अभी उम्र ही क्या हुई थी उसकी… बीस की ही तो थी.. चुलबुली.. अल्हड़.. संजीवनी.. लेकिन अपने कामों के प्रति बिल्कुल सजग थी वह.… जो काम उसे मिल जाता.. वह कभी अधूरा नहीं रहता था…!
भैया की शादी थी.. पूरा घर संभालना था.. और ऐसे में हर जुबान पर एक ही नाम रहता था.. संजीवनी..!
इतनी प्यारी बच्ची सबके मन को जीत ले.. भैया की शादी में ही विवेक की मां ने… उसे पसंद कर लिया.. अपने बेटे विवेक के लिए.. उसकी जिम्मेदारी निभाने की तत्परता.. गंभीरता.. सौम्यता के साथ ही चुलबुलापन… सब भा गया उनको… बेचारी बीमार रहती थी.. घर की सारी रौनक ही गुम हो गई थी… खुद बिस्तर पकड़े रहती… तो जैसी बहू की कल्पना मन में कर रखी थी… वह सारे गुण सामने देख.. मुग्ध हो गईं.. तुरंत ही सीधा संजीवनी की मां.. अन्नपूर्णा जी से जाकर बोल दिया…” मुझे आपकी संजीवनी बहुत पसंद है.. उसे मुझे दे दीजिए…!
घर में खुशी दोगुनी हो गई… यूं तो अभी संजीवनी की शादी के बारे में.. अन्नपूर्णा जी ने कुछ भी नहीं सोचा था… वह अभी ग्रेजुएशन ही कर रही थी.. लेकिन इतना अच्छा रिश्ता.. इकलौता बेटा.. वह भी इंजीनियर.. अपना आलीशान घर.. देख कर सबका मन डोल गया.. सोचा क्या है.. पढ़ाई बाद में भी होती रहेगी.. किस्मत में होगा तो पढ़ ही लेगी.. नहीं तो इतना अच्छा रिश्ता.. बार-बार थोड़े ही आता है…!
सब तैयार हो गए.. इधर भाभी घर आई.. उधर संजीवनी की शादी की तैयारी शुरू हो गई… विवेक बिल्कुल अपनी मां का बेटा था.. जो मां कह दे उसके लिए पत्थर की लकीर थी.. मां का मन था कि जितनी जल्दी हो सके.. शादी कर ली जाए.. अब घर की मनहूसियत उन्हें काटे जा रही थी… इसीलिए इसी लग्न में.. महीने दिन बाद का ही मुहूर्त निकल गया… “कोई तैयारी नहीं करनी आपको.. बस संजीवनी हमें दे दीजिए… हमें जल्दी से जल्दी बहू चाहिए…!”
बुआ जी ने तो कह भी दिया… “इतनी जल्दी क्यों मची है.. बहू ले जा रही है या केयरटेकर.. नर्स ही चाहिए.. तो अस्पताल से बुला ले…!”
पर अन्नपूर्णा जी ने उन्हें चुप कर दिया… विवेक उन्हें भी पसंद आ गया था.. एक ही नजर में.. कितना मोहक स्वरूप और मां का भक्त लड़का… अपनी पत्नी को तो जरूर सर आंखों पर रखेगा.… मां का सोचना भी गलत नहीं था… पहली ही मुलाकात में.. विवेक ने संजीवनी का दिल भी जीत लिया था… कितने हक से उसने कहा था..” संजीवनी..! अब जल्दी से मेरे घर आ जाओ… मेरा घर भी घर बन जाएगा….!
शादी को बस एक हफ्ते बचे थे… संजीवनी कॉलेज गई थी… अपनी छुट्टी की एप्लीकेशन लेकर…सब काम हो गया… घूम कर वापस आ रही थी तो स्कूटी स्टार्ट ही नहीं हुई….दो-चार बार स्टार्ट करने की कोशिश करने के बाद भी… जब नहीं हुआ तो उसे घसीटते हुए थोड़ी दूर ले चली… उधर एक मैकेनिक था… जान पहचान थी.. रास्ते में पड़ता था.…जाते-जाते जब जरूरत होती… छोटे-छोटे बच्चे थे गैरेज में… सब काम जानते थे… तुरंत गाड़ी को फिट कर देते थे…!
रोड क्रॉस करके जाना था… दिल्ली की व्यस्त सड़क… 10 मिनट लग गए उसे रोड क्रॉस करने में… क्रॉस करके पहुंचने ही वाली थी… कि अचानक गलत दिशा से स्पीड से आ रहे एक बाइक से टक्कर हो गई… उसकी स्कूटी उसी के पैरों पर गिर गई… गैरेज से दौड़कर बच्चों ने… उसके पैर पर से स्कूटी उठाकर साइड खड़ी की… संजीवनी उठ ही रही थी… कि एक धरधराती आई मोटर कार उसके पैर को घसीटती निकल गई… जो नहीं होना था, वह हो गया…!
गैराज वालों की मदद से… उसे अस्पताल पहुंचाया गया… घर वालों को खबर दी गई… सभी भागे अस्पताल पहुंचे… संजीवनी को कोई होश नहीं था… खून बहुत बह गया था… एक पैर बुरी तरह फ्रैक्चर हो गया था… उसे काट कर हटाना पड़ा घुटने से नीचे… दूसरा पैर किसी तरह रॅड डालकर एडजस्ट किया गया… !
संजीवनी पूरे 1 महीने तक सदमे में रही… ना किसी से बोलना… ना आंखें खोलना… !
इस 1 महीने में बहुत कुछ बदल गया…जिस दिन संजीवनी का एक्सीडेंट हुआ था… उसी दिन विवेक ने फोन किया था सुबह…” हेलो संजू… कॉलेज जा रही हो… हां अच्छा है छुट्टी ले ही लो… वैसे भी अब तो तुम्हें हमारे घर की रानी बन के रहना है… कॉलेज में तुम्हारा क्या काम…!”
संजीवनी हंसते हुए बोली…” यह रानी पहले अपनी पढ़ाई पूरी करेगी…!
” अच्छा चलो ना कर लेना… जो भी पूरा करना है… पहले शादी तो पूरी होने दो… आज शाम को मिलते हैं… तुम्हारी पसंद की कुछ शॉपिंग करनी है… मां भी आएगी… ठीक है ना… मैं आ जाऊंगा तुम्हें लेने… ओके…!”
” ठीक है…!”
शाम में इस हादसे की खबर सुन… विवेक भी अपनी मां के साथ भागा भागा सीधा अस्पताल ही पहुंचा था… पर स्ट्रेचर पर जाती हुई संजीवनी का झूलता पैर देख… विवेक की मां ने उसका हाथ थाम लिया… उसे आगे नहीं बढ़ने दिया… दोनों वापस हो गए…!
हादसे के करीब पंद्रह दिन बाद… अन्नपूर्णा जी ने खुद ही एक बार विवेक की मां को फोन लगाया… तो अपनी संवेदना जताते हुए उन्होंने साफ कर दिया कि…” आप लोग संजीवनी की सेहत पर ध्यान दीजिए… अभी तो लगता है साल दो साल या शायद… जिंदगी भर उसे सहारे की जरूरत पड़ेगी… इसलिए अन्नपूर्णा जी मैं बहुत-बहुत माफी चाहती हूं… मैंने विवेक के लिए दूसरी लड़की ढूंढ ली है… हम जल्दी बहू घर ले आएंगे… मेरी हालत तो आप जानती हैं… मुझसे खुद का काम नहीं होता… मुझे जरा जल्दी है… आप बेचारी संजीवनी का अच्छे से ख्याल रखिएगा… मेरी सहानुभूति आपके साथ है…!”
अन्नपूर्णा जी अवाक रह गईं… उनसे कुछ बोला नहीं गया… क्या बोलतीं…शायद सच्चाई भी तो यही थी… और शुक्र था शादी अभी नहीं हुई थी… नहीं तो शादी के बाद अगर कहीं ऐसा होता… और ये लोग ऐसे रंग बदलते… तो वह क्या करती… इसलिए उन्होंने जी कड़ा किया और कहा…” मुबारक हो आपको बेटे की शादी… और संजीवनी की आप बिल्कुल फिक्र मत करिएगा… वह मेरी बेटी है… मैं संभाल लूंगी उसे…!”
वह दिन था और आज का दिन… आज महीने भर बाद संजू को होश आया… तो आंखों के सामने मां बैठी थी… उसने हौले से हाथ बढ़ाकर मां को छूआ… अन्नपूर्णा जी जैसे जी उठीं… आगे बढ़कर बेटी को चूम लिया…!
संजीवनी ने उठने की कोशिश की तो… उठ ही नहीं पाई… मां ने उसे संभाल लिया… किसी के लिए भी यह पल… यह जानना बहुत दर्दनाक होता है जो संजीवनी ने आज जाना था… वह बहुत रोई चिल्लाई… फिर मां ने कहा…” देख बेटा… तू अभी सोच ले… तुझे जिंदगी भर ऐसे ही रोना है… पड़े रहना है… या फिर से खड़े होना है… वैसे भी अभी बहुत कुछ है… जो तुम्हें सुनना भी है और सहना भी है…!”
संजीवनी अचानक चुप हो गई… उसने मां की तरफ पूरी आंखों से देखा… और पूछा…” मां क्या विवेक ने मुझे छोड़ दिया…!”
मां ने कोई भूमिका नहीं बनाई… सीधे हां कर दिया… “हां बेटा विवेक ने शादी कर ली है… वह अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गया है… अब तू सोच तुझे क्या करना है… हिम्मत कर और जल्दी उठ खड़ी हो… सिर्फ अपने लिए नहीं… मेरे लिए… मुझे उन सभी को दिखाना है… जिनके अनुसार… अब मेरी बेटी बेचारी हो गई… उन सबको बताना है कि… अपाहिज शरीर नहीं मन होता है… अगर मन ने यह सोच लिया कि वह अपाहिज है… तो शरीर कुछ भी नहीं कर सकेगा.. वह कभी भी उठकर खड़ा नहीं हो पाएगा…! और तुम्हें खड़ा होना है.…. तू अपाहिज नहीं है… तू बेचारी नहीं है…!”
संजीवनी समझ चुकी थी… कि उसकी जिंदगी अब पहले जैसी नहीं रही… बहुत मुश्किल था उसका यह सफर… हर बार गिरना… हर बार सहारा लेना… कोई भी बेचारी कह कर निकल जाता… और यही शब्द थी उसकी मोटिवेशन… जितनी बार कोई कहता कि … यह बेचारी… उफ्फ बेचारी… उतनी बार वह और जोश से भर उठती… !
कई महीने लग गए… अन्नपूर्णा जी ने अपनी सारी शक्ति… मेहनत… पैसा… सब लगा दिया बेटी को दोबारा खड़ा करने में…!
आर्टिफिशियल पैरों के साथ चलना भी वाकई में एक चुनौती था… पर जिसने मन में ठान लिया हो… उसके लिए कोई चुनौती बाधक नहीं होती… अंततः संजू अपनी जिंदगी की… यह सबसे कठिन परीक्षा पास हो गई…!
अपने नए पैरों के साथ संजू घर वापस आई… घर में सभी ने उसका स्वागत बाहें फैला कर किया… मां इस पूरे समय में जो लगभग 1 साल से भी अधिक था… बेटी के साथ हमेशा ढाल बनकर खड़ी रही… अब संजीवनी को देखकर कोई नहीं बोल सकता था… कि वह बेचारी है… एक नए जोश और नए आत्मविश्वास के साथ संजू ने अपनी नई जिंदगी में कदम रखा…!
पर वह एक बार विवेक से मिलना चाहती थी… इतने महीनों में कभी एक बार भी… उसकी ना बात हुई थी… ना उसके बारे में कुछ जाना ही था… संजीवनी ने थोड़ा झिझकते हुए मां से पूछा…” मां क्या एक बार विवेक से बात करूं… या बोलो तो मिल आऊं… उसे बधाई भी तो देनी है शादी की…!
अन्नपूर्णा जी ने बेटी के सर पर हाथ रख कर कहा… “हां बेटा जरूर… तुम अकेली नहीं जाओगी… मैं भी जाऊंगी तुम्हारे साथ… मुझे भी तो बधाई देनी है मिलकर…!”
संजीवनी ने दोबारा कॉलेज ज्वाइन कर लिया था… अगले दिन मां बेटी दोनों सीधा विवेक के घर पहुंच गए… दरवाजा खोला विवेक की मां ने… अचानक उन्हें सामने देख कर… थोड़ा असमंजस में पड़ गई फिर तुरंत संयत हो… उन्होंने संजीवनी का हाथ पकड़ लिया…” आओ बेटा… आओ… कैसी हो… संभाल कर आओ अंदर…!”
संजीवनी ने उनके हाथ से अपना हाथ छुड़ाकर झुककर उन्हें प्रणाम किया और बोली…” नहीं आंटी… मुझे सहारे की जरूरत नहीं है… मैं ठीक हूं… आप कैसी हैं…!”
” मैं भी ठीक ही हूं……!”
तभी विवेक अंदर से निकला… सामने संजीवनी को देखकर दो कदम पीछे हट गया… फिर बोला…” मुझे माफ कर दो संजू…!”
” माफी कैसी… मैं तो तुम्हें बधाई देने आई थी… कैसी है तुम्हारी पत्नी… अच्छा हुआ मेरे साथ सब शादी से पहले हो गया… वरना अगर बाद में होता… और तुम मुझे बीच रास्ते छोड़कर निकल जाते… तो सोच कर मेरा मन भारी हो जाता है… मैं तो आप लोगों का शुक्रिया करने आई थी… आप लोगों की वजह से मैं वापस अपने पैरों पर खड़ी हो पाई… वरना शायद इतनी जल्दी से यह संभव नहीं हो पता…!”
विवेक और उसकी मां दोनों की आंखें झुकी हुई थी…!
अन्नपूर्णा जी ने विवेक से पूछते हुए कहा…” क्यों विवेक… अपनी पत्नी से नहीं मिलवाओगे…!”
” जी जरूर मिलवाता… वह जरा शॉपिंग गई है…!” “अच्छा कोई बात नहीं… फिर मिल लेंगे… आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई… चलो संजू…!”
विवेक की मां आगे बढ़कर बोली “बेटा थोड़ा बैठो तो… फिर जाना…!”
” नहीं… बहुत-बहुत धन्यवाद आंटी…!”
दोनों वहां से निकल गए… वहां से निकल कर संजीवनी ने मां से कहा…”मां तुम अब घर चली जाओ… मुझे कॉलेज का कुछ काम है… वैसे भी तुमने मेरा बहुत साथ दिया है… अब मैं अकेले फिर से आगे बढ़ना चाहती हूं…!”
मां ने बेटी के गालों पर प्यार से थपकी दिया… और घर चली गई…! संजीवनी आहिस्ता कदमों से चलते हुए… ऑटो करके सीधे कॉलेज के पास पहुंच गई… ऑटो से उतरते ही फोन बज उठा… विवेक था फोन पर… “संजू मैं तुमसे मिलना चाहता हूं… एक बार प्लीज… देखो मना मत करना…!”
” ठीक है…!”
” मैं यही हूं… तुम्हारे पीछे…..!” विवेक बढ़कर सामने आ गया…” संजू तुमसे मिलने के बाद मुझसे रहा नहीं गया… मुझे माफ कर दो… मैं दिल से तुमसे माफी मांगता हूं… उस वक्त मां ने जो कहा… मुझे बस वही सही लगा… लेकिन शीला बिल्कुल तुम्हारे जैसी नहीं है… उसे मेरी मां से कोई मतलब नहीं… बल्कि वह तो अभी से अलग होने की बातें करती है… मैं और अब उसे बर्दाश्त नहीं कर सकता…!”
विवेक ने आगे बढ़कर संजीवनी का हाथ पकड़ लिया…” संजू तुम फिर से मेरी जिंदगी में आ जाओ….!”
संजीवनी ने झटके से हाथ छुड़ाया और बड़ी ही शालीनता से कहा…” विवेक अच्छा है तुमने वही किया जो मां ने कहा… पर क्या यह बात भी तुम मां से पूछ कर कह रहे हो… जिसका हाथ पकड़ा है उसका साथ निभाओ… अगर इसी तरह परफेक्शन की कोशिश में भागते रहे …तो कभी खुश नहीं रह पाओगे… तुम्हारी परिस्थितियां जैसी भी हैं… उनके साथ संघर्ष करो… और जीतने की कोशिश करो… और हां विवेक…मुझे संजू मत कहना… यह नाम मेरे अपनों के लिए है… तुम्हारे लिए सिर्फ संजीवनी… आशा है हम फिर नहीं मिलेंगे…!”
संजीवनी गर्व से सर उठाकर कॉलेज की तरफ बढ़ गई… और विवेक सर झुकाए घर की तरफ…!
संजीवनी अपनी पढ़ाई में मन लगाकर आगे बढ़ रही थी… एक दिन अचानक फिर से विवेक का फोन आया… फोन उठते ही उसने कहा…” थैंक यू सो मच संजीवनी… तुम ना होकर भी मेरी जिंदगी में हमेशा शामिल रहोगी… मैंने भी तुम्हारी बातों से… तुमसे प्रेरणा लेकर.… अपनी जिंदगी सुधारने का प्रयास किया था… और आज मैं बहुत बेहतर स्थिति में… खुद को महसूस कर रहा हूं… तुम्हें खोने का गम तो हमेशा रहेगा… लेकिन सही मायने में मैं चाहता हूं कि… तुम खूब तरक्की करो… और एक सफल इंसान बनो…!”
संजीवनी कुछ नहीं बोली… फोन कट हो गया… अन्नपूर्णा जी वहीं थीं… उन्होंने सब सुनकर प्यार से अपनी बेटी को गले से लगा लिया… उनकी बेटी अब बेचारी नहीं… दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुकी थी…….!”
स्वलिखित मौलिक अप्रकाशित
रश्मि झा मिश्रा