थपकी – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : चल मां अब  मेरे साथ रहना …. सबेरा होते ही ..सुधीर की जिद फिर से शुरू हो गई थी।

अरे नहीं तू जा बेटा मैं तो यहीं ठीक हूं सब सुविधा है यहां पर।

कौन सी सुविधा है यहां पर मां राघव की तो कोई कमाई भी नहीं है ऊपर से तीन बच्चे उनका खर्चा दिन रात खट्ता है फिर भी ढाक के वही तीन पात…. पढ़ाई लिखाई ढंग से किया होता तो आज ऐसे दिन इसे नही देखने पड़ते… जैसा किया है इसे भुगतने दे .. अभी भी तेरा मन इसकी हरकतों से नही भरा….तुझे मेरे साथ चलना ही पड़ेगा मां … सुधीर अड़ा था।

कैसी बाते कर रहा है सुधीर यहां सब खर्चा अच्छे से चल रहा है किसी प्रकार की कोई दिक्कत नही है तू निश्चिंत होकर जा बेटा वहां बच्चे तेरी राह देख रहे होगे

नहीं मां मैं बच्चों को बोलकर आया हूं कि मां को अपने साथ लेकर आऊंगा सब तेरी राह देख रहे होंगे ..मैने तेरे लिए सारी सुख सुविधा कर दी है अब तू मेरे साथ खूब शान से आराम से रहना…. पूरी जिंदगी तो कष्टों में ही बीत गई तेरी .. मैं अब कोई बहाना नहीं सुनूंगा …. सुधीर उतावला हो उठा था जैसे।

वो बेटा … सुन तो ..असल में अभी राघव की तबियत थोड़ी ठीक नहीं है उसको अच्छा हो जाने दे ऐसे में उसे छोड़ कर जाना मुझे सही नहीं लग रहा है …फिर मैं तुझे खुद ही बुला लूंगी तू आकर मुझे ले जाना…. वसुधा जैसे गिड़गिड़ा उठी थी।

हो गया रहने दे मां मैं समझ गया तुझे राघव की ही ज्यादा चिंता है बचपन से तू हमेशा राघव का ही ज्यादा लाड करती है मुझे तो बड़ा होने के कारण अक्सर डांट ही पड़ती थी राघव की शरारतों का जिम्मेदार भी मुझे बना दिया जाता था… पढ़ाई नहीं करने पर तूने इसे कभी नहीं डांटा …अभी भी मेरे साथ तेरा बर्ताव वैसा ही पक्षपात पूर्ण ही है अभी भी तू उसीकी चिंता कर रही है अब वह बड़ा हो गया है बाल बच्चे दार है उसे करने दे अपनी जिमेदारी का निर्वहन कब तक तू उसकी ढाल बनी रहेगी…..आवेशित हो उठा था सुधीर अपने ही छोटे भाई के ऊपर।

मेरे लिए दोनों बेटे मेरी दोनों आंखों की तरह हो …मां बोलने में विवश हो रोने लग गई

सुधीर नाराज होते हुए बिना मां की तरफ देखे चला गया था।

मां तू सुधीर भैया के साथ क्यों नहीं गई सही तो कह रहे थे भैया यहां क्या सुविधा है ….मेरी इतनी कम कमाई है इस उमर में भी तुझे बहू के साथ घर के कामों में हाथ बंटाना पड़ता है ….. सुधीर के जाते ही राघव मां के घुटनों के पास आकर बैठ गया था।बड़े भाई का लिहाज अब भी करता था कभी पलट के जवाब देने का विचार तक नहीं आया था उसे।

ठीक तो है बेटा हाथ पांव चलते रहने चाहिए नहीं तो बुढ़ापा एकदम अशक्त कर देता है…उसकी पीठ हौले से थपथपा कर मुस्कुराती मां बोल उठी।

लेकिन मां तुझे भैया के साथ चले जाना था उन्हे बहुत बुरा लगा है अगली बार वह तुझे साथ ले जाने को कहेंगे ही नहीं.. राघव ने चिंतित और दुखी स्वर में कहा।

जानता है राघव… तेरे पिता की कमाई में बड़ी मुश्किल से गुजारा होता था छोटी सी दुकान थी उनकी ऊपर से गुस्से वाला स्वभाव कोई ग्राहक टिकता ही नहीं था मुझे दुकान में बैठने भी नही देते थे और तुम सब छोटे बच्चो की देखभाल की व्यस्तता मुझे इसकी इजाजत भी नही देती थी….दुकान का किराया तुम लोगों का स्कूल सब बहुत कठिनाई से चल पाते थे।

सुधीर का मन पढ़ाई लिखाई में बहुत लगता था और तू मेरे पास ही घुसा रहता था… ।

पिता सुधीर को बहुत पसंद करते थे और कहा करते थे देखना सुधा मेरा यह बेटा एक दिन मेरा नाम जरूर रोशन करेगा और तुझे समझा कर डपट दिया करते थे दिन भर मां के पास घुसा रहता है उसके साथ घर बाहर के काम करवाता रहता है पढ़ाई में मन क्यों नहीं लगाता बड़ा होकर क्या काम करेगा!!

और तू मुझसे लिपट कर तुरंत उत्तर दे देता था… मां का काम..!!

तेरे पिता बहुत नाराज हुआ करते थे जितना ही वह नाराज होते उतना ही तू उन्हें और चिढ़ाता उनके सामने बिल्कुल ना पढ़ता… मैं तुझे भी समझाती तेरे पिता को भी समझाती इतना मत टोका करो बड़ा होगा तो अक्क्ल आ जाएगी पढ़ लेगा फिर बड़े भाई को देख कर सीख ही लेगा …. लेकिन ना तेरे पिता सुधरे ना तेरी आदतें।

सुधीर ज्यादातर पढ़ाई में ही व्यस्त रहता था पिता से भी बस अपने काम की या पढ़ाई की ही बातचीत किया करता था।तेरा मेरे प्रति ज्यादा झुकाव देख उसे अच्छा नहीं लगता था सोचता था मां इसका ज्यादा लाड करती है जबकि ऐसा नहीं था मैं हमेशा सुधीर के खाने पीने और पढ़ाई का ख्याल रखती थी पर पढ़ी लिखी ना होने के कारण उसकी और कोई सहायता नहीं करपाती थी… जबकि तू सुबह से मेरे सारे काम दौड़ दौड़ के करवाने में जुटा रहता था और साथ ही मेरे खाने पीने और आराम का भी पूरा ख्याल करने में भी।

सुधीर का रिजल्ट अच्छा आता गया पिता ने उसे बाहर पढ़ने भेज दिया ।

तेरा रिजल्ट भी अच्छा नहीं आया और तू बाहर जाना भी नहीं चाहता था।

देख आज सुधीर के पास सब कुछ है उसका बचपन जिन तकलीफों से गुजरा वो सब आज खतम हैं सारी सुख सुविधा है उसके बच्चे किसी अभाव में नहीं जी रहे हैं।

लेकिन तेरे पास अभी भी अभाव हैं तेरे बच्चों का बचपन तकलीफों और कष्टों से गुजर रहा है….. मुझे ये देख कर बहुत कष्ट होता है बेटा और ऐसा लगता है जैसे तेरे कष्टों का कारण मैं हूं मेरे साथ मेरे काम में हाथ बंटाने के कारण ही तेरी पढ़ाई बाधित होती रही….!

सुधीर के पास हर आराम है और स्वाभाविक रूप से वह चाहता है मां अब कष्टपूर्ण जिंदगी ना गुजारे इसीलिए हर बार मुझे अपने साथ ले जाना चाहता है।

लेकिन बेटा मैं तो मां हूं ना मुझे अपने लिए सुख सुविधा नहीं चाहिए मेरे परिवार का कोई भी सदस्य अगर कष्ट में है तो मुझे कष्ट ही रहेगा तू यकीन मान मुझे तेरे साथ यहां रहने में जरा भी कष्ट नहीं होता बल्कि सुकून मिलता है कि तेरा थोड़ा कष्ट बांटने मेरा भी सहयोग है….. सुधीर के घर सारे सुख वैभव में रहने पर भी मुझे ऐसा सुकून रत्ती भर नही मिल सकता इसीलिए मैं तुझे यहां कष्ट में जूझता छोड़कर उसके साथ नहीं जा पाती…!!

परंतु हर बार की तरह सुधीर अब भी यही सोचता है कि मां मेरी तुलना में राघव को ज्यादा प्यार करती है..!मां राघव की पीठ थपकती अपने ही भाव में मगन कहती जा रही थी और मां के घुटनों में अपना सिर दुबकाए राघव को मां की हर थपकी  सर्वोच्च सुख और हर कष्ट मिटाने वाली वरदान सी प्रतीत हो रही थी…!!

लतिका श्रीवास्तव

GKK (M)

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