Moral stories in hindi : बसंती और देवकी पहले पड़ोसिन थीं, फिर दोनों सहेलियाँ बन गईं।दोनों के पति ज़मींदार थें।खेती की आमदनी से ही उन्होंने अपने बच्चों को खूब पढ़ाया।
बसंती के दो बेटे थें-विवेक और विकास।विवेक अमेरिका पढ़ने जाना चाहता था, बसंती के पति ने अपनी ज़मीन का कुछ हिस्सा बेचकर उसे अमेरिका भेज दिया।पढ़ाई पूरी करके विवेक नौकरी-विवाह करके वहीं बस गया।बसंती को दुख तो हुआ,फिर सोचा….कोई बात नहीं, विकास तो है मेरे पास।उसने विकास को पढ़ाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी और मेहनत करके विकास इंजीनियर बन गया।
देवकी के एक बेटा और एक बेटी थी।उसके पति ने भी दोनों की शिक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।बेटी दीक्षा ने तो अच्छे अंकों से अपना ग्रेजुएशन पूरा कर लिया लेकिन बेटा जवाहर पढ़ाई छोड़कर मटरगश्ती करता रहा, बार-बार फ़ेल होकर पिता का पैसा बर्बाद करता रहा।थक-हार कर उसके पति ने बेटे के लिये एक दुकान खुलवा दी ताकि वह कुछ सीखे और व्यस्त रहे।बेटी भी विवाह करके अपने ससुराल चली गई।
विकास जब नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जा रहा था कि तभी उसकी बाइक को एक ट्रक ने टक्कर मार दी।बेटे को बचाने में बसंती के पति ने अपनी बची हुई ज़मीन भी बेच दी लेकिन फिर भी बेटे को बचा न सके।जवान बेटे की मौत ने दोनों को अंदर से तोड़ दिया।ज़मीन तो अब थी नहीं, घर के आधे हिस्से को किराये पर उठाकर पति-पत्नी का गुज़ारा होने लगा।कुछ समय के बाद बेटे के गम में बसंती के पति भी चल बसे और अब वह अकेली रह रही थी।
इधर देवकी ने भी जवाहर का ब्याह कर दिया।साल भर बाद वह एक पोते की दादी बन गई।पोता जब चलने लायक हुआ तो उसके पति उसे अपने कंधे पर उठाकर घुमाते रहते थें लेकिन इस सुख का आनंद वो अधिक दिनों तक उठा न सके।एक रात ऐसे सोये कि फिर कभी नहीं उठे।तब बसंती ने उसे बहुत संभाला था।
अब सैर को जाना हो, मंदिर जाना हो या मार्केट, दोनों साथ ही जाती और अपने-अपने मन की बातें एक-दूसरे से कहती-सुनती।बसंती उसे बताती कि बेटा अमरिका से फ़ोन करता रहता है तो देवकी भी उसे बताती कि इनके जाने के बाद तो मेरी बहू मेरा विशेष ख्याल रखने लगी है।
एक दिन देविका का मन उदास था तो बसंती से पूछ लिया कि क्या बात है? घर में कुछ…।
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” क्या बताऊँ…, कल ज़रा- सी बात पर बहू ने इतना सुनाया कि क्या बताऊँ!” और देविका अपना मन हल्का करने लगी।बसंती चुपचाप सुनती रही।
दो दिनों के बाद देविका प्रसन्न होकर बसंती को बताने लगी कि आज तो मैं दिनभर पोते के साथ ही खेलती रही।मन तृप्त हो गया।इसी तरह से देविका बसंती से कभी बहू की शिकायत करती तो कभी प्रशंसा और बसंती चुपचाप सुनती।उसके पास तो न बेटा था न पोता।वह अपनी सहेली की बातें सुनकर ही प्रसन्न हो जाती थी।
एक दिन देविका बहुत गुस्से में थी।बसंती ने पूछा तो फट पड़ी, ” तू तो देखती है ना…दिन भर उसके साथ लगी रहती हूँ…फिर भी आज खाना खाते समय इतना सुनाया कि खाने का स्वाद भी कड़वा हो गया।” एक ठंडी साँस लेकर बोली,” बहिनी..तेरे अच्छा है..इन सब का टंटा ही नहीं है।कोई रोकने-टोकने वाला नहीं।कितनी शांति है तेरे जीवन में…, हमें तो रोज ही….।
बसंती ‘ हूँ..’ कहकर चुप हो गई और दोनों अपने-अपने घर चली गई।घर में घुसते ही देविका की नज़र अपने हाथ में ली हुई थैले पर पड़ी, “अरे! बातों-बातों में बसंती फूल का पैकेट तो लेना ही भूल गई।बिना फूल के वो पूजा कैसे करेगी।जाकर दे आती हूँ।” और वह बसंती के घर चली गई।दरवाज़ा खुला था, उसे किसी की सिसकियाँ सुनाई दी तो वह ठिठक गई।देखा कि बसंती अपने पति की तस्वीर के आगे रोते हुए कह रही थी, ” अपने साथ हमें भी ले जाते तो अच्छा रहता।दिन-भर अकेले घर में किससे बातें करूँ।विकास के जाने बाद आपका सहारा था लेकिन आप भी निर्मोही निकले।विवेक के फ़ोन का तो बस इंतज़ार ही करती रहती हूँ।घर में किसी की आवाज़ सुनने के लिये तरस जाती हूँ।किससे अपने मन की बात कहूँ …, कौन मेरी पीड़ा समझेगा। देविका की बहू उसके पास है तभी तो तकरार होती है तो प्यार भी है तो दोनों में।मैं किससे शिकायत करूँ..इन दीवारों से…” और वह फूट-फूटकर रोने लगी।
देविका स्तब्ध थी।इतने सालों तक साथ रहकर भी उसने अपनी सहेली के मन की व्यथा को समझ नहीं सकी और आज तो उसने तीखे बाण छोड़कर उसके कलेजे को छलनी ही कर दिया था।धिक्कार है मुझे! उसका हृदय चित्कार उठा..।बसंती को चुप कराते हुए शिकायत करने लगी,” तूने मुझे अपना नहीं समझा.., अकेले घुटती रही….।” कहते हुए वह भी रोने लगी।
बसंती बोली,” तू तो मेरी सहेली है ना।अपना दुख कहकर तुझे दुखी कैसे कर सकती हूँ।…,और फिर तू जब खुश होकर अपने बच्चों की बातें बताती थी तो मैं तेरी खुशी में ही खुश हो जाती थी।”
दोनों सहेलियाँ एक-दूसरे के गले लगकर जी भर के रोई।इस उम्र में उनके साथ अकेलापन था लेकिन एक-दूसरे का साथ भी था जो बहुत कम लोगों को ही नसीब होता है।
विभा गुप्ता
स्वरचित