Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

भरोसा – अमिता कुचया

रेवती हमेशा सेवा करती पर उसकी सास सावित्रीजी अपनी अलमारी की चाबी हमेशा अपनी तकिया के नीचे रखती। पर जब अस्पताल थी, तो बेटी को फोन कर बताती है कि भंडरिया के आखिरी डिब्बे में अलमारी की चाबी है, क्योंकि बाबूजी घर में वो पैसे लेने गये है। तभी बेटा वही दरवाजे के पास सुनता है तब कहता- माँ हम दोनों पर भरोसा ही नहीं है। जो उन्हें फोन पर बता रही हो जबकि हम यही है, हमें मत दो बस तुम ठीक हो जाओ। तब इतना सुनते सावित्री जी कुछ बोल न पाती।फिर उनके लौटने पर बेटा कहता-मां जब भरोसा ही नहीं है, तो हम यही रहकर सेवा क्यों करे। अब दीदी से कहे वो यही रहे। और सेवा करे। इस तरह बेटा बहू दोनों एहसास कराते है कि सावित्री जी जो कर रही है। वो गलत है। 

स्वरचित रचना

अमिता कुचया

एक भरोसो एक बल – लतिका श्रीवास्तव 

कुरु राजसभा का विशाल सभागार …सकते में था। कुलवधू द्रोपदी का वस्त्रहरण दुष्ट दु:शासन के अट्टहास के साथ जारी था।एकवस्त्रा पांचाली अपनी लज्जा की रक्षा हेतु एक हाथ से अपने वस्त्र संभालती पहले तो कुरु पाण्डु धुरंधरों पर गर्जन करती रही.. भर्त्सना करती रही ….फिर भीत कबूतरी की भांति बारी बारी से पिता सदृश भीष्म, गुरु द्रोण ,महा ज्ञानी विदुर ,कुरुराज और अपने महा वीर पांच पतियों को पुकारती रही भरोसा दृढ़ था इनके रहते कोई मुझे गंदे हाथ नहीं लगा सकता लेकिन …सब नत नयन….!! दु:शासन का अट्टहास और हाथों की गति तीव्र हो गई… मूक बधिर सभा …. अंततः विकल द्रोपदी सबसे उम्मीद त्याग दोनों हाथ उठा पूरे भरोसे और बल के साथ कृष्ण को पुकार उठी… कृष्ण आ गए… बहुमूल्य वस्त्रों का अनवरत अंबार बढ़ने लगा …दु:शासन के हाथ शिथिल होने लगे …द्रोपदी की बंद आंखों से अश्रुधार बह चली..!!

राजसभा अब भी सकते में थी..और …दु:शासन भी। 

लतिका श्रीवास्तव 

भाई पर भरोसा –  मंजू ओमर

अब ये पूरी दुकान मेरी है तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं है इसमें जब नरेश के बड़े भाई ने बोला। पिताजी ने ये कहकर दुकान तुम्हें सौपी थी कि ये दोनों भाइयों का है। मैंने तो तुमपर भरोसा करके भाई पिताजी की दी हुई ज़ुबान पर कायम रहा। कुछ लिखा पढ़ी में नहीं लिया ।और तुमने भइया मेरे साथ इतना बड़ा धोखा किया । पिताजी के जाने के बाद तो आप ही बड़े थे मेरे लिए पिता समान पर, आपने तो मेरे भरोसे को तोड दिया । मुझे धोखा दिया ये ठीक नहीं किया भाई आपने।

     मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

29 सितम्बर 

 

एक पिता का भरोसा – शिव कुमारी शुक्ला 

पिता को अपने बेटे पर बहुत भरोसा था। सबसे कहते मेरा बेटा कितना होनहार है पढाई में अव्वल आता है मेरा नाम रोशन करेगा। मेरे लिए वह क्षण कितना रोमांचित होगा मैं अपने बेटे के नाम से जाना जाऊँगा ।

उनके मिलने वाले उनकी यह बात सुनकर उनके  भाग्य को सराहते।

 एक दिन वे बाजार गये तो उन्होंने देखा कि  उनका बेटा अपने दो-चार लफंगे दोस्तों के साथ खड़ा सिगरेट के धुंए के छल्ले उडा रहा था और  हाथ में थी अधभरी बोतल।

एक क्षण को वे अवाक  रह गए।छन्न से

उनके दिल में कुछ टूटा ऐसा लगा जैसे अभी उनकी सांस रुक जाएगी।

जिस बेटे पर इतना भरोसा था वह ऐसे  टूटेगा उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था। सोच रहे थे टूटे भरोसे को लेकर क्या मुँह दिखाऊंगा  सबको।

शिव कुमारी शुक्ला

स्व रचित 

29-9-24

भरोसा*****गागर में सागर

भरोसा – मनीषा सिंह

“आज प्री बोर्ड की घोषणा हो गई “।

 “अंबिका और उसके “पिता मुकेश जी” दोनों अंबिका का रिजल्ट लाने स्कूल गए– जब वे वापस लौटे तो— काफी नाराज थे– वजह– परीक्षा में खराब परिणाम” था।  अंबिका पढ़ाई में  अच्छी है तो प्रतिशत जरूर बढ़िया लाएगी ऐसा उनका मानना था परंतु– ‘उनका भरोसा टूट गया ‘।  

“पापा एक आखरी मौका मुझे और दें— इस बार मैं 90 प्रतिशत से ऊपर लाकर दिखाऊंगी–!

 बेटी के बोलने पर  मुकेश जी को उसके बातों पर यकीन हो चला ।

 इस बार के बोर्ड परिणाम में अंबिका और 94 प्रतिशत से उत्तीर्ण होकर माता-पिता के “भरोसे” को जीत लिया– ।

धन्यवाद 

मनीषा सिंह

भरोसा – पुष्पा पाण्डेय 

स्वर्ण व्यापारी दिनेशजी ने आज ड्राइवर को दूकान का कानूनन हिस्सेदार बना दिया।सुनकर सभी आश्चर्य कर रहे थे। यहाँ तक की बेटा भी बोला-

” पापा, आप ड्राइवर को अपना पार्टनर बनाए?”

” हाँ बेटा, उससे अधिक किसी पर भरोसा नहीं कर सकता हूँ।”

“क्या?”

“हाँ, दो महीने पहले तुम्हारे दुर्घटना की खबर सुनकर मैं सबकुछ यहाँ तक कि घबराहट में तिजोरी भी खुली छोड़ चला गया था। एक महीने बाद आया तो सबकुछ बैसे ही सुरक्षित था और साथ ही एक महीना का प्रॉफिट और बिक्री का हिसाब भी।”

” पर पापा…..”

बात बीच में ही रोककर बोले-

” मेरे बाद मुझसे बेहतर चलायेगा।”

स्वरचित

पुष्पा पाण्डेय 

राँची,झारखंड।

 

 भरोसा – रेखा सक्सेना

भरोसा एक परिवार की नींव है, जहाँ रिश्तों की बुनियाद आपसी विश्वास पर टिकी होती है। सृष्टि और सुयश दोनों कामकाजी हैं, लेकिन बच्चों की परवरिश में बराबरी से साथ देते हैं। एक दिन सृष्टि को ऑफिस के काम से दूसरे शहर जाना था। उस दिन बच्चे को तेज बुखार था ,सुयश ने भरोसा दिलाया कि वह बच्चे का ध्यान रखेगा। सृष्टि ने सुयश पर भरोसा किया।आपसी विश्वास ने उनके रिश्ते को मजबूत बनाया। जब भी कोई मुश्किल आई, वे एक-दूसरे पर भरोसा करके समाधान निकालते रहे। परिवार में भरोसा ही रिश्तों को संतुलित और सफल बनाता है

रेखा सक्सेना

 भरोसा – सुभद्रा प्रसाद

   ”  आरती, तुम अपने सास- ससुर के इतने नखरे क्यों सहती हो?  अब तो रोहित स्कूल जाने लगा है | इन्हें गाँव भेज दो और एक आया रख लो , जो तुम्हारे मुन्ने के स्कूल से आने के बाद उसकी देखभाल करे | ”  उसके घर आई बड़ी बहन भारती बोली |

          “दीदी, मेरे सास- ससुर बहुत अच्छे   हैं | मुझे उनपर पूरा भरोसा है |हम दोनों तो  अपने काम से दिनभर बाहर रहते हैं | वे लोग मेरे मुन्ने की जितनी देखभाल करते हैं ,आया उतना क्या करेगी ? ” आरती हंसते हुए आगे बोली -” उनकी उचित देखभाल और परवरिश का ही तो नतीजा है, जो आदित्य, मेरे पति इतने अच्छे है ं | मैं चाहती हूँ कि रोहित भी इतना  ही अच्छा इंसान बने | यह काम तो उसके दादा-दादी ही बेहतर कर सकते हैं|” 

     बाहर बैठे सास- ससुर ने इसे सुना | उन्हें बेहद खुशी और अपनी बहू पर गर्व हुआ |

# भरोसा

स्वलिखित और अप्रकाशित

सुभद्रा प्रसाद

पलामू, झारखंड|

 

टूटने पर फिर जुड़ता नहीं –   विभा गुप्ता

        ” भईया…पिछली बातों पर मिट्टी डाल दीजिये।हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि अब हम पूरी ईमानदारी से काम करेंगे..हम पर भरोसा कीजिए…।अनिल ने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए बड़े भाई माणिक से कहा तो वो गुस्से-से चीख पड़े,” तुम पर विश्वास करूँ…चार साल पहले भी तुम इसी तरह काम माँगने के लिये गिड़गिड़ाये थे…किशन चाचा के बेटे हो, यही सोचकर मैंने तुम्हें फ़ैक्ट्री में काम दिलवाया था लेकिन दो महीने में ही तुमने अपने रंग दिखाने शुरु कर दिये थे।माल की घपलेबाजी..रुपयों की हेराफेरी की तुमने और मुझपर इल्ज़ाम लगाकर खुद चंपत हो गये।तुम्हारी वजह से मुझे पुलिस- अदालत के चक्कर लगाने पड़े..मेरी पत्नी-बच्चों को कितनी परेशानी उठानी पड़ी..।भरोसा एक बार टूट जाये तो फिर कभी नहीं जुड़ता, समझे।अब तुम निकलो यहाँ से..।” कहते हुए माणिक ने उसे धक्का देकर बाहर कर दिया और अपने घर का दरवाज़ा बंद कर लिया। 

      अनिल अपना-सा मुँह लेकर वापस लौट गया।

                                  विभा गुप्ता

# भरोसा                  स्वरचित, बैंगलुरु 

भरोसा – के कामेश्वरी

राखी फिर घर की खोज में निकल गई । उसे स्कूल के पास ही घर मिल गया था लेकिन मालिक ने पहले ही बता दिया था कि देर रात को घर आना और हँगामा करना यह हमें पसंद नहीं है आप हमारे बच्चों की टीचर हैं। हम आप पर भरोसा करके घर किराए पर दे रहे हैं उस भरोसे को नहीं तोडना।

पति के पीने की आदत के कारण उसे लोगों से बातें सुननी पड़ती हैं और हर दो महीने में घर बदलना पड़ता है। वह उस दिन को कोसती है जब माता-पिता की बात मानकर इससे शादी की थी ।

के कामेश्वरी

error: Content is Copyright protected !!