आभा के जन्म के समय से ही अनामिका ने उसके भविष्य को लेकर कई सपने देखे थे। उसे शिक्षा और आत्मनिर्भरता की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया था। अनामिका ने हमेशा उसे यह सिखाया कि एक महिला का आत्मसम्मान और स्वाभिमान सबसे महत्वपूर्ण है। वह जानती थी कि एक मां होने के नाते उसका यह कर्तव्य है कि वह अपनी बेटी को इतना आत्मनिर्भर और मजबूत बनाए कि वह किसी पर निर्भर न रहे।
आभा ने भी अपनी मां की इन शिक्षाओं को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया था। उसने पढ़ाई में खूब मेहनत की और एक अच्छी नौकरी हासिल की। आज वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर थी और समाज के मानकों के मुताबिक शादी करना उसके जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य नहीं था। उसके जीवन में उसकी अपनी प्राथमिकताएं थीं। वह अपनी जिंदगी में खुश थी, अपनी शर्तों पर जी रही थी, और अपने आत्मसम्मान को महत्व देती थी।
लेकिन समाज में कुछ लोगों के लिए, खासकर उसके पड़ोस की सीमा के लिए, आभा की उम्र में शादी न करना एक “समस्या” थी। सीमा, जो समाज के रूढ़िवादी सोच को मानती थी, अक्सर अनामिका को ताने मारती और आभा की शादी की चिंता करती। उसे यह देखकर हैरानी होती थी कि अनामिका अपनी बेटी को इतने आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता के साथ जीने दे रही है।
एक दिन सीमा ने ताना मारते हुए कहा, “तीस साल की तो हो गई तेरी बेटी। कब तक घर में बिठाए रखोगी?” इस बात पर अनामिका ने संयम रखते हुए जवाब दिया, “जोड़ियाँ तो ऊपर वाला ही बनाता है। अभी शायद बेटी के लगन ढीले हैं। वैसे बात चल रही है, जैसे ही उचित संजोग मिलेगा, तो चट मँगनी पट ब्याह हो जाएगा।”
सीमा को अनामिका का यह आत्मविश्वास समझ में नहीं आया। उसने फिर से ताना मारते हुए कहा, “एक लड़का मेरी नज़र में है। पर वह तलाकशुदा है और उसकी तेरह साल की बेटी भी है। अब तेरी बेटी भी तो तीस पार कर चुकी है और उसके हाथ पर जलने का निशान भी है। इस उम्र में तलाकशुदा या दुहाजू ही तो मिलेंगे। कहे तो बात चलाऊँ?”
सीमा के इन शब्दों ने अनामिका के दिल को गहरा ठेस पहुंचाई। लेकिन उसने अपने चेहरे पर कोई शिकन नहीं आने दी और आत्मविश्वास से जवाब दिया, “क्यों जले पर नमक छिड़क रही हो? मेरी बेटी मुझ पर बोझ नहीं है। वह मेरा मान है। वह अच्छा कमाती है और आत्मनिर्भर है। उसे खाई में धकेलने के लिए पैदा नहीं किया था। तुम अपनी बेटी की चिंता करो। आभा बेटी की चिंता के लिए हम हैं।”
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अनामिका के इन शब्दों ने सीमा को निरुत्तर कर दिया। उसे महसूस हुआ कि अनामिका ने अपनी बेटी को एक ऐसे मजबूत आधार पर खड़ा किया है जहाँ वह न केवल आत्मनिर्भर है, बल्कि समाज के तानों से ऊपर उठकर अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने की ताकत रखती है। सीमा को यह बात समझ में आ गई कि अनामिका अपनी बेटी को समाज के बनाए हुए रूढ़िवादी ढांचे में बंधने नहीं देगी।
अनामिका के लिए यह जवाब देना आसान नहीं था, लेकिन वह जानती थी कि उसकी बेटी को उसके आत्म-सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। उसने हमेशा अपनी बेटी को यह सिखाया था कि शादी केवल एक सामाजिक समझौता नहीं है, बल्कि एक साथी के साथ सम्मान और प्रेम का रिश्ता होना चाहिए। उसने अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया था ताकि वह किसी पर निर्भर न रहे और अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जी सके।
इस पूरी घटना के बाद सीमा का रवैया बदल गया। उसने महसूस किया कि जिस तरह से वह अनामिका की बेटी की जिंदगी को जज कर रही थी, वह गलत था। उसे यह समझ में आया कि हर किसी का जीवन और परिस्थितियां अलग होती हैं, और हमें दूसरों के जीवन में दखल देने से पहले उनकी परिस्थितियों और उनकी सोच को समझने का प्रयास करना चाहिए।
समय बीतता गया और अनामिका और आभा ने एक बार फिर साबित कर दिया कि आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता किसी भी रिश्ते से अधिक महत्वपूर्ण है। अनामिका ने अपनी बेटी को सिखाया कि किसी भी परिस्थिति में अपने आत्म-सम्मान और अपनी पहचान से समझौता न करें। उन्होंने यह साबित कर दिया कि एक महिला की पहचान और उसके जीवन का मूल्य केवल शादी और समाज की स्वीकृति से नहीं बल्कि उसके आत्म-सम्मान, स्वाभिमान और उसकी आत्मनिर्भरता से होता है।
यह कहानी उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है जो समाज की रूढ़िवादी सोच के बीच आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाना चाहती हैं। अनामिका और आभा ने यह साबित किया कि अपने आत्म-सम्मान के साथ जीना ही सच्ची जिंदगी है, और समाज की सोच से ऊपर उठकर अपने सपनों को जीने का अधिकार हर महिला को है।
मौलिक रचना
अर्चना कोहली “अर्चि”
नोएडा (उत्तर प्रदेश)