हमेशा की तरह आज भी अनु जी पेट्रोल पंप पर पहुँची। पहले अपने स्कूटी में पेट्रोल लिया फिर आगे बढ़ कर सोचा थोड़ी हवा ले लेना ठीक रहेगा।
वहां पर लगभग बारह तेरह साल का बच्चा हवा भरने का काम कर रहा था। उन्हें देखते ही वह दौड़कर उनके पास आया और बोला-” मैडम जी अपना स्कूटी आगे लाइये मैं हवा चेक कर के देख लेता हूं,लगता है कि बहुत कम हवा है ।”
“ऐ लड़का चल पहले मेरे बाइक का चेक कर फिर किसी और का करना।”
वहीं पर खड़ा एक भारी-भरकम आदमी जो अपने बुलेट पर बैठा था गरज कर बोला। बेचारा बच्चा सहम सा गया। वह अनु जी की तरफ देखा उन्होंने इशारे से पहले उसी की गाड़ी को देख लेने के लिए कहा । बच्चा उसके बाइक को चेक करने लगा।
अनु जी भी चुपचाप स्कूटी लेकर बगल में खड़ी हो गई।
हवा डालने के बाद बच्चे ने पैसा माँगा । वह आदमी अपने जेब से पांच रुपये निकाल कर देने लगा ।
“अंकल दस रुपये हुए। “
दस रुपये?
क्यूं रे, “पहले तो पांच ही थे ।”
“हाँ अंकल जी पांच ही था पर आज नहीं है आज दस दीजिये।”
“चुपचाप से रख ले ज्यादा दिमाग मत चला समझा।”
“नहीं नहीं अंकल आज दस ही देना होगा”
बच्चे का इतना कहना था कि उस आदमी ने गुस्से में आगे बढ़कर तड़ाक से एक तमाचा जड़ दिया। उसके इस बर्ताव को देख कर अनु जी भौचक्की सी उस हृदय हीन इंसान को देखती रह गई। अचानक के थप्पड़ से बच्चा एकदम से सहम गया। उस बच्चे के कोमल गालों पर पांचो उँगली के निशान उखड़ गये। दूसरा थप्पड़ मारने ही वाला था कि अनु जी बीच में जाकर खड़ी हो गई ।
“यह क्या कर रहे हैं आप?” क्यूं मारा आपने इस बच्चे को?”
वह आदमी उसे घूरते हुए बोला-” आप नहीं जानती मैडम, इस तरह के छोकरो का यही इलाज है। लतखोर होते हैं ये सब। जुमा -जुमा चार दिन हुआ नहीं यहां आए हुए और लगा हिसाब किताब करने ईमानचोर कहीं का ।”
क्या बोले जा रहे हैं आप…?
पैसा नहीं देना चाहते हैं तो मत दीजिये पर थप्पड़ मारना कहां से उचित है छोटे से बच्चे को !
बच्चा बेचारा अपने गाल पकड़े रो रहा था। अनु जी का उस आदमी के साथ बक -झक सुनकर आस पास के लोग जुटने लगे थे।
लगा बात बढ़ जाएगी सो अनु जी ने उस आदमी को हाथ जोड़ते हुए कहा-” प्लीज आप जाइए बिना मतलब यहां हंगामा हो जायेगा। मैं पैसे दे दूंगी।”
वह भी ढीठ की तरह गाड़ी स्टार्ट कर बच्चे को भला बूरा कहते हुए चलते बना।
अनु जी ने बच्चे के माथे को सहलाते हुए कहा-”
जाने दो बेटा दुष्ट आदमी था ,चलो आंसू पोछ लो बहादुर बच्चे रोते नहीं।”
तुम्हारा नाम क्या है बेटा?
“जी रीजवान “
बहुत अच्छा नाम है ।
अपने आप को संयमित करते हुए उन्होंने कहा-” चलो कोई बात नहीं ।मैं तुम्हें दस रुपये उसके हिस्से का और बीस रुपये अपने दोनों जोड़ कर दूंगी। ठीक है न!”
वह अपनी आंखों को पोछते हुए स्कूटी में हवा भरने लगा। अनु जी ने उसे अपने पर्स से चालीस रुपये निकाल कर देने लगी उन्होंने सोचा बच्चा है पैसा देखकर खुश हो जाएगा और बात नहीं बढ़ेगा।
“लो बेटा चालीस रुपये हैं।”
“नहीं मैडम जी आप मुझे बस पच्चीस ही दीजिये …।”
“पच्चीस क्यूं चालीस है रख लो।”
“नहीं नहीं बस पच्चीस।”
“क्यूँ ?”
“जी मुझे एक तिरंगा-झंडा लेना है बड़ा वाला ।दूकानदार ने पच्चीस रुपये में देने को कहा है।”
“माँ ने कहा था आते समय झंडा लेकर आना घर के ऊपर लगाना है सबको पता चलेगा कि अपना देश आजाद है।”
बच्चे की बातों को सुनकर अनु जी के रग-रग से देश प्रेम की धारा पिघलकर आंखों में उतरने लगी। उस बच्चे का तिरंगे से प्यार और उसके गालों पर पड़े निशान देख कर अनु जी के दिल से एक आवाज निकल आई…
“हे देश ! जब तक तेरी मिट्टी से रीजवान जैसे लाल पैदा होते रहेंगे तेरा तिरंगा आन ,बान और शान से दुनिया के क्षितिज पर लहराता रहेगा। तूझे दुआ लगे हर उस माँ का जिसके बच्चे तिरंगे की “कीमत” थप्पड़ खाकर भी चुकाएंगे।”
अनु जी उस बच्चे को मनाने में लगी थी और उन्हें पता ही नहीं था कि उन दोनों की बातों को सुनकर वहां इकठ्ठे खड़े लोगों की आंखों से “देशभक्ति” गंगा-जमुना की तरह झर झर बहती जा रही थी।
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर,बिहार