Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

रिश्तों की अहमियत – डॉक्टर संगीता अग्रवाल

मम्मा!पड़ोस वाले दादा जी इतने दुखी क्यों रहते हैं,उनके घर में सभी हैं, बहू,बेटे,पोते पोतियां पर वो एकदम

चुप और परेशान दिखते हैं,ऐसा क्यों है?रजत ने आशा ,अपनी मां से पूछा।

बेटा!जब ये ताकतवर थे,सबको डरा धमका के रखते,खूब दुखी करते,किसी रिश्ते का मान नहीं रखा

इन्होंने,इनकी पत्नी भी जल्दी स्वर्ग सिधार गई,अब बच्चे वही फल दे रहे हैं जिसके बीज पहले इन्होंने बोए थे।

इसलिए कहते हैं समय रहते रिश्तों की अहमियत को समझो,कहीं कल को तुम उन्हें खो न दो।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

रिश्तों की अहमियत – सुभद्रा प्रसाद

     “सुनो सोनम, भाभी का फोन आया था | बड़े भैया की तबियत ज्यादा खराब है | वे अस्पताल में भर्ती है ं |उनका इकलौता बेटा नवीन तो विदेश से इतनी जल्दी आ नहीं पायेगा | कल मैं उनके पास दिल्ली जाऊंगा | मैंने आफिस से छुट्टी ले ली  है |” नीरज बोला| 

        ” अरे जाने की क्या बात है? कुछ पैसे भेज दिजिए |” सोनम झट से बोली |

         ” कैसी बात करती हो? रिश्तों की अहमियत समझो | पैसे तो मैं लगाऊंगा ही ं, पर मेरे जाने से भैया-भाभी को हिम्मत मिलेगी, सहारा होगा | उनकी देखभाल करूँगा | उन्होंने भी तो हमें सदा नवीन की तरह ही समझा है |”

         ” आप ठीक कहते हैं | मैं भी आपके साथ चलूंगी |” सोनम बोली

स्वलिखित और अप्रकाशित

सुभद्रा प्रसाद

पलामू, झारखंड |

रिश्तों की अहमियत – शुभ्रा बैनर्जी 

“क्या तेरा फर्ज नहीं बनता अपनी बहन को लिवा लाने का।कुछ मजबूरी होगी जरूर,तभी तो आ नहीं पाई होगी।ऐसे थोड़े तोड़े जा सकतें हैं रिश्ते।”

मां की बात सुनकर नितिन ने कहा”सच कहो मां,क्या तुमने कभी पापा के रिश्तों को अहमियत दी है?घर में क्लेष के डर से पिछले कितने सालों से नहीं गए पापा,बुआ को लिवाने। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है उनकी,क्या इसलिए पापा का और उनका रिश्ता खत्म हो जाना चाहिए?”

बेटे की बात सुनकर नीता को समझ में आ गया कि,रिश्तों की अहमियत मां ही सिखाती है बच्चों को।

शुभ्रा बैनर्जी 

 रिश्तों की अहमियत – रश्मि झा मिश्रा 

पहले घर में सबका एक बच्चे पर बराबर ही हक होता था… चाहे वह मां हो चाची या फिर दादी… जिसे मनचाहा लाड़ कर ले… जो गलती करता देख ले चार बातें सुना दे… पर कोई बुरा नहीं मानता था… नितिन गांव गया तो अपने ही मोबाइल के साथ रूम में घुसा रहता… किसी से बात नहीं… चिंटू मिंटू कितनी ही बार जिद करते चले गए… खेलने को… आखिर चाची ने आकर मोबाइल छीन लिया… डांट कर कहा…” यहां जब तक हैं… मोबाइल नहीं… बच्चों के साथ खेलिए!”… नितिन झल्ला उठा… “आपको क्या मतलब… मैं कुछ भी करूं…!” चाची सकपका गई… निरुत्तर हो गई… काश ये बच्चे रिश्तों की अहमियत भी समझ पाते… 

रश्मि झा मिश्रा 

नेह के रिश्ते – लतिका श्रीवास्तव 

ये जब देखो तब मिनी का अपने मायके जाना मुझे जरा पसंद नहीं है मां फिर मुझे फोन करती है आकर ले जाओ !मुझे नही जाना उसके मायके उसकी मां की बकवास सुनने!! तुम्हारे साथ जो रिश्ता बना है इसकी जरा अहमियत नहीं है उसे!!ऑफिस से आते ही मनीष भुनभुनाने लगा।

मनीष मिनी भी तेरी मां के लिए ऐसा ही बोलेगी तो तुझे अच्छा लगेगा??रिश्ता सिर्फ उसका नही तेरा भी बना है ये तो नेह के रिश्ते हैं बेटा इन नए बने रिश्तों की अहमियत शुरुआत से ही तुझे भी बराबरी से समझनी होगी और निभानी होगी। 

लतिका श्रीवास्तव 

चप्पल की जोड़ी बदली…….. – अमिता कुचया

जूही एक मंदिर में चप्पल की जोड़ी बदल के कार में बैठ गयी और अचानक ही उसका मामी के यहाँ जाने का कार में ही भाभी के साथ जाने प्लान बन गया। लेकिन वह जब अपनी मामी के यहाँ पहुंची तब उसे अहसास हुआ कि एक चप्पल किसी और की धोखे से पहन ली अब क्या करती…. मंदिर भी काफी दूर था।उसे अपनी ऊपर गुस्सा भी आया। और शर्म भी आई, लेकिन वह चुप रही, उसने किसी को कुछ नहीं कहा,जब जैसे ही लौटने का समय हुआ तब अपनी भाभी को बताया और मामा की बहू भी खडी़ थी, उसने उसने बातें सुन ली। तब उसने कहा -दीदी ऐसी अनजाने में ही हो जाता है। भीड़ में हमसे गलती हो जाती है। आप हमारी चप्पल पहन लो, फिर जूही ने कहा -” भाभी अच्छा हुआ जो आपने मेरे बारे में सोचा मैं अभी लौटकर आपकी चप्पल भिजवाती हूँ। तब अंकिता भाभी बोली -दीदी ये कौन सी बड़ी बात है, आप ये चप्पल मत भिजवाना, दीदी आप अपना नहीं मानती क्या? तब जूही को समझ आया…ये होता है रिश्तों का अहसास….तब जूही कुछ नहीं बोल पाई। उसने अंकिता भाभी को थैंक्स कहा कि यदि आप अभी ये चप्पल न देती तो मैं बाजार तक कैसे जाती, सोचो बिना चप्पल के चल पाना कितना मुश्किल है ,बाजार तक पहुँच कर लेना। इन सबमें मुझे कितनी परेशानी होती आपका बहुत – बहुत धन्यवाद कहकर चली गई। 

स्वरचित रचना

अमिता कुचया

अहमियत रिश्तों की – कुमुद मोहन 

रिश्ते नाजुक हैं  शीशे से न टूट जाऐं कहीं

कोई रिश्ता बेवजह न रूठ जाए कहीं!

रिश्तो की डोर इतनी भी न खींचो कि दरक जाए 

और उसमें पड़ी गिरह का ग़म ताउम्र सताए! 

रिश्तों की अहमियत वही जाने जिसे रिश्ते निभाना आता हो

टुटन का दर्द वो क्पा जाने जिसने कोई रिश्ता बमाया ही न हो.

कुमुद मोहन 

रिश्तों की अहमियत – लक्ष्मी साहू 

चिंटू तू कैसा है? क्या तुझे हमारी याद नहीं आती? यही सवाल हर उस माता पिता के जेहन में है जिन्हें वृद्धाश्रम में रहना पड़ रहा है। अपने माता पिता को वृद्धाश्रम छोडकर क्यों आया तू। आपको पता है कि माता पिता भगवान के समान होते हैं। आपको रिश्तों की अहमियत का कोई अंदाज़ा ही नहीं है। माता पिता अपने बच्चे के लिए क्या कुछ नहीं करते हैं। हम जब छोटे होते हैं तो वे हमें पालते हैं हमें बड़ा करते हैं और इसी उम्मीद से बड़ा करते हैं कि हमारा बच्चा हमारा साथ देगा, हमारे बुढ़ापे पर हमारी लाठी बनेगा। कितने बदकिस्मत होते हैं वो माँ बाप जिन्हे ये दिन देखना पड़ता है। रिश्तों की अहमियत करना सीखें चाहे कोई भी रिश्ता क्यों ना हो।।श बड़ो का हमेशा सम्मान और छोटो को प्यार, यहीं तो सिखाया है हमें हमारे माता पिता ने। एक इंसान अकेला अपना जीवन व्यतीत नहीं कर सकता। उसे आगे बढने के लिए रिश्तो की जरुरत पड़ती है।

लक्ष्मी साहू 

रिश्तों की अहमियत – रेखा सक्सेना

राशि की सास रंजना पारंपरिक विचारों वाली महिला हैं जबकि राशि आधुनिक सोच रखती है। शुरुआत में दोनों के बीच मतभेद रहे और वे एक-दूसरे से दूर-दूर रहतीं। एक दिन रंजना फिसल कर गिर गई और पैर की हड्डी टूट गई ,तब राशि ने बिना किसी शिकायत के उनकी देखभाल की। रंजना ने पहली बार महसूस किया कि राशि के प्यार और देखभाल में कितनी गहराई है। धीरे-धीरे, रंजना ने राशि की बातों और अनुभवों को समझना शुरू किया और दोनों के बीच एक अनोखा रिश्ता बन गया और उन्होंने सास बहू के रिश्ते की अहमियत को समझ  लिया

रेखा सक्सेना

मजबूत-जड़ – प्राची_अग्रवाल 

शौर्य को स्कूल प्रोजेक्ट में फैमिली ट्री बनाने को मिला। जिसमें एक चार्ट पर पूरी फैमिली की फोटो चिपकानी थी।

मम्मी नेहा उसका प्रोजेक्ट तैयार कर रही थी। उन्होंने दादा दादी की फोटो सबसे नीचे चिपकाई, फिर उसके ऊपर अपनी और सबसे ऊपर शौर्य की फोटो लगाई।

प्रोजेक्ट देखकर शौर्य ने अपनी मम्मी से प्रश्न किया मम्मी दादी दादा की फोटो सबसे नीचे क्यों लगाई है? 

मम्मी बोली दादी दादी घर की जड़ के समान होते हैं। जिस प्रकार एक पेड़ जिनकी जडे़ अधिक फैली हुई होती है उतना ही मजबूत होता है। इसी प्रकार घर के बड़े-बुजुर्ग वट वृक्ष की जड़ों के समान मजबूत होते हैं।

शौर्य फिर प्रश्न करते हुए बोला,”फिर हमारा घर तो कमजोर हो गया क्योंकि हम तो दादा-दादी के साथ रहते ही नहीं है।”

शौर्य की बात सुनकर नेहा के ऊपर घड़ो  पानी पड़ जाता है। बाद में सच्चाई भी तो थी क्योंकि उसने तो रिश्तो की अहमियत समझी ही नहीं थी। अपनी आजादी के कारण सास ससुर से किनारा करके अपना नया आशियाना जो बना लिया था।

प्राची_अग्रवाल 

खुर्जा बुलंदशहर

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