चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु आचार्य चाणक्य ने अपने चाणक्य नीति के आठवें अध्याय में एक श्लोक लिखा है पहले आप उस श्लोक को पढ़ लीजिए।
वृद्धकाले मृता भार्या बन्धुहस्तगतं धनम् ।
भोजनं च पराधीनं तिस्रः पुंसां विडम्बनाः ॥
इस श्लोक के अनुसार आचार्य चाणक्य कहते हैं कि वो व्यक्ति अपने जीवन में सबसे ज्यादा दुखी होता है जिसकी पत्नी बुढ़ापे में ईश्वर को प्यारी हो जाती है यानी कि इस दुनिया से चली जाती है दोस्तों बुढ़ापे में पति-पत्नी ही एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं क्योंकि यह एक ऐसा समय होता है जब कोई भी आपसे बात करना नहीं चाहता है लेकिन पत्नी हमेशा आपके साथ रहती है अगर ऐसे समय में अपने प्राण त्याग दे तो उस आदमी से दुखी व्यक्ति इस दुनिया में कोई नहीं होता है।
अगर आप अपने किसी रिश्तेदार या करीबी मित्र को पैसा उधार दे देते हैं और अगर वह पैसा आपका वापस नहीं लौट आता है तो वह स्थिति भी बहुत दुखदाई होता है क्योंकि आप इस बात को किसी और से कह भी नहीं सकते और अंदर ही अंदर आप चिंता में भी लगे रहते हैं।
चाणक्य ने तीसरा दुख या बताया है अगर आप किसी के घर पर रहते हैं और आपका खाना पीना उसी के अनुसार होता है तो फिर आप जो भी भोजन आपको मिलता है आप कुछ कह भी नहीं सकते हैं और बिना स्वाद के भोजन आप जबरदस्ती खाते रहते हैं यदि एक तरफ से कहें तो आप गुलामी वाली जीवन जीते हैं।