बहू रानी,ये जो तुमने बालों को उठा कर सिर पर जूड़े जैसा ( कहना तो चाहा था घोंसले जैसा) बांध लिया है ना ये कुछ अच्छा नहीं लग रहा है मुझे… आज ही सारे नेगचार पूरे हुए हैं.. कोई आएगा तो क्या कहेगा?
सोनल ( मालती जी की बहू) की आज ही नदी पूजन, देवी पूजन और .. चौके की रस्म पूरी हुई है.. मालती जी ने सुबह से ही बहू को सुंदर सी साड़ी , ज़ेवर… भर भर हाथ चूड़ी पहना कर तैयार कर दिया था… हालांकि उन्होंने सभी खाना स्वयं तैयार कर दिया था,बहू से बस नेग के लिए हलवा सबको परोसने को कह दिया था.. मगर दिन भर की थकान तो हो ही जाती है.. बहुत काम ना भी हो तो भारी भरकम कपड़ों को संभालना कोई छोटा काम होता है?
इसीलिए मालती जी ने कह दिया कि जाओ अब कुछ हल्का फुल्का पहन लो।
जो रिश्तेदार लोकल थे वो अपने अपने घर जा चुके हैं। मालती जी अपनी ननद के साथ बाहर बरामदे में बैठी थी.. कि बुआ जी भीतर गई और सोनल को सूट पहने, ज़ेवर भी बिल्कुल कम , चूड़ियां भी एक दो ही….. और इन सबसे ऊपर,सारे बालों को ऊपर उठा कर ये क्लच कर रखा है
ये भी कोई बात हुई
अभी सुबह बहू का रुप था.. अब बिल्कुल ऐसे?
जिस पर पड़ोसन की दोनों बेटियां.. जो सोनल के आगे पीछे भाभी – भाभी कहते घूमती नहीं थक रही हैं.. और जिन्हें अपने घर जाने की कोई जल्दी ही नही है… उनके साथ इतनी ज़ोर ज़ोर से खिलखिला कर ना जाने किस बात पर हंस रही हैं।
अब कोई ऐसे में घर आ जाए तो क्या कहेगा?
और लो. आ ही गया
टेंट वाला अपने रजाई गद्दे जो ऊपर वाली मंजिल में रखे हैं, उठाने आ ही गया।
भीतर आ कर पहले तो बहू को( इस रुप में देख कर) चौंक गया
फिर सोनल ने ही कहा,बुआ जी आप बैठिए थक गई होंगी मैं ऊपर जा कर मिलान करके लौटा देती हूं
क्या करें?
परिवार छोटा है,अमन और पापा जी बाहर का काम समेटने में लगे हैं।
सब ऊपर से खिलखिलाते हुए नीचे उतर रहे हैं।
टेंट वाला अपना सामान समेट कर गाड़ी में रखवा रहा है
आन्टी जी,बहू बहुत बढ़िया स्वभाव की मिली है.. बहुत हंसमुख!… सुबह तक नई बहू बनकर बैठी थी.. अब कैसा भाग भाग कर सारी जिम्मेदारियां समझ रही है
??
बुआ जी मालती जी ने एक दूसरे को ऐसे देखा
मानों कहना चाह रही हों, क्या यह ठीक है?
बुआ जी और बड़ी दीदी ( अमिता, मालती जी की बेटी) कुछ दिनों के लिए रुक गए।
घर का माहौल बहुत शांत सा( बोझिल) रहता है। बुआ जी बोलती ज्यादा हैं और अमिता दीदी बिल्कुल कम ये तो सोनल के समझ में आ रहा था।
बुआ जी बहुत बार( कड़क तरीके से) सोनल को समझा भी चुकी.. घर की बहू हो कम बोलों.. सबसे ( इतनी जल्दी) घुलो- मिलो नही.. नई बहू पर गंभीरता शोभा देती है… मगर सोनल क्या करें?
वो तो हमेशा से ही ऐसी है.. खुशमिजाज, जिंदा दिल… खुलकर हंसना… अब नई बहू की तरह धीरे से मुस्कुराना( वो भी इंचीटेप से नाप कर. हल्के हल्के हंसना,हो सके तो मुंह पर हाथ रख कर ( खुलकर खी खी करके नहीं.. पूरी बत्तीसी दिखा कर तो बिल्कुल भी नहीं)… कोई हंसी की बात पर भी गंभीरता का मुखौटा ओढ़े रखना .. हौले हौले चल कर कमरे में जाना ( ऊपर की मंज़िल पर जहां उसका कमरा है) भागते हुए चढ़ जाना… और किसी के आवाज़ देने पर ( दनदनाते हुए) नीचे उतर आना…. बताओ भला?.. ये सब नई बहू के लक्षण हैं क्या?
कितना तो समझाया था, मम्मी ने थोड़ा बहुत मगर दादी और बुआ ने बहुत ही ज्यादा ( पट्टी पढ़ाने की) कोशिश की थी.. मगर.. एक तो एक्जाम सिर पर था
दूसरे क्या पता था सब ऐसा ही कुछ एक्सपेक्ट करेंगे
ध्यान से से सुनना चाहिए था क्या?
सब मुझे क्या समझा रहे थे?… अपरिचित माहौल में कैसे रहना होगा
अमिता दीदी को ही लो
वो तो कितना चुपचाप रहती हैं.. जल्दी किसी बात पर रिएक्शन ही नहीं देती.. किसी हंसी वाली बात पर वही गंम्भीरता चेहरे पर पसरी रहती है।धीरे धीरे बात करती हैं
वो भी नहीं के बराबर
जबकि अपने मायके में हैं तब
तब बताओ ,ससुराल में क्या करती होंगी?
उनके बेटे को मम्मी जी ही नहला कर तैयार कर देती हैं, अपने साथ सुला देती हैं.. कहती हैं दीदी को कम डिस्टर्ब करो.. कोई बात है क्या?.. कोई मुझे बताता क्यों नहीं?
एक दिन तो हद हो गई, अमिता दीदी के बेटे को चाॅकलेट खानी थी,सोनल बगल वाली दुकान से चाॅकलेट खरीद कर उसके साथ खुद भी खाते हुए घर में घुसी तो मम्मी जी एकदम चिल्ला उठी
क्या बचपना है,वो तो बच्चा है, तुम भी चाॅकलेट,टाफी खाओगी बच्चों की तरह.. अपने रंग ढंग बदलो बहू.. बहुत हो गया बचपना.. बहुत दिनों से देख रही हूं.. कुछ कहती नहीं हूं तो..
और भी बहुत कुछ बोली मम्मी जी… शायद आज फट पड़ी थीं
और बुआ जी भी जाते जाते कह गईं
बहू शांति से घर का काम करना सीखो… मतलब मैं घर में बहुत अशांति फैलाती हूं क्या??
अमिता दीदी को लेने जीजा जी आए हैं.. दीदी चली गई.. ना मुझसे ज्यादा बातें की ना घुली मिली. एक अनकही दूरी सी बनी रही।अब सोनल ने भी चुप्पी साध ली है.. अमित , पापा जी मम्मी जी सब चुपचाप रहते हैं।
जब इस घर का माहौल ही ऐसा है तो… क्या किया जा सकता है
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फटाफट गाड़ी में सामान रखो… जल्दी करो.. अमिता दीदी को अटैक पड़ा है…
कोई पूछने पर कुछ बता नहीं रहा है.. बस सोनल भी साथ में जा रही है सबके साथ।
पीछे वाली सीट पर मम्मी जी और सोनल बैठे हैं,सोनल ने मम्मी जी का हाथ अपने हाथ में लेकर कर कहा
घबराइए मत मम्मी जी सब ठीक हो जाएगा
मम्मी जी,सोनल के कंधे पर सिर रख कर बिलख उठी
कितना सह रही थी मेरी बच्ची.. इतना कड़क माहौल कि कुछ कहने को तरस गई. खुलकर जीना हंसना किसे कहती है कभी जान ही नहीं पाई.. किसी से जल्दी कहती नहीं थी कि क्योंकि हम लोग दामाद जी से सवाल पूछते थे तो वो और ताने देते थे कि मेरी हर जगह शिकायत करती फिरती हो
इसका नतीजा ऐसे आएगा.. सोचा नहीं था
अमिता दीदी के घर पहुंच कर हास्पिटल जाने पर डाक्टर ने भी कहा
बहुत गंभीर नर्वस ब्रेकडाउन था.. दिमाग में बातें नहीं रखनी चाहिए सबसे कहना चाहिए.. अब उसका ख्याल रखिए.. किसी किस्म का तनाव ना पालें ,हंसे बोले.. वरना उदासी भी बहुत बड़ा रोग बन जाता है..
जीजा जी भी सहमति में सिर हिला रहे थे, एक जिम्मेदार ( चिंतित भी) पति वाले एक्सप्रेशन तो आज दिखे ( वरना अभी तक तो खड़ूस की तरह मुंह उतारे रहते हैं अपना और दीदी का भी)
इतनी कड़वाहट घुली हुई थी दीदी की जिंदगी में??
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कुछ दिनों बाद अमिता दीदी को लेकर सब घर आ गए, मम्मी जी ने कहा वहां अच्छे से देखभाल हो जाएगी।
मम्मी जी ने सोनल को बुलाकर कहा
बेटा मैं तुम्हें ग़लत टोंकती थी.. खूब हंसो बोलो.. तुम्हारे अंदर के जिस बचपने को निकालने को उतारू थी वो मेरी बेटी के अंदर भी वापस ले आओ. अपने रंग ढंग बदलो बहू.. बहुत दिनों से देख रही हूं… कुछ कहती नहीं हूं तो..
क्या ऐसे रहोगी?उदासी गंभीरता अच्छी नहीं लगती. घर में खुशियां लौटा दो….
मम्मी जी की आंखों से आंसू छलक आए, डिप्रेशन का भयावह रूप वो देख रही थीं।
सोनल,ने मम्मी जी का हाथ पकड़ा, दीदी का हाल देख कर उसकी आंखों में भी आंसू थे… मगर मम्मी जी ने बोला है,अब रोना, मना है।
अमिता भरसक दीदी को खुश रखने की कोशिश कर रही है।
जो ग़लत लगता है उसे सहने के बजाय कहने से मन हल्का हो जाता है सहने से गांठ पड़ जाती है मन और दिमाग दोनों में ।
ये दीदी से भी बोला और जीजा जी से भी।
बातों की कड़वाहट मन में बसाए रखने से अच्छा है उसे …. उसे कह सुनकर.. हंस बोल कर .. दिमाग से निकाल दिया जाए
किसी से बातें करने से ही बहुत सी बातों/ समस्याओं का हल भी निकलता है!!
और क्या!
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आंगन में पानी भर गया है.. बहुत देर से बारिश हो रही है.. दोपहर में ज़रा नींद क्या लग गई
सारे कपड़े भीग रहे हैं
मम्मी, सोनल भाग कर बाहर आए.. धीरे धीरे अमिता दीदी भी बाहर आईं
वाओ
सोनल खुशी से बोली और अमिता दीदी का हाथ पकड़ कर जोर से पानी में कूदी
छपाक!!
मम्मी जी कहने वाली थी.. जल्दी कपड़े समेटो पहले
मगर सोनल के साथ बच्चों की तरह खिलखिलाती अमिता की आवाज सुनकर वहीं रुक गई।
कपड़े भीगे तो भीग जाने दो,… जो खुशियों की तरंग उठ रही है उसे रोकना नहीं है
सच कब से गुमसुम थी… आज बेलौस हंस रही हैं
मम्मी जी बाहर आईं तो
अब तीनों हाथ पकड़ कर पानी में भीग रहे थे, आंगन में खिलखिलाहट बारिश की तेज़ आवाज़ को भी मात कर रही थी!
इन छोटे छोटे पलों को जीना ही जिंदगी है!!
खुशियां किन्हीं बड़े पैकेज में इंपोर्ट नहीं की जाती।
अपनी बात कहो,वो छोटी हो या बड़ी,उन पर बात करो.. चाहे तो बहस करो.. मगर हल निकालने की कोशिश करो… मन में रख कर भारी बोझ मत बनाओ!
बेटी हो बहू.. मां हो या सासू मां सबके साथ मिल कर, हंसते हुए जीवन जीयो!
हमेशा गंभीरता नहीं
बल्कि थोड़े से बचपन को अपने अंदर( छुपकर कहीं) जिंदा रखो!!
पूर्णिमा सोनी
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#कड़वाहट, कहानी प्रतियोगिता, शीर्षक – थोड़ा सा बचा कर रखा है ये जो बचपन!