ससुराल में हक – हेमलता गुप्ता
मम्मी जी… आप जो बात बात पर मुझे यह ताना देती है कि यह मेरा घर है तो मत भूलिए यह मेरा भी घर है, हर बहू का “ससुराल में हक” होता है जिस प्रकार आप इस घर की बहू है उसी प्रकार मैं भी आपकी बहू हूं, बस अंतर सिर्फ पीढ़ीयो का है बाकी हम दोनों एक ही कश्ती की सवारी है तो अच्छा होगा हम एक दूसरे को नीचा दिखाने की बजाय साथ मिलकर चलें तो तेरा मेरा का भेदभाव अपने आप ही खत्म हो जाएगा और पूरा परिवार प्रसन्न रहेगा, आज बहू के मुंह से ऐसी बातें सुनकर मालती जी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने हर कदम पर बहू के साथसाथ चलने का वादा किया!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
प्रतियोगिता गागर में सागर (ससुराल में हक) .
“ससुराल में हक” – पूजा शर्मा।
ससुराल में हक के साथ-साथ कर्तव्य भी निभाना होता पल्लवी, हाँ सही बात है। वृंदा की शादी को अभी साल भर भी नहीं हुआ है उसने सबके दिल में अपनी जगह बना ली है। तुमने और उसमें बस इतना फर्क है कि वह ससुराल को भी अपना घर मानती है लेकिन ससुराल में भरपूर प्यार।मिलने के बाद भी तुमने सबसे दूरी बनाए रखी धीरे-धीरे सब तुमसे दूर हो गए।
और आज तुम्हे बुरा लग रहा है। जब वृंदा से घर का हर सदस्य इतना प्यार करता है। तुम खुद सोच कर बताओ क्या मैं गलत कह रहा हूं? पल्लवी के पास अपने पति विनोद की बात का सच में कोई जवाब नहीं था आखिर शादी के 4 साल बीत जाने पर भी। उसने भी कहा ससुराल में सबको अपना समझा था
पूजा शर्मा।
ससुराल में हक़
अमीना का बेटा पांच साल का था,जब वह विधवा हुई।
ससुराल में कोई मददगार नहीं था तो मायके आ गई।
आज जब बेटा पच्चीस का हुआ तो उसकी सास का बुलावा आया
ससुराल पहुंची तो सास मृत्यु शय्या पर थीं
अमीना के हाथ में एक पेपर थमा कर आंखें बंद कर लीं
वसीयत में लिखा था
” मैं उस समय मजबूर थी, पर आज अपने हिस्से की जायदाद तुम्हारे नाम कर रही हूं। क्योंकि तुम मेरे बेटे की बीवी होने के साथ ही मेरे पोते की मां भी तो हो। और वंश तो मेरे बेटे का ही चलेगा ।”
#ससुराल में हक – मनीषा सिंह।
मम्मी जी••आप बैठिए•• “मैं चाय बनाती हूं! सना गायत्री देवी के हाथ से चाय का बर्तन लेते हुए बोली।
अरे नहीं बेटा••! जा•• तू पढ़ाई कर चार दिन ही तो बचे हैं तेरे पेपर में••!
जी मम्मी जी•• हिचकिचाते हुए सना नजरे झुका कर वहां से जाने लगी कि तभी ससुर “तिजोरी लाल जी” को अपने पीछे खड़ा पाया ।
बेटा इसमें हिचकिचाने वाली क्या बात है ••तू हमारी बेटी गीता जैसी ही तो है••! जैसे उसके ‘एग्जाम्स’ के समय तुम्हारी सासू मां उसे काम से दूर रखती थी ठीक वैसे ही तेरा भी इस घर में उतना ही हक है ••!इसीलिए बिंदास रहा कर••!
पति के इस कथन से गायत्री जी मुस्कुरा उठी।
धन्यवाद।
मनीषा सिंह।
सेवा का हक – लतिका श्रीवास्तव
होली पर तीनों बहू बेटे कई सालों के बाद इकट्ठे हुए थे।इस बार वजह थी पिता सुशांत जी का रिटायरमेंट और संपत्ति का बंटवारा।सुशांत जी ने पत्नी शोभा के लाख मना करने के बाद भी पूरे घर और संपत्ति को बांटने का फैसला कर लिया था कि इस संपत्ति पर सबका हक है अपने जीते जी ये हक सबको देना मेरा कर्तव्य बनता है।अपने बारे में भी सोचा है आपने पत्नी ने पूछा तो हंस कर बोल उठे हम दोनों हैं तो इक दूजे के लिए सुनकर शोभाजी की आँखें भर आईं।
पापाजी मै इस घर की बड़ी बहू हूं।मुझे मेरा हक चाहिए तभी बड़ी बहू अदिति ने आकर जोर से कहा तो सुशांत जी घबरा ही गए।
कौन सा हक चाहिए बेटा मैंने तो सबको बराबरी से सबका हक दे दिया है।
नहीं पापा जी आप दोनों की सेवा करने का हक सिर्फ मेरा है सबका नहीं… मुझे सिर्फ यही हक चाहिए बोलिए देंगे ना..अदिति ने अबीर सहित दोनों के चरण स्पर्श करते हुए कहा तो दोनों भाव विवहल हो गए।
लतिका श्रीवास्तव
ससुराल मे हक – पुष्पासंजय नेमा
दीदी इतनी सी बात का इतना बड़ा बवाल मच जाएगा मैने सोचा भी न था यही तो बस कहा है कि यह मेरा घर है यहां मेरा हक है मां ने विदा के समय यही बोला था बेटा अब से ससुराल ही तेरा घर है इसलिए मैने कह दिया भोली भाली सीमा ने रोते रोते और भरराई आवाज मे छोटी ननद मीना से कहा तो सासू मां ने उनकी ही तरफदारी करते हुए बोला कितने दिन की है शादी होगी तो अपने घर चली जाएगी लेकिन इनके आने से चार दिन भी सुख से नही रह पाती हमारी मोड़ी छः सालो से यही कह रही है और फिर पूरा घर यहां तक पति महोदय भी लगातार लड़ रहे है
इतना ही घर का शौक था तो मायके से ले आतीं
अविवाहित मीनाउसकी हमउम्र थी जो छोटी छोटी सी बात का बतंगड़ बना कर आए दिन एक नया तूल बना देती थी सीमा समझ ही नही पा रही थी बस सुबह शाम प्रार्थना करती हे भगवान इनकी जल्दी शादी करा दों
स्वरचित
पुष्पासंजय नेमा
जबलपुर
ससुराल में हक़ – डॉ ऋतु अग्रवाल
“दीदी! ऐसे कैसे चलेगा? जब तक आप कहोगी नहीं,कोई भी आपको आपका हक़ नहीं देगा। आप उस घर में रहती हो, सारे कर्तव्य निभाती हो तो आपका खर्चा भी उन्हीं लोगों को उठाना चाहिए।”
“पर भाभी! अपनी बात रखने पर ससुराल वाले लड़ाकू और तेज ज़बान की बताने लगते हैं।”
“बताने दीजिए दीदी! आप अपनी बात को शांत स्वर और मर्यादित शब्दों में कहिए लेकिन अपने ससुराल में अपने हक़ के लिए आपको स्वयं खड़ा होना होगा।”
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ ऋतु अग्रवाल
मेरठ, उत्तर प्रदेश
#गागर में सागर
#ससुराल में हक़
ससुराल में हक – लतिका पल्लवी
समधी जी यह कह कर आप हमारा अपमान कर रहे है। आपने ऐसा सोचा भी कैसे? क्या अंजलि ने हमारे बारे में ऐसा कहाँ है कभी आपसे कि हम उसे प्यार नहीं करते या उसका ध्यान नहीं रखते? कभी भी हमारी शिकायत की है? फिर आपने ऐसा सोचा क्यों?
नहीं, नहीं समधन जी ऐसी कोई बात नहीं है मैंने तो बस सोचा कि जब दामाद जी ही नहीं रहे तो अब अंजलि यहाँ किस अधिकार से रहेगी? इसीलिए यह प्रस्ताव रखा कि उसे अब अपने घर ले जाऊं।
समधी जी याद रखिये मेरे बेटे की मृत्यु हुई है इसका यह अर्थ नहीं है कि हमारा अब अंजलि से कोई संबंध नहीं रहा। आज भी वह हमारे घर की बहु है। पति के नहीं रहने पर भी बहु का ससुराल में उतना ही हक रहता है जितना उसके जिन्दा रहते। अंजलि इसी घर में रहेगी और पुरे हक के साथ।
लतिका पल्लवी
ससुराल का हक – चंचल जैन
नई-नवेली बहु रिया का धुमधाम से स्वागत किया गया। मां पापा जी को लगा धीरे-धीरे रिया घर संभाल लेगी। लेकिन वह अपनी मां के साथ दिनभर फोन पर बतियाती रहती।
रिया को न खाना बनाना पसंद था, न कहीं आना जाना।
अर्पित के साथ घूमने जाना, हाॅटेल का खाना उसे अच्छा लगता।
“आराम से रहो। मजे करो।” रोहन खुद उसके नखरे उठाते परेशान था।
रोहन अपनी सैलरी हमेशा की तरह अपनी मां को देने लगा। रिया चाहती थी कि अब वह उसकी परिणीता है। सैलरी पर उसका हक है।
अर्पित ने तीखे शब्दों में कह दिया,
” ससुराल का हक चाहिये, तो जिम्मेवारी भी उठाओ।”
” सबकुछ अपना ही तो है।”
अब रिया धीरे-धीरे घर संभालने लगी है।
स्वरचित मौलिक कहानी
चंचल जैन
मुंबई, महाराष्ट्र
ससुराल में हक – डाॅ उर्मिला सिन्हा
मीना भड़क उठी,” जब देखो, मुझे यह कम मिला, मुझे वहां इज्जत कम मिली… आखिर तुम भी इस घर की बड़ी बहू हो… सिर्फ लेना जानती हो… किसी को देना नहीं… ससुराल में सिर्फ हक चाहिए लेकिन कर्तव्य पालन कुछ नहीं।”
हनी अपने आप को बहुत चतुर होशियार समझती थी… घर में कोई जरूरत पड़ती पहले ही ससुराल में हक की बात करने लगती।लेहाज में घरवाले चुप लगा देते लेकिन सिर से पानी उपर जाते देख सासु मां ने आज खड़ी-खड़ी सुना ही दी।
हनी ने खिसकने में ही भलाई समझी।
मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा