बिगड़े हालात – मंजू ओमर
राघव की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी। उसका पीलिया बिगड़ गया था।और लोकल डाक्टरों के कंट्रोल से बाहर हो गया था। डाक्टर दिल्ली ले जाने की सलाह दे रहे थे ।हालत ठीक न होने पर दिल्ली ले जाना जरूरी था । लेकिन राघव के घर के हालात ऐसे नहीं थे कि दिल्ली ले जा सकें। फिर भी राघव के पिता गोपाल जी लोगों से कुछ पैसे उधार लेकर दिल्ली ले गए और बड़े अस्पताल में भर्ती कराया । लेकिन शायद आने में देर हो गई थी राघव को नहीं बचाया जा सका । लेकिन अस्पताल का बिल न जमा होने की वजह से डाक्टर राघव की बाॅडी नहीं दे रहे थे।इनकी परिस्थिति देखकर वहीं के किसी भले इंसान ने अस्पताल का बिल भर दिया जिससे गोपाल जी अपने बेटे की बाड़ी लेकर घर आए। कभी कभी हालात बड़े खराब बन जाते हैं ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
10 अक्टूबर
हालात – संध्या त्रिपाठी
माँ जल्दी से तैयार हो जा , अपन चलते हैं बाजार ..बाजार ,पर क्यों ..?अरे चल तो सही , पीछे बैठ अच्छे से बैठना , कुछ दिनों की बात है फिर मैं तुझे कार में शॉपिंग कराने लाऊंगा ! देख माँ , दुकान के अंदर जाकर ज्यादा ना नुकुर मत करना मनपसंद साड़ी लेना …अब हालात सुधर गए हैं तेरा बेटा कमाने जो लगा है ।
थैला पकड़े माँ के चेहरे की खुशी भरे भाव और घर पर इंतजार कर रहे पिता को ,कपड़े का थैला पकडाते हुए बेटे ने कहा… घर के हालात बदलने की असली वजह तो आप और माँ है पापा … जिनके त्याग से मैं कुछ बन पाया हूं..!
( स्वरचित) संध्या त्रिपाठी
अंबिकापुर, छत्तीसगढ़
बाबूजी। – कामनी गुप्ता
बुढ़ापे में शरीर की दुर्बलता और परेशानी ने मन को अशांत कर दिया था। पत्नी भी कब की परलोक सिधार गई थी। घर में भी सम्मान और अपनी अहमियत को न पाकर मन ही मन रोते…शयाम लाल आज परलोक सिधार गए थे। घर में रिश्तेदार इकट्ठे हो रहे थे और बच्चे खुद की तारीफों के पुल बांध कर सबको गर्व से सुना रहे थे…..हम दसवें पर एक बहुत बड़ा भंडारा रखेंगे, उनके नाम का दान करेंगे। आखिर वो बाबूजी थे हमारे, हमारा फर्ज़ है उनके लिए सब अच्छे से करना। नहीं तो बिरादरी में लोग क्या कहेंगे??
कामनी गुप्ता***
जम्मू!
हालात – संगीता अग्रवाल
यार क्या करूँ इस महंगाई ने तो हालात बहुत खराब कर दिये है ऊपर से काम कम हो गया है !” जीवन दुखी हो अपने मित्र रमेश से बोला।
” मित्र हालातों का रोना रोने से हल नही निकलेगा महंगाई बढ़ी है तो काम बढ़ा ।अपनी दुकान पर चाय , मट्ठी के साथ कॉफ़ी , कोल्ड ड्रिंक और बाकी सामान भी रखना शुरु कर शुरु मे पैसा और मेहनत लगेगी पर हालात जरूर बदलेंगे !” रमेश ने सुझाव दिया।
जीवन ने मित्र की बात मान थोड़ा पैसा लगा सामान खरीदा शुरु मे निराशा हाथ लगी पर धीरे धीरे हालात सच मे बदल गये ।
संगीता अग्रवाल
विश्वास – हेमलता गुप्ता
बहू.. तू रो क्यों रही है..? पापा जी.. जब से मैं इस घर में बहू बन कर आई हूं तब से हमारे व्यापार में घाटा ही घाटा हो रहा है और हमारे हालात खराब होते जा रहे हैं! नहीं बेटा.. ऐसी कोई बात नहीं है व्यापार में तो नफा नुकसान चलता ही रहता है किंतु ऐसी परिस्थितियों में हमें धैर्य और संयम से काम लेना चाहिए, अगर आज हालात खराब है तो कल अच्छे हालात भी होंगे और परिवार वालों के विश्वास के कारण कुछ समय बाद ही उनके हालात सुधरते चले गए!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
गागर में सागर (हालात)
हालात – रंजीता पाण्डेय
पापा हमको एप्पल का आईफोन ही चाहिए | मैं परीक्षा देने जा रही हु | दूर एक रिश्तेदार के घर गई | क्योंकि उनके घर से परीक्षा सेंटर पास था | उनका घर छोटा सा था | घर में कोई सुख सुविधा नही थी | मुझे बहुत गुस्सा आया मैंने गलती कर दी यहां आके | चलो जाने दो एक रात के तो बात है |
लेकिन कुछ समय में ही उन लोगो ने इतना प्यार , दिया की मैं सारी सुख सुविधा भुल गई |
मैने ये सोचा मेरे पास सब कुछ है फिर भी मैं खुश नही हु |
एक फोन के लिए काफी दिनों से मैने अपने परिवार वालों का जीना हराम कर रखा है |
और एक ये लोग है की इतना खुश |
हालात कैसे भी हो आदमी खुश रहना चाहे तो रह सकता है |
मैं अपने घर आ गई | पापा ने बोला चलो बेटा तुम्हारा फोन , मतलब एप्पल आई फोन ले आते है मैने मना कर दिया | बोला कुछ नही चाहिए, |
रंजीता पाण्डेय
*आशीर्वाद* – बालेश्वर गुप्ता
अरे कमबख्त, एक बार कम से कम बार मुझसे कहता तो सही,क्या पता मैं ही तेरी शादी करा देती।
माँ, परिस्थितियां ही ऐसी बनी,शालिनी के घरवाले उसकी शादी एक दम करने पर उतारू थे।पहले से ही योजना बनाई हुई थी,अपने कस्बे के बाहर के मंदिर में उन्होंने व्यवस्था करके रखी थी और आज ही शालिनी की शादी किसी विकलांग लड़के से करने वाले थे,वो तो माँ शालिनी को भनक लग गयी,उसने किसी प्रकार मुझे सूचित कर दिया,तब मैं उसे वहां से निकाल कर लाया और आगे कोई झंझट ही न रहे,हमने दूसरे मंदिर में शादी कर ली।बताओ माँ क्या मैंने गलत किया है?संघर्ष समाप्त नही हुआ है,पर माँ तू आशीर्वाद दे देगी तो हम सब हालात को भुगत लेंगे।
माँ ने सारी स्थिति को भांप शालिनी के साथ अपने बेटे के सिर पर हाथ रख दिया।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित
हालात – खुशी
मनोज एक मेहनती लड़का था और पढ़ा लिखा भी परंतु उसकी नौकरी अच्छी नहीं थी जितनी मेहनत करता पर उसका फल ना मिलता। वो चाहता था कि उसके हालात बदले और वो भी सुख चैन की जिंदगी जिए। उसके लिए उसके मां बाप रिश्ते देखते पर इतनी कम तनख़ाह में सब कैसे हो। फिर एक दिन दफ्तर में मनोज के बॉस की बेटी आई और वो मनोज पर मर मिटी।वो मनोज से शादी करना चाहती थी इतना अमीर रिश्ता देख कर मां बाप ने भी हां कर दी उन्हे लगा उनके हालात बदल जाएंगे । चाट मंगनी पट बाह्य हो गया और मनोज को घर दामाद बना लिया गया और उसके मां बाप अकेले रह गए।शादी के बाद के सपने अधूरे रह गए हालात बातर हो गए मनोज को कोई इज्जत नहीं थी और उसके बूढ़े मां बाप वही तंगहाली की जिंदगी काट रहे थें और मनोज एक पिंजरे मे कैद पंछी की तरह हो गईं जिसकी आजादी छीन ली गईं थीं और सपने तोड़ दिए गए थे
अब क्या हो सकता था अमीरी के लालच में अपनी खुशियों की बलि चढ़ी थी।
दोस्तो जैसा है उसमे खुश रहे वरना अपने पंख गिरवी रखने पड़ जाते है
मेरी रचना पसंद आए तो बतायेगा
आपकी
खुशी
हालात – पारुल नेगी
रमा के पति सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहते थे। उनके घर में रमा पति जय और तीन बच्चे बेटियां देवी हेमा और बेटा सुख्खी थे। सुक्खी शारीरिक रूप से अक्षम बच्चा था। पति जय को बेटे से कोई सरोकार नहीं था। रमा ही बस उसका पालन पोषण करती थी। जय अपने गांव जो की उत्तराखंड में था वहां के लिए कुछ करना चाहते थे। लेकिन सुक्खी के चलते वो वहां जाकर बस नही पा रहे थे। समय का कुचक्र ऐसा चला की सुक्खी चल बसा ऐसे बच्चों की आयु ज्यादा नहीं होती। पति जय ने सुक्खी के जाने के बाद उत्तराखंड में ट्रांसफर ले लिया। लेकिन दो साल के भीतर जय भी अपने गांव की शादी में जो गए तो वापिस नही लौटे। शादी के दौरान ही कार्डियक अरेस्ट से उनका निधन हो गया। रमा और दोनो मासूम बच्चियों पर तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। रमा के भाई भाभी बहुत अच्छे थे। वो उन तीनों को वापिस अपने पास दिल्ली ले आए। दोनो बच्चियों का एडमिशन पास के ही सरकारी स्कूल में करवा दिया। रमा ज्यादा पढ़ी लिखी तो नहीं थी। लेकिन पहले भी नौकरी कर चुकी थी। इसलिए एलआईसी बिल्डिंग में लेडी सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर के अपना और अपनी दोनों बेटियों का भरण पोषण कर रही थी। बेटियां भी 12वीं कर के नौकरी के साथ साथ अपनी ग्रेजुएशन भी कर के अपनी मां का साथ दे रही थीं बाकी रमा के भाई भाभी स्तंभ की तरह हमेशा उनके साथ खड़े रहे। देखते ही देखते दोनो बेटियों की शादी हो गई । और रमा अपने फर्ज से भी मुक्त हो गई।
हालात चाहे कैसे भी हों समय उनसे लड़ना सीखा ही देता है।
पारुल नेगी
खाने पर बुलाया है – मंजू ओमर
सुनो अभय आज तुम्हारी भाभी का फोन आया था शाम को खाने पर बुलाया है । तुमने मना नहीं किया नेहा अभय बोला , भाभी हमारा कितना अपमान करती है खाने पर बुलाकर ।सब पुरानी चीजें और पहले की बचीं खुची चीजों को रख देती है खाने को ।और खुद भाई साहब और भाभी खाते नहीं है कहते हैं हम लोगों का तो पेट भरा है तुम लोग खाओ ।यही बात तो मैं कितनी बार बताने की कोशिश कर चुकी हूं तुमको अभय कि हम लोगों के पास इतना पैसा नहीं है और तुम्हारे भाई भाभी के पास है तो चाहे जैसा भी हो हम लोग खा लेंगे नहीं । हां ठीक कहती हो नेहा मैं अभी भाभी को फोन करता हूं कि हम लोग नहीं आ पाएंगे ।आप किसी और को वो खाना खिला दें ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
5 अक्टूबर