Moral stories in hindi : सप्ताह भर बाद मनोज दिल्ली से घर लौटा, बस तभी से उसने अपने हाथ तंग करने शुरु कर दिये।बीना समझ नहीं पाती कि इतने खुले हाथ वाला उसका पति अचानक इतना कंजूस कैसे हो गया।दीपावली पर माँ के लिये नई साड़ी और पिता के लिये नया कुर्ता लाया तो बीना ने पूछा,” आप अपने लिये भी एक कुरता काहे नहीं ले लिया?आपके कुरते को मैं दो बार सिल चुकी हूँ।अब तो…।”
” बीना जी…हमें तो दुकान में बैठना होता है..पापा जी को लोगों के बीच उठना-बैठना होता है ना..।” हँसते हुए वह बात को टाल गया।
मनु स्कूल जाने लगा था।एक दिन उसने अपने पिता से नये जूते की फ़रमाइश की।जवाब में मनोज उसके गाल पर प्यार-से एक चपत लगाते हुए बोला,” मैं तो एक जूता पूरे साल पहन जाता था,फिर भी टूटता नहीं था।तू क्या अपने जूते से कुश्ती लड़ता है..,ला दे अभी ठीक करवा देता हूँ।”
” पापा..नया…”
” तेरे जन्मदिन पर…” सुनकर मनु बेचारे ने अपना सिर पकड़ लिया।
एक दिन मनोज अपनी शाॅप से घर जा रहा था, रास्ते में उसे जमुना काकी ने टोक दिया,” का है लल्ला…कल आधी रात को कहाँ जा रहे थे…किसी से मिलना था क्या!…” कहते हुए उनकी आँखें चमक उठी थी।
” कल…नहीं तो काकी…” कहकर वह चुपचाप निकल गया।काकी कब रुकने वाली थी।अगले दिन मनोज के शाॅप पर जाते ही वो उसके घर पहुँच गई और उसकी माँ को पुकारते हुए बोली,” मनोज की माँ…गजब हो गया…तुम्हारे मनोज का…”
” का हुआ हमारे मनोज का..” मनोज की माँ ने भी उसी लहज़े में पूछा।
फुसफुसाते हुए काकी बोली,” तुम्हारे मनोज का किसी के साथ चक्कर चल रहा है।वह रोज रात को पीछे वाली गली में जाता है।”
” ये क्या कह रही हो जमुना…तुम्हारा दिमाग तो ठीक है ना…तुम उतनी रात को बाहर क्या कर रही थी?” मनोज की माँ ने भी गुस्से-से पूछ लिया।
” हमारे कमरे का पंखा खराब हो गया था तो छत पर सोने जा रहे थे, तब तुमरे मनोज को गमछे से मुँह ढाँपे जाते देखा था।हमारा काम था तुम्हें बताना…आगे तुम समझो।” कहकर जमुना काकी तो चली गई लेकिन घर में कोहराम मच गया।बीना तो अपनी सास से लिपटकर रोने लगी और उसे चुप कराते हुए उसकी सास अपने बेटे को भला-बुरा कहने लगी।
दीनदयाल जी समझदार आदमी थें।दोनों महिलाओं को शांत किया और उनके साथ मिलकर बेटे को रंगे हाथ पकड़ने का प्लान बनाया।रात्रि के दस बजे तक जब सब लोग खा-पीकर सो गये तब हमेशा की तरह मनोज उठा और गमछे से अपना सिर ढ़ककर बाहर निकल गया।घर वाले तो इसी इंतज़ार में थें…, मनु गहरी नींद में सो रहा था लेकिन तीनों की नींद उड़ी हुई थी।उन्होंने घर के बाहर की कुंडी लगाई और मनोज के पीछे-पीछे चल पड़े।मनोज एक घर के आगे रुका और धीरे-से कुंडी खटखटाने लगा।मनोज की माँ घर पहचान गई…, बोली,” ई तो चंदनवा के घर..।”
” माँजी…।” बीना ने सास के मुँह पर हाथ रख दिया।किवाड़ खुलते ही मनोज अंदर गया और पट फिर से बंद। दीनदयाल जी ने तनिक भी देर नहीं किया और कुंडी खटखटा दी।
दरवाज़ा खोलते ही चंदन बोल पड़ा,” चाचाजी..आप…।”
” चाचाजी के बच्चे….कहाँ है वो नालायक..।”
” चाचाजी..मेरी बात तो सुनिये..।” चंदन ने दीनदयाल जी को समझाने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने एक न सुनी और लगभग घसीटते हुए बेटे को घर ले आये।
रात तो सबने जाग कर काटी और सुबह होते ही घर के अहाते में पंचायत बैठी।दीनदयाल जी गुस्से-से बेटे पर बरस पड़े,” घर में खर्च के लिए तेरे पास पैसे नहीं है और गुलछर्रे उड़ाने के….।”
” नहीं चाचाजी…., आपका मनोज तो इस कलियुग में भी श्रवण कुमार ही बना रहा।” चंदन ने आते ही दीनदयाल जी को टोक दिया।
” क्या मतलब?” बीना और उसकी सास ने समवेत स्वर में पूछा।
चंदन बताने लगा,” आपके दिये पैसे लेकर मनोज मेरे पास आया और बोला कि मुझे कहीं नहीं जाना है।उसका चेहरा देखकर मैं समझ गया कि कुछ तो हुआ है।मेरे पूछने पर वह रोने लगा और बताया कि मैं पापाजी को रुपये वापस करने जा रहा था कि माँ की आवाज़ सुनाई दी।कह रहीं थीं, ” आप अपने बाबूजी को तो तीरथ करा न सके..दो- दो बेटियों का बोझ था लेकिन लगता है कि तीरथ करने की हमारी इच्छा भी अधूरी रह जाएगी।”
” ऐसा क्यों कहती हो भाग्यवान…”
” तो क्या कहूँ…बड़ी मुश्किल से कुछ रुपये बचाए थें ,वो भी आपने अपने लाडले को दे दिये।”
” अभी उनके खेलने-खाने के दिन है..हमारी उमर कौन सी भागी जा रही है…फिर…।”
इसके आगे मनोज सुन नहीं सका था।हमसे कहने लगा कि हमें घूमने नहीं जाना..हमें अपनी माँ- पापाजी को चार धाम की यात्रा कराना है।तब मैंने उससे कहा कि अभी तू नहीं जाएगा तो उन्हें बहुत दुख होगा, उन्हें चारधाम यात्रा कराने की ज़िम्मेदारी हमारी।बस चाचाजी…दिल्ली से वापस आते ही मनोज अपनी ज़रूरतों में कटौती करके मेरे पास रुपये जमा कराने लगा।हर दो दिन पर आकर पूछता कि यात्रा के लिए मुझे और कितने रुपये चाहिए।चाचाजी…,रात को वह इसलिए आता था कि आपको पता न चले।”
” लेकिन अब तो सब भंडाफोड़ हो गया..अब कैसे…” मनोज रुआँसा हो गया तो उसकी माँ बेटे के सिर पर प्यार-से हाथ फेरते हुए बोली,” चिंता क्यों करता है पगले.. हम सब मिलकर तेरा सपना पूरा करेंगे।”
पंद्रह दिनों के अंदर ही चंदन ने मनोज के माता-पिता के चारधाम यात्रा की बुकिंग करा दी, मनोज ने उन्हें गाजे-बाजे के साथ बस में बिठाकर विदा किया।
वापस आने पर मनोज उनके चरण-स्पर्श करने लगा तो दीनदयाल जी उसे अपने हृदय से लगाते हुए बोले,” तेरे जैसा श्रवण बेटा सबको मिले।तूने हमारे सभी अरमान पूरे कर दिये हैं, ईश्वर तेरी हर मनोकामना पूरी करे..।”
” बहू की गोद भरी रहे और हर जनम में तू ही हमारा श्रवण कुमार बने…हमने तो प्रभु से यही प्रार्थना की है।” मनोज की माँ ने बेटे से कहा तो मनोज भावुक हो गया।तभी मनु ने दीनदयाल जी से पूछा,” दादाजी…, आपको तीरथ पापा ने कराया…पापा को तीरथ मैं कराऊँगा… फिर मुझे तीरथ कौन करायेगा?” उसकी भोली बातें सुनकर तो सभी हा-हा करके हँसने लगें।हँसते-मुस्कुराते परिवार को देखकर जमुना काकी की आँखें भी खुशी-से भर आईं।
विभा गुप्ता
#अरमान स्वरचित
परिवार में आपसी प्यार-स्नेह और समर्पण की भावना हो तो देर-सबेर से ही सही, सारे अरमान पूरे हो ही जाते हैं।दीनदयाल जी ने बेटे की खुशियाँ चाही तो मनोज ने अपने माता-पिता की हसरत पूरी करने में अपना जी-जान लगा दिया।
ser
Bahut sunder aur Aaj ke bchho ke liye prerna Dene wali kahani ke liye dhanyawad aur badhai.
Very nice story aaj k zamane me zarurat h aise hi sanskaar apne bachcho m dalne ki ❤🙏
The story is Best but now days rarest of rarefamilise in world
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
काश ऐसा बेटा सभी को मिलता। जीवन सफल होता l
Very nice story