तिनके का सहारा : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

“ बेटा देखना जरा ये सामान मिलेगा क्या… अगर हो तो बाँध कर हमारी कार तक भिजवा सकते हो?” सुनंदा जी ने दुकान में खड़े एक लड़के से कहा

“ मुझे ये लिस्ट दे दीजिए और आप उधर बैठ जाइए ।” कहते हुए उस लड़के ने लिस्ट लेकर सुनंदा जी को एक जगह बैठने का इशारा कर दिया

सुनंदा जी उधर जाकर बैठ कर इधर उधर देख रही थी तभी एक तीस साल का आदमी आकर उनके पैरों की ओर झुक गया ।

“ अरे अरे तुम कौन हो … मैं तुम्हें नहीं पहचानती और तुम मेरे पैर क्यों छू रहे हो?” सुनंदा जी उस शख़्स से दूर छिटकते हुए बोली

“ आपने मुझे नहीं पहचाना मेमसाहेब…हाँ बहुत सालों बात देख रही है शायद इसलिए… मैं महेश… वो किशोरी जी के घर काम करता था और आप बाजू वाले घर में रहती थी.. याद आया?” महेश ने कहा

“अरे महेश तुम…यहाँ अचानक कैसे?” सुनंदा जी ने पूछा

“जी ये मेरी ही दुकान है ।”महेश ने कहा

“ वाह तुमने तो बहुत तरक़्क़ी कर ली … शाबाश ।” कहते हुए सुनंदा जी उसकी पीठ थपथपाई

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“ ये सब आपकी कृपा से हुआ मेमसाहेब …. आपके उस दिन के सहारे के सौ रुपये मेरे लिए तिनके का सहारा साबित हुए और आज मैं इस मुक़ाम पर पहुँच गया।” महेश ने कहा

सुनंदा जी थोड़ी देर बात करके उसे ढेरों आशीष दे …सामान लेकर चली गई …महेश पैसे लेने से मना कर रहा था पर सुनंदा जी ने एक ना सुनी।

महेश उनके जाने के बाद गद्दी पर बैठ कर अतीत में खो गया..

“ तुम एक काम ठीक से नहीं करते हो… जब देखो बड़े बड़े सपने देखते रहते हो…पिता मरते वक्त कह गया बेटे को नौकरी पर रख लेना पर इन जनाब से काम तो होता नहीं है…चले जाओ तुम यहाँ से अब तुम्हारे लिए इस घर में कोई जगह नहीं है ।” किशोरी जी गुर्राते हुए बीस साल के महेश से कह रहे थे

महेश गिरगिरा रहा था पर किशोरी जी उसकी एक सुनने को तैयार नहीं थे… वो उनकी कोठी से निकल कर बाहर बने चबूतरे पर बैठ कर रो रहा था तभी सुनंदा जी की नज़र उसपर पड़ी

“क्या हुआ महेश रो क्यों रहे हो?” सुनंदा जी ने पूछा

“ मेमसाहेब ,साहब ने मुझे नौकरी से निकाल दिया है…मेरा कोई भी नही है…मैं तो यही साहब के घर पर रहता था अब कहाँ जाऊँगा क्या करूँगा ये सोच कर रोना आ रहा है।” महेश ने रोते रोते कहा

“अच्छा अभी मेरे घर चलो देखते है क्या कर सकते हैं ।” कहते हुए सुनंदा जी उसे अपने घर ले गई उसे खाना खिलाया और पूछी ,” तुम क्या काम करना चाहते हो?”

“ कोई भी काम कर लूँगा मेमसाहेब…आपके घर में नौकर बन कर रह लूँगा ।” महेश रोते रोते बोला

“ नौकर की हमें ज़रूरत नहीं है महेश…वैसे अगले महीने हम यहाँ से जा रहे हैं वो साहब का तबादला हो गया है ना… तुम ये कुछ पैसे रखो और कोई काम देखो जब तक काम नहीं मिलता तुम इससे अपना खर्च चला सकते हो और जब तक हम यहाँ है तुम इधर रह सकते हो।” सुनंदा जी ने कहा

महेश उसमें से सौ रूपये लेकर बोला,” बस मेमसाहेब मेरे लिए यही बहुत है मैं इनसे ही कुछ ना कुछ कर लूँगा आपने इस बेसहारे को ये सहारा देकर बहुत उपकार किया है इसका एहसान मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूल सकता ।”

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महेश वो रूपये लेकर निकल गया … उस रूपये से उसने कुछ बिस्कुट ख़रीदे और गली गली में घूम घूम कर बेचने लगा …इसी तरह से कमाई होती गई और वो उससे फिर बिस्कुट लेकर गली गली घूमते हुए बेचता रहा…धीरे-धीरे पैसे जुड़ते गए और उसने एक दुकान ख़रीद लिया ।

सुनंदा जी ने भी कभी सपने में नहीं सोचा था कि उनके दिए सौ रूपये किसी डूबते के लिए तिनके का सहारा भी हो सकते जो अपने मेहनत के बल पर इस मुक़ाम पर भी पहुँच सकता है ।

नोट:~ कहानी आज के जमाने की नहीं है इसलिए आप लोग ये ना सोचे कि सौ रूपये में क्या ही हो सकता …पुरानी बात है और तब वो सौ रूपये भी बहुत होते थे।

धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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