ससुराल में हक – ऋतु दादू
खाने की टेबल पर बैठा पति खाने में कद्दू की सब्जी देख चौंक गया, अरे ये क्या बना दिया, तुम्हे बताया था ना कि हमारे घर किसी को कद्दू पसंद नहीं है। जवाब मां ने दिया, हमारे घर में अब बहु भी शामिल है और इसको पूरियों के साथ कद्दू की सब्ज़ी पसंद है। नई बहु के सर पर वात्सल्य से हाथ रखते सासु माँ बोली, बेटा, ससुराल में सिर्फ कर्तव्य नहीं हक भी मिलता है।
ऋतु दादू
इंदौर
ससुराल में हक – के कामेश्वरी
नलिनी आए दिन मायके चली जाती । मायके में उसे बहुत समझाया डराया धमकाया लेकिन उसने एक ना सुनी । उसकी इस हरकत से परेशान हो ससुराल वालों ने सोचा कि उसे जाने नहीं देंगे। जब उसने बैग उठाया तब गेट पर ताला लगा दिया। नलिनी उनके सामने ही गेट फाँदकर चली गई । उसकी जेठानी जो ने उसे समझाया कि ससुराल में हक छोड़ कर जाना सही नहीं है वरना बाद में पछताना पड़ेगा । नलिनी को एहसास हुआ कि वो जो कर रही है वह गलत है । आज तीन महीने हो गए हैं नलिनी ने बाहर कदम नहीं रखे ।
के कामेश्वरी
घर की मालकिन – विभा गुप्ता
” क्या भाभी…आपने सोफ़ा को फिर से टीवी के सामने रख दिया।आप जानती हैं ना कि माँ को अपने काम में दखलंदाजी पसंद नहीं…।वैसे भी घर की चीज़ों को उलट-फेर करने का आपका कोई अधिकार नहीं है..।” ननद नंदा की बात सुनकर शालिनी रुआँसी हो गई।
चार महीने पहले ही शालिनी इस घर में बहू बनकर आई थी।विदाई के समय उसकी मम्मी, बुआ, दीदी..सभी ने उससे कहा था कि ससुराल ही तेरा अपना घर है..जैसा चाहे वैसा सजाना।नंदा का ससुराल पास में था, इसलिए वक्त-बेवक्त मायके आ जाती और भाभी के काम में कमियाँ निकालने लगती।आज तो उसने अधिकार की बात कह दी तो शालिनी की आँख से आँसू बह निकले, तभी उसकी सास आ गई और उसके आँसू पोंछते हुए बोली,” जा शालू..जिधर तेरा मन करे..सोफ़ा- टेबल सजा ले।” फिर बेटी से बोली,” नंदा..जैसे तेरा#ससुराल में हक है, वैसे ही शालिनी भी इस घर की मालकिन है।सोफ़ा तो क्या, ये पूरे घर को अपने तरीके से सजा सकती है।” सुनकर नंदा अपना-सा मुँह लेकर रह गई और शालिनी..’मम्मी जी’ कहकर सास के गले में अपनी बाँहों का हार डाल दी।
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु
# ससुराल में हक
ससुराल में हक – विधि जैन
जानकी की शादी को लगभग 10 साल हो गए थे कभी भी कहीं जाना हो तो साथ से पूछ कर जाना पड़ता था एक दिन सुषमा बहुत बिजी थी जानकी ने सोचा की मार्केट जाकर एक दो साड़ी लेकर आ जाती हूं और जानकी ने पति से पैसे लिए और साड़ी खरीद कर ले आई जब सुषमा को यह बात पता लगी तो उसने घर सर पर उठा लिया तभी पीछे से रमेश ने आकर कहा कि मम्मी क्या हुआ जानकी साड़ी ही तो लाई है और आपके लिए भी एक सरप्राइज गिफ्ट लाई है फिर आप इतना गुस्सा क्यों कर रहे हैं उसका भी तो उतना ही हक है हमारे घर पर आप भी तो कहती हैं कि उसका असली घर यही है फिर जानकी ने कहा मुझे आज समझ में आ गया मेरा ससुराल में कोई हक नहीं है मैं सुबह से शाम तक काम बस कर लूं बाकी मुझे कोई अपनापन नहीं देता है।
विधि जैन
#ससुराल में हक – आरती झा आद्या
नवविवाहिता निधि ने रसोई में खीर बनाते हुए सास से पूछा, “माँजी, आज पूजा की थाली मैं सजा दूँ?”
सास ने मुस्कुराकर हामी भर दी। निधि का मन उल्लास से भर गया।
तभी बाहर से पति और ससुर की आवाज़ आई, “मेरे जूते ला दो!”
निधि ठिठकी, फिर सहजता से बोली, “पूजा की थाली सजाना बहू का हक़ है, पर जूते लाना आपकी स्वयं की जिम्मेदारी है।”
सास ने निधि की ओर देखा, फिर मंद मुस्कान के साथ सिर हिला दिया। पहली बार किसी ने इतने सादे शब्दों में हक़ और फ़र्ज़ की लकीर खींच दी थी।
✍️आरती झा आद्या
दिल्ली
ससुराल में हक़ – रंजीता पाण्डेय
ममता की सासु माँ बहुत बीमार थी ।ममता बहुत परेशान हो गयी थी । दिन रात सेवा करती। मोहन( ममता पति)बात बात पे ममता पे गुस्सा करता । तुम क्या बनाती हो? क्या खिलाती हो ? की माँ इतनी बीमार हो जाती है ममता कुछ नही बोलती थी ।आखिरकार ममता की सासु माँ की तवियत में सुधार होने लगा।
थोड़ा समय लगा । सासु माँ पूरी तरह से ठीक हो गयी । होली आ गयी थी । घर में तरह तरह के पकवान भी बनाये ममता ने। मोहन जब भी कुछ खाता , अपनी माँ को जरूर खिलाता । ममता ने बोला मोहन माँ को नही खिलाओ उनको नुकसान करेगा । लेकिन मोहन और उसकी माँ बोलती तुमको मना करने का कोई हक़ नही है, समझी ।जाओ अपना काम करो। सासु माँ ने भोह चढ़ा के बोला तेरे मायके से जो आयेगा वो नही खाऊँगी। ये मेरे बेटे की कमाई का है ,मै सब कुछ खाऊँगी । ठीक है माँ जी आप खाइये। पर ध्यान रहे अगली बार जब बीमार होगी । तब आप ,और मोहन हमसे सेवा की उम्मीद मत करियेगा।
मोहन ममता की बात सुन दंग रह गया। आज ममता के बातो में बगावत दिख रहा था।
ऐसे ही सास की सेवा करने वाली बहुएं बदल जाती है ।
बहु जब सेवा करे तो उसका सम्मान करें ।” ससुराल में हक़ ” सम्मान पाने का भी होता है । सिर्फ ताने सुनने का नही ।
रंजीता पाण्डेय
ससुराल में हक़ – डाॅ संजु झा
लगातार दो बेटियों को जन्म देने के कारण अचानक से ससुराल में नीना का कद और हक छोटा पड़ गया।एक बेटे की माॅं होने के कारण नीना की देवरानी का ससुराल में कद और हक बढ़ गया।नीना के पति अमन भी अप्रत्यक्ष रूप से बेटियों की उपेक्षा करने लगें।कम पढ़ी-लिखी नीना को एक बेटे में ही अपना और बेटियों का भविष्य सुरक्षित नजर आ रहा था।
कुछ वर्ष बाद नीना ने एक बेटे को जन्म दिया ।उसके कानों में पहली बार बेटे की आवाज जलतरंग की भाॅंति गूॅंजी,जिसे सुनने के लिए मन रुपी वीणा कब से अपने तार कसे प्रतीक्षारत थी।उसे एक बेटे के कारण अपना और बेटियों का भविष्य सुरक्षित महसूस हो रहा था। बेटे के बहाने वह अपनी बेटियों को भी शिक्षित कर सकेगी!एक बेटे के जन्म देने के कारण ससुराल में उसे स्वतः ही खोया हुआ मान-सम्मान और हक प्राप्त हो गया।
हमारे समाज में आज भी बेटे के जन्म पर खुशियाॅं मनाई जाती है और बेटी के जन्म पर खामोशियाॅं पसर जाती हैं। विशेषकर गाॅंवों में अभी भी उपर्युक्त कुरीतियाॅं विद्यमान हैं।
समाप्त।
लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)
#ससुराल मे हक – संगीता अग्रवाल
” बेटा ये इतना सारा सामान , ये गहने यहाँ क्यो लाई हो तुम ?” नवविवाहित संजना से सास मालती बोली।
” मम्मी जी ये सब तोहफ़े मैं आपके लिए लाई हूँ आप सबके लिए । मम्मी ने कहा था ससुराल मे बहू को हक तभी मिलता है जब वो अपने फर्ज निभाए तो बस मैं वही कर रही !” संजना इतराते हुए बोली।
” बेटा ससुराल मे हर बहू का हक होता है पर वो महंगे तोहफे देने से नही मिलता बल्कि मिलता है – प्यार , त्याग और सम्मान से !” मालती बहू की नादानी पर मुस्कुरा कर बोली।
” जी मम्मीजी मैं आपकी ये बात ध्यान रखूंगी फिलहाल आप ये तोहफ़े तो ले लीजिये !” संजना बोली।
” ये तोहफ़े तुम्हारे पास मेरी अमानत है ये मैं तब लूंगी जब तुम मन से इस घर को अपना बना लोगी !” मालती बोली तो बहू सास के गले लग गई।
संगीता अग्रवाल
ससुराल में हक़ – ऋतु यादव
मृदुभाषी बिना दहेज ब्याहकर आई तो सास ताना देती, पति भी न पूछता।उसे लगता सुसराल में उसका कोई
हक़ ही नहीं है।साल भर में ही दस शिकायतों के साथ घर से निकाल दिया। तभी सास को कैंसर का पता
चला उसे सेवा के लिए मायके से बुलवाया। घर आकर उसने पूरे मन से सेवा की।भगवान की दया,दवाइयों
और मृदुभाषी की सेवा से सासूमां जल्दी ही ठीक हो गई।आज सासू माँ ने सभी रिश्तेदारों के सामने कहा मैं
तो बहू की सेवा से मै जल्दी ठीक हो गई।उनके कहने से मृदुभाषी को लगा सासूमां ने उसे स्वीकार कर
ससुराल में हक़ दे दिया।
ऋतु यादव
रेवाड़ी (हरियाणा)
सूझ-बूझ – उमा महाजन
‘बड़ी बहू,कहां हो तुम ?’ अर्चनाजी किचन से तुरंत बहू को डायनिंगरूम में ले आईं,’यह हमेशा पृष्ठभूमि में काम करने वाली हमारी बड़ी बहू है,सर्वगुणसंपन्न। किट्टी के लगभग सभी पकवान इसी ने बनाए हैं।’
जेठानी के परिचय से छोटी बहू हक्की-बक्की रह गई। दरअसल सुबह से किचन में बिना किसी योगदान के अब आगे-आगे बढ़कर आवभगत का यश लेने की चाह को सासूमां ने करारी पटकी जो दे दी थी।
उधर बड़ी बहू के चेहरे की मुस्कान को सासूमां की आंखें मानो कह रहीं थीं, ‘मैंने धूप में बाल सफेद नहीं किए हैं। तुम्हारे ‘हक’ को मैं बखूबी समझती हूं।’
उमा महाजन
कपूरथला
पंजाब।