Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

*हिचक* – बालेश्वर गुप्ता  

        देखो लोकेश मुझे बिल्कुल पसंद नही कि तुम इस प्रकार आवारा गर्दी करते फिरो।अच्छा बड़ा कारोबार है हमारा,उसका अनुभव लो।और हाँ अपने स्तर के लोगो मे बैठा करो।

       पर पापा मैंने किया क्या है?राजू मेरा मित्र है,गरीब जरूर है,पर बहुत ही इंटेलिजेंट है।वह अपनी बस्ती में गरीब बच्चों को पढ़ाता है, मैं भी उसका सहयोग करता हूं।

      लोकेश वे हमारे स्तर के नही है।अपनी गरिमा बना कर रखो।

       पापा, मुझे वहां जाकर उन गरीब बच्चो का सहयोग करना भाता है।मैं तो जीवन भर सेवाकार्य ही करना चाहता हूं।

       हूँ, सेवा कार्य,दो पैसे पहले कमाओ फिर सोचो सेवा कार्य।कल से वहां नही जाओगे,ये समझ लो।

       पापा आपका अधिकार है मुझ पर,आपका बेटा हूँ, मैं।पर मेरी भावनाओ को कुचलने का भी क्या आपको अधिकार है,पापा?

     मुझे माफ़ कर देना पापा, मैं जा रहा हूँ, ये वायदा करके कि आपके नाम को खराब नही करूँगा।

        एकलौता बेटा उनकी आंखों के सामने उन्हें आईना दिखा चला गया,बड़े आदमी,बड़े कारोबार का नशा,उन्हें उतरता महसूस हो रहा था,पर उस अहंकार पर विजय कैसे  पाये,ये हिचक तो थी ही।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

अहंकार – रूचिका राय 

देखो,तुम इस कमरे से बाहर मत निकलना।बाहर मेरी दोस्तों के साथ पार्टी चल रही है।

अगर उन्होंने देख लिया तो क्या बोलकर परिचय करवाऊंगी।कैसे बताऊँगी तुम मेरी क़रीबी रिश्तेदार हो।

स्नेहा ने बड़े अहंकार से मधु को ये कहा।

और आज उच्चाधिकारी मधु के ऑफिस के गेट पर जब दरबान ने अंदर जाने से रोका तब उसने कहा जाकर अपनी मैडम से कहना उनकी करीबी रिश्तेदार आई हैं।

अहंकार तब भी था और अहंकार आज भी है।

रूचिका राय

अहंकार – खुशी 

प्रखर एक बहुत ही काबिल नौजवान था।जिसके जीवन में सभी कुछ था।इस कारण वो बहुत ही अहंकार से भर गया था।उसे लगता वो जो चाहेगा वही होगा।एक बार वो एक मॉल में शॉपिंग करने गया। वहां उसे एक लड़की दिखाई दी।जो उसे बहुत पसंद आई उसने उसका पीछा कर घर मोहल्ला सब पता कर लिया और  घर आकर उसने अपने माता पिता को बताया और कहा कि मैं उस लड़की से शादी करना चाहता हूं। माता पिता ने पूछा कौन है क्या है कुछ तो बताओ प्रखर बोला बस आप चलो किस की इतनी मजाल जो हमें  मना करे।अगले दिन सुबह प्रखर उस लड़की के घर पहुंचे वहां कुछ कार्यक्रम चल रहा था ।प्रखर ने पूछा क्या हो रहा है तो किसी ने बताया आराध्या और विवेक की सगाई हो रही है।प्रखर ने देखा ये तो वही लड़की है वो अंदर आ  कर बोला ये सगाई नहीं हो सकती। आराध्या से में शादी करूंगा। सब बोले तुम कौन हो और आराध्या को कैसे जानते हो।प्रखर बोला मैं बहुत बड़ा बिजनेस मैंन हु।मैने कल मॉल में आपकी बेटी को देखा ये मुझे पसंद आई तो मै ही इससे शादी करूंगा ये सगाई तोड़ो और मुझसे शादी करो।आराध्या वहां से उठकर आई और बोली कौन हो तुम ना मै तुम्हे ना तुम मुझे जानते ये क्या शादी की रट लगा रखी।तुम बिजनेस मेंन हो या प्रधानमंत्री  तुम जैसे अहंकारी और घमंडी से कोई  हमारा कोई वास्ता नहीं जाओ यहां से। आज प्रखर का घमंड चूर चूर हो गया कि पैसे से सब नहीं खरीदा जाता। अंहकार से आप कुछ नहीं पा सकते।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी 

 

अहंकार – संध्या त्रिपाठी 

  हैलो… अरे यार अभिषेक एक बूढ़ा सा आदमी मैले कुचैले कपड़े में सड़क के किनारे तार बिछाने के लिए खोदे गए गड्ढे में गिर गया है , वो एक झोला पकड़ा हुआ है …बार-बार तेरा नाम ले रहा है , पूछने पर खुद को चपरासी बता रहा है ,और तुझे अपना रिश्तेदार बोल रहा है ..तेरे घर पहुंचाने का आग्रह भी कर रहा है.. तू किसी ऐसे आदमी को जानता है क्या ..?

    रुक जा नीरज मैं 2 मिनट में आता हूं… बुजुर्ग का हाथ पकड़ते हुए अभिषेक ने कहा… नीरज ये मेरे नाना है गांव से बस में आ रहे थे ,अंधेरा होने के कारण इन्हें तो गड्ढा दिखाई नहीं दिया.. पर तेरी बातों से तेरा ऊंचे पद का अहंकार हम सबको जरूर दिखाई दे रहा है ..!

( स्वरचित)  

संध्या त्रिपाठी 

अंबिकापुर ,छत्तीसगढ़

 

जिंदादिली – शिव कुमारी शुक्ला 

यदि जीवन में अड़चनें न आएं तो जीवन जीने का मजा ही नहीं है। जिंदादिली से उन्हें पार करने से ही तो जीवन में सुख मिलता है, रमेश अपने दोस्त दीपक से बोला।

दीपक अड़चनें आने के कारण अपने जीवन से निराश हो चुका था।

रमेश की बात सुन कर वह एक बार फिर जोश से भर उठा और अपनी प्रशासनिक सेवा की परीक्षा की तैयारी में दोगुने उत्साह से जुट गया।

इस बार परिणाम अप्रत्याशित था क्योंकि हर बार की तरह पीछे रैंक आने के बजाए वह चौथी रैंक पर था। कोई अड़चन उसकी मेहनत के आगे अपना असर नहीं दिखा पाई।

शिव कुमारी शुक्ला 

स्व रचित 

9-11-24

अड़चन *****गागर में सागर

 

अहंकार – रंजीता पाण्डेय 

प्रिया  तीन भाइयों की  अकेली बहन थी | उसके तीनो भाई  अच्छी नौकरी करते थे |छोटे भाई की लॉटरी लग गई | अचानक  बहुत पैसा आ जाने के कारण, घर में सब बहुत खुश थे ,की प्रिया की शादी में अब पैसों की दिक्कत नहीं होगी ,लेकिन सब कुछ उल्टा हो गया | छोटा भाई खूब पैसा उड़ाने लगा, महंगा मोबाइल ,बड़े होटल में खाना पीना ,उसकी बदलती आदतों से सब परेशान हो गए | प्रिया के छोटे भाई ने बोला, मै तेरी शादी में सबसे ज्यादा पैसा खर्च करूंगा |तुमको सबसे महंगा सामान मै ही दूंगा |अब मैं घर में  सबसे बड़े भाई की जगह लूंगा |

प्रिया ने बोला ये “अहंकार का ताज अपने सर से उतरो भाई फिर से छोटे बन जाओ “| अहंकार किसी को बड़ा नहीं बनने देता ,बल्कि अपने नजरों में भी  छोटा बना देता है |

पैसा खर्च करो ना करो ,सबका सम्मान तो करो ,गलत रास्ते 

पे मत जाओ | हमको अपनी शादी में तुमसे यही चाहिए |

रंजीता पाण्डेय

 

*सोच का फर्क* – पुष्पा जोशी   

शहर से आकर श्याम ने कहा -‘राधा मैं अभी तो राजू को छोटे के यहाँ छोड़ आया हूँ, मगर दो दिन बाद उसकी व्यवस्था किसी होस्टल में करके आ जाऊँगा।’ ‘होस्टल की क्या जरूरत है जब देवर जी का फ्लेट है ।और अब तो रानू भी है उनके साथ। घर का खाना मिलेगा और चिंटी- मिट्टी के साथ उसका मन भी लग जाएगा।’ ‘छोटे का कहना है फ्लेट छोटा है, राजू के रहने से चिंटी -मिंटी की पढ़ाई में अड़चन होगी।’ ‘देवर जी वे दिन भूल गए जब वे पढ़ाई करते थे और मैं सीलन वाले चौके में बोरे बिछाकर उस पर अपना बिस्तर बिछाकर सोती थी, मैंने तो कभी नहीं कहा मुझे अड़चन हो रही है।’ ‘सोच का फर्क है राधा तुमने छोटे की पढाई को अपना फर्ज माना और छोटे ने राजू की पढ़ाई को अड़चन। 

प्रेषक

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

अड़चन – रूचिका राय

ये बात बात पर जो तुम नाक भौं सिकोड़ती हो न,यही तुम्हारे तरक्की के मार्ग में सबसे बड़ी अड़चन है।

जब समीर ने यह बात कही तो सुधा नाराज हो गयी। बडे माँ-बाप की बेटी सुधा परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाल नही पाती थी।थोड़ी भी कमी पर शोर करना उसकी आदत थी।जिसके कारण वह कई मल्टीनेशनल कंपनियों से इस्तीफा दे चुकी थी।

एक बहुत ही अच्छी कंपनी को सिर्फ इसलिए छोड़ दी कि उसके एक स्टाफ ने उससे अच्छे से बात नही की।

समीर उसका दोस्त उसकी आदत से परेशान था और जान गया था सुधा के तरक्की के मार्ग की अड़चन उसका स्वभाव ही है।

रूचिका राय

सीवान बिहार

अड़चन – डाॅक्टर संजु झा

कलेक्टर रजत अपने इलाके का दौरा करके आएँ हैं, तबसे खोए-खोए से हैं।पत्नी सरोज ने पूछा -” रजत!तबीयत ठीक  नहीं है?”

रजत ने जबाव देते हुए कहा -“सरोज!तबीयत तो ठीक है,परन्तु आज की घटना ने मुझे अतीत में ले जाकर पटक दिया।”

सरोज ने पूछा -” रजत!वो कैसे?”

रजत-“सरोज !जब मेरे पिताजी की सड़क दुर्घटना में मौत हुई थी,उस समय जैसे मैं माँ के साथ निराश-हताश होकर रो रहा था,वैसी ही दुर्घटना आज हो गई। मैं तो जिन्दगी में आई प्रत्येक अड़चनों को पार कर इस मकाम तक पहुंच गया हूँ,परन्तु आज के दुर्घटनाग्रस्त  परिवार का किशोर जिन्दगी की अड़चनों को पार कर पाएगा या नहीं!इसी सोच से परेशान हूँ।”

सरोज-“रजत!उस किशोर में अगर तुम्हारी तरह दृढ़ इच्छाशक्ति होगी,तो अवश्य सामने आईं अड़चनों को पार कर लेगा।”

पति-पत्नी एक साथ मुस्करा उठे।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा

अड़चने दूर हो गईं – विभा गुप्ता 

     फेरे पूरे होने के बाद पंडित जी वर-वधू से बोले,” अब आप दोनों अपने-अपने माता-पिता से आशीर्वाद लीजिये।” श्रुति और मानव आशीर्वाद लेने मानसी के पास आये।मानसी ने देखा कि सिंदूर से श्रुति का चेहरा कितना दमक रहा था।

       विवाह के आठ वर्ष बाद जब श्रुति उसकी गोद में आई थी, तब उसका साँवला रंग देखकर रिश्तेदार हमेशा कहते थें कि मानसी,तेरी बेटी के विवाह में बहुत अड़चने आएँगी।जब श्रुति स्कूल जाने लगी तब अक्सर ही उसके अध्यापक उसके साँवले रंग के कारण उसे पीछे बैठा देते थे।इन सभी बाधाओं को पार करके उसने कड़ी मेहनत से डाॅक्टरी पास की और अस्पताल में मरीजों की सेवा करने लगी।फिर एक दिन उसके सहकर्मी डाॅक्टर मानव ने आकर मानसी से श्रुति का हाथ माँग लिया और आज…।

   ” मानसी…बेटी-दामाद को आशीर्वाद नहीं दोगी।” पति के कहने उसकी तंद्रा टूटी।उसने दोनों को आशीर्वाद दिया और भीगी पलकों से बेटी को विदा किया।तब उसके पति बोले,” देखा मानसी, समय आने पर अपने आप सारी अड़चने दूर हो गईं।”

                           विभा गुप्ता

                       स्वरचित, बैंगलुरु 

# अड़चन 

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