वर्षो से एक ही जूता पहन रहे हमेश बाबू का जूता अब घिस गया था जिसके लिए पत्नी कई बार टोक चुकि थी कि अरे ! नया ले लीजिए पर वो थे कि घसीट रहे थे और आज तो वो ज़िद पर ही अड़ गई कि नही आज तो आपको लेने जाना ही पड़ेगा चाहे जो हो जाये कहते हुए उसने जेब में कुछ रुपये डाल दिये।
ऐसे में प्रेम भरी नज़रों से उसे निहारते हुए
वो भी सोचे चलो ले ही लेते हैं ।
फिर क्या आज का टहलना कैंसिल कर दीपू के साथ जूता लेने दुकान पर पहुंच ही गए ।
वहां पहुंच कर उन्होंने दुकानदार से एक मुलायम जूता दिखाने को कहा।
दुकानदार ने भी जी सर – नाप
उन्होंने कहा – सात नम्बर।
यश सर – कहते हुए उसने चार जोड़ी जूता लाकर रखा पर भीड़ अधिक होने के कारण पहना नही सका और दूसरे कस्टमर केर पास चला गया।
ऐसे में न चाहते हुए भी उनकी आंखे दीपू को ओर देखने लगी । देखना लाज़िमी भी था , हलाकि उम्र ज्यादा नही है पर वर्षो से दवा खाते खाते भीतर से शरीर जैसे खोखला सा हो गया है अब उतनी ताकत हाथ पैर में नही लगती जिससे वो बहुत कामन कर सकें।
तभी तो अकेले निकलने से कतराते हैं कुछ भारी काम नही कर पाते।अपने दैनिक कार्यो को ही कर लेते हैं बस बाकी पूरे समय घर में ही रहते हैं।थोड़ा बहुत हाट बजार निकलना हुआ तो बात अलग है नही तो वो घर में ही रहते है।
अब रहे भी क्यों ना अब उम्र ही ऐसी हो गई है। भाई नौकरी प्राइवेट थी तो जब तक शरीर साथ दिया किये उसके बाद खुद ही जवाब दे दिये कि हम नही करेंगे
जबकि इसको लेके रेनू ने काफी नाराजगी जतायी पर कर ही क्या सकती है जब ठान लिया हो किसी ने कि हमें नही करना तो क्या कर सकती है ।भाई अब रहे भी क्यों ना अभी सारी जिम्मेदारी जो पड़ी है ना बच्चे सेट हुए ना शादी ब्याह हुआ और ये हैं कि सब छोड़ छाड़ कर बैठ गए कि अब हमें नौकरी ही नही करनी।तो भला ऐसे में गुस्सा तो आयेगी ही ना।
पर क्या कर सकती है ।बस भीतर ही भीतर खिसिया के रह गई।
फिर धीरे धीरे आदत पड़ गई और वैसे भी उसके ऊपर कुछ खास असर नही पड़ा क्योंकि उसका अधिकांश समय स्कूल में बीतता है ।हां स्कूल में,दरसल पेशे से वो शिक्षिका है और घर भी उसी के सहारे चलता है।
पर घर में रहने के कारण नई नई बीमारी इजात हो रही है ।इसी को देखते हुए निर्णय हुआ कि थोड़ा ही सही पर ये रोज टहलने जाया करे। बस उसी के लिए जूते कि दुकान पर जूता लेने गए थे कि थोड़ा बाहर निकले तो शरीर भी फिट रहेगा और चार लोगों से मिलेंगे तो दिमाग भी बटा रहेगा। वरना बैठे बैठ एक ही जगह कुछ ना कुछ खुराफात सोचते रहते है।
पर यहाँ तो दुकानदार जूतेः पकड़ा कर चला गया।अब पहनाये कौन ? पर दो मिनट वेट करने के बाद दीपू ने ही उन्हें ट्रायल साक्स पहनाया और उंगली लगा कर जूता भी पहनाया।
इतने में दुकानदार आ गया और बोला स्वारी सर आज भीड़ बहुत है सो ठीक से मैं सर्विस नही दे पा रहा ।अरे हटिये ना मैं पहना रहा हूं अपने क्यों कष्ट किया। इस पर वो बोला कोई बात नही मैने पहना दिया।
कहते हुए दीपू ने उठने का इशारा किया कि चल कर देखि ये कही दब तो नही रहा है।
और वो उठकर चलने लगे।
और थोड़ी दूर चलकर वापस आये तो मुस्कुराते हुए बोले अच्छा है।मानों उन्हें भी आराम देय लग रहा था।
कहते हुए सामने रखे स्टूल पर बैठ गए।
और जैसे ही वो बैठे दीपू ने फिर झुककर जूता मोज़ा उतारा और पैक करने को कहा।
उसके बाद रमेश काउंटर पर जाकर पैसे देने लगा तो दुकानदार ने कहा – साहब आपका नौकर बहुत अच्छा है आपका कितना ख़याल रखता है ।
इतने में दीपू ने पास आकर कहा हो गया पापा चले।
ये सुन दुकिनदार सन्न रह गया।
और अपनी गुस्ताखी के लिए काफ़ी मांगने लगा।जह माफी मांगता तो रमेश ने कहा कोई बात नही आजकल बेटे इतना ख्याल रखते कहां है इसलिए अपने ऐसा बोला पर ये मेरा बेटा है बहुत ख्याल रखता है। बहुत प्यार करता है हमारी हर छोटी बड़ी चीज़ो का बड़ा ख्याल रखता है ।कहते हुए बेटे का हाथ कपड़ा और दुकान से बाहर आ गए और दुकानदार खड़ा ठगा सा देखता रह गया।
कंचन श्रीवास्तव आरज़ू प्रयागराज