तोहफा – डा. मधु आंधीवाल

 रमेश जी बहुत दिनों से देख रहे थे रोनित की भाग दौड़ को । मंजुला ने बहुत जल्दी रमेश जी का साथ छोड़ दिया । रोनित की जिम्मेदारी सौंप कर । रमेश जी बहुत धनाढ्य परिवार के थे । पिता का बहुत बड़ा व्यापार । रमेश जी चार भाई थे तीन भाई छोटे थे । रमेश जी का मन व्यापार में नहीं लगता था  इसलिये उन्होंने पढ़ाई पूरी करके बैंक में नौकरी कर ली । जब उनके पिता की मृत्यु हुई तब तीनों भाईयों ने व्यापार पर कब्जा कर लिया और वसीयत बदलवा कर मकान फैक्ट्री सब अपने नाम करा ली ।

        मंजुला को इससे बहुत सदमा लगा । रमेश जी उसे बहुत समझाते पर वह कहती मैं आपके भाईयों से हिस्सा नहीं मांग रही पर कम से कम मेरे मायेके से मिला रु सोना तो मुझे देदें क्योंकि वह तो मैने मांजी बाबूजी के पास इसलिये रखा था कि हम बाहर सर्विस पर घूमते रहते हैं पर तीनों ने बिलकुल मना कर दिया । रोनित अब बड़ा हो रहा था । चाचा भी कभी रोनित से बात करते तब हमेशा उसे नीचा दिखाते ‌। वह बहुत दुखी होता । तीनों चाचाओं का ये छल कपट वाला कार्य उसके लिये चुनौती बन गया । मां के गम को  और पापा का दुख इन दोनों को ही भुला पाना मुश्किल था ।




बस एक प्रण था कि कैसे भी एम बी ए करले । जब एम बी ए का रिजल्ट आया तब वह रमेश जी से बोला बस पापा मुझे दो साल और चाहिये क्योंकि उसके बाद आपका रिटायर मैन्ट है। उसका सलेक्शन एक अच्छी कम्पनी में होगया । मेहनती तो वह बहुत था  । आज जब वह सुबह तैयार हुआ तो बोला पापा आप तैयार हो जाइये कहीं चलना है। रमेश जी भी रिटायर होने के बाद अपने को अकेला महसूस करते थे क्योंकि रोनित तो सुबह का निकला रात में आता था ।

जब वह गाड़ी से उतरे तब वहाँ कुछ प्रोग्राम सा लगा अच्छी गहमा गहमी थी । रोनित को देखते ही सब खड़े हो गये । रोनित ने रमेश जी को लाकर एक छोटी सी फैक्टरी के सामने खड़ा कर दिया और बोला पापा चाबी लीजिये और पूजा कर के प्रवेश कीजिये । रमेश जी  रोनित की तरफ डबडबाई आंखो से देखने लगे । रोनित ने कहा पापा मेरा एक ही लक्ष्य था आपको फैक्ट्री देना क्योंकि चाचाओं ने तो आपको बेदखल कर दिया था । रमेश जी ने रोनित को गले लगा लिया और बोले बेटा आज मेरा सिर गर्व से ऊंचा हो गया । तुम तो मेरा अभिमान हो । आज तुम्हारी मां मंजुला बहुत खुश होगी अपने बच्चे के तोहफे पर क्योंकि बहुत जल्दी गम में मेरा साथ छोड़ गयी ।

स्व रचित

डा. मधु आंधीवाल

अलीगढ़

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