*ठकुराई* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

      ठाकुर बलबीर सिंह जी के साथ समस्या ये थी कि उनकी जमीदारी तो चली गयी थी,पर ठकुराई को उन्होंने अपने जेहन से जाने नही दिया था।जमीदारी वाला रुतबा वे रखना चाहते थे।समय परिवर्तन की आहट को सुनने की चेष्टा तक नही कर पा रहे थे।वे यह भी समझने को तैयार नही थे कि आधुनिक बयार में उनके बच्चे भी बह चले हैं।

         उनका एकलौता बेटा समीर कब गंगादीन की बिटिया से प्यार करने लगा,इसका पता तो उन दोनों को भी नही चला।अब ठाकुर साहब का बेटा उनके मुलाजिम गंगादीन को ही उनका समधी बनाने पर तुला हो तो कैसे यह स्वीकार्य हो?

         समीर को ठाकुर साहब ने बिजिनेस मैनेजमेंट का कोर्स करने के लिये लंदन भेज दिया था।उनका विचार था,वहां से कोर्स करने के बाद समीर बेहतर रूप से उनके साम्राज्य को संभाल लेगा।आधुनिक रूप से खेती बाड़ी करायेगा, इंडस्ट्री चलायेगा।दो तीन वर्ष की बात थी।इधर उनके यहां सबसे विश्वस्त चाकर था गंगादीन,जो कम पढ़ा लिखा तो जरूर था,पर वह ठाकुर साहब की कार्य पद्धति को खूब समझता था।

ठाकुर साहब हमेशा उसे ही अपने साथ रखते।कभी ठाकुर साहब को कही बाहर जाना पड़ जाता तो गंगादीन सब संभाल लेता।इसी कारण ठाकुर साहब निश्चिंत रहते।पर अबकि बार उल्टा हो गया।गंगादीन को ही अपने गावँ में अपने भाई की मृत्यु के कारण जाना पड़ गया।गंगादीन के जाने के बाद ठाकुर साहब को गंगादीन की रिक्तता महसूस की। व्यापारिक कारण से ठाकुर साहब दूसरे शहर अपनी कार से गये थे,

अचानक ही उनकी कार दुर्घटनाग्रस्त हो गयी जिस कारण ठाकुर साहब घायल हो गये, काफी खून भी बह गया।शहर के होस्पिटल में उन्हें दाखिल करा दिया गया,उनकी पत्नी श्यामला उनकी तीमारदारी के लिये होस्पिटल आ गयी।उनके ग्रुप के ब्लड की उपलब्धता नही हो पा रही थी, इस शहर में उनका कोई खास जानने वाला भी नही था,वैसे भी वे खुद घायलावस्था में थे,पत्नी असहाय थी।

लेकिन उनकी सेवा में रत माधवी नर्स ने अपना खून दे दिया।ऐसा कम ही होता है कि कोई नर्स या डॉक्टर खुद ब्लड दे,पर माधवी ने ऐसा किया।इससे बाद में ठाकुर साहब और उनकी पत्नी को माधवी से लगाव हो गया।माधवी ने भी उनकी सेवा में कोई कोर कसर नही छोड़ी।होस्पिटल से डिस्चार्ज होने पर ठाकुर साहब ने माधवी के सिर पर हाथ रख कर कहा बेटी जल्द ही तुझसे मिलने तेरे घर आऊंगा।

        ठाकुर साहब और उनकी पत्नी ने आपस मे बात की कि क्यो न माधवी की शादी अपने समीर से कर दे?बस सहमति समीर की चाहिये थी।समीर भी विदेश से आ गया था, उसने अभी शादी से इनकार कर दिया।काफी कहा गया तो समीर ने अपनी माँ को बताया कि वह किसी अन्य से प्रेम करता है,और उसी से शादी करना चाहेगा।लड़की भी गंगादीन की बेटी।बस ये ही सुनकर ठाकुर साहब बिफर पड़े,उन्हें लगा कि गंगादीन ने उनके बेटे को अपनी बेटी के माध्यम से फंसा लिया है।

         बचपन से ही गंगादीन की बेटी और समीर एक ही स्कूल में पढ़े सो साथ रहते,गंगादीन के घर भी समीर का जाना रहता,तभी दोनो के बीच प्यार के बीज अंकुरित हो उठे।लंदन जाने से पहले समीर गंगादीन की बेटी को आश्वस्त कर गया था,कि वापस आने पर वह उसी से शादी करेगा।अब ठाकुर साहब के गले के नीचे अपने मुलाजिम की बेटी नही उतर रही थी,दूसरे वे समीर की शादी माधवी से करना चाहते थे।समीर ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि वह गंगादीन की बेटी गुड्डी से ही शादी करेगा,अन्यथा कही भी शादी नही करेगा।बेटे की इस जिद ने उनके अहम को ठेस पहुचाई थी।पर जवान बेटे पर उनका वश चल नही रहा था।

       इसी कशमकश में एक दिन समीर अपनी माँ से बोला माँ, मैंने आज गुड्डी को घर बुलाया है,आप   और पापा एक बार गुड्डी से मिल तो लो,माँ भूल जाओ वह गंगादीन काका की बेटी है,बस उसे एक बार मेरे और अपने नजरिये से परख तो लो, बिना परखे मुझे सजा तो मत दो माँ।बेटे के आर्तनाद से माँ अंदर तक हिल गयी,

उन्होंने ठाकुर साहब से कह दिया,सुनो जी,एक ही बेटा है, वो ही दुखी होगा तो क्या हमारा जीवन सुखमय रहेगा?मान जाओ समीर के पापा,अपने बेटे की खुशियों पर हमें अपनी इच्छा कुर्बान करनी ही होगी।चुप रह गये, ठाकुर बलबीर सिंह।उन्होंने सर झुका लिया था।औलाद की इच्छा के आगे उनकी ठकुराई हार गयी थी।

        शाम को समीर गुड्डी को लेकर घर आया।ठाकुर साहब का   सामना जैसे ही गुड्डी से हुआ तो वे बुरी तरह चौंक गये, उनके सामने तो माधवी खड़ी थी।हर्षातिरेक में वे कभी गुड्डी को देखते,कभी समीर की मां की ओर।क्या ईश्वर ऐसे भी चमत्कार करता है?उधर गुड्डी भी ठाकुर साहब को देख चौक गयी थी,वो बोली,अंकल आप?

समीर एक बार गुड्डी को देख रहा था तो दूसरी बार अपने पापा को।ठाकुर साहब ने आगे बढ़कर गुड्डी यानि माधवी को अपने गले से लगा लिया।वे सोच रहे थे अपने ठाकुर होने के दर्प में उन्होंने कभी अपने विश्वस्त गंगादीन के परिवार से पहले कभी भी मिलना तक भी गवारा क्यूँ नही किया? माथे पर पड़ी त्योरियां और चढ़ी बाहें उतर चुकी थी।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित।

*#बाहें चढ़ाना* मुहावरे पर आधारित लघुकथा:

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