तिरस्कार कब तक – कुमुद मोहन : Moral Stories in Hindi

“लो आ गई मनहूस! नीमा की सौतेली मां शीला आँखे तरेर कर बोली!उनके पास बैठी सौतेली बहन सीमा दुपट्टे से मुंह ढांपकर खी खी कर हंसी उड़ाती बोली” भगवान जाने आज खाना नसीब होगा या नहीं,मनहूस की शक्ल जो देख ली”!

नीमा के घर में घुसते ही मां बेटी जहरीले व्यंग बाणों से नीमा का दिल छलनी कर देती!

घर के नफरत भरे माहौल में उसका दम घुटता!

रही सही कसर नीमा के निर्दयी पिता मनोज जी पूरी कर देते!

घर में घुसते ही अगर उनकी नजरों के सामने नीमा आ जाती तो उनका पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचता आँखे निकाल कर गुर्रा कर गुस्से में तमतमाऐ हुए कहते”सीमा की अम्मा!कितनी बार कहा है मैं घर आऊं तो इस मनहूस का चेहरा मेरे सामने नहीं आना चाहिए,इसे देखते ही मेरा खून खौल उठता है!

मेरा वारिस खा गई,मेरी नीता को छीन लिया!अब जाने किस किस की जान लेगी”! 

शीला के तन-बदन में नीता (महेश की पहली पत्नि और नीता की मां)का नाम सुनते ही जैसे आग के शोले भड़क उठते!

मुझे प्रेम के साथ सम्मान भी चाहिए –  निधि शर्मा 

शीला नीता की छोटी बहन थी!

 डिलीवरी के दौरान वह मनोज जी के घर नीता की देखभाल के लिए आई थी!डाक्टर ने नीता को जुड़वां बच्चे होंगे बताया था!

मनोज नीता से बहुत प्यार करते थे और वे दोनों जुड़वां बच्चों को लेकर बहुत उत्साहित थे!

मनोज जी की आशाओं पर तुषाराघात तब हुआ जब नीमा के पैदा होने के एकदम बाद ही दूसरे बच्चे के पैदा होने में मुश्किल आई और वह अजन्मा बच्चा जाते जाते अपनी मां को भी साथ ले गया!

मनोज की तो जैसे दुनिया ही लुट गई! एक तो जान से प्यारी बीवी के जाने का दुख ऊपर से वंश के भविष्य बेटे का दुनिया में आने से पहले चले जाना!

डिलीवरी के बाद जब डाक्टर ने मनोज जी के हाथों एक नन्ही सी जान के रूप में नीमा को थमाने की कोशिश की तो नफरत से मुंह सिकोड़कर वे डाक्टर से बोले “यह डायन है ,हत्यारी है इसने मेरी दुनिया उजाड़ कर रख दी है!मैं इसकी शक्ल भी देखना नहीं चाहता!आप इसे किसी को दे दें या कूड़े के ढेर पर फेंक दें!मेरे घर में इस मनहूस की कोई जगह नहीं”कहकर वे चले गए! 

तब नीमा की दादी ने उसे अपने आंचल में छुपा लिया!उस दिन से वही नीमा की मां भी थी और पिता भी!

मनोज जी जवान थे उनके सामने पूरी जिन्दगी पड़ी थी नीता के मां-बाप ने शीला से ही उनके फेरे फिरवा दिये!

दादी बहुत सुलझी हुई महिला थीं उन्होनें दुनिया देखी थी!

वे ही घर की मालकिन थीं!

“इज्जत इंसान की नहीं पैसे की होती है” – अनु अग्रवाल : Short Moral Story for Adults in Hindi

घर उनके पति ने बनवाया था!

मनोज जो नीता से जान से भी ज्यादा प्यार करता था नीता को भुला नहीं पाया!

नीमा की मौसी एकाएक उसकी सौतेली मां बन गई! 

नीमा को लेकर उसका रवैया बहुत खराब होता चला गया!

जब देखो वह मनोज को नीमा के खिलाफ भड़काया करती!मनोज को तो पहले ही नीमा फूटी आंख नहीं सुहाती थी!शीला की लगाई बुझाई और आग में घी का काम करती!

रोज रोज की चिक-चिक से तंग आकर दादी कोशिश करती कि नीमा का सामना मनोज और सौतेली मां बहन से कम से कम हो!

उन तीनों के द्वारा रोज-रोज नीमा को तिरस्कृत होते देखना दादी के लिए बहुत कष्टदायक होता!

दादी डरती थी घरवालों के ऐसे दुर्व्यवहार की वजह से कहीं नीमा हीन भावना से ग्रसित ना हो जाए! 

शहर के मिशनरी स्कूल की प्रिंसिपल दादी की दोस्त थी

नीमा छः साल की हुई तो दादी ने प्रिंसिपल से बात करके नीमा को होस्टल भेजने का निर्णय लिया!

उससे पहले उन्होंने मनोज से राय लेना चाही!इसपर मनोज ने भड़क कर जवाब दिया”मेरी बला से इसे किसी भाड़ चूल्हे में ढकेलो या जहन्नुम भेजो!ये मेरे लिए उस दिन ही मर गई थी जब इसने मेरी दुनिया उजाड़ी थी!”नीमा का बालमन पिता के ऐसे शब्दों से सहम कर छलनी छलनी हो जाता!

उस दिन उसने ठान लिया कि वह उन लोगों को न अपनी शक्ल दिखाएगी ना ही उनकी शक्ल देखेगी!

“मन का मैल धुल गया” – आरती श्रीवास्तव

नीमा होस्टल चली गई और मन लगाकर पढ़ाई करती रही!शुरू से अकेली रहती आई थी इसलिए किसी से बहुत ज्यादा दोस्ती भी नहीं कर पाई! अपना पूरा ध्यान पढने में लगाने की वजह से कक्षा में हमेशा अव्वल आती!

दादी ही उससे हर हफ्ते मिलने आती और उसे बाहर घुमाने ले जाती!घर और अपने क्या होते हैं नीमा ने कभी जाना ही नहीं!

धीरे धीरे नीमा बड़ी हुई! बारहवीं के बाद मेडिकल में उसका सेलेक्शन हो गया!

अपने प्रोफेशन के प्रति नीमा समर्पित होकर बड़ी लगन से काम करती!सब लोग उसके सौम्य व्यवहार की तारीफ करते नहीं अघाते!

नीमा का बचपन विदा ले चुका था उसकी ज़िन्दगी में धीरे धीरे यौवन दस्तक दे रहा था!ऐसे में स्वाभाविक था विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण! 

नमन और नीमा भी इससे अछूते नहीं रहे !एक दूजे के साथ पढ़ते पढ़ते काम करते कब आपस में प्यार करने लगे उन्हें पता ही नहीं चला!

नीमा ने सबसे पहले यह बात दादी को बताई,उनसे नमन को मिलवाया! नमन से बात करके आश्वस्त होकर दादी ने नमन के माता पिता से मिलकर बात आगे बढ़ाने का सोचा!

उधर शीला और उसकी बेटी सीमा अलग ही खिचड़ी पका रहीं थी!शीला चाहती थी किसी तरह मनोज दादी को बहला फुसलाकर घर अपने नाम करा ले!ऐसे ही एक दिन मनोज ने सुन लिया वे मांबेटी आपस में बातें कर रही थीं!शीला बोली”ये मनहूस बुढ़िया मरने से पहले कहीं सारी जायदाद और माल मता उस चुड़ैल नीमा के नाम ना कर दे!

और ये मनोज जो आज भी नीता के गम में मजनू बना घूमता है अपनी बेवकूफियों से हमें सड़क पर ही ना खड़ा कर दे!

लगता है उसकी ड्रग्स की डोज और बढ़ानी पड़ेगी !वो क्या सोचता है मैने प्यार में पड़कर उससे ब्याह किया!अरे मेरी नज़र तो शुरू से उसके पैसे पर थी!पैसा ना मिला तो क्या अचार डालूंगी इस मजनू का

!हां मम्मी! अच्छा हुआ जो नीमा इस घर से दफा हो गई मेरा तो कलेजा जला करता था उसकी शक्ल देख कर! “सीमा ने भी छौंक लगाया!

भगवान की लाठी में आवाज़ नहीं होती- अर्चना कोहली “अर्चि

दोनों के वार्तालाप सुनकर मनोज के पैरों तले से जैसे जमीन सरक गई! 

वह गुस्से में आकर मोटरसाइकिल पर बैठकर तेजी से बाहर निकल गया!

कुछ दूर जाते ही एक तेज रफ़्तार ट्रक ने उसे जोर की टक्कर मारी!आसपास के लोगों ने उसे हस्पताल पहुंचाया! 

मनोज बुरी तरह से घायल था!

खबर सुनकर दादी,नीमा और नमन भी पहुंच गए! नीमा के चेहरे पर मास्क लगा था इसलिए किसी ने उसे पहचाना नहीं!

मनोज की दोनों टांगे बुरी तरह कुचल गई थी!

नमन और नीमा ने सबसे बड़े डाक्टरों से मिलकर जल्दी से जल्दी ट्रीटमेंट शुरु करा दिया!

नमन और नीमा के कारण हस्पताल के सभी लोग मनोज का बहुत ख्याल रख रहे थे!

आपरेशन के बाद भी मनोज को हस्पताल में रखा गया!

शीला और सीमा तो औपचारिकता पूरी कर फेरा लगाकर चली जाती!

कुछ ठीक होने पर एक दिन मनोज ने नीमा के राउंड पर आने पर उसके कोट पर उसके नाम का बैज देखा तो वार्डबाॅय 

से पूछा उसने बताया ये बूढ़ी मां जो आपको देखने आती हैं उनकी पोती हैं!उनकी वजह से ही तो आपकी इतनी देखभाल हो रही है!

मनोज की आँखों से आँसू थम नहीं रहे थे उनका मन उन्हें बार-बार धिक्कार रहा था!उनका मन कर रहा था पृथ्वी फट जाए और वो उसमें समा जाएं!

वह सोच भी नहीं सकता था जिस मासूम को उसने पैदा होने से लेकर आजतक तिरस्कार के सिवा कुछ नहीं दिया आज वही जी जान से उसकी सेवा में लगी है!

जैसे ही नीमा ने मनोज जी की नब्ज देखने को कलाई पकड़ी उन्होनें उसका हाथ पकड़कर रो रोकर कहा”बेटा!मुझे माफ कर दे! एक बार ये मास्क उतार कर अपना चेहरा दिखा दे,मैं नमन के साथ तेरा ब्याह कर तेरा कन्यादान करना चाहता हूं!अपने घर चल”

बेवफा – पृथ्वीराज

नीमा ने धीरे से अपना हाथ छुड़ाकर कहा”बेटा नहीं मनहूस,डायन हत्यारी कहिये यही तीन शब्द तो आपके मुँह से बचपन से सुनती आई हूं!

मां को तो मैने देखा नहीं आपने बाप के होते हुए भी मुझे अनाथ कर दिया!मेरी मनःस्थिति कभी सोचने की कोशिश की!क्या गुजरती होगी उस छः साल की मासूम बच्ची पर जब उसका अपना खून, अपना बाप दूसरों के सामने अपनी ही बेटी का उठते बैठते तिरस्कार करे और लोगों के द्वारा तिरस्कृत करने पर भी चुप रहे!

आप मां से प्यार करते होते तो उसके अंश,उसकी आख़री निशानी को कूड़े में फेंकने की बजाए उसे सीने से लगाकर रखते।

मैने कसम खाई है अपनी मरी हुई मां की आपको अपनी शक्ल कभी नहीं दिखाऊंगी!

अब और तिरस्कृत होने की हिम्मत मुझमें नहीं है!

और कैसा घर,किसका घर?

मेरा कन्यादान तो आप उसी दिन कर चुके थे जब दादी को मुझे जहन्नुम भेजने को कहा था!

इन घड़ियाली आँसुओं का अब मुझ पर कोई असर नहीं होता!

वक्त और दादी ने मुझे बहुत कुछ सिखा दिया है!अब मैं वो नीमा नहीं रही जो हर शक्स की गालियां सुनकर दादी की गोद में मुंह छुपाती फिरती थी!

आप ठीक होकर घर जाईये और अपनी बीवी और बेटी के साथ खुश रहिये!

और इससे पहले कि नीमा की आंखों के समुन्दर में सैलाब आ जाए नमन नीमा को पकड़कर वहाँ से हटा ले गया!

आप बताइए क्या नीमा ने ठीक किया?प्रतिक्रिया अवश्य दें!

कुमुद मोहन 

स्वरचित-मौलिक

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