तिरस्कार का तिरस्कार – सुभद्रा प्रसाद 

सूर्यास्त का समय था |श्याम लाल पुल पर खड़े डूबते सूरज को एकटक देख रहे थे |पुल पर सन्नाटा था |शीतल हवा बह रही थी |श्याम लाल को  अच्छा लग रहा था | वे शांत और स्थिर खड़े थे, पर उनका मन तेजी से अतीत की ओर दौड़ रहा था

आज उनकी पत्नी का जन्म दिन था और ये जगह उसे बहुत पसंद थी |वे दोनों अक्सर यहाँ आया करते थे |सात महिने पहले वह चल बसी |

इस बात को छतीस साल हो गये पर श्याम लाल को आज भी वह दिन अच्छी तरह याद है, जब मालती से उनकी शादी हुई थी |खूबसूरत, सरल, सीधी और बेहद समझदार थी मालती |जीवन के हर मोड़ पर , हर सुख दुःख में वह तन मन से उनका साथ निभाई |

श्याम लाल एक शिक्षक थे और उनकी आमदनी बहुत ज्यादा न थी , पर सीमित आय में भी माता-पिता की सेवा, एक बहन की शादी, दो बच्चों का जन्म, उनका पालन-पोषण, शिक्षा इत्यादि सभी जिम्मेदारियों का पालन उसने बहुत अच्छी तरह किया |

उसने कभी श्याम लाल को शिकायत का मौका न दिया |श्याम लाल भी सदा खुश रहते और उसे खुश रखते | उन दोनों के उचित देखभाल और मार्गदर्शन का ही परिणाम था कि दोनों बेटे रवि और ऋषि अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई अच्छी तरह पूरी कर अच्छी-अच्छी कंपनियों में नौकरी पा गए |

श्याम लाल और मालती दोनों बहुत खुश थे |उनहोंने जीवन भर अपनी जरूरतों और  इच्छाओं से समझौता किया था, उन्हें लगता था अब  वे दोनों भी आराम से रह सकेंगे | दोनों बेटों की शादी की | सबकुछ ठीक हो गया, ऐसा वे सोच रहे थे |

दोनों बेटों की नौकरी अच्छी थी | उनकी शादी भी अच्छे घर में हुई |दोनों बहुऐं पढ़ी-लिखी और सुंदर थी, पर 

  दोनोंको अपने-अपने मायक़े का घमंड था |दोनों में न आपस में बनी, न हीं दोनों ने अपने सास-ससुर को महत्व और सम्मान दिया |बात- बात में उन्हें अपमानित करना और उनका तिरस्कार करना, दोनों बहुओं का स्वभाव था |दोनों बेटे भी अपनी-अपनी पत्नी का पक्ष ही लेते |

श्याम लाल और मालती समझ नहीं पा रहे थे, कैसे समझाये उन्हें |शादी के एक साल के अंदर ही दोनों ने प्रयास करके विदेश में नौकरी पा ली और अपनी-अपनी पत्नी के साथ विदेश चले गये | 

श्याम लाल और मालती दोनों 



ने सपना देखा था, बुढ़ापे में बेटे बहुओं के साथ रहने का, पोते-पोतियों को गोद में खिलाने का, आराम करने का, पर सारे सपने सपने ही रह गये |साथ रहना तो दूर की बात थी, वो तो उनकी आवाज सुनने तक तो तरस जाते |साल में एक बार एक महिने के लिए आते थे,

पर दो साल से वो भी नहीं आये थे |मालती परेशान रहती  | श्याम लाल सब समझते थे और मालती को सदा खुश रखने का प्रयास करते थे |दोनों एक दूसरे को समझाते और खुश रखते |मालती दिल ही दिल में उनसे मिलने के लिए तरसती रहती |वह एक महिने से बीमार थी

और  एकबार उनलोगों से मिलना चाहती थी | श्याम लाल ने बेटों से बात भी की, उन्हें माँ के बारे में बताया भी, पर वे न आये |मालती  बेटों से मिलने की आस लिए ही चली गई |दोनों बेटे बाद में आये और उन्हें अपने साथ चलने के लिए कहने लगे |

आप यहाँ अकेले कैसे रहेंगे, कौन आपकी देखभाल करेगा, अगर आप को कुछ हो गया तो हम समय पर आ भी न पायेंगे |इसलिए आप यह घर बेच दें और हमारे साथ चले |श्याम लाल को जाने का जरा भी मन नहीं था, पर उनके बार-बार कहने पर श्याम लाल अपना मन बना ही रहे थे

कि एक रात अचानक उन्होंने बेटे-बहुओ को योजना बनाते सुन लिया |वे जान गये कि वे लोग घर बेचकर सारा पैसा लेकर चले जायेंगे और उन्हें यही ं वृद्धाश्रम में छोड़ देगें |

उन्होंने घर बेचने और उनके साथ जाने से यह कहकर मना कर दिया कि इस घर में मालती की यादें है और वे यहाँ रहेगें तो उन्हें लगेगा कि मालती उनके साथ है |बेटों ने बहुत कहा पर वे नहीं माने | घर नहीं बेचा |बेटे बहुत गुस्साये और वापस चले गए |

वो दिन और आज  का दिन बेटों ने उनसे बात करना भी बंद कर दिया |कभी बात करना चाहते भी तो वे फोन नहीं उठाते और उठाते भी तो उन्हें भला बुरा कहके रख देते 

             श्याम लाल अकेले पड गये थे |उन्होंने अपने माता -पिता की बहुत सेवा की थी और अपने सारे कर्तव्यों का पालन भलीभाँति किया था, पर उन्हें अकेलापन, अपमान और तिरस्कार मिला, यह बात उन्हें बहुत दुख देती थी |

उन्हें मालती की बहुत याद आती थी|जीने का कोई मकसद ही न था |अपना जीवन एकदम बेकार और उद्देश्यहीन लगता |वे बहुत उदास रहते |

         “मालती तुम मुझे छोड़ कर क्यों चली गई  ? मेरा जीवन बेकार हो गया |मुझे भी अब जीने की इच्छा नहीं है |मुझे भी अपने पास बुला लो |” सोचते हुए श्याम लाल ने एक गहरी सांस ली|पुल पर सन्नाटा था | तभी उसने देखा एक लड़का पुल पर चला आ रहा था और देखते ही देखते पुल की रेलिंग पर चढ़ने लगा | 

           “यह क्या कर रहा है? ” श्याम लाल ने सोचा |”अरे, यह तो नदी में कूदने जा रहा है |”श्याम लाल के मन में जैसे ही यह बात आई उसने दौडकर उसका हाथ पकड़ लिया |



“क्या कर रहे हो तुम ? ” उन्होंने उसे रेलिंग से खींच कर उतारा |

“मुझे छोड़ दिजिए |मैं मरना चाहता हूँ  |” लड़का चिल्लाया |

“मरना चाहते हो, पर क्यों  ? ” श्याम लाल ने उसे दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया |

“आपको क्या, छोडिए मुझे |” लड़का छूटने के लिए जोर से छटपटाने लगा |

 “पहले बताओ, क्यों जान देने पर तुले हो  ? “

“आपको क्यों बताऊँ, आप कौन हैं मेरे |” लड़का अपनी बांह छुड़ाने का प्रयास करते हुए बोला |

“मैं भी एक इंसान हूँ और मैं भी   मरना चाहता हूँ |’श्याम लाल ने एक गहरी सांस ली |

 आप भी “लड़का का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया |उसका छटपटाना कम हो गया |” पर क्यों “

 “क्योंकि मेरे जीवन का कुछ मकसद नही रह गया, पर तुम बताओ, क्यों मरना चाहते हो? “

 “मैं परीक्षा में फेल हो गया |इसी बात पर मेरे चाचा ने मुझे बहुत मारा और चाची ने खाना नहीं दिया |मैं दो दिन से भूखा हूँ |” लड़का रूआंसा होकर बोला |



  “तुमने पढाई क्यों नहीं की? तभी तो फेल हुए |”

  “कैसे  और कब पढाई करूँ? 

दिनभर तो काम करता रहता हूँ|समय मिले तब ना पढूं

 “क्या काम करते हो और  कहाँ रहते हो, मुझे पूरी बात बताओ |मैं शायद तुम्हारी मदद कर सकूँ |”

“मैं अपने चाचा -चाची के साथ रहता हूँ और दसवीं  की परीक्षा में फेल कर गया |इसी बात पर चाचा ने मुझे बहुत डांटा और मारा चाची ने खाना नहीं दिया और चाचा के बच्चों ने मेरा बहुत मजाक उड़ाया | मैं अब जीना नहीं चाहता हूँ |मुझे मर जाने दिजिए |”वह रोने लगा  

 “तुम अपने मम्मी-पापा के पास

क्यों नहीं रहते |”

“वे दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं |दो साल पहले एक सड़क दुर्घटना में एक साथ दोनों की मृत्यु हो गई |वे होते तो मेरी यह दुर्गति न होती मेरे मम्मी-पापा बहुत अच्छे थे |मैं उनके साथ  खुश था |खुशियों से भरा परिवार था हमारा | बहुत प्यार करते थ

मुझसे | मुझे इंजीनियर बनाना चाहते थे |मैं पढ़ने में तेज था, परन्तु चाची दिनभर मुझे काम में लगाये रखती है, तो मैं कैसे पढूं ? चाचा के दोनों बच्चे, दीदी और भैया भी अपना सारा काम मुझसे ही करवाते हैं |मैं  सबका काम करता हूँ,

फिर भी सब मेरा अपमान और तिरस्कार ही करते रहते है | बात- बात पर मारते हैं |चाची मुझे कभी भरपेट खाना नहीं देती |चाचा भी मेरी कोई बात नहीं सुनते हैं और अब तो उन्होंने मुझे घर से भी निकाल दिया |मैं कहाँ जाऊँ |इसीलिए मैं मर जाना चाहता  हूँ  |”लड़का रोने लगा |

 “तुम्हारा नाम क्या है? “



  “अनमोल “

  “अनमोल, मैं चलकर तुम्हारे चाचाजी को समझाता हूँ |वे तुम्हे वापस घर में रख लेंगे |”

 “नहीं, उनहोंने मुझे घर से निकालते समय ही कहा था कि मैं दुबारा उनके घर गया तो वे मुझे जान से मार देंगे |

” ऐसा उन्होंने गुस्से में कहा होगा |”श्याम लाल ने उसे समझाया |

“जो भी हो, पर मुझे अब वहां नहीं जाना है  |अगर आप ने जबरदस्ती

  मुझे वहाँ छोडा़ तो मैं फिर से यहाँ आकर नदी में कूद जाऊंगा |”लड़का जोर से बोला |

 “तब तो एक उपाय मुझे समझ आ रहा है |” श्याम लाल गंभीरता से बोले |

“क्या ” अनमोल उनका मुंह देखने लगा |

  “तिरस्कार का तिरस्कार “

   “मैं कुछ नहीं समझा “

 “हम दोनों को अपने जीवन में अपनों के द्बारा तिरस्कार मिला और इसी कारण हम जीना नहीं चाहते | तो क्यों ना हम इस तिरस्कार का तिरस्कार कर इसे अपने जीवन से हटा दे और एक नई जिंदगी की शुरुआत करें |” श्याम लाल उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोले |

अनमोल चुपचाप खड़ा था |उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था |

“तुम मेरे साथ मेरे घर चलो |मैं तुम्हें अपने पास रखूंगा |तुम्हें पढाऊंंगा |एक सफल और योग्य व्यक्ति बनाऊंगा |

तुम्हें अपने माता -पिता के सपनों को साकार करने में पूरा सहयोग करूँगा |

मुझे जीने का एक मकसद मिल जायेगा और तुम्हें जीने के लिए एक सहारा |”

“पर पैसे कहाँ से आयेगें  ? ” अनमोल ने पूछा |



  “उसकी तुम चिंता मत करो | मुझे कुछ पेंशन मिलता है, और अगर पैसे कम पड़े तो मैं अपने आधे घर को किराये पर लगा दूंगा और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाऊंगा |तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा |” श्याम लाल ने उसके सिर को सहलाते हुए कहा |

           “चाचा जी ने आपको परेशान किया तो  ? ” अनमोल अभी भी उलझन में था |

          “वो मै समझ लूंगा |मेरे कितने शिष्य वकील और पुलिस में हैं  ? “

         “मैं आपको क्या बोलूं? “

          “दादा “

          ” दादा जी |आप बहुत अच्छे है|” अनमोल उनसे लिपट गया |

            ”  पर मेरी एक शर्त है |तुम मुझे कभी अकेला मत छोड़ना | मुझे छोड़ कर चले ना जाना |”श्याम लाल ने उसे अपने गले  से लगाते हुए कहा |

          “कभी नहीं जाऊंगा दादा जी | मैं जीवन भर आपके साथ रहूंगा |आपने तो मुझे नया जीवन दिया है |” अनमोल हंसते हुए बोला  |                                           “तो फिर चलो |तुम्हें भूख भी तो लगी है | पहले  तुम्हें खाना खिलाता हूँ, फिर घर चलेगें  |” श्याम लाल भी हंस पडे़ |

             दोनों एक दूसरे का हाथ थामे जीवन की एक नई राह पर चल पड़े |

सुभद्रा प्रसाद 

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