Moral stories in hindi : दिव्या ने अधखुली आँखों से दीवार पर लगी घड़ी की ओर देखा जो आठ बज गये हैं दिखा रही थी । उसने फिर से आँखें बंद करके जैसे ही करवट ली सामने मस्त नींद में सो रहे पति को कुछ देर अपलक निहारने लगी ।
कल ब्याह कर इस घर में आई थी ।बैंक में कार्यरत चंडीगढ़ निवासी दिव्या के लिए उनके करीबी रिश्तेदार दिल्ली में कार्यरत सोफ्टवेर इंजीनियर कबीर के लिए विवाह प्रस्ताव लेकर आयें थे ।दिव्या के पापा को घर परिवार सब बहुत पसन्द आया और जल्दी ही सब कुछ तय कर छह महीने बाद ब्याह तय हो गया ।
ब्याह के बाद उसे आसानी से दिल्ली में उसी बैंक की शाखा में तबादला भी मिल गया । इन छह महीनों में अपने भावी पति से ज़्यादा तो नहीं मिल पाई बस फ़ोन पर ही ज़्यादा बात हुई । ससुराल में सास ससुर और एक छोटी ननद बुलबुल थी ।
किसी को भी ज़्यादा नज़दीक से जानने का अभी तक उसे मौक़ा नहीं मिला था । सब कुछ उसके लिए नया था ।
दो दिन के विवाह समारोह में पति कबीर से ज़्यादा बात करने का समय ही नहीं मिला । लेकिन आँखों आँखों में दोनों ने ना जाने कितनी बात की .. और ये पहली रात बातें करते करते पता ही नहीं चला कब थकावट ने नींद को भी न्योता दे दिया । कमरे की बाहर की आवाज़ें बता रही थी कि परिवार के लोग उठ गये हैं ।
सोचते सोचते आधा घंटा ओर बीत गया । दिव्या को लगा उठ जाना चाहिए । नींद तो अब आने से रही वैसे भी जब शरीर में बहुत थकावट हो तो तब भी नींद जल्दी से नहीं आती । वैसे उसकी सासु माँ ने सोने से पहले कहा था..
बेटा जल्दी उठने की कोई ज़रूरत नहीं आराम से उठना यहाँ टी वी सीरियल की तरह सुबह कोई पुजा वग़ैरह नहीं है । कहते ही दोनों सास बहू हंस पड़ी थी |
दिव्या ने उठने के लिए अभी दो ही कदम बढ़ाये थे कि बीच राह में उसे अपने बड़े बडे तीन सूटकेस रास्ता घेरे मिले । उसने नज़र घूमा कर कमरे का जायज़ा लिया । कमरा ज़्यादा बड़ा नहीं था ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
डिजिटल दोस्त – रिंकी श्रीवास्तव
एक बड़ी सी अलमारी और साथ ही बड़ा सा शीशा और नीचे सुविधा जनक सामान रखने की व्यवस्था, साथ में एक तरफ़ छोटा सा टेबल और कुर्सी पड़ी थी । जिस पर कबीर का लैपटॉप पड़ा था ।
अटैचियों को सरका कर उसने बाथरूम तक अपने जाने का रास्ता बनाया । तौलिये के लिए कबीर की अलमारी खोली तो देखकर हैरान हुई जो कि पहले से ही कपड़ों से ठसाठस भरी हुई थी ।
देखते ही उसके मुख से निकला… हे राम यहाँ तो रूमाल भर की भी जगह नहीं है मेरे कपड़े कहाँ जायेगें। ख़ैर थोड़ी देर बाद बाथरूम से नहाकर जब बाहर निकली तो सूटकेस देखकर सोचने लगी माँ ने किसमें मेरे हल्के फूलके कपड़े रखे हैं ।
एक सूटकेस उठाकर बिस्तर पर रखा तो उसमें उसके आफिस के कपड़े जूते वग़ैरह वग़ैरह.. फिर हिम्मत कर दूसरा उठाते उठाते हाथ से ऐसा छूटा की पैर के अंगूठे पर सीधा गिरा । पैर पूरा दर्द से भर गया और अंगूठे का मांस उतरते ही खून तेज़ी से बहने लगा ।
एक हल्की सी चीख को उसने अपने मुँह पर हाथ रखकर दबा लिया । नहीं चाहती थी कि पति की नींद में ख़लल आये ।उसने जल्दी से साथ पड़ा रूमाल चोट पर बांधा । दूसरी अटैची खोली और भगवान का शुक्र किया ।
सब कपड़े उसी में थे । एक हल्का सा गुलाबी रंग का उसने पलाजो सूट पहना । बड़ा सामान्य सा मेकअप किया और बाहर आ गई ।
रसोई में उसकी सासु माँ रेखा और कबीर की चाची नीता खड़ी बातें कर रही थी । दिव्या ने दोनों के पाँव छूकर प्रणाम किया । रेखा ने उसे बहुत सारा प्यार और आशीर्वाद देकर कहा.. बेटा तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए चाय बनाकर लाती हूँ ।
दिव्या भी बात जारी रखते हुए पूछने लगी । पापा जी बुलबुल सब उठ गये ??रेखा- पापा तो कब से उठ गये और बुलबुल तो बारह बजे से पहले उठने वाली नहीं ।
दिव्या- हाँ वो तो है शादी की थकावट भी तो बहुत होगी !!
उसकी बात सुनते ही मीता बोल पड़ी । वो तो महारानी है इस घर की यह तो उसका रोज़ का उठना है बहुरानी!! तुम्हारी जो यह ननद है ना किसी राजकुमारी से कम नहीं धीरे-धीरे तुम्हें उसके शौक़ नाज नख़रे पता चलेंगे , कहकर चाची आँख मटका कर हंसने लगी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
सच्ची दोस्ती – ममता गुप्ता
तभी रेखा की नज़र दिव्या के खून से भरे उस रूमाल पर गई तो वो एकदम घबरा गई … ये चोट कैसे लगी बेटा ?? वो उसके पैर की ओर देखते हुए बोली । वो अटैची लग गई कपड़े निकालते हुए । ज़्यादा नहीं है ठीक हो जायेगी कहते हुए दिव्या सासु माँ से पुछने लगी.. मम्मी जी मेरे कपड़े रखने के लिए कोई जगह है ??
रेखा – सच में बेटा मैं भी इसी बारे में सोच रही थी । उपर छत पर हमारा गेस्ट रूम है । वहाँ दीवार की अलमारी में तो सीलन है ।
एक ओर पुरानी लकड़ी की अलमारी है, अगर तुम्हें पसंद आये तो वहीं फ़िलहाल रख लो । फिर जब समय मिले तो कबीर के साथ जाकर अपने लिए एक नई अलमारी ख़रीद लाना ।
दिव्या सुनकर खुश हुई और दो दिन के बाद चाचा चाची के जाते ही अपनी सारी अटैचियाँ कमरे में पहुँचवा दी । दिव्या ने जैसे ही वह पुरानी अलमारी देखी तो कुछ देर के लिए उसे देखती रही । ग़ज़ब की उस पर चित्रकारी थी ।
दरवाज़े पर छोटा सा दर्पण भी था । लगता था जैसे पीढ़ी दर पीढ़ी कोई यादों की विरासत को धरोहर के रूप में सँभाले हुए थी वह अलमारी , दिव्या ने बडे क़रीने से उस ख़ज़ाने रूपी अलमारी में अपने सब कपड़े अच्छे से लगा दिए । कुछ उसकी पोशाकें अभी पैकिंग में ही थी उसने उन्हें वैसे का वैसे ही रख दिया ।
अलमारी में उसका सारा सामान बड़े सुसज्जित तरीक़े से जब लग गया तो जमी हुई अलमारी को देख कर वो स्वयं की मेहनत पर ख़ुश होने लगी ।
रीति रिवाज रिश्तेदार घूमना फिरना जब निपट गया तो जीवन धीरे-धीरे सामान्य ढर्रे पर आने लगा । फिर एक दिन इतवार को दोपहर में दिव्या रसोई में सासु माँ का हाथ बँटवा रही थी तो बुलबुल रसोई में आकर खाना माँगने लगी ।
माँ ने कहा आधे घंटे में तैयार हो जायेगा । खाना तैयार होते ही रेखा बुलबुल को आवाज़ें देने लगी । जब कोई जवाब नहीं आया तो उन्होंने दिव्या से कहा जाकर देख बेटा कहाँ चली गई है.. अभी तो भूख भूख कहकर चिल्ला रही थी ।
बुलबुल को सारे घर में ना पाकर दिव्या उसे देखने छत पर चली गई । उपर छत पर पहुँचते दिव्या के पाँव जैसे ज़मीन से जुड़ गये । सामने का नजारा देखकर उसके होश उड़ गये । बाहर छत पर जो चारपाई पड़ी थी उस पर दिव्या के सब कपड़े नुमाइश की तरह खुले पड़े थे ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
आभासी मित्रता – अनामिका मिश्रा
उसकी महँगी महँगी ड्रेसेज़ एक दूसरे पर एक ढेर के रूप में पड़ी थी । जिसे ख़रीदते वक़्त उसने ना जाने कितनी बार सोचा था । एक मध्यमवर्गीय लड़की के लिए एक एक पैसे की क़ीमत होती है ।
वो अन्दर कमरे में गई तो बिस्तर पर भी उसके कपड़ों की जैसे प्रदर्शनी लगी थी । पैकिंग के सभी लिफ़ाफ़े इधर-उधर बिखरे पड़े थे । सामने बुलबुल शीशे के सामने उसका गाउन पहन ख़ुद को मटक मटक कर देख रही थी ।
हज़ारों दिमाग़ में सवालों के बाद दिव्या बस एक ही बात कह पाई … बुलबुल यह सब क्या है ?? दिव्या को देखते ही बुलबुल को जैसे अपनी उलझनों का तोड़ मिल गया ।
चेहरे पर प्रसन्नता के भाव लाते हुए बोली , अच्छा हुआ भाभी आप आ गई मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा कौन सी ड्रेस पर अपना मन टिकाऊ , सभी एक से बढ़कर एक हैं !! मेरी बहुत करीबी दोस्त की शादी है और एक नहीं तीन तीन ड्रेसेज़ चाहिए ।
उसकी बात सुनते दिव्या अपने मन के आवेगों को नियंत्रण में रख कर बड़े प्यार से बोली..लेकिन दिव्या तुमने तो अभी शादी में भी कितने कपड़े बनवाये होंगे और फिर ये सब तो मेरे साईज़ के है ।
बुलबुल- भाभी वो तो सबने देख लिए और साईज़ कोई समस्या नहीं वो तो मैं आधे घंटे में ठीक करवा लूँगी । बस आप मेरी यहाँ मदद कर दो ।
दिव्या – मुझे नीचे बहुत काम है और तुम भी आकर खाना खा लो कहकर दिव्या नीचे चली गई । नीचे आकर जब रेखा ने पूछा तो दिव्या ने सारी बात बता दी । माँ ने, यह लड़की भी !!कहकर इतनी बड़ी बात को बिलकुल हल्के में लिया तो दिव्या को एक ओर झटका लगा ।
बुलबुल के इस कारनामे का अब तक कबीर को भी पता चल चुका था । रात को पत्नी का फुला हुआ चेहरा देखकर कहने लगा.. जाने दो वो है ही ऐसी अपनी ख़ुशी के आगे कुछ नहीं देखती और ना ही किसी से समझौता करती है ।
कुछ अमीर घरों की लड़कियाँ उसकी दोस्त है । बस उन्हीं जैसा बनना दीखना !! जो भी है बस उसके लिए यह सब बहुत मामूली है ।ऐसा नहीं है कि हम उसे कुछ कम पैसे देते हैं । पापा से खूब पैसे लेती रहती है ।शुरू शुरू में माँ मना करती थी ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
अजनबी बहनें – अनुपमा
जब देखा उस पर कोई असर नहीं तो माँ ने भी अपनी रवैया बदल लिया । पापा को ज़्यादा उसके बारे में कुछ नहीं पता । मैं उसकी निजी कामों में ज़्यादा दख़लंदाज़ी नहीं करता । वैसे भी काफ़ी ज़िद्दी और मुँह फट है ।
मेरी मानो तुम भी इन सब से दूर रहो । मैं नहीं चाहता कि उसके मन में तुम्हारे लिए सम्मान कम हो । वैसे भी पापा उसके लिए लड़का ढूँढ रहे हैं । उसका कालेज ख़त्म होने का बस इन्तज़ार है ।
कबीर की बात का जवाब देते हुए दिव्या बोली.. कबीर घरों परिवारों में बहने ननद भाभी एक दूसरे के कपड़े पहन लेती है कोई बड़ी बात नहीं है । लेकिन किसी की चीज़ को हाथ लगाने से पहले पूछ तो लेना चाहिए ।
शिष्टाचार नाम की भी कोई चीज़ होती हैं । सहेलियाँ भी एक दूसरे से ज़रूरत पड़ने पर कपड़े माँग लेती हैं । लेकिन इसे आदत बना लेना यह अच्छे घरों कीं बेटियों को शोभा नहीं देता । ऐसा मैं मानती हूँ कहकर ग़ुस्से में कंबल तान कर सो गई ।
दो साल के बाद बुलबुल की शादी एक छोटे शहर के रेस्तराँ के मालिक नवीन से हो गई । परिवार में उसके पिता और एक छोटा भाई अभिमन्यु था जिसकी अभी-अभी नौकरी लगी थी । माँ का काफ़ी साल पहले स्वर्गवास हो चुका था ।
ज़ाहिर था गृहणी होने के नाते सारा घर बुलबुल के हवाले था । बुलबुल धूमधाम से ब्याह करके अपने घर चली गई । इन दो सालो में दिव्या ने ननद के कई रूप देखें । अक्सर तारों पर सूखते कपड़े बताते थे कि यह लिबास बुलबुल का नहीं है ।
दिव्या को भी अपनी कई बार खोई हुई चीजें बुलबुल के कमरे से मिली । अब तो दिव्या के लिए भी अब यह आम हो गया था ।
बुलबुल अपनी नई ज़िंदगी में व्यस्त होने की वजह से मायके कम आती थी । वहाँ उसने अपनी कैसी छवि क़ायम की थी कुछ ज़्यादा दिव्या को नहीं पता लगा । पति का स्वभाव बहुत अच्छा था ।
इसलिए शिकायत करने की कभी उनसे उम्मीद नहीं थी । चार साल के बाद बुलबुल के देवर की शादी जब तय हुई तो शापिंग करने के मक़सद से तीन चार दिन के लिए मायके आई । दिव्या के साथ जाकर खूब ख़रीदारी की । हर मौक़े के लिए सुन्दर सुन्दर ड्रेसेज़ ख़रीदी ।
फिर शादी का दिन भी आया । जब बारात चलने की घड़ी आई तो सभी बुलबुल भाभी को पूछने लगे । नवीन ने दिव्या से कहा भाभी ज़रा जाकर देखें बुलबुल अभी तक तैयार हुई या नहीं ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
अनजाना सफर – श्रद्धा निगम
दिव्या जब बुलबुल के कमरे में गई तो सजी धजी बुलबुल को देखकर मुस्कुराने लगी । लेकिन यह क्या यह साड़ी तो बुलबुल ने ख़रीदी ही नहीं थी । तो फिर यह साड़ी किसकी है ??अभी सोच ही रही थी कि बुलबुल ने पास आकर पूछा.. कैसी लग रही हूँ भाभी और कैसी लगी यह साड़ी ??
दिव्या – लेकिन बुलबुल तुमने तो नीले रंग की साड़ी ख़रीदी थी तो फिर यह हरे रंग की साड़ी ???
बुलबुल – भाभी यह साड़ी मेरी दोस्त नैना की है । जानती हो 35 हज़ार की है एकदम नई , वो मुझे अपने कपड़े दिखा रही थी तो मुझे यह साड़ी बहुत पसन्द आई तो कहने लगी तुम्हें इतनी अच्छी लगी तो तुम पहन लो ।
दिव्या सोचने लगी हे भगवान !!यह तो अभी तक सुधरी नहीं !
क्या सोच रही हो भाभी बताओ ना कैसी लग रही हूँ बुलबुल अपने पल्लू को लहराते हुए बोली ।
कुछ सोचकर दिव्या ने कहना शुरू किया । साड़ी तो बहुत सुंदर है और तुम उससे भी ज़्यादा सुन्दर लग रही हो । लेकिन मुझे यह सोचकर बुरा लग रहा है कि यह साड़ी तुम्हें किसी को देखने ही नहीं देगी ।
बुलबुल हैरान होकर बोली क्या मतलब भाभी ??
मतलब यह बुलबुल जब महिलायें तुम्हारी तारीफ़ करेगी तो नैना क्या यह ख़िताब अपनी पैंतीस हज़ार वाली साड़ी को नहीं देगी । वो क़ीमत ही नहीं उसके साथ जुड़ी कहानी भी सुनायेगी । यह साड़ी मैंने फलां शोरूम से ख़रीदी ये साथ थे बहुत विचार किया फिर पति ने दिल दिखाया वग़ैरह वग़ैरह !!!
जब सबको पता चलेगा कि तुमने अपने देवर की शादी में माँगी हुई साड़ी पहनी तो लोग क्या सोचेंगे यह साड़ी तुम्हारे रंग रूप ख़ूबसूरती पर हावी हो जायेगी । अपनी कम क़ीमत की चीज़ में भी अथाह ख़ुशी होती हैं और साथ में सम्भल सम्भल कर चलने खाने का भी ख़तरा नहीं होता कहकर दिव्या हंस पड़ी । चल जल्दी से समान समेट कर आजा सब तेरा इन्तज़ार कर रहे हैं ।
दिव्या तो चली गई लेकिन बुलबुल के अन्तरिम में कई सुरति के तार झनझना गई ।
थोड़ी देर में बुलबुल आई तो दिव्या की आँखें ख़ुशी से चमक उठी । नवीन की पत्नी को देखकर बाँछें खिल उठी । बुलबुल अपने पति की मेहनत की कमाई का लिबास ओढ़ कर आई थी वहीं नीले रंग की साड़ी । प्रसन्नता उसकी आँखों में ही नहीं बल्कि पूरे जिस्म पर छाई थी ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
“ग़लतफ़हमी” – मंजू सक्सेना
दिव्या के पास आकर बोली थैंक्यू भाभी मुझे इतनी भारी गलती करने से रोकने के लिए , आपका एक एक शब्द ने आज मुझे अन्दर से जगाया है । आजतक मैं क्षणिक ख़ुशी के लिए अपने आपको गिराती आई ।
दूसरा उसे किस मन भाव से दे रहा है इस बारे में मेरी लालसा ने कभी विचार ही नहीं किया । यह सिर्फ़ मेरी तृष्णा थी और कुछ नहीं जो कि अब हमेशा के लिए विदा हो गई । मज़ा तो अपनी ख़रीदी वस्तुओं में ही ज़्यादा है ।
यह मैं अन्दर से महसूस कर रही हूँ आज…देखो तो नवीन कैसे अपलक मेरी ओर ही देखे जा रहा है शायद यही वो भी चाहता था … कहकर बुलबुल दिव्या के गले लग गई और दोनों ननद भाभी मस्त होकर नाचने लगी
स्वरचित कहानी
अभिलाषा कक्कड़
(v)
1 thought on “तृष्णा – अभिलाषा कक्कड़ : Moral stories in hindi”