तुम कितनी एक्टिव हो गयी हो,दिन भर आफिस में काम करती हो,और घर आकर भी लग गयी काम पर। लेकिन थकान का नामो निशान भी नहीं।वाह यार क्या जबरदस्त चेंज आया है ,तुम में।जब तक घर में रहती थी ,तब तक तो तुम बात बात पर थक जाती थी।ये घर से बाहर निकलने की ताजगी है,या कुछ और।बाहर की हवा लग गयी है तुम्हें तो।”कहते हुए माधवी हंसने लगी।
“ह्म्म्म्म….सही कहा बाहर की हवा लग गयी है मुझे।मेरा मानना है कि मुझ जैसी हर औरत को बाहर की हवा ले लेनी चाहिए बिना वक्त जाया करे।”सीमा का मुस्कुराता चेहरा एकदम फीका पड़ गया।
“अरे तुम तो सीरियस हो गयी….मैं तो मजाक कर रही थी…I am sorry अगर मैने कोई बात गलत कह दी हो।”माधवी ने हिचकिचाहट भरे स्वर में कहा।
“नहीं…नहीं…ऐसी बात नहीं है।मैं तो बस ये कहना चाह रही थी कि ,जो लोग कहते हैं ना क्या जरूरत थी उसे जाॅब करने की ,या अच्छा खासा घर चल तो रहा था ,क्यों आफत लगी थी घर से जाने की।उन्हें यह समझना चाहिए कि हमेशा औरत इसलिए घर से बाहर इसलिए कदम नहीं निकालती कि उसे जरुरत है,या वो मजबूर है।कई बार वो थक जाती है ,घरवालों के उस के प्रति उदासीन रवैए से।एक वक्त बाद ना आपको अपने खुद के लिये जीना यही लोग सिखाते है,जो आपके प्यार, समर्पण को आपकी कमजोरी मानने लगते है। आपके कामों मे हमेशा खामियां निकाली जाती रही हो।घर का खर्च देकर ऐसे समझा जाता है जैसे घर का सारा राशन या तो वो अकेले खा जाती है,या सब अपने ऊपर उड़ा रही है।कोई वक्त ही नहीं रहता उसका।इससे बेहतर उसे बाहर की जिंदगी अच्छी लगने लगती है।”एक लंबी आह भरते हुए सीमा ने जैसे अपना दर्द बयां किया।
“मैंने तो कभी भी जाॅब छोड़ी नहीं ,इसीलिए तुम्हारा वाला ऐक्सपीरिंयस है नहीं मेरे पास।लेकिन हां ,आज मुझे एक बात समझ आ रही है अपनी मां की,वो कहती थी ,चाहे कुछ भी हो तुम जाॅब नहीं छोड़ोगी।एक दो बार मुझे भी ससुराल आकर लगा था कि.मुझे जाॅब छोड़ देनी चाहिए। लेकिन हर बार मां मना कर देती थी।मैं कभी कभी सोचती भी थी,कि मां ने कभी खुद तो जाॅब की नहीं मेरे पीछे पड़ जाती हैं।लेकिन शायद वो तुम्हारी परिस्थिति को अनुभव कर चुकी हो,और निकल नहीं पायी हो।जैसे तुम निकल गयी।”कहते हुए माधवी अपनी मां की सीख को याद करने लगी।
“सही बात है,मां है ना सब जानती हैं।लेकिन मेरी मां तो अब भी यही कहती हैं कि एडजैस्टमैंट औरत को ही करना पड़ता है।क्यों इतना घर और बाहर, का काम का खामख्वाह भार ले रखा है।क्यों थकाती है अपने को?”कुछ सोचते हुए सीमा ,माधवी को देखकर बोली”जिंदगी ने वैसे बहुत सबक सिखाये हैं,लेकिन मैने एक सबक ये भी सीखा कि औरत को कोई काम नहीं थका सकता,उसे थका देती है ,उसके घरवालों कि उदासीनता,उपेक्षा ।एक मोड़ पर आकर लगता है कि क्यों अपना वक्त जाया कर रहे हैं ऐसे लोगो के ऊपर।”कहते हुए सीमा ,ने एक पल को माधवी की तरफ देखा”तुझे आम पना पिलाती हूं ,चल।”कहते हुए, रसोई की तरफ चली गयी।माधवी अभी भी अपनी मां की बातों का मर्म, सीमा के सबक के साथ जोड़ रही थी।
दोस्तों,हम में से भी यह कहानी की लोगों की हो सकती है।क्या वाकई एक औरत की थकान की वजह की बार घर के सदस्यों द्वारा की गई उपेक्षा पर निर्भर होती है।इस बारे में आपकी क्या राय है?अवश्य दीजियेगा।
आपकी दोस्त,
स्मिता सिंह चौहान