तरसती ममता – गीतांजलि गुप्ता

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“आप दिन रात किस तैयारी में लगी हो अमृता” मिसेज शर्मा ने पूछा।

“मेरा हितेन आ रहा है पच्चीस तारीख को अपने परिवार के साथ, बस उसको कोई कमी ना लगे इसलिए पूरी तैयारी कर रही हूँ।” अमृता ने जवाब दिया।”

अमृता ने घर की धुलाई पुताई कराई करीब आठ साल बाद उनका बेटा हितेन इंडिया आ रहा है उसने वहीं एक भारतीय मूल की लड़की से शादी कर ली और एक बेटे का पिता भी है।

पहले अमृता उससे बहुत नाराज थीं क्योंकि हितेन अपने पिता के देहांत पर भी भारत नहीं आया था इकलौता बेटा है दुःखी होना स्वाभाविक ही था। परन्तु अब जब से उसने मिलने आने की बात की अमृता उस पर पूरी ममता लुटाने को तैयार बैठी थी। पति के देहांत के बाद चार साल से बिल्कुल अकेली पड़ गई । शुरू का एक साल सिर्फ़ रोते रोते ही बिताया। वो तो छोटी बहन ने बहुत सहारा दिया और वह ही आज भी हर तकलीफ़ में खड़ी रहती है।

“अरे जीजी क्यों इतना मर खप रही हो। हितेन ही तो आ रहा है कोई अमेरिका का राष्ट्रपति आ रहा है क्या। मज़ाक व ताने में शिल्पी फ़ोन पर बोली थी।”



” शिल्पी हितेन के साथ प्रियंका और तोषु भी तो आ रहे हैं। पहली बार घर कितना पुराना दिखता था बाथरुम तो बिल्कुल काले पड़ गए थे। अब तो सब काम खत्म ही समझ छोटी। कल आ जा एक बार बाज़ार चलेंगें कुछ पर्दे, चादर व पायदान लाने हैं।” अमृता का मन बैचेन था स्वागत के लियें।

“अच्छा ठीक है जीजी खाना खा कर चलेंगें आप अच्छा सा कुछ बना रखना।” शिल्पी का जबाब सुन शांति पड़ी अमृता को। याद है उसे पैंतीस साल से घर के पर्दे बदले ही नहीं गए थे। पेंट भी रंजन ने पंद्रह साल पहले करवाया था। पैसे की किचकिच बनी जो रहती थी। सरकारी नौकरी में मिलता ही क्या था। अमृता ख़ुद भी तो टीचर की नौकरी करती थी परन्तु पहले कितनी भी मेहनत कर लो पैसा हाथ में रहता ही नहीं था। बेटे की पढ़ाई व विदेश भेजने का कर्ज चुकाते कमर टूट गई थी।

आजकल लोगों के पास पैसा तो है पर समय नहीं है किसी के लियें वो तो शिल्पी ही है जो हमेशा बुलाते ही दौड़ी आती है वैसे अमृता भी शिल्पी पर जान छिड़कती है याद है उसे माता पिता ने दोनों बेटियां को स्नेह से पाला था और दुनिया से विदा लेते समय माँ ने वादा लिया था दोनों से कि एक दूसरे का साथ कभी मत छोड़ना।

कल रात की फ्लाईट से हितेन एयरपोर्ट पहुंच जाएगा। अमृता ने उसकी पसंद का नाश्ता बना लिया था। बार बार घर में घूम घूम कर चमकते घर को देख खुश हो रही थी।

एयरपोर्ट शिल्पी, निखिल और अमृता हितेन को लेने पहुंचे।



हितेन आते ही माँ के गले लगेगा अमृता को पूरी आशा थी परन्तु ऐसा नहीं हुआ। माँ और मौसी को  प्रियंका से मिलवाया। तोषु सो रहा था उसे हितेन ने गोदी ले रखा था। तभी पीछे से प्रियंका के माता पिता आ गए। एक बार वो लोग रंजन से मिलने आये थे इसलिए अमृता उन्हें देखते ही पहचान गई। कुछ देर बाद प्रियंका अपने माता पिता के साथ चंडीगढ़ चली गई और हितेन माँ के साथ घर गया।

घर देखते ही बोल “वाह क्या बढ़िया घर बना रखा है माँ। पापा के बाद भी आप अकेले खुशी से रह रही हो चलो बढ़िया है माँ।” अमृता को बेटे की बात तंज की बू आई।

गुस्से को पी गई दोनों बहनें क्योंकि माँ तो गले लगने को तरस रही थी बहु के स्वागत से वंचित रह गई। पोते को गोदी लेने की इच्छा अधूरी रह गई। क्या शिकायत करतीं चुप रहना ही उचित था।

तीन दिन अमृता के पास जैसे तैसे बिता हितेन अपनी सुसराल चंडीगढ़ चला गया। अमृता को खालीपन बहुत अखर रहा था। इससे पहले उसे घर में कोई कमी नहीं लगी। सोंचने लगी कि बेटे के मन में तो कोई प्यार बाकी ही नहीं है। आँखों में चंद आंसू भर आये।

पंद्रह दिन बाद हितेन प्रियंका को ले घर लौटा तो उस ने बताया तीन दिन बाद वापिस चला जायेगा। चलो तीन दिन ही सही मन की एक आध इच्छा तो पूरी करने का मौका मिला। यहाँ भी अमृता तरसती रह गई बहु प्रियंका अपनी मर्ज़ी से तोषु को रखती पानी तक अमृता तोषु को नहीं पिला पाती। अमृता की ममता का एक भी भाव हितेन को दिखाई नहीं दे रहा। बेटा कैसा निर्मोही हो गया है आया तो माँ से मिलने था परन्तु माँ के साथ से ज़्यादा सुसराल में रहना पसंद किया और अब प्रोपर्टी बेचना चाहता है।



आज तो हद हो गई जल्दी से शिल्पी को कॉल किया और फौरन आने को कहा। भागी चली आई शिल्पी। आते ही हितेन के मुँह पर कस के थपड जड़ दिया। हैरान हितेन कुछ समझता इससे पहले ही गुस्साई शिल्पी बोली, ” निकल जीजी के घर से, बेटे होने का कोई कर्तव्य तो तुझे याद नहीं जब से आया है जीजी की ममता का निरादर कर रहा है एक बार भी माँ के गले नहीं लगा, एक बार भी अपना बेटा माँ की गोदी में नहीं डाला और तेरी पत्नी ने भूले से भी माँ को सम्मान नहीं दिया परन्तु जीजी का घर बेचने को ‘डीलर’ बुला लिया। जीजी पर तेरा कोई अधिकार नहीं है वो तेरे साथ मरने के लियें अमेरिका नहीं जाएंगी समझ ले अच्छी तरह।”

अमृता एक कोने में बैठी रोये जा रही थी इतना तो वो पति के देहांत पर भी नहीं रोई। प्रियंका जो अभी तक सिर्फ़ मेहमान बनी हुई थी शिल्पी से बोली, “तो क्या आप लेना चाहती हो ये मकान। इसलिए ही मम्मी जी के साथ बनी रहती हो।”

अमृता के कानों में जैसे ही ये शब्द पड़े आगे बढ़ कर आव देखा न ताव दो तमाचे प्रियंका को जड़ दिए। कमरे में जा हितेन का सारा समान पैक करने लगी।

बाहर समान ला पटका,” निकलो इसी समय मेरे घर से बेशर्मों। मैं सब कुछ सह लेती पर प्रियंका की बदजुबानी नहीं सहूंगी। शिल्पी की बेइज्जती करने का इसे किस ने हक दिया।” लज्जित वितान अचानक माँ के पैर पकड़ माफ़ी मांगने लगा, अपने पैर खींचते हुए अमृता बोली शिल्पी से माफी मांग क्योंकि मुझे से ज़्यादा उसे अपमानित किया गया है।”

अमृता तपाक से कमरे से प्रोपर्टी के पेपर ले आई और प्रियंका को पकड़ाते हुए बोली “रख इन्हें मेरे मरने के बाद इस मकान को बेचने अमेरिका से चली आना अब जाओ सब यहाँ से। मेरे मरने तक अपना मुँह मत दिखाना तुम दोनों।”

गीतांजलि गुप्ता

नई दिल्ली©®

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