Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

सम्मान का हक़ – रश्मि प्रकाश  

“शादी से पहले ही तुम्हें बता दिया था… मेरी माँ ,भैया भाभी और बच्चों को हमेशा अपनापन और सम्मान देना होगा तुमने भी मुझसे यही कहा था और मैं वो सब निभा भी रहा हूँ फिर तुम आज माँ और भाभी से ऊँची आवाज में बात कैसे कर रही हो?” अनिकेत ने महक पर चिल्लाते हुए कहा 

“ तुम सही कह रहे हो तुमने मेरे परिवार को पूरा सम्मान दिया और उन्होंने भी हमेशा दामाद की इज्जत ही की पर तुमने ये कभी नहीं बताया कि मैं तुम्हारे घर में तुम्हारी माँ और भाभी का हुक्म सुनने वाली बन कर रह जाऊँगी… ना अपने मन का खा सकती नहीं कहीं जा सकती इसलिए मुझे ससुराल में हक के लिए आवाज ऊँची करनी पड़ी ताकि मुझे भी वो मान सम्मान मिले जो तुम्हें तुम्हारे ससुराल में मिलती है ।” महक कह कर वहाँ से चली गई 

अनिकेत अपना सा मुँह लेकर माँ और भाभी को देखने लगा शायद बात उन्हें भी समझ आ गई हो 

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# गागर में सागर 

# ससुराल में हक़ 

 

ससुराल में हक – संध्या त्रिपाठी

       संकोच क्यों करती है,तेरा ही घर है ..शादी हो गई तो तू पराई थोड़ी ना हो गई है… अभी तो आप हैं मम्मी.. पर बाद में… अरे बाद में भी बेटा, इस घर में तेरा भी हक है !

     ये झूठ है मम्मी ..सरासर झूठ… बुआ के लिए और मेरे लिए , एक ही घर में अलग-अलग धारणाएं कैसे हो सकती है..? दादी भी तो बुआ को ऐसे ही बोलती होगी ना.. ये तेरा भी घर है ।

  मेरी सासू मां ठीक कहती है…चाहे कितने भी वैधानिक अधिकार दे दिए हो… पर स्वेच्छा से कोई भी भाई अपनी बहन को संपति में हक नहीं देता…  बहू को  “ससुराल में हक ” लेने के लिए जद्दोजहद नहीं करना पड़ता है..!

(स्वरचित) संध्या त्रिपाठी, अंबिकापुर छत्तीसगढ़

 

ससुराल में हक़ – एम पी सिंह

मोहिनी बहुत दिनों बाद अपने भाई भाभी की पास आई थी। मॉ बाबूजी के गुजर जाने के बाद आना ही नहीं हुआ। भाई ने बहुत जोर देकर बेटे की जन्म दिन पर बुलाया था, सो अकेले ही आ गई। पार्टी का जो मेन्यू भाभी ने फाइनल हुआ था, वो मोहिनी को पसंद नही आया, इसलिये उसने कुछ बदलव कर दिया। जब भाभी शॉपिंग करके आई और मेन्यू का पता चला तो वो गुस्सा हो गई और बोली , तुम अपनी “ससुराल में हक़” जमाना, यहाँ जो मैं चाहुगी वही होगा। मोहिनी समझ गईं कि अब ये उसका मायका नही बल्कि भाई भाभी का घर है।

लेखक

एम पी सिंह

(Mohindra Singh )

गागर में सागर

ससुराल में हक़

स्वरचित, अप्रकाशित

12 Mar 25

 

ससुराल में हक़ – आराधना सेन 

“बाबूजी आपने भाभी को भी अलग से हिस्सा क्यूं दिया क्या वह भैया से अलग हैं”रीमा नाराज लहजे मे बोल रही थी, तभी बेटे ने भी कहा बाबूजी को मेरे पर शायद विश्वास नही की सीमा का देखूँगा “

“तेरे बाबूजी की तो मति मारी गई “माँ बडबडा रही थी।

आज मैं तुम्हारे सामने बैठा हुँ स्वस्थ इसका पुरा श्रेय बहू को जाता हैं, बहू तो मेरे बेटे बेटी से बढ़कर मेरी देखभाल की हैं मेरी सेवा जब उसका फर्ज हैं तो मेरे संपति पर अधिकार, बहू का हक हैं।

आराधना सेन 

 

ससुराल में हक – खुशी

निशि घर की बड़ी बहु थी।जिस पर घर की सारी जिम्मेदारी थी। सास ससुर, पति ,देवर ननद सबके काम करना ।4:00 बजे दिन निकलता और 11:00 बजे ढलता।काम में सब पूछते पर वैसे उसकी सलाह ना ली जाती।देवर आदित्य की शादी तय हुई।सास ननद शॉपिंग पर जाती और निशि घर उसका भी मन करता की वो जाए पर उसे कोई नहीं ले जाता।एक।दिन सब सुनार के यहां गए उस दिन निशि ने कोई काम नहीं किया।सासू जी आई तो बोली ये क्या निशि सारा काम ऐसे ही पड़ा है ये तो तुम्हारा हक है वाह मम्मी जी घर संभालने का मेरा हक है पर खरीदारी शादी की तैयारी के समय आपको मेरा हक याद नहीं आया।  सासू जी का मुंह इतना सा रह गया 

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

 

ससुराल में हक़ – अमित रत्ता

सिमरन दहेज क्या कम लेकर आई अब हर रोज उसे सास के ताने सुनने पड़ते आज सुबह कहना बनाकर झाड़ू लगाकर जैसे ही खाने बैठी सास शरू हो गई बाहर कपड़े पड़े हैं उसको धोने तेरे बाप ने दहेज में नौकरानी भेजी है जब देखो खाने में लगी रहती है ऐसे ही जाने कितनी बातें सुन दी अमगर आज सिमरन की ननद बीच मे बोल पड़ी की मां क्या आप मेरे ससुराल की हर मांग पूरी कर दोगी क्या तुम मेरे साथ नौकरानी भेज दोगी।अगर आप चाहती हैं कि आपकी बेटी ससुराल में खुश रहे तो आपको पहले अपनी बहू को ससुराल में वो हक देना पड़ेगा जो आप अपनी बेटी के लिए चाहती हो। याद रखो आपकी बहु किसी की बेटी है और आपकी बेटी किसी की होने वाली बहू है इसलिए बहु से वो ही व्यवहार करो जो आप अपनी बेटी के लिए चाहती हो।

                 अमित रत्ता

         अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश

 

सही मार्गदर्शन – प्राची अग्रवाल 

महक की नई-नई शादी हुई थी। शादी के बाद एडजस्ट करने में थोड़ा टाइम तो लगता है। जरा कोई बात होती ससुराल में महक तुरंत मायके की तरफ लपकती। उसकी इस आदत की वजह से ससुराल वालों को बहुत नीचा देखना पड़ता। एक दिन गुस्सा होकर घर से जा रही थी तब उसके ससुर ने प्यार से बुलाकर उसे समझाया,”बेटा ससुराल में तेरा हक है। यहां लड़ो या प्रेम से रहो। अगर गुस्सा आ रहा है तो घर का कोई सा भी कोना घेर लेना। पूरा घर तुम्हारा अपना है। लेकिन घर से जाने की बात कभी मत करना।”

महक को समझ में आ गई घर की इज्जत और अपनी उस घर में अहमियत। फिर कभी महक गुस्सा होने पर घर छोड़कर नहीं गई। सही मार्गदर्शन घर टूटने से बचाता है।

प्राची अग्रवाल 

खुर्जा बुलंदशहर

#ससुराल में हक

 

रिश्ते का मान – मनीषा सिंह 

दीदी चलिए•• नाश्ता कर लीजिए••इतनी देर हो गई••! सविता अपनी जेठानी कविता से बोली ।

 मुझे नहीं खाना••• तू जा यहां से•• कविता सविता के तरफ पीठ घूमाते हुए बोली। आप नहीं खाओगी तो मैं भी नहीं खाऊंगी••!

 तुझे क्या पड़ी है•• जब मांजी ••ने मुझे डांटा तब तो चुप थी••!

 नहीं दीदी••! मैंने मां जी को आपके जाने के बाद समझाया और वह समझ भी गईं •••!

अच्छा•• उन्होंने नाश्ता किया•••? कविता चिंतित होते हुए पूछी  ।

नहीं बोली पहले बड़ी को खिला तभी मैं खाऊंगी•••!

 मुझे पता था•• मां जी••• को जब तक मैं   खिलाऊंगी नहीं तब तक वह  खाएंगी नहीं•••!

 मां-मां की आवाज लगाते हुए कविता दरवाजे पर आई देखा–बुढी माता श्री चुपचाप किसी सोच में बैठी थी•• बहु को देखते ही उनकी बाछे खिल आईं ।चलिए मां अंदर नाश्ता कर लेते हैं•• छोटी हम दोनों का नाश्ता यही ले आ•••!  सास-बहू को मुस्कुराता देख कविता भी मुस्कुरा उठी ।

मनीषा सिंह

 

उनका मान – मोनिका रघुवंशी

तुम मां बनने वाली थी और ऐसी हालत में जीजू हम सबको छोड़ कर चले गए थे इतनी बेइजती होने के बाद भी तुम ससुराल जाना चाहती हो। दीदी सेल्फ रिस्पेक्ट जैसी कोई चीज है कि नही तुममें… रिया ने अपनी बहन रश्मि से कहा।

वो मेरा ससुराल है रिया, वंहा मेरे साथ जो भी हुआ हो, भले उन लोगों ने रिश्तों का मान न रखा हो पर मेरे पति रजत ने मुझे भरपूर प्यार और मान सम्मान दिया है।आज रजत हमारे साथ नही है, उनके पीछे वही व्यवहार करके मैं रजत के प्यार का अपमान नही करूंगी।मुझे उन लोगों से भी कोई शिकायत नही।रजत के माता पिता होने के नाते वो मेरे सास ससुर हैं, तो उनके प्रति मेरी जिम्मेदारी बनती है न। रश्मि शांत भाव से समझाती हुई बोली। फिर भी दीदी, मैं अगर तुम्हारी जगह होती न भूलकर भी उस दहलीज पर पांव नही रखती जंहा मेरी कभी इंसल्ट की गई हो।

रिया भूली बिसरी बातों को मन मे गांठ बनाकर रखने से रिश्ते नही चलते। समय आने पर कड़वाहट भुलाकर आगे आकर ‘रिश्तों का मान’ रखा जा सकता है।

कल को मैं रहूं न रहूं रजत का परिवार मेरी बेटी के साथ होना चाहिए। मैं अपनी कनु के मन मे उसके पिता के परिवार प्रति कोई जहर नही भरना चाहती।

गागर में सागर

स्वलिखित व अप्रकाशित

मोनिका रघुवंशी

 

रिश्तों की सीख – शिव कुमारी शुक्ला 

विमला जी साठ की उम्र पार कर चुकीं थीं किन्तु अभी भी जब भी बड़े भाई की याद आती वे अपना झोला लेकर  निकल पड़तीं  भाई से मिलने जिसमें दो-तीन जोड़ी कपड़े होते एवं भतीजों भतीजीयों के लिए कुछ खाने का सामान ।भाई चार साल से ज्यादा चलने -फिरने में असमर्थ थे।

नीम के पेड़ के नीचे खाट डाल कर बैठे दोनों भाई बहन घंटों बतियाते रहते। बच्चों को बड़ा अच्मभा होता इस उम्र में भी भाई बहन में इतना प्यार होता है।

भतीजे की शादी थी उन्हें एवं उनके पति यानि फूफा जी को पूरा मान-सम्मान दे सब रीति रिवाजों में आगे कर दिया जाता। पापा हर काम में फूफा जी को साथ रखते तो मम्मी बुआ जी से पूछ पूछ कर हर काम करतीं। फिर जाते समय उन्हें सम्मान पूर्वक विदाई दे, विदा किया गया। बच्चे ये रिश्ते का मान देख सोच रहे थे कि अपनों से रिश्ता कैसे निभाया जाता है।

परोक्ष रूप से उनके माता-पिता उन्हें रिश्तों का मान सीखा रहे थे ताकि भविष्य में वे भी अपने रिश्तों  को ऐसे ही मान देकर सम्हाल सकें।

शिव कुमारी शुक्ला 

13-2-25

स्व रचित 

रिश्तों का मान****गागर में सागर

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