टेस्टेड फार्मूला – विभा गुप्ता

 रीमा और रचना बचपन की सहेलियाँ थीं।विवाह के पाँच साल बाद जब दोनों सहेलियाँ मिलीं तो उन्हें समझ नहीं आया कि कहाँ से बात शुरु करें।पति,सास,बच्चे सब कुछ दोनों एक-दूसरे को बताने के लिए बेताब थीं।

     रीमा ने बताया कि उसका पति दिल्ली में साॅफ़्टवेयर इंजीनियर है।उसका बहुत ख्याल रखते हैं।कोई ऐब नहीं है,बस कभी-कभी पार्टी में एक पैग ले लेते हैं।ससुराल भी बहुत अच्छा है।वह बहुत खुश है,कहते हुए उसका चेहरा चमक उठा था।

    रचना ने बताया कि वह कोलकता में रहती है।उसके पति वहाँ एक प्राइवेट कंपनी के एम्प्लाइ हैं।देखने में हैंडसम हैं और कोई बुराई भी नहीं है।वह भी खुश है।रीमा ने देखा कि ‘खुश है’ कहते हुए उसके चेहरे पर उदासी थी।

     रीमा ने उदासी का कारण पूछा तो रचना ना-नुकुर करने लगी।फिर उसने अपनी कसम दी तो रचना की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगें।रीमा घबरा गई,बोली, ” देख रचना, कुछ न छुपाना..अगर वो तुझे मारता है या..।

” नहीं- नहीं रीमा, ऐसी कोई बात नहीं है।बस वो..”

” वो क्या? ” रीमा का धैर्य अब जवाब दे रहा था।

” मेरे हसबैंड सिगरेट बहुत पीते हैं जिसकी वजह से उन्हें बहुत खाँसी होती है और चेस्ट में भी बहुत तकलीफ़ होती है।डाॅक्टर कम करने की हिदायत देते हैं,मैं भी बहुत समझाती हूँ लेकिन…।हमेशा हँसी में टाल जाते हैं।मैं डरती हूँ कि कहीं…।” रचना फूट-फूटकर रोने लगी।

” बस इतनी-सी बात है।” कहकर रीमा मुस्कुराई और उसने रचना के कान में कुछ कहा,सुनकर रचना रीमा को देखने लगी, जैसे पूछ रही हो कि ऐसा करना सही होगा तो रीमा ने भी उसी अंदाज में इशारा किया जैसे कह रही हो, ” 100%”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

“सास हो तो ऐसी” –  कविता भड़ाना




     इस बात को छह महीने बीत गये, दोनों के बीच फ़ोन पर इधर-उधर की बातें होती रहती थीं।एक दिन रचना ने जब फ़ोन किया तो बहुत खुश थी।रीमा कुछ पूछती,उससे पहले ही रचना ने उसे थैंक्स कहा और बोली, ” एक दिन हमलोग क्लब गयें थें।हमेशा की तरह मेरे हसबैंड सबसे हाय-हैलो किये और मुझे लेडीज़ टीम के साथ बैठने को कहकर एक ओर चले गये।मैं समझ गई थी लेकिन हमेशा की तरह उस दिन उन्हें  टोका नहीं।वो बड़े खुश थें।तेरे कहे अनुसार कुछ देर बाद मैंने अपने शरीर पर शराब जो कि मैं अपने साथ ही लाई थी, के कुछ छींटें मारे और थोड़ी लड़खड़ाते हुए वहाँ पहुँच गई जहाँ मियाँ जी कश पर कश लगा रहें थें।मुझे देखकर चौंक गये और जब मैंने कहा कि एक कश मुझे भी लगाने दो,मैं भी देखूँ कि ऐसा इसमें क्या है जो आपके मुँह से छूटती ही नहीं है, फिर तो उनके होश उड़ गये। उपस्थित लोग मुझे देख रहें थें।कुछ मेरे पति का नाम लेकर बोल रहें कि मि• वर्मा की पत्नी है।

    बात जब अपने सम्मान पर आती है तो पुरुष के दिल को ठेस पहुंचती है।मेरे पति के साथ भी यही हुआ।वे तुरंत एक्शन में आये और मेरा हाथ पकड़कर गुस्से-से बोले, ” क्या बोल रही हो? होश में तो हो,चलो.. अभी घर चलो।” मैं तो यही चाहती थी।घर आकर भी रीमा, उन्होंने मुझे बहुत सुनाया लेकिन मैं खुश थी।फिर बाहर तो सिगरेट बंद और घर में भी दस से आठ और आठ से दो-तीन होने लगी।अब तो एक-दो दिन का गैप भी हो जाता है।तेरा फार्मूला काम कर गया।तुझे जितना भी धन्यवाद दूँ,कम है।

   रचना की बात सुनकर रीमा ज़ोर-से हँसी,बोली, ” काम कैसे नहीं करता, टेस्टेड फार्मूला था।”

” टेस्टेड! क्या मतलब “

” हम्म्म्म्.. मेरे पतिदेव भी..हा हा हा, फिर यही फार्मूला अप्लाई किया,सक्सेसफुल रहा, अब तो वो सिगरेट को दूर से भी नहीं देखते।”

” अच्छा!..” फिर दोनों सहेलियाँ फ़ोन पर ही हँसने लगीं।

                                       — विभा गुप्ता

                                            स्वरचित 🖋

 नोट- प्लीज़ फार्मूला अप्लाई न करें

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!