तीन देशों का संगम,पर कोई भेदभाव नहीं – सुषमा यादव

बड़ी बेटी रीना ने अपनी छोटी बहन का जन्मदिन मनाने का प्लान बनाया, उसने अपनी छोटी बहन रितु को एक दिन पहले लंदन से आने को कहा, इसके साथ ही अपने इंडिया, लंदन और फ्रांस के दोस्तों को भी आमंत्रित किया, मम्मी आईं हैं तो बर्थडे धूम धाम से मनाया जाना चाहिए,रीना ने सोचा,।

रितु के जीजा जी और दीदी ने बड़े उत्साह से शापिंग की, बहुत सारा सजावट का सामान और खूबसूरत केक खरीदा।

पूरे घर को सजाया गया, छोटी बहन की पार्टी में कोई कमी ना रह जाए। उसकी छोटी सी बच्ची भी सबका साथ दे रही थी, मैं रीना की मम्मी चुपचाप दोनों बहनों का प्यार देख रही थी, 

सबको शाम तीन बजे का समय दिया गया था,सब एक के बाद एक अपने पति और छोटे बच्चों के साथ ठीक तीन बजे आ गये, यहां इंडिया में तो बुलाओ तीन बजे तो आयेंगे चार बजे, ।पर वहां सब समय के बड़े पाबंद हैं।

 मैंने देखा कि सबके हाथों में खाने पीने का ढेर सारा सामान और गिफ्ट था, सबने जाकर किचन में सब सामान निकाल कर रख दिया। मेरे लिए भी उपहार लेकर आए थे। मैंने हैरान हो कर बेटी से पूछा, ये स्वयं इतना कुछ खाने को क्यों लेकर आयें हैं, बेटी ने कहा, ये यहां का रिवाज है, खाली हाथ कोई नहीं आता है,हम भी किसी के घर जाते हैं तो ले जाते हैं,।

चुंकि तीन देशों का संगम हो रहा था, भाषाएं भी आपस में तीन तरह की बोली जा रही थी, हिन्दी, अंग्रेजी, और फ्रेंच,

सबके पति एक तरफ तो सहेलियां एक तरफ, दूसरी ओर सबके छोटे छोटे बच्चे आपस में खेल रहे थे। मैं अपने कमरे में आने लगी तो सबने घेर लिया, आंटी,आप ऊब रहीं हैं क्या।

हम सब आपके पास ही बैठते हैं, मैंने हंसते हुए कहा, बिल्कुल नहीं,आप लोग इंजॉय करें, मैं ठीक हूं,मजा ले रही हूं, कहीं नहीं जाऊंगी। यहां तो बेटे बहू होते तो अपने बुजुर्गों को एक कमरे में बिठा देते और सख्त हिदायत देते, बाहर पार्टी में नहीं आना है।

अब मैं खामोश होकर अपने देश और इन दोनों देशों के बीच अंतर देखने लगी।

 




हमारे देश में बहुत भेदभाव होता है।  जाति,पांति का भेद भाव, प्रदेश का भेद-भाव, लड़का लड़की का भेद-भाव, अमीरी-गरीबी का भेद-भाव, और भी ना जाने कितने तरह के भेद-भाव ।

यदि आपकी शादी या पार्टी में कोई मिडिल क्लास का परिवार आ गया तो बस हम उसके साथ हल्की सी मुस्कान बिखेरते औपचारिकता भर निभाते हैं,

लेकिन यदि कोई अफसर या अमीर घर का परिवार आ गया तब तो हम उसके आगे आवभगत में बिछ जाते हैं, उसके आगे पीछे हमारा परिवार नाचने लगता है।

लेकिन यहां मैं देख रही थी कि सब आपस में एक साथ खड़े, बैठे बतिया रहे थे, आपस में कोई जान पहचान नहीं,पर लग रहा था जैसे एक दूसरे को बरसों से जानते हैं।

बच्चे भी आपस में बिना शिकायत किये, बिना लड़ाई, झगड़ा किये एक दूसरे का खिलौना लेकर खेल रहे थे, बेटी ने भी सब बच्चों के लिए बहुत सारे खिलौने लाये थे और उनके मम्मी-पापा भी अपने साथ लेकर आये थे, मैं आश्चर्यचकित थी कि सब बच्चे एक दूसरे का कितना ख्याल रख रहे थे,सब डेढ़ साल से चार साल के बीच के ही थे, बोलना भी ठीक से नहीं आता था, और हमारे इंडिया में तो बच्चे आपस में जूझने लगते यदि किसी ने उनका खिलौना छू भर लिया। शायद हम आपस में जो भेदभाव एक दूसरे के साथ करते हैं,उसी के अनुसार हमारे बच्चे भी यही भेदभाव सीखते हैं।हम जैसा आचरण करते हैं वैसे ही बच्चे भी करते हैं।

 एक बात पर मैंने गौर किया कि सभी लोग सादे वेशभूषा में थे, लड़कियों ने कोई भी मेकअप नहीं किया था, सिवाय हल्की लिपस्टिक के। जबकि सब अमीर घर से थे।

इस तरह अमीरी-गरीबी में कोई भेद भाव नहीं।

हम कभी भी किसी की पार्टी में कोई खाने पीने का सामान नहीं ले जाते हैं, यहां का यह रिवाज देखकर लगा कि मेजवान को बहुत ज्यादा इंतज़ाम नहीं करना पड़ता है।सब आपस में साझा करते हैं, 




एक बात और देखा मैंने कि कोई औपचारिकता नहीं,जिसका जो मन हो खाओ,पिओ, मेहमान किचन में जाते, वहां से और फ्रिज से जो भी खाना हो स्वयं ही निकाल कर खाते, जैसे वो ही इस घर के सदस्य हों और हम सब बाहर के। 

खा पीकर केक काटा गया, प्रेजेंट दिये गये, बेटी रीना ने भी उनके बच्चों को गिफ्ट दिए,

अब बारी बारी से सबने सारे जूठे बर्तन ले जाकर सिंक में रखा और धोने भी लगे,पति , पत्नी दोनों।

मैंने बेटी से कहा उन्हें मना करो, वो हमारे मेहमान हैं, बेटी ने उन्हें बताया तो सब हंसने लगे, नहीं, नहीं हम सब कर लेंगे। मैंने कहा कम से कम बेटे लोग तो ऐसा ना करें, हंसते हुए बेटी ने कहा,

,, मम्मी यहां बेटा बेटी, लड़का, लड़की में कोई भेदभाव नहीं करता है, ये अपना देश नहीं है, जहां लड़कियों से तो खूब काम कराते हैं और लड़कों से एक भी काम नहीं कराते वो बेटा है,मेरा वारिस है,वंश बढ़ाने वाला है, कभी राजकुमार भी काम करते हैं, लड़कियों को तो दूसरे घर जाना है, चूल्हा-चौका सब आना चाहिए,।

मम्मी, क्यों अपने देश में  लड़का, लड़की के बीच इतना भेदभाव करते हैं,

मैं भी उसकी बात पर सोचने को मजबूर हो गई,अब इतना तो नहीं,पर हां अभी भी कई घरों में बहुत ही भेदभाव होता है, समाज बहुत बदल रहा है, पर अभी भी बहुत ही बदलाव की जरूरत है,काश, हमारे देश में भी बेटा, बेटी का भेद-भाव खतम करके दोनों के साथ एक जैसा व्यवहार करें,




शुरुवात तो हमें अपने ही घर से करना होगा।

,,हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा,

हम बदलेंगे,युग बदलेगा।

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ प्र,

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

# भेदभाव

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