Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

बंधन – अर्चना खंडेलवाल

काजल बहू,  तुम ये खाने का डिब्बा रोज किसके लिए लेकर जाती हो, मैंने घर में कोई भंडारा नहीं खोल रखा है।”

‘मम्मी जी, मुझे माफ कर दीजिए, पर  चाची की हालत बहुत खराब है, उनके बेटे बहू भी उन्हें संभालने नहीं आते हैं, वो अपने लिए दो वक्त का खाना भी नहीं बना पाती है, आपकी और चाची की लड़ाई होने के बाद आपने उनसे नाता तोड़ दिया था, पर मै जब गर्भवती थी, वो मुझे रोज कुछ ना कुछ मनपसंद का बनाकर खिलाती थी, रिश्तों के बंधन इतनी आसानी से नहीं टूटते हैं।

अर्चना खंडेलवाल 

नोएडा 

 

बंधन। – कामनी गुप्ता 

सुजाता के चेहरे के भाव बता रहे थे वो आज भी अंकित से मिल कर आ रही है। सात महीने की शादी सुकेश के सब्र का इम्तिहान ले रही थी। आज शराफ़त छोड़, सुकेश ने  सुजाता के हाथ में तलाक़ के कागज़ दे दिए थे। 

सुजाता के मम्मी, पापा ने सुकेश से सच छुपाकर सुकेश को जिस बंधन में बांधा था वो अब टूट चुका था। सुकेश सुकून महसूस कर रहा था और सुजाता उसे देख रही थी। 

कामनी गुप्ता***

जम्मू!

बंधन – सरोज माहेश्वरी

राघव! तुम कह रहे थे मां बाबू जी एक सप्ताह रहेंगे..पूरा एक महीना हो गया जाने का नाम नहीं ले रहे..मेरी तो आज़ादी खत्म हो गई।सारे दिन घर का काम करो.मैं बहुत बंधन महसूस करती हूं. जान्हवी! बच्चे दादा दादी के साथ कितने खुश हैं.. समय पर उठते हैं मां उन्हें छुट्टी वाले दिन देशी खाना बनाकर खिलाती हैं.. अब वे पिज्जा बर्गर खाना भूल गए हैं..बाबू जी उनकी पढ़ाई में मदद करते हैं एवं अपने अनुभव बताते है. तुम्हारे लिए वे बंधन हो सकते हैं, परंतु बढ़ते बच्चों को बुजुर्गों के सानिध्य में उनके गूढ़ अनुभवों को शिक्षा,संस्कार मिलते हैं जो एक सभ्य देश,समाज एवं परिवार के लिए नितांत आवश्यक है…

स्वरचित मौलिक रचना 

सरोज माहेश्वरी पुणे (महाराष्ट्र)

यह कैसा बंधन – हेमलता गुप्ता

तुम्हारे पास यह काम वाली, कपड़े वाली, मंदिर वाली, ऊपर वाली, अगल बगल वाली, झाड़ू वाली इन सब की बातों के अलावा और भी कोई टॉपिक है क्या….? अरे देखो.. दुनिया कहां से कहां पहुंच गई और तुम इस मोहल्ले से आगे ही नहीं बढ़ पा रही? यह कैसा बंधन है तुम्हारा..? मनीष की बात सुनकर अनीता ने मुस्कुराते हुए मन ही मन सोचा.. तुम क्या समझोगे मनीष बाबू.. इन सभी का बंधन कितना प्यारा है, दुनिया इन्हीं की वजह से आगे पहुंच पाई है यह तुम  कभी नहीं समझोगे, सुंदर इमारत के आगे भला नींव को कौन पूछता है, पर मेरे लिए इन सभी का बंधन बहुत प्यारा है!

    हेमलता गुप्ता स्वरचित 

   शब्द प्रतियोगिता बंधन

 

 बंधन – अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’

बहू को मायके जाने कि तैयारी करते देख सास बोली, “बहू, तुम अपनी राखी भाइयों को कोरियर कर दो। शायना और शगुन दोनों भाई को हर साल राखी बाँधने दो दिन पहले ही आ जातीं हैं इसलिए घर में तुम्हारा रहना ज़रूरी है।”

“ठीक है माँ, मैं राखी वाले दिन सुबह जा कर शाम तक वापिस आ जाऊँगी।” बहू बोली।

“तेरा कोई फर्ज नहीं कि जब ननद घर आए तूँ घर पर ही रहे?” सास गुस्से से बोली।

“क्या यह बंधन उन दोनों पर भी लागू नहीं होता?” बहू ने प्रश्न किया। 

प्रश्न निरुत्तर था, पर कमरे में छाई गहन निस्तब्धता बतला रही थी कि बंधन ढीले होने का समय आ चुका है।

अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’

बंधन – डाॅक्टर संजु झा

रिश्तों का बंधन बहुत प्यारा होता है,परन्तु जिन्दगी में कई बार रिश्तों का बंधन कमजोर पड़ता भी नजर आने लगता है।जब आशाजी के बेटे ने परिवारसहित घर छोड़ने की बात की थी,तब उन्हें रिश्तों के बंधन के टूटने का एहसास हुआ था।परन्तु बच्चे बहुत दूर रहने नहीं गए थे, यदा-कदा मिलने आ जाते थे,तो मन में एक संतोष भी था।

कोरोनाकाल में बेटे की आकस्मिक मृत्यु  से एक बार फिर रिश्तों के बंधन के टूटकर बिखर जाने का आशा जी को एहसास हुआ। परन्तु मायूस आशा जी को दोनों किशोर पोते ने गले लगकर कहा -“दादी!दुःखी मत हों,हम हैं न!”

पोतों की बातें सुनकर एक बार  फिर से रिश्तों के प्यारे बंधन पर आशाजी का विश्वास हो उठा।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)

वेंटिलेटर – मंजू ओमर

रितेश जी आपकी मम्मी का ब्रेन डेड हो गया है और वो वेंटिलेटर पर है । उनके ठीक होने की अब कोई उम्मीद नहीं है।आप उन्हें घर ले जाइये डाक्टर बोला । जबतक वेंटिलेटर पर है उनकी सांसें चल रही है जैसे ही आप वेंटिलेटर हटाएंगे सब खत्म हो जाएगा। उनके शरीर में कुछ नहीं बचा है।अब आपका फैसला है कि उनको वेंटिलेटर पर रखना है कि मुक्त करना है ‌

              ये सुनकर वहां खड़े रितेश के चाचा बोले, बेटा मम्मी को अब बन्धन मुक्त करों। कोई फायदा नहीं है रखने का। जबतक रखें रहोगे तुम्हें भी कष्ट होगा और उनकी आत्मा भी कष्ट में रहेगी । इसलिए बंधन मुक्त करों मम्मी को बेटा।

           मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

23 अगस्त 

मर्यादा – प्राची अग्रवाल

मर्यादा पुरुषोत्तम राम थे। 

कुल मर्यादा सीता थी। 

मर्यादा तो कोई तोड़ी भी ना थी माँ सीता ने,

फिर क्यों अग्नि परीक्षा उन्होंने दी।

लक्ष्मण ने लक्ष्मण रेखा खींची मैया सीता के लिए। 

उसे पार करने की क्यों माता को इतनी सजा मिली? 

क्यों किसी रावण के लिए मर्यादा रेखा ना थी? 

सब बंधन स्त्रियों के लिए बने।

पुरुषों के लिए कोई मर्यादा क्यों आवश्यक ना थी?

प्राची अग्रवाल

खुर्जा बुलंदशहर

#बंधन

 

#बंधन – डॉक्टर संगीता अग्रवाल

हिना जबरदस्ती अपने पति सौरभ को मुंबई ले आई थी,जब से शादी हुई थी उसकी,तब से सौरभ के माचिस

जैसे घर और बीसियों सदस्यों के बीच जरा भी एकांत नहीं मिला था उसे।सौरभ प्यार से समझाता उसे,”प्यार

के लिए एक पल भी बहुत होता है, मैं तुम्हें और तुम मुझे सच्चा प्यार करते हैं न,ये काफी नहीं?,सारी उम्र पड़ी है

इसके लिए,अभी बड़ों का सम्मान,उनका साथ बहुत कीमती है लेकिन हिना को वो सब बंधन लगते।

कमरे में आए भी नहीं वो दोनो कि हिना का सारा शरीर तेज बुखार से तप गया,पता चला खसरा का बुखार

है,पूरे पंद्रह दिन बीत गए सौरभ को उसकी सेवा करते और लौटने का दिन आ पहुंचा।हिना को समझ आ

गया था जिन्हें बंधन समझ रही थी वो उसकी नियति थी जिससे वो बच नहीं सकती।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

बंधन – रश्मि झा मिश्रा

“मुझे लगता है तुम्हें दूसरी शादी कर लेनी चाहिए…!”

” क्या बकवास है…!”

” सही तो है… तुम्हारा ध्यान मुझे छोड़कर कहीं और तो लगेगा… ऐसे तो घुटन हो रही है… हर वक्त क्या खाना… क्या पहनना… कैसे बोलना,चलना… सब तुम्हारी पसंद के हिसाब से… यह शादी बंधन हो गई है…!”

 उसने पलट कर देखा… पर आज बिना कुछ बोले चला गया… शायद समझ गया… विवाह संबंध है…परिवर्तन नहीं… आजादी है… बंधन नहीं…

रश्मि झा मिश्रा

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