Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

दोहरे चेहरे – डॉ बीना कुण्डलिया

नेताजी के भाषण ने लोगों का दिल जीत लिया.. कितना सुन्दर बोले दहेज प्रथा पर…”  दहेज जैसी समस्या जिसके कारण बेटियों को शारीरिक मानसिक प्रताड़ना जीवन से भी हाथ धोना पड़ जाता है। इसको हटाने के लिए जागरुकता चाहिए…! खूब जिन्दाबाद के नारे लगे । मगर ये क्या ….? अब बेटे की शादी  पूरी दहेज की सूची बनाकर वधू पक्ष को सौंप दी । नेताजी का ये दोहरा मापदंड, दोहरे चेहरे  एक तरफ दहेज विरोधी भाषण,दूसरी तरफ दहेज की मांग, धिक्कार है..!! उन पर,उनके घिनौने चेहरे पर जो समाज में यातनाएं अकल्पनीय अपराध उत्पन्न करते हैं। अब कौन से चेहरे पर विश्वास किया जाये …?

    लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया 

        दोहरे चेहरे 

 

जायदाद – एम पी सिंह

हमारे पड़ोसी रामबाबू ओर उनकी पत्नी सीता देवी पूरी कॉलोनी में सबसे विचित्र परिवार है। ये परिवार लगभग 5 साल से यहां रह रहा है, इन 5 सालो में कभी इनका कोई रिस्तेदार मिलने नही आया और न ही ये लोग अभी बाहर गये। कारण था कि न तो उनकी अपने माँ पिता जी से बातचीत थी ओर न ही ससुराल वालों से। एक दिन मंदिर से लौटते समय वो घर के बाहर ही मिल गए औऱ चाय के लिए बुला लिया। बातो बातों मैं मैंने परिवार की बात छेड़ दी तो उनकी सारी भड़ास निकल गई। वो बोले मेरे ससुर जी ने अपनी सारी प्रोपर्टी दोनो बेटो को बांट दी और बेटी को कुछ नही दिया। इसलिए हमारी ससुराल वालों से बोलचाल बन्द हैं। मैं बोला की कोई बात नहीं, आपकी अपनी अच्छी खासी नोकरी हैं, कोई कमी थोड़ी है। परंतु अपने माता पिता से क्या नाराजगी है? अब क्या बताऊँ, वो बोला, मेरे पिता जी ने अपनी प्रापर्टी के 3 हिस्से कर दिये, दो हम भाइयों को ओर तीसरा मेरी बहन का। अब आप ही बताओ, की शादी के बाद, बाप की प्रॉपर्टी पर बेटी का क्या अधिकार? इसलिए मेरी उनसे भी बोलचाल बन्द हैं।

रामबाबू के जाने के बाद मैं सोचता रहा की गलती किसकी थीं, रामबाबू के ससुराल वालों की या उसके मॉ बाप की या स्वंम रामबाबू की?

लेखक

एम पी सिंह

( Mohindra Singh)

स्वरचित, अप्रकाशित

21 Mar. 25

 

  मोक्ष – विभा गुप्ता

     ” माँ…मैंने प्रयागराज जाने के लिये टिकट ले लिया है..तुम जाने की तैयारी कर लो..।” बेटे कौशल की बात सुनकर लीलावती के मुँह से निकल गया,” जुग-जुग जियो मेरे लाल!”

       कौशल की पत्नी उसे रोज कहती कि अपनी माँ को वापस गाँव छोड़ आओ।कौशल हाँ-हूँ कहकर उसे शांत कर देता।एक दिन लीलावती ने जब उससे कुंभ जाने की इच्छा जताई तो वो खुश होकर बोला,” अवश्य माँ..।” और टिकट ले आया।

        प्रयागराज पहुँच कर कौशल लीलावती को एक दुकान पर ले जाकर बोला,” तुम साड़ियाँ देखो..मैं कमरा देखकर आता हूँ।” दो घंटे तक जब वो नहीं लौटा तब दुकानदार बोला,” माता जी..आपका बेटा अब नहीं आयेगा..वो आपको हमेशा के लिये छोड़ गया..।” अपने बेटे के#दोहरे चेहरे देखकर लीलावती दंग रह गई।उसकी आँखों से आँसू बह निकले।तभी पुलिस आई और उसे आदर सहित ‘मोक्ष धाम’ ले गई जहाँ पहले से ही मोक्ष की चाह में अपने बेटों द्वारा त्यागी माताएँ रह रहीं थीं।

                                   विभा गुप्ता 

# दोहरे चेहरे             स्वरचित, बैंगलुरु 

 

दोहरे चरित्र – पूजा गीत 

प्रतिभा की एक पाँच वर्ष की बेटी थी. उसने और उसके पति समर्थ ने एक ही संतान रखने का निर्णय लिया था. पर घरवालों के दबाव में आकर उन्होंने दूसरे बच्चे के बारे में सोचा और वो फिर से माता-पिता बनने वाले थे. घर से उसकी सास देखभाल के लिए आयी हुई थीं. उनके सामने ही डॉक्टर ने प्रतिभा की प्रेगनेंसी को बहुत जटिल बताया था और ये भी कहा था कि यही आखिरी चांस है तो कृपया बेहद ध्यान रखें. और माता जी आप लड़का -लड़की मत करना. डॉक्टर के सामने तो उसकी सास ने कहा कि हाँ डॉक्टर, हमें तो पोती का एक साथी ही चाहिए. लड़का हो या लड़की, कोई फर्क नहीं पड़ता. पर घर आते ही वो अनेक टोटके करने लगीं कि लड़का ही हो. दूसरी लड़की हुई तो उनकी नाक कट जाएगी. ये सब देखकर एक दिन समर्थ ने कहा, माँ!तुम्हारे ही बार बार कहने पर हम दूसरे बच्चे के लिए तैयार हुए. मैंने तो तुम्हें ये सोचकर बुलाया था कि तुम इसका ध्यान रखोगी. पर तुम इसे इतना तनाव दे रही हो कि ये डिप्रेशन में जा रही है. मुझे ये नहीं पता था कि तुम ऐसे “दोहरे चरित्र” की हो. तुम वापस जाओ. हमें दूसरा बच्चा चाहिए, कोई तनाव नहीं.

पूजा गीत 

 

दोहरेचेहरे – डाॅ उर्मिला सिन्हा 

रेखा और राजन अपने नये पड़ोसी से अतिप्रभावित थे”देखो इतने बड़े पोस्ट पर पैसे वाले हैं फिर भी सबसे कितनी आत्मीयता से मिलते हैं… हाल-चाल पूछते हैं ” राजन कहता।

” सही में, और दोनों पति-पत्नी में प्रेम कितना है…हाथ में हाथ दिये घूमते हैं ” रेखा आंहें भरती।

एक छुट्टी के दिन रेखा राजन सज-धज कर पड़ोसी के घर पहुंचे… घंटी बजाने जा ही रहे थे कि भीतर से आती आवाजों ने उन्हें जड़ वत कर दिया।

दोनों पति-पत्नी कुत्ते बिल्ली की तरह झगड़ रहे थे…।

” दोहरे चेहरे “रमा और राजन बुदबुदाये और अपने घर की ओर वापस मुड़ गये।

मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा 

 

दोहरे चेहरे (25 मार्च) – डाॅ संजु झा

वर्षों  पूर्व बेटे की चाह में कमला जी ने भ्रुण में ही बेटियों की हत्या कर दी।  आज नवरात्रि में बच्चियों के पाॅंव पखारकर  टीका लगाते हुए बुदबुदाकर कहतीं हैं -” हे देवि माॅं! मेरे गुनाहों को माफ कर देना। मैंने अपनी बेटियों को गर्भ से बाहर नहीं आने दिया और आपने मेरे बेटों को एक भी कन्या नहीं दी।आज मेरा घर  नन्हीं देवियों की किलकारियों के लिए तरस रहा है!”

इतना कहते-कहते उनकी ऑंखों से पश्चाताप के ऑंसू निकल पड़े।उनके पति उनके कंधे पर हाथ रखकर कहते हैं -“कमला !  बेटियों प्रति तुम्हारा दोहरा चेहरा मेरी समझ में  नहीं आता है।कुछ गुनाह ऐसे होते हैं जो माफी के योग्य नहीं होते हैं!”

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)

 

प्रशंसा – शिव शुक्ला 

सरला जी सामाजिक सरोकार जगत में जाना माना नाम थीं। कभी वृद्धाश्रम में फल, मिठाई व कपड़े वितरित करतीं, कभी बच्चों के अनाथालय में खाना खिलातीं। महिलाओं के हक के लिए पुरजोर बोलतीं।जब वे बोलतीं तो पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता।

वाह क्या विचार हैं, महिला हो तो ऐसी। क्या महिला के अधिकारों की पैरवी करतीं हैं साथ ही बच्चों और वृद्धों के लिए भी उतना ही प्यार एवं सम्मान, जैसे वाक्य लोगों के मुंह पर सरला जी की प्रशंसा में रहते। ये था एक चेहरा।

अब दूसरा चेहरा घर में बहू थी जो इनकी मर्जी के बिना सांस भी नहीं ले सकती थी बहू पर पूरा नियंत्रण एक टिपीकल सास की तरह।

वृद्ध सास थीं जिन्हें स्टोर में एक खाट दे रखी थी, वहीं खाना -पीना, सोना सबकुछ। घर में उनका आना जाना निषिद्ध था कारण कहीं उनसे बच्चों को इन्फेक्शन न हो जाए। बच्चों पर पूर्ण नियंत्रण वे पर दादी के पास नहीं जा सकते थे।सास के पास बैठने बोलने का समय नहीं था उनके पास।

ऐसे दो चेहरे एक साथ लिए सरला जी चैन की जिंदगी जी रहीं थीं साथ ही समाज में प्रशंसा भी पा रहीं थीं।

शिव शुक्ला 

20-3-25

स्व रचित 

दोहरा चेहरा***गागर में सागर

 

#दोहरे चेहरे – इन्दु विवेक 

शर्मा जी आप बिल्कुल चिंता न करे हम बहू नहीं बेटी विदा कर ले जा रहे आपके घर से…

समधी के मुंह से ऐसी बातें सुनकर शर्मा जी की आधी चिंता जाती रही।

इधर बारात के वापस लौटते ही घर में कोहराम मच गया।अरे हमने तो सोचा था नहीं मांगेंगे तो स्वयं से देंगे अपनी बेटी को कुछ न कुछ ,मगर शर्मा जी ने तो बेटी को एक जोड़ी कपड़े में विदा कर दिया… शर्मा जी के समधी जोर जोर से चिल्ला रहे थे।

कमरे में बैठी रिया नई दुल्हन बनी सब सुन रही थी… उसने मन ही मन फैसला किया शर्मा जी के दोहरे चेहरे का वह पर्दाफाश कर के रहेगी।

इन्दु विवेक 

 

दोहरा चेहरा – रूचिका

माँ, तुम परेशान मत हो।मैं कोई ऐसा कदम नही उठाऊंगी जिससे तुम्हारे मान प्रतिष्ठा पर आँच आये।

यह कहते हुए रीना सुबक-सुबककर रोने लगी।

उसके आँसूओं पर पिघल उसकी माँ उसे गले लगाकर रो पड़ी।

मगर यह क्या ,माँ के पास से हटकर जैसे ही रीना कॉलेज दोस्तों के पास पहुँची क्लास छोड़कर कैंटीन में जाकर बैठ गयी और सिगरेट के कश लेते हुए कोल्ड ड्रिंक पीते हुए वह कहीं से सुबह वाली रीना नही लग रही थी।ये दोहरे चरित्र के साथ उसके चेहरे पर भी एक चेहरा था।जिसे समझ पाना आसान नही था।

रूचिका

सीवान बिहार

 

शीर्षक: भावना – ऋतु दादू 

अमेरिका से भारत आए चाचा चाची को भारत में हर तरफ गन्दगी,अनुशासन हीनता, भ्रष्टाचार नज़र आ रहा था। सड़क पर चारों ओर देखते हुए चाची झल्लाते हुए बोली,भारत में तो कोई सफाई रखना ही नहीं चाहता और यह कहकर अपनी  पानी की खाली बॉटल और पॉपकॉर्न के खाली पैकेट को सड़क पर एक कोने में उछाल दिया । चाची की हरकत देख भतीजी  ने कूड़े को उठाकर सामने रखखे कूड़ेदान में डालते हुए कहा, अगर हमारे यहां भी अमेरिका की तरह सड़को पर जगह जगह कैमरे लगे होते और जुर्माने का प्रावधान होता तो आप कचरा , यूं सड़को पर नहीं फेकती और न ही चाचाजी थियेटर पहुंचने की जल्दी में लाल बत्ती पर गाड़ी आगे बढ़ाते।

ऋतु दादू 

इंदौर मध्यप्रदेश

#दोहरे चेहरे

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