#दोहरा चेहरा – संगीता अग्रवाल
” आ गई महारानी बाहर देखो कैसे हंस हंस कर बात करती है सबसे और घर पर आकर मुंह बना रहता है । पर ये समझ लो ये दोहरे चेहरे वाला व्यक्तित्व ज्यादा दिन नही चलने वाला एक दिन सबको तुम्हारी असलियत पता लग ही जानी है !” वाणी के घर मे घुसते ही सास चिल्लाई।
” औरत दोहरा चेहरा लगाती है अपने ससुराल की इज्जत रखने को। ये दोहरा चेहरा ही आप लोगो के असली चेहरे को छिपाये है । जिस दिन ये सबके सामने आ गया ना तो हकीकत मेरी नही आप लोगो की खुलेगी । जो बड़ी बड़ी बाते कर दूसरे की बेटी को अपने घर लाते है और फिर उसका जीना मुहाल करते है । इसलिए मेरे व्यक्तित्व को दोहरे चेहरे वाला ही रहने दे ! ” आज तंग आ वाणी धीरे से पर धमकी भरे अंदाज मे बोली ।
संगीता अग्रवाल
दोहरे चेहरे – – संध्या त्रिपाठी
मां – मां… श…श.. धीरे बोल बिटिया , अरुणिमा (बहू) सो रही है , हफ्ते में एक ही दिन तो आराम से सो पाती है…मुंह पर उंगली रखते हुए शारदा जी ने कहा । वाह मां ! मुझे तो सुबह देर हो जाती है तो सर पर पहाड़ उठा लेती है और कहती है,ससुराल जाओगी तब पता चलेगा.. पर भाभी के साथ दोहरा चेहरा…?
बेटा ,हर परिस्थिति के लिए तैयार और मजबूत रहना अभिभावक सीखाते हैं , ताकि बाद में परेशानी ना हो..! बहु ,बेटी,सास के रिश्ते से ऊपर उठकर परिस्थिति,मानवता ,यथार्थता के रिश्तों को बल देकर..रिश्तो को संवारना,संभालना तो कोई तुझसे सीखे मां…! बिटिया ने मां की भावनाओं को समझते हुए कहा ।
(स्वरचित) संध्या त्रिपाठी अंबिकापुर, छत्तीसगढ़
दोहरे चेहरे – स्वप्निल “आनन्द “
रचना और अमीषा कक्षा 6 से ही साथ पढ़ती थी।स्कूल में उनके बेंच भी एक ही थे। दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी। कॉलेज के बाद अलग होकर भी वे फोन से संपर्क में थी।
अचानक एक दिन अमीषा ने रचना को कहते सुना –” क्या कर लिया अमीषा ने हमेशा फर्स्ट रैंक लाकर? M.A. के बाद वह भी अभी तक बेरोजगार है और मैं भी !!”
रचना के # दोहरे चेहरे ने अमीषा को हतप्रभ कर डाला था। अपनी इतनी अच्छी सखी का यह रूप अमीषा ने सोचा भी नहीं था।
रचित–
स्वप्निल “आनन्द “
नकाब – विभा गुप्ता
मंच पर महिला- मंडल की अध्यक्षा श्रीमती कृष्णा सबरवाल हाथ में माइक थामे पूरे जोश से बोल रहीं थीं,” साथियों…हर महिला को दूसरी महिला का सम्मान करना चाहिये।बहू को भी बेटी के समान ही प्यार दें..समाज को दहेज़-मुक्त करना है तो खुद से वादा कीजिये कि न दहेज़ देंगे और न लेंगे…।” श्रीमती सबरवाल अनवरत बोले जा रहीं थीं और दर्शक-दीर्घा की कुरसी पर बैठी सीमा सोच रही कि दो दिन पहले ही तो इन्होंने सबके सामने अपनी बहू आरती को अपमानित किया था..दहेज़ न लाने के लिये उसे ताने देकर कह रहीं थीं कि कल तक तेरा बाप पचास हज़ार रुपये लेकर नहीं आया तो तुझे वापस बाप के घर भेज दूँगी..वहीं सड़ती रहना और आज बड़ी-बड़ी बातें करके अपनी छवि बेदाग करने की कोशिश कर रहीं हैं।उसका जी चाहा कि अभी मंच पर जाकर उनके #दोहरे चेहरे पर पड़े नकाब को नोंच फेंके और समाज को उनका घिनौना रूप दिखा दे ..।लेकिन वो ऐसा कर न सकी।उसने घृणा भरी नज़रों से उन्हें देखा और उठकर चली गई।
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु
सिफारिश – लतिका श्रीवास्तव
भारी भीड़ से गुत्थम गुत्था होती नंदिता किसी तरह मुख्य मंच तक पहुंचने में कामयाब हो गई।”सर योग्य होने के बाद भी मुझे जॉब नहीं मिल रही है हर जगह सिफारिश चल रही है आप प्लीज मेरी सिफारिश कर दीजिए” हिम्मत करके जोर से बोल पड़ी।सुनते ही मुख्यातिथि लोकप्रिय जनप्रतिनिधि खड़े हो गए नाराज हो जोर से घोषणा की “प्रतिभा किसी सिफारिश की मोहताज नहीं होगी मुझे तुम्हारी जैसी प्रतिभाशाली और हिम्मती बेटियों की जरूरत है आज ही शाम को अपनी फाइल लेकर मेरे ऑफिस आ जाना मैं सबकी खबर लेता हूं..!
तालियों की गूंज के बीच ढांढस और आश्वस्त मन लिए नंदिता शाम को ही अपनी फाइल लेकर उनके ऑफिस पहुंच गई थी।
…फाइल उधर रख दीजिए पहले ये बताइए चढ़ावा कितना लेकर आईं हैं??ऐसे ही सिफारिश मिल जाएगी चना मुर्रा समझ रखा है क्या..!! सन्न खड़ी नंदिता इस दोहरे चेहरे को देखती रह गई।
लतिका श्रीवास्तव
दोगला चेहरा – मंजू ओमर
आज कामिनी अपने बहू के दोगले चेहरे को देखकर दंग थी ।सोच रही थी कि क्या ये वही लड़की है जिसके व्यवहार पर मंत्रमुग्ध सी हो गई थी मैं। मंगनी के समय मम्मी मम्मी कहकर कैसे मेरे गले से लिपट गई थी। इतनी शालीनता और प्यार देखकर तो मैं कितनी खुश थी।
शादी होने के छै महीने बाद ही वो बेटे से बोल रही थी मुझे तुम्हारी मम्मी के शकल से भी नफरत है ,मैं उनके साथ नहीं रह सकती , प्लीज़ मुझे अलग घर लेकर दो रहने को।
मैं नहीं रह सकती तुम्हारी मम्मी के साथ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
20 मार्च
दोहरे चेहरे – एम पी सिंह
ललिता जी अपनी पड़ोसन आशाजी को अक्सर बोलती कभी समय निकाल कर हमारे घर भी आया करो। एक दिन आशाजी, ललिता जी से मिलने चली गई। कॉल बेल बजाने ही वाली थीं कि ललिता जी की चिल्लाने की आवाज आई, तुझे खाने और सोने के सिवाय कुछ आता है क्या? जब भी कोई काम हो तो महारानी का सिर दर्द हो जाता हैं। आशाजी ने बेल बजाई तो ललिता जी की बहू ने दरवाजा खोला। सामने आशाजी को देखकर ललिता जी बोली, अरे बहू, तू क्यों उठकर आई, मैं तो जा ही रही थीं, तू जाकर आराम कर, तेरी तबियत ठीक नहीं है। आशाजी समझ गई कि दोहरे चेहरे वाली ललिता जी का ये दूसरा चेहरा हैं, असली चेहरा तो बन्द दरवाजे से ही दिख गया था।
गागर में सागर
(दोहरे चेहरे )
लेखक
एम पी सिंह
( Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित
20 Mar 25
दोहरे चेहरे – शैल
आज श्वेता को अचानक रास्ते में अपनी स्कूल की दोस्त स्नेहा मिल गई जो उसे देखते ही मुंह छिपाकर भागी। घर आकर श्वेता बरबस ही पुरानी यादों में खो गई। वह और स्नेहा बचपन के दोस्त थे। 12वीं की बोर्ड की परीक्षाएं थी। श्वेता खुद भी पढ़ाई कर रही थी लेकिन स्नेहा अपना समय घूमने फिरने में जाया कर रही थी और श्वेता का पढाई को लेकर मजाक भी बनती थी। जब 12वीं का परिणाम आया तो श्वेता के 85% प्रतिशत अंक थे तो वहीं स्नेहा फेल हो गई थी। श्वेता दुखी होकर जब उसे सांत्वना देने पहुंची तो स्नेहा ने उस पर अपने फेल होने का दोष मढ़ दिया और कहा कि श्वेता ने अगर उसकी मदद की होती तो वो भी अच्छे अंकों से पास होती। उसी दिन से श्वेता ने ऐसे दोहरे चेहरे वालों से दूरी बना ली।
शैल
सहेलियां – शुभ्रा बैनर्जी
किटी पार्टी में रंजीता जी अभी तक नहीं पहुंची थी।कुछ दिन पहले ही उनकी बेटी का विवाह हुआ था। अंतर्जातीय युवक से ,बड़ी सादगी से विवाह संपन्न हुआ था,पूजा(उनकी बेटी)का।
सभी सहेलियां समूह में शादी की फोटो दिखाकर,नाक -मुंह सिकोड़कर टिप्पणियां कर रहीं थीं।अचानक कानाफूसी बंद करते हुए,रजनी जी ने कहा”अरे!लीजिए,आ गईं हमारी सबसे प्रिय सहेली।क्या शानदार शादी की है आपने अपनी बेटी की।समाज में एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया आपके परिवार ने।हम सभी को आपसे प्रेरणा मिली।”फोन निकालकर झूठी हंसी हंसते हुए सभी महिलाएं वीडियो बनाने लगीं।
शुभ्रा बैनर्जी
दोहरे चेहरे – गीतू महाजन,
लोकल चैनल द्वारा प्रसारित कार्यक्रम में अपनी सास को गुंजन देख रही थी..जिनकी सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने से समाज में इज़्ज़त थी।उन्हें एक कार्यक्रम में सम्मानित करने के लिए बुलाया गया था।नारी की आज़ादी पर बोले उनके भाषण पर तालियां गूंज उठी थी।
घर लौटने पर पोती को आंगन में पेंटिंग करते हुए देख वह चिल्ला पड़ी,” यह रंगों की कूची चलाने से घर नहीं चला करते..रसोई के काम भी सीखो..वही काम आएंगे”।
गुंजन की आंखों के सामने सास का दोहरा चेहरा आया और कानों में सुबह की तालियों की गड़गड़ाहट की जगह चिल्लाहट भर उठी थी।
#स्वरचित
#अप्रकाशित
गीतू महाजन,
नई दिल्ली।