्चे घड़े के समान होते हैं उन्हें जैसा ढालो वो वैसा ढल जाते हैं..पीहू ने भी धीरे धीरे किसी के लिए बुरा बोलना और सोचना छोड़ दिया।
आज पीहू ना सिर्फ अपने ससुराल वालों और भाई भाभी की सबसे प्रिय है..बल्कि अपनी इकलौती भतीजी की भी वो लाड़ली बुआ है।
दोस्तों किसी अपने के व्यवहार से बच्चों का मन आहत ना हो या उनके मन में उस रिश्ते के प्रति कोई गांठ ना बंध जाए इसलिए समय रहते बच्चों को प्यार से समझाकर उनकी समस्या का समाधान करना चाहिए क्योंकि किसी के व्यवहार से मन में जब गांठें लगती हैं तो समय का अंतराल भी उसे खोल नहीं सकता वह मन में लगी ही रह जाती हैं।
कमलेश आहूजा
#मन की गांठ